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बेपनाह - 18

18

“ओय कितती सोंढ़ी है ! तूने अपनी माँ से मिलाया ?”

“नहीं दादी पहले तू बता तुझे पसंद आई कि नहीं ?”

“बहुत सुंदर है ! क्या नाम है तेरा बेटा ?” वे शुभी की तरफ देखती हुई बोली ।

“शुभी !” उसने शर्माते हुए बड़ा संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।

“नाम में भी शुभ ! सुंदर भी है !” दादी के चेहरे पर मुस्कान खिल आई थी ।

यह सुनते ही शुभी को ऋषभ ने अपनी आँख से कोई इशारा किया ।

शुभी ने जल्दी से आगे बढ़कर दादी के पाँव छु लिए ! “खूब खुश रहो। सदा मुस्कुराती रहो।” दादी ने उसके सिर पर अपना कमजोर कांपता हुआ हाथ फिराया।

तभी दादा जी ने कमरे में प्रवेश किया ! शुभी ने जल्दी से उनके पाँव भी छु लिए।

“खुश रहो, खुश रहो !” दादा जी ने आशीर्वाद में अपना हाथ उठाते हुए कहा ! “और ऋषभ बेटा घर में सब ठीक है न ?”

“हाँ दादा जी, सब बढ़िया हैं !” उसने कहा ! मैं इनसे पहली बार मिल रही हूँ यह हमारे घरवालों को कैसे जानते है ? उसके मन में यह सवाल पैदा हुआ !

“दादा जी आप शुभी को जानते हैं ?” ऋषभ ने पूछा !

“कौन शुभी ?” वे बोले !

उनकी इस बात पर शुभी को हंसी आ गयी ! यह मेरा नाम तक जानते नहीं फिर मेरे घर वालों के बारे में कैसे पूछ लिया।

“यही तो है शुभी !” ऋषभ ने उसकी तरफ उंगली उठाते हुए कहा !

सच में कितने सरल और प्यारे होते हैं हमारे बुजुर्ग ! हर छल कपट से दूर ! शुभी को अपने ताऊ जी की याद आ गयी ! शुभी ने अपने दादा दादी को नहीं देखा था सिर्फ उसके ताऊ जी ही सब रिश्तों की कमी पूरी कर देते थे ! कितना प्यार करते थे वे सब भाई बहनों को, अब तो वे भी नहीं रहे ! उनकी की याद आते ही शुभी की आँखों में नमी आ गयी ।

“क्या हुआ शुभी ?”

“कुछ नहीं !”

“तो यह आँखेँ भींग कैसे गयी ?”

“बस ऐसे ही घर वालों की याद आ गयी ! चलो कोई नहीं अब मैं यहाँ आई हूँ तो पहले मुझे गाँव घूमना है ।”

“हाँ हाँ ले चलेंगे तुम्हें ! पहले चाय पीकर फ्रेश हो जाओ ठंड बहुत हो रही है न, तो तुम अच्छे से कपड़े पहने लेना।”

“हाँ ठीक है, वैसे ऋषभ तुम मेरी इतनी परवाह मत किया करो।”

“क्यों न किया करूँ ?”

“क्योंकि फिर मुझे तुमसे दूर जाने पर दुख होता है।”

“अब मैं तुम्हें कहीं दूर नहीं जाने दूंगा।”

दोनों ने एक दूसरे की तरफ मुस्कुरा कर देखा ! न जाने कहाँ का प्यार उन दोनों में आकर समा गया था ! मानों स्वयं ईश्वर ही उन दोनों के भीतर आकर बैठ गए थे तभी इतना रूप भी निखर आया था !

“ऋषभ बेटा चाय ले लो आकर ।” तभी दादा जी की आवाज लगाई !

“मैं यही पीऊँगा दादी के पास बैठकर !

“ठीक है बेटा, वहीं पर भेजता हूँ।”

तभी ट्रे पकड़े हुए करीब सोलह सत्रह साल की एक लड़की ने कमरे में प्रवेश किया उसने ट्रे को साइड में रखे स्टूल पर रखा और एक कप ऋषभ को दिया और एक शुभी को पकड़ा दिया ! पतली दुबली सुंदर सी वो लड़की गरम सूट और उसके ऊपर हाफ जैकेट पहने हुए थी ! शुभी ने उसे देखकर मुस्कुराया तो वो भी मुस्कुरा दी लेकिन बोली कुछ नहीं।

ट्रे में दो प्लेटों में मठरी और लड्डू रखे हुए थे।

“बेटा यह मठरी खाओ न चाय के साथ !” खाली चाय पीते हुए देख कर दादी बोल पड़ी ! अरे ओ रूपोली जरा इन लोगों को लड्डू और मठरी भी उठा कर दो खाने के लिए या खाली चाय ही पिला देगी ।”

रूपोली जल्दी से मठरी की प्लेट उठाकर हम दोनों को देने लगी ! अच्छा स्वाद था मठरी का एकदम खस्ता, मुंह में रखते ही घुल जा रही थी ! अब मन लड्डू खाने का करने लगा,घर के बने हुए वे लड्डू देखने में ही इतने स्वाद लग रहे थे।

“दीदी जी यह लड्डू खाइये न !” रूपोली ने प्लेट शुभी की तरफ करते हुए बड़े प्यार से कहा !

