Afia Sidiqi ka zihad - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद - 14

आफ़िया सिद्दीकी का जिहाद

हरमहिंदर चहल

अनुवाद : सुभाष नीरव

(14)

अगले दिन वह निश्चित समय पर वकील के दफ़्तर पहुँच गए। तभी एफ.बी.आई. के वही दो अफ़सर जो कि अमजद को मिलकर गए थे, वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने कुछ काग़ज़ों पर दोनों के दस्तख़्त करवाकर वकील की सहमति से इंटरव्यू शुरू कर दिया। प्रारंभ में वह कोई अधिक कठिन प्रश्न नहीं कर रहे थे। बल्कि वे बीच बीच में अमजद को ऐसे मजाक भी कर रहे थे जो कि आम लोग डॉक्टरों के बारे में करते रहते हैं। इस बात ने अमजद को निश्चिंत कर दिया कि कोई ख़तरे वाली बात नहीं है। फिर एक अफ़सर बोला, “मिस्टर और मिसेज अमजद, अब हम आफिशियल मीटिंग शुरू कर रहे हैं।“

“जी, ठीक है।“

फिर एक अफ़सर ने आफिया की ओर देखा। आफिया ने काला बुर्का पहन रखा था और मुँह-सिर दुपट्टे में लपेटा हुआ था। उसकी आँखें भी सिर्फ़ बुर्के की जालियों में से ही आधी-अधूरी-सी दिख रही थीं।

“मिसेज आफिया, आपको अपना मुँह नंगा करना पड़ेगा। क्योंकि यह ज़रूरी है।“

“नहीं, यह मैं नहीं कर सकती। यह मेरा धार्मिक अधिकार है कि मैं जैसे मर्ज़ी कपड़े पहनूँ।“

उसकी यह बात सुनकर दोनों अफ़सरों ने आपस में नज़रें मिलाईं। फिर वे उठकर एक तरफ हो गए और आपस में बातचीत करने लगे। वापस बैठते हुए उनमें से एक बोला, “मिसेज आफिया, हम आपके धार्मिक अकीदे की इज्ज़त करते हैं, पर कानून अपनी जगह है। हम आपको इतनी छूट दे सकते हैं कि आप अपने बुर्के को इस ढंग से पहने कि हमें आपका चेहरा दिखता रहे। आमने सामने की बातचीत में यह बहुत ज़रूरी है। अगर आपको यह भी मंजूर नहीं तो हम अपनी किसी औरत एजेंट को बुला लेते हैं। फिर आपको बुर्का उतारकर एक तरफ रखना पड़ेगा।“

आफिया ने स्वयं ही बुर्का ठीक कर लिया। अब उसका सारा चेहरा नंगा था। अफ़सरों ने एक इतने पर ही संतुष्टि प्रकट की। बातचीत शुरू हुई तो अफ़सर बोला, “मि. अमजद, आपके अपार्टमेंट में एक बार कोई सउदी अरब का बाशिंदा रहा करता था, वह कौन था ?“

“वह मेरे अस्पताल में ही काम करता था। उसको किराये के कमरे की ज़रूरत थी और मुझे अपने घर का एक कमरा किराये पर देना था। वह कमरा मैंने उसको दे दिया। बस, उसके बारे में इतना ही जानता हूँ।“

“उसके पास कौन आता था ?“

“हमने कभी देखा नहीं कि कभी कोई उसको मिलने आया हो।“

“आपने पिछले दिनों असले की दुकान से काफ़ी सामान खरीदा है। वो क्यों ?“

“मेरे परिवार में शिकार का शौक रहा है। मैं अपने बच्चों को उस पारिवारिक परंपरा से परिचित करवाने के लिए उन्हें शिकार के ट्रिप पर ले गया था।“

“पर वो सामान सिर्फ़ शिकार तक ही सीमित नहीं था। आपने नाइट विज़न गॉगल्ज़, बुलट प्रूफ़ जैकेट और सरवाइवल गाइड जैसी वस्तुएँ भी खरीदी थीं। यह सब किस लिए ?“

“इन सबका ताल्लुक सिर्फ़ शिकार से ही था, और कुछ नहीं।“

“मिसेज आफिया, क्या आपको बंदूक चलानी आती है ?“

“नहीं, मैंने कभी बंदूक नहीं चलाई।“

“इस शिकार के ट्रिप के समय भी चलाकर नहीं देखी ?“

“नहीं, मुझे ऐसे काम अच्छे नहीं लगते।“

“अजीब बात है कि सभी ने बंदूक चलाई, शिकार खेला, पर आपने हथियार चलाकर नहीं देखा ?“

“ये तो अपने अपने शौक पर निर्भर करता है।“ आफिया जब यह बात कह रही थी तो एक अफ़सर ने गौर से उसकी तरफ देखा। आफिया ने उसके साथ आँखें मिलाने की बजाय नीचे झुका लीं। अफ़सर समझ गया कि यह झूठ बोल रही है। इसने शिकार के समय बंदूक अवश्य चलाकर देखी होगी।

