Bepanaah - 8 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | बेपनाह - 8

बेपनाह - 8

8

ऋषभ आ गया है यह खुशी उसके लिए बहुत मायने रखती है । उसके आने से जिस्म में जान लौट आई थी लेकिन ऋषभ तुम जरा सी बात के लिए दूर चले गये, कभी सोचा भी नहीं कि तुम्हारा यूं जाना, मौत के समान था। तुम वापस तो आ गए लेकिन यहाँ सबके सामने खुद को भाई बना कर पेश कर दिया। क्या भाई को कोई पति या बोयफ्रेंड बना सकता है ? ऋषभ यह इंडिया है और हम हिन्दू, यहाँ पर इंसान ही इंसान को जीने नहीं देता है वहाँ पर भाई को किसी भी कीमत पर पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता । अब क्या करूँ और किस तरह से ऋषभ के द्वारा की गयी गलती को सुधारूँ ? उसके मन में इन साब बातों को लेकर मंथन चल रहा था ।

“शुभी सुनो, तुम्हें आइसक्रीम लेनी है तो उधर से ले लो तुम्हारा मन पसंद फ्लेवर भी है ।” नाजमा ने जब आकर बताया तो उसकी तंद्रा भंग हुई ।

कितनी प्यारी है नाजमा ! हमेशा उसका बेहद ख्याल रखती है भले ही मैं उसे कितना भी परेशान क्यों न कर लूँ ।

“हाँ हाँ बहन, मैं ले रही हूँ ! तुमने खा ली न ?”

“हाँ मैंने खा ली है ।”

आइस क्रीम लेते हुए उसका मन फिर से ऋषभ की बातों और उसके ख्यालों में खोने लगा ! उफ़्फ़ यह सोचने की बीमारी ! उसने अपने सिर को हल्के से झटका दिया ! ऋषभ तुम डिप्रेशन का शिकार नहीं हुए बल्कि तुमने मुझे डिप्रेशन में डाल दिया ! जब थोड़ा सुधरने लगी तभी तुम फिर से जीवन में लौट आए । नहीं पता कि यह खुशी की बात है या दुख की ।

“चलो अभी जल्दी से आइस क्रीम खत्म करके यहाँ से रिहर्सल पर चलो, नहीं तो सर नाराज होंगे और फिर हमें ही अच्छा नहीं लगेगा ।” शुभी ने अपना दिमाग ऋषभ की तरफ से हटाते हुए नाजमा से कहा ।

“हाँ चल, फटाफट से खत्म कर ले, वैसे शुभी आज तू बड़ी समझदारी की बात कर रही है ।”

“हाँ बनना पड़ता है समझदार, अरे हाँ तुम्हें पता है कि आज अभी हिना मुझसे कह रही थी कि किसी होटल में रूम लेकर रहेंगे ।”

“हाँ वो मुझसे भी कह रही थी लेकिन तू उसकी बात पर ध्यान मत दे, वो तो ऐसी ही पागल है लेकिन तेरी सर से खामखाह डांट पड़ जायेगी ।”

“हाँ नहीं ध्यान दे रही, बस बता रही हूँ क्योंकि उसको तो पहले ही मना कर दिया था ।“

“सही किया ! वो तो यूं ही मस्ती करने को आई है । सर की लाड़ली बेटी है इसीलिए उसका दिमाग खराब है ।” नाजमा ने मुझे समझाते हुए कहा ।

“ठीक है मेरी माँ ! अब चलें ?”

“पहले आइसक्रीम तो खा लो फिर चलना मेरी बेटा।”

नाजमा की बात सुनकर उसे ज़ोर की हंसी आ गयी ! सच में जहां अपनापन होता है वहाँ सब अच्छा लगता है ।

कमरे में पहुँचते ही सर बोले, “पहले तुम लड़कियों की रिहर्सल करा देते हैं जिससे तुम लोग फ्री हो जाओ और अपने कमरों में चली जाओ फिर हम सब लोग करते रहेंगे ।” वाकई सर कितना ख्याल रखते हैं । जैसे वे ग्रुप में सबसे बड़े हैं उसी हिसाब से अपनी पूरी ज़िम्मेदारी से काम भी करते हैं ।

चेहरे के हावभाव, पैरों के मूवमेंट, बोलने के तरीके सब चीजें बड़ी बारीकी से सिखाते हैं जैसे किस डायलॉग में कैसी आवाज निकालनी है और कहाँ से निकालनी है आदि !

एक एक बात को बार बार बताएँगे और बार बार कराएंगे भी जिससे स्टेज पर जाकर किसी से कोई गलती न हो जाये । एक छोटी सी गलती के लिए भी कोई माफी नहीं मिलती है ! यह थिएटर है और यहाँ सब जीवंत होता है एक बार मौका मिलता है दुबारा नहीं, जैसे जिंदगी में कोई रिटेक नहीं, वैसे ही थियेटर में भी नहीं, यह फिल्म नहीं है कि बार बार मौके मिलते रहे ! जो एक बार कर दिया बस समझो कर दिया । वे बड़े प्यार से समझाते ।

उनकी बातें कभी बड़ी उभाऊ लगती थी लेकिन जबसे समझ आने लगी तब से लगता है कि सच जीवन का सही ज्ञान तो सर के पास ही है क्योंकि उनके पास अनुभव है और जिसे अनुभव उसके पास ज्ञान का खजाना है ।

लगातार तीन घंटे रिहर्सल के बाद सर ने साब लड़कियों को अपने कमरे में जाने के लिए कह दिया । उस कमरे में एक डबल बेड पड़ा था और एक दीवान था । हिना डबल बेड पर मुंह फुलाये लेटी हुई थी, वही उसके पास शुभी लेट गयी और काजल दीवान पर, अब बची नाजमा, वो बेचारी कहाँ लेटे ?

