Bepanaah - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

बेपनाह - 14

14

वे अब चुप रही कुछ नहीं बोली ! “सुनो मैं आपसे बहुत छोटी हूँ लेकिन मैं अपने आपको आपसे ज्यादा समझदार समझ रही हूँ अगर मैं आपकी जगह होती तो कभी यूं बेबस नहीं होती ! आप कुछ दिनों के लिए उनको उनके हाल पर छोड़िए फिर देखना सब सही हो जायेगा ! उनको सच समझ आयेगा ! मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपके बेपनाह प्यार की वजह से ही वे भटक गए हैं क्योंकि जिसे जो चीज ज्यादा मिलती है वो उसे और भी ज्यादा पाना चाहता है ! देखिये आपको ही सब कुछ सही करना है क्योंकि मैं चली जाऊँगी लेकिन मैं आपको हमेशा हिम्मत देती रहूँगी ! वैसे एक बात कहूँ आप सब कर सकती हो, आप जैसा चाहोगी सब वैसा ही होगा बस कमजोर होना छोड़ दो।”

वे अभी भी चुप थी ! “चलो आप अपना नंबर दीजिये क्योंकि मैं अब जा रही हूँ, बिना बताए चली आई थी ! कहीं मेरे साथी वहाँ परेशान न हो जाये ।“

वे एक कागज पर अपना नंबर लिख कर ले आयी ! वो वहाँ से आ गयी लेकिन यह सोचती रही कि किस तरह से इनके जीवन में वापस खुशियाँ आयेंगी। अभी सब लोग सोये हुए थे, वो भी चुपचाप से जाकर बेड पर लेट गयी !

मन तो उनके पास ही था ! कल सुबह सबको मसूरी जाना था वॉटर फाल देखने के लिए और माल रोड पर शॉपिंग के लिए ! वे लोग उठकर जाने की तैयारी में लगे थे और वो उदास सी लेटी हुई थी।

“क्या हुआ बड़ा सोच रही है, तुझे जाना नहीं है ?” काजल ने टोंका ।

“नहीं यार मुझे नहीं जाना ।”

“क्यों नहीं जाना, सब तो जा रहे हैं ।”

“मैं यही रुक जाऊँगी ।”

“अकेले रुकेगी ? सुन वो तेरा भाई कहाँ गया, आया नहीं प्ले देखने ?” काजल फिर से बोली ।

“पता नहीं कहाँ है, मेरी तो उससे बात ही नहीं हुई ।” शुभी ने कहा ।

“अरे क्यों ? बात करनी चाहिए उससे हाल पूछना चाहिए ।” काजल मुसकुराती हुई बोली !

“तुझे बड़ी परवाह हो रही है ? भाई मेरा है और फिक्र तुझे ।“ शुभी उसकी मुस्कान से चिढते हुए बोली ।

“हुंह मुझे क्या, एक तो तेरे भाई के बारे में तुझे याद दिला रही हूँ ऊपर से मुझे ही सुना रही है ।”

“हाँ यह काजल सही ही तो कह रही है ! उस अंजान महिला की परेशानी में ऐसा खो गयी कि उसकी याद ही नहीं आई ! बेचारा इतने दिनों के बाद लौटा है और अभी भी सब्र करके बैठा है ! उसने ही उससे कहा था कि जब समय मिलेगा मैं फोन करूंगी तुम मत करना । बेचारा प्यारा ऋषभ ।

आज उससे बात कर लेती हूँ ! शाम को आराम से बात करूंगी ! शुभी ने मन में सोचा ।

उसके सोचने के पल में ही फोन की घंटी बज उठी, अरे किसका फोन है कहीं ऋषभ का फोन तो नहीं आ गया ! मोबाइल हाथ में उठाकर देखा तो स्क्रीन पर ऋषभ का नाम ही आ रहा था ! सच में दिल से दिल को राह होती है और हम खामखाह परेशान होते हैं कि उसे हमारी परवाह नहीं है वो हमारे बारे में नहीं सोचता जबकि ऐसा नहीं होता है क्योंकि हम जैसा किसी के बारे में सोचते हैं ठीक वैसा ही वो भी हमारे विषय में सोचने लगता है ।

आज तो यह बात सिद्ध भी हो गयी ! शुभी ने जल्दी से रिसीव बटन पर क्लिक कर दिया।

“हेलो।” शुभी ने कहा।

“हैलो शुभी, कैसी हो तुम ? क्या भूल गयी, एक बार भी फोन नहीं किया ?” उधर से उलाहने भरे स्वर में ऋषभ ने उससे कहा।

“नहीं तो।, पता है ऋषभ अभी मैं तुमको ही फोन करने जा रही थी और याद तो हमेशा ही करती हूँ।”

“अब तो तुम कहोगी ही।”

“नहीं ऋषभ सच में।”

“चलो कोई नहीं ! तुम्हारा प्ले अच्छे से हो गया?”

“हाँ बहुत ही अच्छा।”

“अब क्या कर रही हो?”

“अभी तो तुमसे बात, वैसे सर सबको लेकर मसूरी जा रहे हैं क्योंकि यहाँ आठ दिन रुकना है तो आसपास थोड़ा घूम भी लें।”

“हाँ यह तो सही है ! क्या तुम भी जाओगी ?”

