राधा सी सती

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शाम को छत पर टहलना बेहद पसंद था मुझे । रोज सुबह एवं शाम को हाज़िरी लगाने मैं छत पर अवश्य जाया करती थी। वैसे छत पर जाने की अनुमति नहीं थी मुझे । मेरे पापा एवं मां का कहना था कि हमारा आंगन और घर इतना बड़ा तो है ही कि हम को छत पर जाने की जरूरत ना पड़े । इसमें कोई शक नहीं था कि हमारा घर किसी रजवाड़ों के घर से कम नहीं था लेकिन परिधि में गिरा एक मकान था । गिने-चुने लोगों का ही आना जाना था वहाँ। उन गिने-चुने लोगों में एक काम