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परती जमीन

परती जमीन

रौशन पाठक

नमन

सर्वप्रथम मैं नमन करता हूँ बाबा (दादाजी) और दाई (दादी) को फिर नमन करता हूँ पापा (पिता) और मां (माता) को| जिनके संघर्ष से मेरा अस्तित्व रहा है और आशीष से जीवन|

मैं नमन करता हूँ स्वर्गीय मुंशी प्रेमचंद जी को जिनकी रचनाये प्रेरणा भी रहीं और मार्गदर्शक भी|

धन्यवाद

मैं धन्यवाद करता हूँ आनंद पाठक (भाई ) का जिसने मुझे उत्साहित किया इस कहानी को लिखने के लिए और उससे कहीं अधिक इसलिए की उसने मुझे प्रोत्साहित किया हिंदी में लिखने के लिए|

मैं धन्यवाद करता हूँ राव्या पाठक (बेटी) का जिसकी खिलखिलाती हंसी ने मुझे व्यस्तता के बावजूद तनाव मुक्त रखा और मैं यह कहानी लिख पाया|

मैं धन्यवाद करता हूँ और राखी पाठक (बहन ) का जिसने इस किताब के आवरण पृष्ठ को अंकित किया|

मैं धन्यवाद करता हूँ रूपा पाठक (पत्नी), रूबी पाठक (बहन) और मेरे समस्त परिवार का उनके प्रेम और स्नेह के लिए|

प्रेरणा स्त्रोत

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्|

- गीता

अथार्त,

जीवात्मा का विनाश करने वाले "काम, क्रोध और लोभ" यह तीन प्रकार के द्वार मनुष्य को नरक में ले जाने वाले हैं|

प्रेरणा स्त्रोत

संतोषं परम सुखं

इंसान के समस्त दुखों का कारण उसकी अपनी इच्छाएँ है

लालच बुरी बला है

लालच इंसान का चरित्र बदल देती है

***

पात्र

रामचरण का परिवार

रामचरण, रामचरण की पत्नी - रगनिया

रामचरण के लड़के रामबाबू, जीवछ, नवजीवन, सुर्खी

मनहर का परिवार

मनहर, मनहर की घरवाली - फुलसिन, मनहर के लड़के शम्भू, सुंदर

कैलाश चमार का परिवार

कैलाश, और उसके तीन छोटे बच्चे

बलराम का परिवार

बलराम, बलराम की पत्नि - सुषमा, बलराम की बेटी - बिंदी

बलेश्वर लाल का परिवार

बलेश्वर लाल, उसकी पत्नी, 6 साल का बेटा, बलेश्वर के पिता अर्जुन लाल (बुजुर्ग)

धरमु तेली का परिवार

धरमु, धरमु की घरवाली - चंपा, धरमु का बेटा - शनिया

धरमु का छोटा बेटा - ३ वर्ष का,धरमु की दो बेटियाँ - ३ वर्ष का

गुरूजी का परिवार

राम यादव (गुरूजी), गुरूजी की घरवाली, तीन छोटे बच्चे

अन्य गाँव वाले ।

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स्थानांतरण

रामचरण ने अपने घर को निराशा भरी नज़रों से देखा, माथे से गठरी उतार कर बैलगाड़ी पर रखी, अपने छोटे बेटे सुर्खी को गोद में उठाया और सामने बैल हांकने की जगह पर बिठा दिया और फिर घर को निहारने लगा

बाबू क्या हम अब यहाँ कभी ना आयेंगे ? सुर्खी ने बड़ी मासूमियत से सवाल किया

नहीं, रामचरण ने बिना सुर्खी की तरफ़ देखे, निष्ठुर भाव से कहा

चलो, अब पहर बीतने के बाद निकलोगे क्या ?, रामचरण ने अपने सामान्य क्रोधित आवाज़ में कहा

बैलगाड़ी तैयार थी, रामचरण के बेटे एक एक कर सामान गाड़ी में डाल रहे थे

थोड़ी देर में सामान गाड़ी में रखी जा चुकी थी रामचरण की पत्नी एक टोकरी माथे से उतार कर बैलगाड़ी में रखी और कोने से चढ़ कर बैठ गयी