“मन तो है जाने का ! तुम बताओ जाऊँ या नहीं ?”

“अरे रहने दो, कहाँ जाओगी ?”

“फिर मैं यहाँ अकेले क्या करूंगी ?”

“मैं हूँ न ! हम दोनों चलेंगे।”

“चलो देखते हैं।”

“देखते नहीं पक्का।“

“ओके बाबा, पक्का।“

“कल जब सब जाये, तो तुम बहाना मार देना ठीक है न।“

“जी बिल्कुल ठीक है ।”

“फिर मैं अभी फोन रख रही हूँ ?

“क्यों भाई अभी तो किया है,थोडी देर तो बात कर लो,इतनी जल्दी क्यों ? क्या कहीं जा रही हो ?”

“नहीं जा नहीं रही हूँ ! बस सब लोग चाय पीने गए हैं न, मैं भी पी कर आती हूँ।”

“अच्छा ठीक है तुम चाय पीकर आओ ।”

वो भी तो यही चाहती थी कि ऋषभ से बात कर लूं और उसके साथ थोड़ी बहुत देर कहीं आसपास घूम भी आऊँ ! कितनी सारी बातें मन में इकट्ठी हो गयी हैं जिनको कह सुन कर थोड़ा हल्का हो लिया जाये ! प्रेम में या किसी भी रिश्ते में मन जितना साफ और खाली रहे उतना ही रिश्ता मजबूत होता जाता है ! शायद उतना ही ऋषभ भी रोये और तड़पे हो जितना मैं ! कहते भी हैं कि मजबूरी या बेबसी इंसान को इतना कमजोर कर देती है कि वो कुछ समझ ही नहीं पाता है कि उसने किसी के साथ गलत किया है या सही किया है !

अच्छा लग रहा था ऋषभ के साथ बात करके ! अब सर को कैसे मना कर दूँ कि मुझे मसूरी नहीं जाना है ! वे पहले ही कह चुके थे कि कोई लड़की यहाँ पर अकेले नहीं रुकेगी सब साथ ही रहेंगी !

“हे ईश्वर, अब तुम ही रास्ता निकालो ! हम कैसे इन बंधनों से बाहर निकलें ? उस ने अपने दोनों हाथ जोड़कर और अपना मुंह आसमा की तरफ करके कहा ! सच ही तो, हमारे सारे सुख, दुख, खुशी, गम, आशा, निराशा, सब में ईश्वर ही हमारे लिए रास्ते निकालता है और सब कुछ सही करता है !,,,,,

“सर मुझे मसूरी नहीं जाना है अगर आप कहो तो मैं भाई के घर चली जाऊँ ?” शुभी ने खूब हिम्मत जुटाकर सर से कहा !

क्यों ? क्या तुम्हें मसूरी घूमने का मन नहीं है ? सर ने पूछा !

“हाँ मन तो है लेकिन मैं भाई के पास भी जाना चाहती थी और मैंने बचपन में मसूरी घूम रखा है ।” शुभी ने झिझकते हुए कहा ।

“ठीक है अगर तुम्हारा मन नहीं है तो मत जाओ लेकिन एक बात बताओ ? क्या तुमने अपनी मम्मी से बात कर ली ? उनसे इजाजत ले ली अपने भाई के पास जाने की ।“ सर ने समझाते हुए कहा ।

“हाँ ले ली है सर !” वो एकदम से बोल पड़ी ।

“लाओ मेरी बात कराओ !” सर ने शुभी के मोबाइल को अपने हाथ में लेते हुए कहा ।

“सर अभी मम्मी से बात हुई है, वे इस समय डॉ के यहाँ गयी हुई हैं । उनके हाथ से अपना मोबाइल वापस लेते हुए शुभी ने बात बनाई ।

“चलो फिर ठीक है, आप कल जाओगी या आज ही ?”

“जब आप बताओ ?”

“तो फिर कल ही चली जाना, जब हम लोग मसूरी के लिए निकलेंगे ।“

“ठीक है सर !” शुभी ने हामी भर दी फिर ख्याल आया अगर यह मम्मी से फोन पर बात कर लेंगे तब तो जा ही नहीं पाऊँगी ।

“सर एक काम करते हैं, आप लोग कल चले जाना, मैं आज शाम को ही चली जाती हूँ ।”

“तो कल शाम तक वापस आ जाओगी ?”

“नहीं सर, मैं वापस घर चली जाऊँगी भाई के ही साथ ।“

“जो तुमको सही लगे वैसा कर लो लेकिन एक बात ध्यान रहे मम्मी से सब पूछ कर ही करना ।“ सर ने समझाया ।

“जी सर !” मैं ऐसा ही करूंगी ।“

शाम के करीब 6 बजे ऋषभ आ गए । सबसे पहले उन्होने सर के पाँव छूए फिर बाकी लोगों से हाथ मिलाया और शुभी से बोले समान पैक कर लिया है न ?

“हाँ जी सब सही से पैक कर लिया है !”

“तो चलो फिर शाम हो रही है और घर पर सब तेरा इंतजार कर रहे हैं।”

“हाँ चल रही हूँ !” उसके दिल की धड़कनें तेज हो रही थी कि कहीं झूठ कहीं पकड़ा न जाये लेकिन प्रेम की शक्ति के आगे सब व्यर्थ नजर आ रहा था।