“हाँ हाँ जरूर ।” शुभी ने जल्दी से एक लड्डू उठा लिया !

बेसन का वो लड्डू एकदम से मलाई जैसा था जो मुंह में डालते ही पिघलने लगा था।

“चल यार, अब खा लिया है तो चलें ।” ऋषभ ने टोंकते हुए कहा ।

शुभी बिना कुछ बोले उसके साथ जाने को उठकर खड़ी हो गयी ! सबसे पहले तुझे अपने बाग दिखाता हूँ ! मेरे बाग में सेब बहुत होते हैं और सारे फल भी होते हैं जैसे प्लम, आड़ू आदि ।

“अरे वाह ! मुझे खाने हैं।” शुभी खुश होकर बोली ।

“यार तू पागल है क्या ? अभी किसी फल का सीजन नहीं है अभी ज्यादा कोई सब्जी भी नहीं होती है ! ठंड का सीजन है, बर्फ गिरती है जिससे कोई फल, सब्जी नहीं मिल पाती।”

“ओहह ! कोई बात नहीं॰ अब मैं सीजन में आकर खा लूँगी।”

“हाँ और क्या ! अब तो तुम्हारा आना जाना होता ही रहेगा ।” ऋषभ शुभी को देखकर मुस्कुराया ।

अगर ऋषभ वापस नहीं आता तो रूठे हुए वे सारे सुख, सारी खुशियाँ कहाँ से लौटती ! अगर यह मेरे शहर के कालेज में न पढ़ने आता तो मुझे कहाँ से मिलता और कैसे मेरा प्रेम बढ़ता ! ऐसे ही कितने सारे सवाल शुभी के मन में उथल पुथल मचा रहे थे ।

ऋषभ आई लव यू । वो एकदम से बोली । वहाँ के खुले और मनमोहक माहौल को देखकर शुभी मन खुशी से उछलने लगा था मानों हवा में उड़ रहा था।

“लव यू टू शुभी !” ऋषभ ने एक पल भी गवाए बिना बोल दिया ! उसने शुभी का हाथ कसकर पकड़ लिया और बोला देख यहाँ पर यह फिसलन भरे पहाड़ी रास्ते हैं देखना कहीं तेरा पैर न फिसल जाये ! कितना प्यार है इनके मन में ? शायद प्यार से भी ज्यादा परवाह है इनके मन में मेरे लिए, तभी हर छोटी छोटी बात का ख्याल रख रहे हैं।

“सुनो ऋषभ, तुम्हारी हर बात मान लूँगी लेकिन अब कभी कही भी नहीं जाओगे मुझे छोडकर ! बस इसी वजह से मैंने तुम्हारा इंतजार किया था।” मैं कभी नहीं फिसलुंगी तुम बेफिकर रहो ।” उसने ऋषभ के हाथ को अपने दोनों हाथो से पकड़ते हुए कहा ।

“अभी बाग में जाने को रहने दो ऋषभ, जब वहाँ पर कोई फल ही नहीं हैं तो क्या करना है जाकर । चलो यहाँ का बाजार दिखा दो, मैं देखना चाहती हूँ कि पहाड़ी गाँव में बाजार कैसे होते हैं ?”

“चलो भई बाजार ही दिखा लाते है, बाग कल दिखा देंगे।”

शुभी ने पीले रंग की लॉन्ग स्कर्ट पर, पिंक हाइनेक और काले रंग की जैकेट डाल रखी थी, ठंड ज्यादा हो रही थी इसलिए गले में पिंक कलर का स्टॉल भी डाला हुआ था ! पैरो में मोजरी पहनी हुई थी ।

मन पंख लगाये हवा में उड़ रहा था ! जी चाह रहा था कि एक ज़ोर की छलाँग लगायेँ और पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर जाकर बैठ जाऊँ किसी देवी का रूप धारण कर के फिर निरीह और कमजोर लोगों की सहायता करूँ ! अगर कुछ लोगो का भी सहारा बन सके तो शायद मानव जीवन सफल हो जाये ?”

“क्या सोच रही है शुभी ?” ऋषभ ने उसे टोका ।

“वो कुछ भी नहीं बोली और अपने आप में ही खोई रही ।

“अरे क्या हुआ है तुम्हें, बोल क्यों नहीं रही हो?” ऋषभ का स्वए घबराया हुआ था।

“क्या हुआ ? कुछ भी तो नहीं मैं यहीं हूँ तुम्हारे साथ ।”

“हाँ यही हो लेकिन शरीर से ! तुम्हारा मन कहाँ है ?”