सारा सामान गया हो तो अब हमें चलना चाहिए, सूरज चढ़ आया है और जितनी जल्द हो हमें भरतपुर पार कर लेना चाहिए” - रामचरण ने अपने बड़े बेटे रामबाबू के तरफ देखते हुए कहा

रामचरण एवं उसका परिवार हरीशपुर से निकल पड़ा सुबह का सूरज चढ़ आया था, रास्ते सुनसान थे, घरें निर्जन पड़ी थी, कहीं एक आदमी भी नज़र ना आता था

गाँव के अधिकांश परिवार अब तक पलायन कर चुके थे, रामचरण और उसका परिवार उन इक्के - दुक्के परिवारों में से था, जो अपने पुरखों के घर और ज़मीन से दूर नहीं होना चाहता था इसलिये, गाँव के बीच कहीं-कहीं एक दो परिवार अब भी असहाय अवस्था में रह रहे थे, जहाँ छोटे बच्चे बड़े आश्चर्य भरी नज़रो से बैलगाड़ी को गुजरते देख रहे थे

बिहार का भरतपुर जिला सन १७०४ में कई सालों से सूखे की मार झेल रहा था नदी, तालाबें और कुएँ सूख चुकी थी कोई १२ किलोमीटर की दूरी पर एक कुआं था जिससे, हरीशपुर गाँव के लोगो का निर्वाह होता था वह भी अब सूखने की कगार पर था रामचरण हरीशपुर का निवासी था, अपने घर एवं जमीन से उसका अतुल्य प्रेम था वह कभी भी गाँव छोड़ने की वकालत नहीं करता यही कारण था की उसके टोले और विरादरी के सभी लोग गाँव छोड़कर अज़ीमाबाद की तरफ चले गए रामचरण शायद अब भी गाँव छोड़कर ना जाता

वह हमेशा बैठक में कहता "दादा इंद्रदेव बहुत दिन नाराज़ ना रह पाएंगे, और फिर ये बसा

बसाया घर छोड़कर कहा भटकते फिरेंगे

लेकिन पानी की बढ़ती मुसीबत ने उसकी हिम्मत तब तोड़ दी जब महीने भर पहले उसकी लाडली बेटी ने बीमारी से दम तोड़ दिया उसको दवा तो दूर पानी भी नसीब ना हुआ

यही कारण था की रामचरण ने गाँव छोड़ने का फैसला किया औरों की तरह रामचरण ने अज़ीमाबाद (पटना) की तरफ़ पश्चिम जाने की जगह उत्तर का रास्ता चुना यूं तो वो उस तरफ कभी गया नहीं था लेकिन उसके दादाजी अक्सर कहा करते थे की -

"कोशी किनारे कोई दुखी नहीं होता, माटी ही इतनी उपजाऊ है और क्यों ना हो कोशी की कृपा जो है"

दूसरा एक कारण था कि अजीमाबाद की तरफ जाकर खेती की कोई गुंजाईश नही थी और मजूरी पर आश्रित होना ही एक सहारा था रामचरण मजदूरी करना स्वाभिमान के खिलाफ समझता था, इससे बेहतर था कि किसी जमींदार से खेत बटाई पर लेकर खेती करे उसके खयाल से मजूरी करकेआदमी अपना पेट तो पाल सकता था लेकिन, अपने बच्चों को अच्छा भविष्य नही दे सकता था”|

दूसरा कारण था हर दूसरे वर्ष सूखा पड़ना और इस बार तो सूखा बहुत लंबा चला था इसके अलावा एक कारण यह भी था की रामचरण को यह मालूम पड़ा था की अज़ीमाबाद की तरफ शहंशाह अज़ीम-उश- शान सैनिक बल बढ़ाने में लगे थे, और घर घर से लोग उठाये जा रहे थे, तो इस बात का भय था की कहीं, उसके बच्चे भी उसमे दाखिल ना कर लिए जाये इसलिए रामचरण ने अजीमाबाद से दूर कहीं दूसरी जगह अपना स्थायी आश्रय बसाने का सोचा