“मि. अमजद, आजकल काम का काफ़ी सारा बोझ रहता होगा ?“ एक अफ़सर ने अमजद से उसके काम की बात प्रारंभ की तो अमजद को लगा कि शायद इंटरव्यू इतनी संजीदा नहीं है। परंतु तभी अफ़सर के अगले प्रश्न ने उसकी घबराहट बढ़ा दी। वह बोला, “मि. अमजद, क्या आप कभी ओसामा बिन लादेन से मिले हो ?“

“ओसामा से ! जी बिल्कुल नहीं। मैं उन्हें कभी नहीं मिला।“

“उसकी फोटो तो देखी होगी ?“

“हाँ जी, वह तो दिनभर टी.वी. पर देखते ही रहते हैं।“

“निजी तौर पर मिलते समय फोटो से कितना भिन्न दिखाई देता है लादेन ?“

“जी, कभी मिले ही नहीं तो क्या कह सकते हैं ?“ अमजद ने ज़रा मुस्कराते हुए उत्तर दिया। एक अफ़सर इसी दौरान आफिया के चेहरे को बड़े गौर से देख रहा था। वह मन ही मन सोच रहा था कि अब यह अपने आप को इसी सवाल के लिए तैयार कर रही है जो अमजद से पूछा गया है कि क्या वह कभी ओसामा बिन लादेन से मिली है। मगर उसने दूसरे किस्म का सवाल करके आफिया को हैरान कर दिया।

“मिसेज आफिया, क्या आप कभी रम्जी यूसफ से मिली हैं ?“

“क्या ! क्या कहा ?“ आफिया वाकई हैरान रह गई।

“आपने यह नाम सुना होगा ?“

“हाँ जी, यह वही आदमी है जो कि 1993 के नॉर्थ टॉवर पॉर्किंग में बम धमाके का दोषी है। पर मैं इससे कभी नहीं मिली।“

“अच्छी तरह याद करो। कई बार आदमी वैसे ही मिल जाता है। कहीं शॉपिंग सेंटर में, किसी मस्जिद में या कहीं एअरपोर्ट की लाइन में लगे हुए।“

उसकी बात सुनकर आफिया को पसीना आ गया कि यह तो उसके बारे में बहुत कुछ जानते हैं। उसको याद आया कि बहुत पहले उसने रम्जी यूसफ को एअरपोर्ट पर साथ वाली लाइन में खड़ा देखा था। दोनों की नज़रें भी आपस में मिली थीं। यह बात याद करते ही वह अंदर तक काँप गई। वह समझ गई कि इन्हें उसके बारे में बहुत सारी जानकारी है, पर फिर भी उसने कह दिया कि वह रम्जी यूसफ को कभी नहीं मिली। उसके इस जवाब के तुरंत बाद अफ़सर बोला, “रम्जी को न सही, पर आप उसके चाचा के.एस.एम. से तो कभी मिली होंगी ?“

“नहीं, मैं उससे भी कभी नहीं मिली।“

“आपने आखि़री बार मुहम्मद अट्टे को कहाँ देखा था ?“

“मुहम्मद अट्टा ?“

“हाँ हाँ, वही जो नाइन एलेवन की घटना को अंजाम देने वाली टीम का नेता था।“

“मैं उसको कभी नहीं मिली।“

“आपकी अपार्टमेंट की इमारत में कम से कम छह हाईजैकर्स आते रहे हैं। आपकी उनके साथ कभी न कभी तो मुलाकात हुई ही होगी ?“

“नहीं, कभी नहीं हुई।“

“वैसे आते-जाते देखे होंगे। अक्सर आता-जाता आदमी मिल ही जाता है।“

“जी नहीं। मैंने किसी को नहीं देखा।“ अफ़सर गौर कर रहे थे कि एक के बाद एक किए जा रहे सवाल आफिया को परेशान कर रहे थे। पर अभी तो वे भूमिका ही बाँध रहे थे।

“मि. अमजद क्या आपने केयर ब्रदर्ज़ और बोनेवोलैंस के बारे में सुना है ?“

“जी, जहाँ तक मुझे पता है, ये चैरिटी का काम करने वाले संगठन हैं।“

“आपको यह कैसे पता है ? क्या आप इनके मेंबर रहे हैं ?“

“नहीं जी, मेरी पत्नी इनकी मेंबर है। इसी की बातों से मुझे पता लगता रहता था कि ये संगठन चैरिटी का काम करते हैं।“