“वो ऊन पहाड़ों में जाकर अटक गया है।”

“चलो अच्छा है, कहीं तो अटका।”

“क्या कह रहे हो तुम ? मैं सच कह रही हूँ कोई गलत बात नहीं कर रही हूँ।”

“हाँ यार, तू एकदम सच्ची है और सुन तू भोली भी है ! मेरी क्यूट डार्लिंग आई लव यू ! बहुत प्यार करता हूँ तुझे ! न जाने कैसे मेरा मन भटक गया था? शर्मिंदा हूँ यार, सच में बाइ गौड ।” ऋषभ ने अपने गले को दो उँगलियों से पकड़ते हुए कहा ।

यूं ही बातें करते हुए बाजार आ गया था । वो पहाड़ी गाँव का बाजार था ! हफ्ते में एक बार लगने वाले इस बाजार में हर तरह की वस्तु थी, घरेलू राशन का समान और जरूरत की चीजें, सब्जियाँ ! चाट पकौड़े के ठेले लगे हुए ! एक तरह से वो मेले जैसा लग रहा था ! सुंदर सुंदर पहाड़ी लड़कियां रंग बिरंगे सूट पहने ग्रुप बना कर आ रही थी ! अधिकतर सभी लड़कियां, औरतें सलवार सूट पहने हुए थी और उसपर हाफ जैकेट! कोई कढ़ाई करी हुई या कोई रंग बिरंगे कलर की ! वे सब जरूरत की चीजें लेने के लिए ही आई थी ! किसी को कपड़े लेने थे और किसी को खाने पीने का सामान फिर बाद में आइस क्रीम और चाट, बहुत ही अच्छा लग रहा था वहाँ, सब कितने खुश नजर आ रहे थे ! ऐसा लग रहा था, यहाँ पर आज ईश्वर ने बड़ी जबरदस्त रहमत दी थी ! हल्की हल्की धूप खिली हुई थी ! मौसम भी सबके संग मिलकर खुशियाँ मना रहा था ।

“ऋषभ यह यहाँ पर सब लड़कियां हाफ कोटी जैसी जैकेट पहनी हैं न, वो कितनी प्यारी लग रही है न?”

“हाँ यहाँ सभी को पहनना जरूरी होता है ।”

“जरूरी क्यों ?”

“क्योंकि यहाँ पर सूट के साथ चुन्नी लेने का रिवाज नहीं है ! क्वाँरी लड़कियां सूट पर सिर्फ जैकेट पहनती हैं और शादीशुदा अपने सिर पर स्कार्फ भी पहनती हैं।”

“ओहह! मैं यही देख रही थी कैसे पहचान होती है यहाँ क्वाँरी और शादीशुदा में ! यहाँ कोई सिंदूर नहीं डालती हैं और न कोई अन्य सुहाग चिन्ह होता है ! खैर चलो ऋषभ हम लोग भी यह जैकेट लेते हैं।” शुभी बोली ।

“हाँ चल न ।” ऋषभ बड़े खुश होकर बोले ! ऐसा लग रहा था न जाने कब से वो यही इंतजार कर रहे थे कि यह कुछ कहे और मैं इसे वो चीज दिलाने ले जाऊँ।” और ऋषभ लपक कर एक दुकान में जाकर खड़े हो गए।

“अरे बाबू जी आप कब आए?” उस दुकान दार ने ऋषभ को देखते हुए कहा।

“बस आज ही आया हूँ।”

“कब तक यहाँ पर रहने का विचार है?”

“कल चला जाऊंगा।”

“सिर्फ एक दिन के लिए ही आए हो ? कितने दिनों के बाद आए हो कुछ दिन यहीं रुक जाओ।”

“बाद में फिर आऊँगा ! अभी तो वापस जाना ही होगा।”

“चल ठीक है भाई ! वैसे आज का मौसम बड़ा अच्छा हो गया है तुम लोगो के आने से।”

“हाँ यार ! सब कुछ बहुत ही प्यारा लग रहा है ! यह पहाड़ यह वादियां और यह प्यारा मौसम।”

“हाँ ठीक कहा तुमने ! मुझे लगता है कल भयंकर बर्फ की आँधी और बारिश होने वाली है।”

“ऐसा तो मत कहो ! मुझे कल निकलना बहुत जरूरी है।”

“मुझे आसार लग रहे थे इसलिए कहा वैसे आप नेट पर देख लो, सब दिख जाएगा, खैर छोड़ो मुझे क्या करना है देखकर, हमें तो अब अगले सप्ताह ही अपनी दुकान लगानी है, तब तक आँधी तूफान आए या कुछ और मेरी बला से !”

कितना स्वार्थी है यह बंदा ! इसकी बातों से ऐसा ही लग रहा है ! शुभी मन ही मन सोचने लगी।

“अच्छा अब यह बताओ आप लोगों की क्या सेवा की जाये ?”

“सेवा किस बात की भाई, अपनी दुकान है ! जो चाहिए होगा खुद उठा लेंगे।” ऋषभ मुसकुराते हुए बोले।

“तो फिर उठाओ और ले जाओ, जो तुम्हें उठाने का मन करे ।” यह कहकर वो ज़ोर से हंसा, तो वे दोनों भी ज़ोर से खिलखिला कर हंस पड़े ।

“चल यार, फिर जरा यह हाफ जैकेट दिखा दे !”

“ये लो भाई !” कहकर उसने उन लोगों के सामने आकर ढेर सारी जैकेट ड़ाल दी !