करीब चार दिन और तीन रात यात्रा करने के बाद, भरतपुर पार करके रामचरण और उसका परिवार कोशी नदी के किनारे पहुचे संध्या की बेला हो चली थी रामचरण एवं उनके परिवार ने नदी की धारा की छलछल करती ध्वनि सुनी तो ख़ुशी से फूले ना समाये वे जाकर नदी किनारे खड़े हो गए नदी में पानी कोई विशेष अधिक् ना थी लेकिन नदी में जल को छल छल करते बहते देख उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मानो धरती पर स्वर्ग देख लिया हो जब नदी को देखकर हर्षित मन शांत हुआ तो रामचरण ने चारो और देखा, हर्षित मन एक बार को काँप उठा जगह बिलकुल भी ऐसी नहीं थी जैसी रामचरण ने कल्पना की थी वे ऐसी जगह पर खड़े थे जहाँ से पिछला गाँव देवपुरा करीब कोश दूर था नदी किनारे की जमीन खेती लायक बिल्कुल भी ना थी, पूरी जमीन उबड़ खाबड, जिस पर खेती असंभव थी, यद्यपि, पूरी जमीन हरी भरी घास से बिछी थी जो ये तो दर्शाता था कि माटी उपजाऊ है लेकिन, जहाँ तक नज़र जाती थी एक भी खेत नहीं, एक भी घर नहीं

"हमें देवपुरा वापस चलना पड़ेगा, यहाँ तो कुछ भी नहीं दिखता, वहीँ चलकर कोई रास्ता ढूंढेंगे|इतनी दूर आकर क्या हासिल हुआ, इससे बेहतर तो अज़ीमाबाद ही जाते कोई रोज़गार करते, यहाँ कैसे खेती होगी” - रामचरण की पत्नी, रगनिया उदास स्वर में बोली

यूँ तो रगनिया पति के सामने कम ही बोलती, पति का हुक्म हमेशा सर आँखों पर रखती थी लेकिन चिंता के इस घडी में उसने अपना पक्ष बे-झिझक रखा आखिर उसके परिवार के भविष्य का भी सवाल था

थोड़ी देर तक सोच विचार करने के बाद रामचरण का परिवार इस फैसले पर आया की नदी किनारे से चलते हुए थोड़ी दूर जाया जाये अगर भगवान ने चाहा कोई गाँव गया तो रात वही गुजारेंगे नहीं तो नदी किनारे ही रात में विश्राम किया जायेगा

इसी विचार के साथ बैलगाड़ी हाँकी गयी, कारवाँ फिर आगे बढ़ चला, अब सूरज पूरी तरह ढल चुका था, बस कुछ क्षण में अंधेरा होने वाला था| रामचरण गाड़ी हांकते हुए इधर इधर देखने लगा

आगे दूर दूर तक कोई गाँव नज़र नहीं आता, अंधेरा होने वाला है, आज यही विश्राम कर लेना चाहिए|” - रामचरण ने यह कहते हुए रामबाबू की ओर देखा और गाड़ी रोक दी

रामबाबू रामचरण का सबसे बड़ा लड़का था अपने पिता का आज्ञाकारी और सज्जन था वैसे रामचरण के चारों लड़के आज्ञाकारी थे इसका मुख्य कारण था, रामचरण

का कठोर स्वरूप ऐसा नहीं था की रामचरण सिर्फ कठोर था, वह ईमानदार था एवं आदर्शों और उसूलों पर चलने वाला इंसान था वह कठोर ज़रूर बोलता था लेकिन सत्य बोलता था इधर उधर की बातें करना उसे पसंद नहीं था उसका अपने परिवार के प्रति प्रेम अतुल्य था वह जानता था की ज़िंदगी बिना परिवार के व्यर्थ है उसने ऐसी ही शिक्षा अपने बच्चों को भी दी थी इसलिए उसके बच्चे कभी अपने पिता से ऊँची आवाज़ में बात नहीं करते थे, उनके पिता का कथन उनके लिए पत्थर की लकीर थी अपने पिता के सामने वो अधिक बात-चीत भी नहीं करते

रामबाबू बैलगाड़ी से कूद कर उत्तर गया, एक-एक करके बाकी लड़के भी उत्तर गए रामचरण अब भी गाड़ी पर बैठ हुआ था बैलगाड़ी पूरी तरह रुक चुकी थी