“मिसेज आफिया, क्या आपका इनसे वास्ता रहा है ?“

“जी, थोड़ा-बहुत।“

“क्या आपको पता है कि ये चैरिटी द्वारा एकत्र किए गए पैसे का क्या करते हैं ?“

“मेरा ख़याल है कि गरीबों में बाँटते होंगे।“

“क्या आपने कभी इनके कारकुनों से पूछा नहीं कि इतने एकत्र हुए पैसे का क्या किया जाता है ?“

“मुझे ऐसी बातों से क्या लेना। जो चाहे करें।“ आफिया उनकी बातों को सुनकर ऊब गई थी, पर साथ ही उसको थोड़ी-सी तसल्ली भी थी कि यह तो साधारण-से प्रश्न ही पूछ रहे हैं।

“आपको पूछने का पूरा अधिकार है। आप इसको फंड इकट्ठा करके जो देती हैं।“

“नहीं, मैंने कभी किसी के लिए फंड इकट्ठा नहीं किया।“

“क्या आपने बोनेवोलैंस को फंड इकट्ठा करके नहीं दिया ?“

“नहीं, मैंने कभी कोई फंड इकट्ठा नहीं किया और न ही किसी को दिया है।“

“पक्की बात है ?“

“और क्या झूठ है ?“ आफिया ने आँखें तरेरीं।

“तो फिर आपके खाते में जो हज़ारों डॉलर इकट्ठे हुए हैं और आपने इन्हें आगे बोनेवोलैंस के खाते में भेजे हैं, यह सब फिर क्यों किया ?“

“यह सब झूठ है। मैंने ऐसे कोई पैसे इकट्ठे नहीं किए।“

“ये पेपर्स फिर झूठ बोलते हैं।“ इतना कहते ही अफ़सर ने आफिया के बैंक की पिछले दो सालों की स्टेटमेंट निकालकर वकील के सामने रख दीं। आफिया की आँखें फटी की फटी रह गईं। पर वह बात को संभालती हुई बोली, “हमारे मज़हब में यह भी है कि यदि हमारी इच्छा हो तो चैरिटी के बारे में किसी को न बताएँ।“

“चलो, ठीक है।“ अफ़सर खुश था कि उसने आफिया को झूठी साबित कर दिया था।

“मिसेज आफिया, क्या आप बता सकती हैं कि के.एस.एम. की अमेरिका को तबाह करने की भविष्य में क्या योजना है ?“

“मैं न उसको जानती हूँ, न ही कभी उससे मिली हूँ। फिर मुझे क्या मालूम कि वह क्या करता है, क्या नहीं।“

“क्यों ? आपको अदनान शुक्रीजुमा ने उसकी योजना के बारे में नहीं बताया ?“

“कौन अदनान शुक्रीजुमा ?“ यह नाम सुनकर आफिया अंदर तक काँप गई, पर बाहर से अपने को सहज ही दर्शाने की कोशिश की।

“आपके कहने का अर्थ है कि आप अदनान शुक्रीजुमा को नहीं जानती ?“

“जी, बिल्कुल नहीं।“

“सच बात है ?“ अफ़सर ने सीधा उसकी ओर देखकर पूछा।

“कह तो दिया न कि मैं उसको नहीं जानती। और कैसे बताऊँ ?“ आफिया की आवाज़ में खीझ थी।

उसने बात समाप्त की तो अफ़सर उसकी आँखों में देखता रहा। फिर वह गंभीर आवाज़ में बोला, “यदि आप उसको जानती ही नहीं तो हर रोज़ उससे ई मेल पर बातें क्यों करती हैं ?“

“क्या ?“ आफिया को लगा जैसे कंरट लगा हो। मगर उसने अपने आप को संयत रखते हुए कहा, “मैंने उसको कोई ई मेल नहीं भेजी।“

“तो फिर यह क्या है ?“ अफ़सर ने बैग में से काग़ज़ों का पुलिंदा निकालकर वकील के सामने रख दिया। ये वे ई मेल थीं जो कि अदनान शुक्रीजुमा और आफिया में आदान-प्रदान होती रही थीं। वकील ने बड़े गौर से ई मेलों को देखा। उधर आफिया परेशान हुई कुर्सी पर बैठी करवटें बदलने लगी।

“मैम, आपने हमारी बात का जवाब नहीं दिया ?“

“यह ... यह तो मैं... मेरा मतलब ...।“ उससे कोई जवाब न दिया गया। उसने गर्दन झुका ली।

दोनों अफ़सर उठे और एक तरफ जाकर आपस में बातें करने लगे। आफिया को पूरा यकीन हो गया कि अब वह उसको गिरफ्तार करने की सलाह कर रहे हैं। पर जब उन्होंने वापस आकर अपनी बात कही तो आफिया को कुछ तसल्ली-सी हो गई।

