Bhadukada - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

भदूकड़ा - 28

’सिर दर्द ठीक हुआ दादी? आखिर कितनी देर तक चम्पी करूं मैं?’ चन्ना की आवाज़ से सुमित्रा जी फिर वापस लौट आई थीं. मुस्कुरा के बोलीं-

’अब तो हवा हो गया सिरदर्द. जाओ तुम बढ़िया सी ड्राइंग बनाओ तितली की, फिर हमें दिखाओ. अच्छी बनेगी तो इनाम मिलेगा.’

’इनाम...... यानी चॉकलेट? बड़ी वाली? है न दादी?’

सुमित्रा जी ने हां में सिर हिलाते हुए चन्ना के सिर पर चपत लगायी और खुद टीवी में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगीं. ये हिन्दुस्तानी सीरियल भी न...... इतनी साजिशें भरी पड़ीं हैं इनमें, जैसा वास्तविक ज़िन्दगी में होता ही नहीं..... मन ही मन भुनभुना रहीं थीं सुमित्रा जी... तभी उनका ध्यान अपने ही आखिरी वाक्य पर गया. क्या सचमुच नहीं होतीं इतनी साजिशें वास्तविक ज़िन्दगी में? तब उनकी ज़िन्दगी क्या टीवी सीरियल थी? झूठी कहानी? पाठकों के साथ मज़ाक कर रहीं क्या सुमित्रा जी?

’...... न! मेरी कहानी का तो एक शब्द भी झूठा नहीं! एक भी दृश्य अतिरिक्त नहीं..... जो जैसा घटा, मैने बयां कर दिया. मैं झूठ नहीं बोलती, आप सब जानते हैं न?

तो फिर बताइये न सुमित्रा जी, आगे क्या हुआ? भैया जान गये असली बात, फिर?

फिर क्या होना था? जितनी गम्भीर सुमित्रा जी थीं, उतनी ही गम्भीरता बड़े भैया में भी तो थी. उन्होंने भी कुन्ती से कुछ कहना उचित नहीं समझा या शायद कुन्ती को इस लायक़ ही नहीं समझा कि उससे इस सन्दर्भ में कोई बात कही जाये.

सिर के पीछे दो तकिये लगाते हुए सुमित्रा जी अब ज़रा टिक के बैठ गयी हैं. मोबाइल उठाया. फ़ेसबुक खोलना और पोस्ट देखना आ गया है उन्हें. फ़ेसबुक पर गयीं तो पहली पोस्ट ही किशोर, यानी कुन्ती के बड़े बेटे की दिखी. उसने अपने बचपन से लेकर स्कूल जाने तक की कुछ तस्वीरें पोस्ट की थीं. उस ज़माने में जैसी फोटो खिंचती थीं, वैसी ही थी तस्वीरें. मोटा-मोटा काजल लगाये किशोर.... इस काजल की भी तो कहानी है....किशोर की आंखें बहुत सुन्दर थीं. चेहरा भी बड़े दादाजी जैसा ही था. कुन्ती पर तो दोनों बेटे नहीं गये एकदम. तब किशोर दो साल का था. अपने बच्चों को नहलाने के साथ-साथ सुमित्रा जी किशोर को भी नहला के तैयार कर देती थीं. उस दिन भी किया. जब काजल लगाने लगीं, तो ज़रूरत से ज़रा ज़्यादा ही मोटा काजल लग गया. उसकी आंखें देख उन्हें खुद हंसी आ गयी. उनका हंसना और कुन्ती का आना लगभग एक साथ ही हुआ.
कुन्ती ने जैसे ही उन्हें हंसते देखा तो पहले तो समझ न पाई कि सुमित्रा इतनी प्रसन्न क्यों है आखिर, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र किशोर पर पड़ी, सारा माजरा समझ में आ गया . उसे लगा हो न हो सुमित्रा ने उसके बेटे का मज़ाक उड़ाने के लिये ऐसा काजल लगाया होगा. आव देखा न ताव, कुन्ती ने काजल की डिबिया उठाई और ढ़ेर सारा काजल निकाल के किशोर के पूरे मुंह पर पोत दिया. सुमित्रा जब तक कुछ समझ पाती तब तक किशोर का चेहरा रंगा जा चुका था. इस अचानक हुए हमले से छोटा सा बच्चा भी अचकचा गया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा. फिर पूरे दिन किशोर वैसी ही शक्ल लिये घर में घूमता रहा. कुन्ती ने चेहरा धोने ही नहीं दिया. उल्टे जैसे ही सुमित्रा दिखती तो बड़े व्यंग्य से टोकती कुन्ती- ’अब नई आ रई हंसी? हंस लो न. अपने बच्चों का बनाया कभी तुमने ऐसा मज़ाक जैसा हमारे लड़के का बनाया? अब शांत हुआ जी तुम्हारा?’ सुमित्रा जी कट के रह गयीं.
(क्रमशः)