तीनों भाई इधर उधर रात बिताने के लिए सपाट ज़मीन ढूंढने लगे

यहाँ पर ठीक लगता है”, नवजीवन ने ज़मीन पर पैर ठोकते हुए आवाज़ लगाई

रामबाबू ने सुर्खी को गोद में उठाया और अपने पिता और भाई के साथ नवजीवन की तरफ बढ़ चले रगनिया अब भी गाड़ी में ही बैठी रही

अंधकार अब हावी हो चला था, चाँद की रोशनी का सहारा था, नदी किनारे की हवा में एक ठंढक थी हवा के झोंके से रगनिया के चेहरे से घूँघट उतर गयी रगनिया उम्र में रामचरण से बहुत छोटी थी लेकिन गृहस्ती के बोझ ने उसका रूप रंग उम्र से पहले ही

छीन लिया था इस चार दिन के लंबे सफर की थकान साफ़ झलकती थी उसने सिर पर पल्लू चढ़ाते हुए घूम कर देखा बाप बेटे पास में खड़े होकर कुछ बात-चीत कर रहे थे नवजीवन तेज कदमों से चल कर बैलगाड़ी तक आया और सामान की गठरी उठाने लगा

रगनिया की नज़र दूर से उठती हुई एक इजोत की तरफ पड़ी, उसने घबराते हुए नवजीवन को इशारा कर दूसरी तरफ दिखाया नवजीवन ने देखा और उसने ध्यान से देखने का प्रयत्न किया आग की लपटें बढ़ने लगी उसने आवाज़ लगाकर अपने पिताजी का ध्यान उस तरफ आकर्षित किया सभी लोग भागकर बैलगाड़ी के पास गए

रामचरण बोला - यह अलाव मालूम पड़ता है, कुछ हो ना हो वहां आदमी ज़रूर हैं, हमें उस ओर चलना चाहिए

नवजीवन ने झट गठरी वापस रखी और बैलगाड़ी पर चढ़ गया रामचरण ने रस्सी थामी और गाड़ी हांकना शुरू किया रामबाबू ने सुर्खी को चलते बैलगाड़ी में नवजीवन को पकड़ाया और जीवछ के साथ बैलगाड़ी के पीछे - पीछे तेजी से चलने लगे

बैलगाड़ी उस जगह पहुंची जहाँ नदी के किनारे अलाव जल रही थी, उससे दूर बैठे हुए कुछ मर्द बैठकर चर्चा कर रहे थे, पास ही में कई परिवार ने थोड़ी थोड़ी जगह में अपने समान के साथ रह रहे थे, कई बैलगाड़ियाँ खड़ी थी कुछ बैलगाड़ी से बैल खोल दिए गए थे और खूंटे के सहारे बांधे हुए थे

ये देख रामचरण और उसके परिवार ने चैन की सांस ली इंसान, इंसान को देखकर खुद को कितना महफूज समझता है, यह उस वक़्त रामचरण के चेहरे पर साफ़ देखी जा सकती थी

बैल गाड़ी की आवाज़ सुनकर मर्दो की टोली से कुछ लोग खड़े हो गए रामचरण गाड़ी से उतरा, पीछे से रामबाबू भी अपने पिता के साथ हो लिया रामचरण और रामबाबू उन मर्दों के बैसार की तरफ चल दिए

कौन हो तुम लोग, लोगो में से सबसे बुजुर्ग ने पूछा

मुसाफिर है बाबू, हरीशपुर गाँव छोड़कर नया बसेरा ढूंढने निकले है - रामचरण ने असामान्य मधुर स्वर में कहा|

तुम भी सूखे के मारे हो, भरतपुर से आये हो ? एक बलवान शरीर से भारी आवाज़ में दूसरे व्यक्ति ने पूछा

हां, कहकर रामचरण चुप हो गया

हम सब भी भरतपुर से ही आये हैं, और तुम्हारी तरह ही मुसाफिर है, चिंता ना करो मुसीबत में सब भाई भाई होते है - एक और सज्जन बोल पड़े

रामचरण का कलेजा प्रफुल्लित हो उठा ये तो आप सबों का बड़प्पन है जो इतने उदार हृदय से हमारा सत्कार किया - रामचरण ने गद्द-गद्द होते हुए कहा

