Bhadukada - 48 books and stories free download online pdf in Hindi

भदूकड़ा - 48

कुंती ने तो देखते ही हां कर दी। शास्त्री जी को कह दिया कि जल्दी ही ओली डालने आएंगीं। किशोर कुंती के फैसले से थोड़ा परेशान भी हुआ लेकिन उसकी कब चली है जो अब चलती? रास्ते में किशोर ने दबी जुबान से अपनी बात कहनी चाही तो कुंती ने घुड़क दिया। घर आ के कुंती ने बिना किसी ज़िक्र के ही रमा को टेर लगा लगा के ऊंची आवाज़ में लड़की की सुंदरता का बखान शुरू किया तो छोटू के कान खड़े हुए। उसकी समझ में आ गया कि हो न हो अम्मा उसी के लिए लड़की देख के आईं हैं। किशोर से पूछा तो उसने थोड़ी आनाकानी के बाद सब उगल दिया। ये भी बताया कि लड़की सचमुच सुंदर है। अम्मा के मुंह से छोटू ने पहली बार किसी का इतना गुणगान सुना था सो उसके मन में भी इस लड़की को देखने की इच्छा जागी। लेकिन देखे कैसे? किशोर से अनुनय की तो उसने साफ मना कर दिया कि भैया, तुम्हारे चक्कर में हमें अम्मा की गलियां नहीं खानी तुम अपना कोई और जुगाड़ जमाओ। बहुत सोचने के बाद छोटू ने गांव के ही अपने एक दोस्त रघु को पटाया और ठाठीपुरा जाने को राज़ी किया। रघु अगले ही दिन साइकिल से ठाठीपुरा रवाना हो गया और लड़की की पूरी दिनचर्या पता लगा आया। ये अलग बात है कि ये सब जानकारियां जुटाने में उसे भारी पापड़ बेलने पड़े।
रात को जब रघु लौटा, तो उसने सारी ख़बर देते हुए बताया कि लड़की का नाम छाया है, और वो रोज़ सुबह शंकर जी के मंदिर पर जल चढ़ाने जाती है। लड़की सचमुच अप्सरा सी है। अब तो छोटू का मन न लगे। इसी गुड़तान में लग गया कि कैसे भी एक बार लड़की को देख आये। यहां भी भगवान ने उसकी सुन ली और उसका ठाठीपुरा जाने का जुगाड़ जम गया। हुआ यों कि तीन दिन बाद ही उसका पीडब्ल्युडी का जो एग्ज़ाम होना था, उसका सेंटर झांसी मिला और ये गांव झांसी जाने वाले रास्ते पर ही पड़ता था। पेपर दस बजे से होना था तो छोटू ने बड़े सबेरें ही जीप से निकलने का प्रोग्राम बना लिया। दो दिन राम राम करते बीते। तीसरे दिन जब छोटू बड़े सबेरें तैयार होने लगा तो कुंती को बड़ा आश्चर्य हुआ। झांसी माने गांव से बस एक घण्टे का रास्ता। उसके लिए छह बजे क्यों निकलना? लेकिन छोटू ने पेपर के दिन कोई रिस्क न लेने का हवाला देते हुए कुंती को आश्वस्त किया। किशोर और छोटू नाश्ता करके सुबह छह बजे झांसी के लिए निकल लिए। सबा छह बजे उनकी जीप ठाठीपुरा गांव के शिव मंदिर के पास खड़ी थी। छोटू की समझ मे ही न आये कि वो लड़की को पहचानेगा कैसे? किशोर ने भी असमंजस जताया कि भाई हमने कौन सा लड़की को आंखें गड़ा गड़ा के देखा था जो पहचान लेंगे?
अभी दोनों भाई गुत्थी सुलझा ही रहे थे, कि सामने से शास्त्री जी आते दिखे, जिन्हें किशोर पहचानता, उसके पहले उन्होंने ही किशोर को पहचान लिया।
"अरे लाला साब, आप इधर, इतनी सुबह कैसे?"
अब किशोर सकपकाया। अचानक उसे कोई उत्तर ही न सूझा तो छोटू ने बात संभाली।
"वो हम लोग झांसी जा रहे थे। रास्ते में मन्दिर दिखा तो रुक गए प्रणाम करने। आज परीक्षा है न तो भगवान का आशीर्वाद ज़रूरी है।"
शास्त्री जी ने छोटू की ओर गहरी नज़र से देखा, फिर रास्ते की ओर देखा। गांव तो झांसी के रास्ते से ज़रा अंदर उतर के है..... लेकिन अनुभवी नज़रें समझ गयीं कि यही उनके होने वाले दामाद साब हैं और हो न हो, छाया को देखने की गरज से यहां रुके हैं।
"हें हें हें... कह तो ठीक रहे हैं लालाजी। लेकिन झांसी की रोड तो वो सीधी जाती है न? ख़ैर अब आ ही गए हैं तो घर चलिए, चाय वाय पी के आगे निकलिए।"
शास्त्री जी का प्रस्ताव सुन के किशोर घबरा गया। तुरन्त बोला-
"नहीं नहीं शास्त्री जी। हम चाय पी के निकले हैं। वैसे भी अम्मा को पता चलेगा तो बहुत गुस्सा होंगीं। सो हमें घर न ले जाइए। हमने दर्शन कर लिए हैं, अब निकलेंगे।"
छोटू तिलमिला के रह गया। इतना अच्छा मौका हाथ आया है और ये बड़े भाईसाब उसे गंवाए दे रहे!! तब तक शास्त्री जी की आवाज़ सुनाई दी-
"अरे तो अब हम कौन ग़ैर हैं? फिर आपकी अम्मा को कौन कहने जा रहा? हम ज़रा जल चढा दें, क्योंकि आज बिटिया आई नहीं तो उसके नाम का जल चढ़ाने आये हैं, फिर घर चलते हैं।"
किशोर ने इंकार को मुंह खोलना चाहा, लेकिन छोटू ने उसका हाथ दबा दिया तो चुप रह गया।