Bhadukada - 53 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 53

Featured Books
  • एक मुलाकात

    एक मुलाक़ातले : विजय शर्मा एरी(लगभग 1500 शब्दों की कहानी)---...

  • The Book of the Secrets of Enoch.... - 4

    अध्याय 16, XVI1 उन पुरूषों ने मुझे दूसरा मार्ग, अर्थात चंद्र...

  • Stranger Things in India

    भारत के एक शांत से कस्बे देवपुर में ज़िंदगी हमेशा की तरह चल...

  • दर्द से जीत तक - भाग 8

    कुछ महीने बाद...वही रोशनी, वही खुशी,लेकिन इस बार मंच नहीं —...

  • अधुरी खिताब - 55

    --- एपिसोड 55 — “नदी किनारे अधूरी रात”रात अपने काले आँचल को...

Categories
Share

भदूकड़ा - 53

ग्वालियर में सुमित्रा जी का घर ऐसी जगह है, जहाँ से होकर, झांसी से आगरा-ग्वालियर जाने वाली सभी बसें गुजरतीं हैं। यहां स्टॉपेज तो नहीं है लेकिन कुंती बस रुकवा लेती है दो मिनट के लिए और उतर जाती है ठीक घर के सामने। गाँव से जितने भी लोग बसों से आते हैं वे सब यहीं उतरते है। काहे को 5 किमी अंदर बस स्टैंड तक जाना? तिवारी जी ने बड़ी लगन से घर बनवाया है। घर के बाहर बड़ा सा बगीचा, पीछे की तरफ किचन गार्डन, आम, अमरूद, अनार, सहजन, जामुन सब लगा है उनके बगीचे में। बाहर लम्बा सा बरामदा जिसमें बड़ा सा झूला पड़ा है। उसके आसपास ही बेंत के सोफ़े, तिवारी जी की आराम कुर्सी और बीच में आयताकार कांच की टेबल। शाम की चाय यहीं होती है। सुमित्रा जी का मटर छीलना, पेपर पढ़ना, या झमाझम बारिश देखने का काम झूले पर ही होता है। कई बार तो वे सो जाती हैं इसी झूले पर। पांच बेडरूम , रसोई, स्टोर, पूजाघर, स्टडी, लिविंग रूम, डायनिंग स्पेस...सब बहुत व्यवस्थित। रूपा-दीपा के कमरे रोज़ साफ़ करवाये जाते हैं। वे जब आती हैं तो अपने कमरे में ही रुकती हैं। एक कमरा अज्जू का, एक सुमित्रा जी का और एक मेहमानों का। कोई न कोई आता ही रहता है तो एक बढ़िया सा गेस्टरूम बनवाया था तिवारी जी ने। घर के पिछवाड़े भी बड़ा सा बरामदा और किचन गार्डन था जिसमें हर तरह की सब्ज़ी उगाती थीं सुमित्रा जी, माली की मदद से।
सुबह उठते ही तिवारी जी म्यूज़िक प्लेयर पर गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शिव चालीसा या हनुमान चालीसा की सीडी लगा देते इस प्लेयर से जुड़े बहुत से छोटे छोटे स्पीकर थे, जो हर कमरे में लगे थे इस तरह पूरा घर सुबह से भक्तिमय हो जाता।
जो कोई भी सुमित्रा जी के घर आता, यहां का सात्विक, सकारात्मक माहौल उसे कई दिन तक यहीं टिके रहने पर मजबूर करता। दोनों प्राणी सबका खुले दिल से स्वागत करते। कोई दिखावा नहीं।
आज भी कुंती का इंतज़ार करतीं सुमित्रा जी झूले पर ही लेट गयी थीं। बस के तेज़ हॉर्न से चौंक के उठीं तो देखा कुंती गेट खोल रही थी। दौड़ के सुमित्रा जी ने उसे गले लगा लिया। जैसे पता नहीं कितने जन्मों बाद मिलीं हों। वैसे इधर तीन साल हो भी गए थे मुलाक़ात हुए।

कुंती अपनी हमेशा की धज में थी। कंधे पर टांगने वाला एक बुद्धिजीवी झोला, जिसमें तौलिया, ब्रश, जीभी, और एक सेट साड़ी-ब्लाउज़ का। हाथ में एक झोला, जिसमें घर के पके आम और थोड़े से कच्चे आम थे। एक छोटा डिब्बा मिठाई का भी था। कुंती के साथ बस कंधे पे टँगे झोले का सामान ही चलता था, हर जगह। कुल इतने ही सामान की उसे ज़रूरत पड़ती थी। हाथ के झोले के फल मौसमानुसार बदल जाते थे।
सुमित्रा ने कुंती के दोनों झोले अपने हाथों में पकड़ लिए थे, जिन्हें जल्दी ही अज्जू ने ले लिया। दोनों बहनें रो रही थीं। ये बहनें भी न....खुश होती हैं तो रोती हैं, दुखी होती हैं, तब तो रोना ही है। अज्जू बहुत चिढ़ाता है इन दोनों को, इनके रोने पर। तिवारी जी भी उठ चुके थे। बल्कि घर का हर सदस्य कुंती के स्वागत में उठ गया था। आज रविवार था तो सब फुरसत से थे। कोई भागमभाग नहीं।
"कुंती, तुम इतनी दुबली काय हो गईं बैन?" तीन साल न मिल पाने का दुख आंसुओं से बहा लेने के बाद अब सुमित्रा जी ने कुंती को ध्यान से देखा। कुंती सचमुच ही बहुत दुबली हो गयी थी। पहले भी बहुत मोटी तो नहीं थी लेकिन भरा भरा बदन था उसका। तीन साल पहले तक उसके गालों पर स्वास्थ्य की चमक थी। लेकिन अब उसकी आँखों के नीचे पड़े काले घेरे, उसकी सांवली रंगत को और सांवला बना रहे थे। कुंती के हाथ-पैर हमेशा से बहुत नरम और सुंदर थे, लेकिन अभी पैरों की फटी बिवाई और उसी तरह के कटे फटे हाथ देख के सुमित्रा जी का दिल भर आया। उनका मन सब सुन लेने का था, तीन साल की पूरी गाथा सुनना चाहती थीं वे लेकिन तिवारी जी ने टोक दिया
"भाभी, आप जाइये पहले हाथ मुंह धो के फ्रेश हो जाइए, चाय पी ली लीजिये, तब आराम से बातें कीजिये।"
सही तो है। रात तीन बजे की बस में बैठी होगी कुंती, तब तो छह बजे आई है। कितनी थकी होगी और सुमित्रा जी हैं कि सवाल पर सवाल....!
कुंती जल्दी ही हाथ मुंह धो के आ गयी। दोनों बहनें बाहर झूले पर आ गईं। तिवारी जी अपने दैनिक योग-प्राणायाम में व्यस्त हो गए। वैसे भी वे दोनों को बातचीत का मौक़ा देना चाहते थे।
क्रमशः