अगर आप आज्ञा दें तो हम यही आज रात विश्राम कर ले” - रामचरण ने विनम्रता से पूछा|

आप जहाँ चाहो विश्राम करो इसमें पूछने की कोई बात ही नहीं” - बुजुर्ग के पास बैठे व्यक्ति ने चेहरे पर मुस्कान के साथ कहा

रामचरण ने रामबाबू की तरफ देखा, आँखों से इशारा हुआ और रामबाबू बैलगाड़ी की तरफ लौट गया रामचरण वहीँ सभी के साथ बैठ गया उसके बेटे एक एक करके बैलगाड़ी से सामान लाने लगे

रामचरण ने रामबाबू की तरफ देख कर नदी की तरफ इशारा किया, रामबाबू ने भाँप लिया की उसके पिताजी ने नदी किनारे ही सामान रखने का इशारा किया है

तो आप सब लोग कितने दिनों से है” - रामचरण ने बैठे हुए लोगो को संबोधित करते हुए कहा

बस आज दोपहर ही पहुँचे है, एक ने कहा

बातों का सिलसिला शुरू हुआ, सभी ने अपना परिचय दिया, कुल पांच परिवार भरतपुर के अलग-अलग गाँव से निकल कर आये थे| सभी लोगो के इस तरफ आने का कारण रामचरण जैसा ही था| सभी लोग संयोगवश एक दूसरे से रास्ते मे मिलते गए और एक टोली बन गयी सभी ने इस रास्ते को इसलिए चुना था की कहीं अगर सपाट ज़मीन खेती योग्य दिखे तो वहीँ बस कर रहने लगेंगे लेकिन, इतनी दूर के भी कहीं सपाट खेती लायक ज़मीन नहीं दिखी सभी लोग इस बात से चिंतित थे कि यूँ ही चलते रहे तो कोई तीन चार दिन में अज़ीमाबाद जायेगा और फिर मज़दूरी के अलावा और कोई उपाय नहीं रहेगा

सुना है जो भी जवान व्यक्ति अज़ीमाबाद जाता है, उसे तुरंत सेना में भर्ती कर लिया जाता है - किसी ने गंभीर स्वर में कहा|

रामचरण तुरंत हाँ में हां मिलाते हुए बोला - यह सच है, मैंने भी सुना है लेकिन कहते है सिर्फ जवान लड़कों को ही रखते है सेना में, इसीलिए मैं अपने बच्चों के साथ उस तरफ नहीं गया

किसी ने और तर्क देते हुए कहा - क्या कहते हो मैने तो यह भी सुना है की अज़ीमाबाद के आस पास के गाँव से भी लोग ढूंढे जा रहे है

जाने इंसान को इंसान से लराकर इंसान क्या जीतना चाहता है ? - बुजुर्ग ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा

किसी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था, कुछ पल के लिए सभा में एक शांति छाई रही

रामचरण ने मुद्दे को बदलते हुए पूछा - नदी के किनारे इतनी दूर तक कोई गाँव क्यों नही है ?

बुजुर्ग बोले - कई वर्ष पहले तक हर साल बाढ़ से बचने के लिए लोगो ने अपने घर नदी से दूर ही बाँधे थे, और इसलिए नदी के किनारे की ज़मीन खाली ही रही लोगो ने इस नदी से खेती के लिए अपने गाँव तक नहरे बना ली|

रामचरण ने अपने परिवार की तरफ देखा, चूल्हा खोदा जा चुका था, आग जल चुकी थी चूल्हे पर बर्तन रख दिये गये थे नवजीवन नदी से पानी लेकर ऊपर चढ़ रहा था रामबाबू बैलों को गाड़ी से खोल रहा था रगनिया चूल्हे के सामने बैठी खाना बना रही थी, सुर्खी उसके आँचल को पकडे बैठा था और कटोरी से लेकर कुछ खा भी रहा था

रामचरण अपने परिवार को देख कर ख़ुशी और गर्व से फूल उठा, तभी उसे अपनी बेटी याद गयी, और सहसा उसके चेहरे पर एक निराशा की लहर दौड़ गयी

रामचरण एक भावुक व्यक्ति था, लेकिन वो अपनी भावनाओं को कभी व्यक्त नहीं होने देता था

उसने इधर उधर देखा, और यकायक उसके मन में एक विचार आया, उसने बिना देर किये कहा - यहीं क्यों नहीं ?