“आओ इसी बेड पर आ जाओ, हम तीन लोग आराम से सो जाएँगे।“ शुभी ने कहा ।

“नहीं नहीं, हम दो ही बहुत है ! देख नहीं रही कि ए सी चल नहीं रहा॰ एक पंखा ही है बस और गर्मी इतनी ज्यादा है ।” हिना तेजी से बोली ।

“नजमा दी, आप यहाँ मेरे पास दीवान पर सो जाओ ।”काजल ने कहा ।

“अरे तुम सब आराम से सो जाओ, मेरी चिंता न करो, मैं यहाँ जमीन में चादर बिछा कर सो जाऊँगी ।”

“जमीन में क्यों ?” उसने परेशान होते हुए कहा !

“क्यों जमीन में नहीं सो सकते ? बल्कि मुझे यहाँ बहुत अच्छी नीद आएगी और जब थकान हो रही हो तब कहीं भी सो सकते हैं ! पत्थरों पर भी बढ़िया नींद आ जाती है जब हमें थकान हो रही हो ।” नाजमा ने किसी दार्शनिक की तरह समझाते हुए कहा ।

नाजमा ने अपने बैग को खोला और उसमें से गहरे नीले रंग की एक फूलदार चादर निकाली और कमरे के कोने में रखी हुई चटाई को बिछाकर उस पर वो चादर बिछाई सिर के नीचे बैग रखा और चेहरे को चुन्नी से ढँक कर आराम से लेट गयी ।

“ नाजमा यह मेरा तकिया ले ले बहन, क्योंकि मैं तकिया नहीं लगाती हूँ ।” शुभी ने अपना तकिया उसे देते हुए कहा ।

“अरे तू रहने दे मेरी प्यारी बहन, मेरा हो गया और सुन मुझे सोने दे, परेशान मत करना, बहुत तेज नींद आ रही है ।” नाजमा ने बड़े प्यार से उससे कहा ।

“ठीक है बाबा नहीं करूंगी लेकिन पहले तकिया लगाकर आराम से लेट जाओ।” शुभी भी उसी मूड में बोली।

वो सो गयी थी। जीभर काम करने के बाद ऐसे ही नींद आ जाती है कहीं भी कभी भी । काजल और हिना दोनों अपने अपने मोबाइल पर लगी हुई थी और शुभी की आँखों में नींद का नामों निशान नहीं था क्योंकि उसका पूरा ध्यान ऋषभ में लगा हुआ था ।

क्यों हो जाता है प्यार ? क्यों खो जाता है दिल ? क्यों किसी के लिए मन बेचैन रहता है ? कितने सवाल फिर से मन में उठने लगे थे । क्यों आ गया तू ऋषभ ? मत आता, किसी तरह से मन को समझा बुझा कर बहलाया था । कितनी मुश्किल से दुनियादारी में मन लगाया था, अब फिर से वही दर्द, वही तकलीफ, वही कष्ट, सच में प्रेम और कुछ नहीं सिर्फ दुख है, दर्द है। प्रेम में सुख तो मात्र भ्रम है और कुछ भी नहीं ।

ऋषभ के साथ गुजरे पल याद आ रहे थे और आँखों से आँसू बह रहे थे ! ऐसे ही करीब एक घंटा गुजर गया था । काजल और हिना वे दोनों भी सो गयी थी, बस शुभी की ही आँखों में नींद का नामों निशान नहीं था । अचानक से कहीं से बड़े ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाजें आने लगी ! ओहह इतनी रात को कौन रो रहा है ? किससे कहूँ सब तो सो रहे हैं ...यार यह क्या मुसीबत है, मन में थोड़ा डर सा भी महसूस हुआ । नई जगह, नया बिस्तर, नया कमरा और रात के समय किसी के रोने की आवाजें, अब भला नींद आए तो कैसे आए ?

यह किसी महिला के रोने का स्वर लग रहा है आखिर कौन हो सकता है और किसलिए रो रहा है? रोने के साथ ही हल्की हल्की किसी के बोलने की आवाजें भी आ रही थी ! “साली तू समझती क्या है खुद को, मैं तुझे चाहूँगा, क्यों चाहूँगा बता ? इतने सालों की पिटी पिटाई औरत, मैं तो उस युवती को प्रेम करूंगा, जो मेरी दीवानी है, जो अभी नई कली है और उसके लिए ही तडपूगा न ? तेरे लिए तो नहीं, तू तो अब बुड्ढी हो गयी है,, हजार बार कहा है कि मेरी किसी बात में अपनी टांग मत अडाया कर, मस्त रहा कर, तू मेरी है बस इतना काफी है न, तो फिर क्यों बेकार का चक्कर पालती है ! मेरा मन करेगा मैं वही तो करूंगा या तेरा गुलाम बनकर रहूँगा ! यार मेरी भी तो कोई लाइफ है, मेरी भी तो खुशी है।”

“लेकिन यह कैसी खुशी, कैसी लाइफ जिसमें तुझे अपनी औरत ही न दिखे ! तूने मेरे प्रेम का समर्पण का अपमान किया है किसी दूसरी के बारे में सोचकर भी ! मैंनें तो आजतक कभी किसी की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखा, किसी ने मुझे छूने की हिम्मत तक नहीं की और तू ऐसा,,,छी ...” किसी औरत की रोती हुई मिली जुली आवाज आई ।

“बड़ा बोलती है, है तो जरा सी, पर तेरी जबान बड़ी लंबी है ? दाल भात का मूसल चंद, बकवास औरत ।” किसी मर्द की तेज आवाज के साथ ठठठे मार कर हंसने की आवाज आई।

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