पास ही बैठे गणेशिया ने उसकी तरफ देखकर आश्चर्य भाव से पूछा- क्या यही क्यों नही ?

हम सब मिलकर यहीं गाँव क्यों नहीं बसा लेते - रामचरण ने सवाल किया और सबकी ओर देखा

सभी लोग आश्चर्य होकर रामचरण की तरफ देखने लगे

वृद्ध ने बड़ी उत्सुकता से पूछा - तुम कहना क्या चाहते हो ?”

रामचरण ने विस्तार से अपने कथन के समर्थन में तर्क देना शुरू किया - हम सब गाँव से बहुत दूर चुके है, यहाँ से अज़ीमाबाद जाने में देर ना लगेगी, और अज़ीमाबाद के आगे जाने का साहस शायद कोई ना करे, इतने दिन यात्रा संभव नहीं कोई गाँव हमें इतनी आसानी से बसने का अवसर ना देगा, और अगर मिला भी तो जाने कैसा रोज़गार मिले यह स्थान नदी के बिलकुल करीब है, आखिरी गाँव यहाँ से कोश दूर है, और अज़ीमाबाद बहुत दूर इसका अर्थ यह है कि हम अज़ीमाबाद से दूर ऐसी जगह है जहाँ सैनिकों को कोई काम नहीं तो हम जो भी फसल उगाएंगे उसमे हमें कर नहीं देना होगा

सभी लोग बड़ी ध्यान से सुन रहे थे

तभी गणेशिया ने रामचरण को टोकते हुए कहा,-ये बिलकुल संभव नहीं है, हम सैनिकों से बहुत दिन छुप नहीं सकेंगे, देवपुरा से लोग भूले भटके इधर आते ही होंगे

तभी मनहर बोल पड़ा, - अरे भाई सेना और सैनिक की छोडो, सवाल यह है कि यहाँ बस इतनी ही ज़मीन खेती लायक है जितने पर हैम बैठे हैं, बाकी सारी ज़मीन ऊबड़- खाबड़ है, खेत बनाने लायक नहीं है

धरमु इतनी देर में सारी बातें सुन रहा था, अब उससे भी ना रहा गया तो वह भी बोल पड़ा, - ये मनहर ने सही कही है, जब खेत नहीं होंगे तो जीवन-यापन कैसे होगा

ज़मीन नहीं है तो बना ली जाएगी, जब सब लोग मिलकर ठान लेंगे तो खेती के लिए ज़मीन भी होगी और रहने के लिए घर भी - रामचरण ने दृढ़ता के साथ कहा

सभी लोग एक-टक रामचरण को घूरने लगे, जैसे रामचरण ने कोई ऐसी बात कह दी हो की वो बिरादरी में रहने लायक नहीं बचा

लेकिन गणेशिया ने उसका समर्थन किया और कहा - अगर सभी लोग तैयार हो तो ये हो भी सकता है

और फिर एक-एक करके सभी लोग समर्थन में आने लगे

किसी ने कहा - एकता रखनी होगी|

किसी ने कहा - और कोई चारा भी नहीं है

अंततः सर्वसम्मति से फैसला हुआ की गाँव वहीँ बसाया जायेगा अगले दिन सुबह से सभी लोग व्यस्त हो गए, बैलगाड़ियाँ तैयार हो गयी, नदी किनारे से मिट्टी खोदी जाने लगी, बाँस काट कर आने लगी

लोग दृढ़ संकल्प से कार्य मे जुट गए और स्वार्थरहित होकर सब गाँव बसाने में लग गए

मुश्किलें लोगो में अटूट रिश्ता कायम कर देती है, और साथ ही अदम्य साहस भी भर देती है एक दूसरे की सहायता करते हुए लोग पूरे जतन से लगे रहे और वो दिन गया जब एक नया गाँव बस चुका था| सभी लोगो के पास एक घर था और सभी ने एक दूसरे के सहायता से अपने लिए पर्याप्त ज़मीन को खेती लायक बना लिया था|

आगे पढ़े कहानी का भाग - - लोभ