वे वकील से मुखातिब हुए, “सर, ये इंटरव्यू हम यहीं बंद करते हैं। पर इनकी इंटरव्यू अभी और होगी। उसके लिए हम अगले महीने की उन्नीस तारीख तय कर रहे हैं।“

“ठीक है। आप उसके बारे में मुझे पूरी सूचना भेज दो।“

“हाँ, ऐसा ही होगा। साथ ही मिस्टर और मिसेज अमजद खाँ से कुछ कहना चाहते हैं।“

“जी...।“ अमजद डरता हुआ बोला।

“आपका अगले इंटरव्यू में शामिल होना बहुत ज़रूरी है। आप उस इंटरव्यू से पहले यह देश छोड़कर नहीं जा सकते। यह एक सरकारी आदेश है। लीजिए, इस सरकारी आदेश पर दस्तख़्त कर दो।“ अफ़सर ने अगली इंटरव्यू पर उपस्थित रहने वाला काग़ज़ उनके सामने रख दिया। दोनों ने बारी बारी उस पर साइन कर दिए। फिर अफ़सरों ने अपने बैग संभाले और दफ़्तर से बाहर निकल गए। उनके जाते ही अमजद ने वकील से पूछा, “आपको कैसा लगा। यह इंटरव्यू कितना संजीदा था ?“

“यह तो आम-सी बात है। मेरे ख़याल में आपके लिए इसमें डरने वाली कोई बात नहीं है। साथ ही, अगली इंटरव्यू से पहले हम बैठकर आपस में बातचीत करेंगे। ऐसा करने से कई सवाल-जवाब करते समय आसानी रहती है।“

“जी ठीक है।“

इसके बाद अमजद और आफिया घर की ओर लौट पड़े। अमजद ने कई मित्रों को फोन करके आज की इंटरव्यू की कारगुज़ारी के बारे में बताया। सभी ने कहा कि ऐसे सवाल पूछे जाना आम-सी बात है। इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है। अमजद को लगा कि इंटरव्यू ठीक ही रही और उसने सोचा कि अगली इंटरव्यू के बाद उनका एफ.बी.आई के लफड़ों से पीछा छूट जाएगा। परंतु जब वे घर पहुँचे तो आफिया ने बावेला खड़ा कर दिया।

“अमजद, मेरी बात सुन, हमें कल ही बच्चों को लेकर वापस अपने देश चले जाना चाहिए।“

“पर क्यों ? मेरा मतलब अपनी इंटरव्यू तो ठीक ही रही है।“

“तुझे लगता है कि ठीक रही है। पर तू नहीं जानता कि.... बस, मैं तुझे कह रही हूँ कि हम यहाँ से निकलने की सोचें।“

“तू पूरी बात बता कि मैं क्या नहीं जानता। मुझे भी तो पता चले कि तुझे कौन-सी बात का भय सता रहा है ?“

“क्यों, सारी बात क्या बताना ज़रूरी है ?“ आफिया गुस्से में भड़क उठी।

“हाँ ज़रूरी है। तू ही बता कि वो अदनान शुक्रीजुमा कौन है ?“

“तुझे उससे क्या लेना ?“

“मैं उसके बारे में सबकुछ जानना चाहता हूँ। सिर्फ़ वही नहीं, और बहुत से लोग हैं जिनके एफ.बी.आई वालों ने नाम लिए थे। मैंने ऐसे लोगों का पहले कभी जिक्र भी नहीं सुना और तू उनके साथ मिलकर पता नहीं क्या काम करती रही है। कौन हैं ये सब लोग ? तू उन्हें कैसे जानती है ? मुझे सब कुछ बता।“ अमजद गुस्से में आ गया।

“मुझे इन बातों पर कोई चर्चा नहीं करनी। पर तू मेरी बात पर ध्यान दे और हम यहाँ से वापस चलें। यहाँ मेरी जान को ख़तरा है।“

“आफिया, मेरी बात सुन ले अच्छी तरह। मुझे लगता है कि तू दोहरी ज़िन्दगी जी रही है। जो मेरे सामने दिख रही है, उसके अलावा एक दूसरी आफिया और है जिसकी निजी ज़िन्दगी पता नहीं क्या है। तुझे आज सबकुछ बताना होगा।“

अमजद ने बात खत्म की तो आफिया चुप बैठी सोच में गुम थी। अचानक वह चेहरे पर बनावटी मुस्कान ले लाई और अमजद के करीब आ गई। अमजद उसके बनावटीपन को न समझ सका। वह उसको अपनी बांहों में लेती हुई बोली, “अमजद इतना चिंतित न हो। ऐसी कोई बात नहीं है। ये सब चैरिटी का काम करते हैं और मुझे वहीं मिलते रहे हैं। वे जो अदनान शुक्रीजुमा का ज़िक्र कर रहे हैं, उससे भी मेरी चैरिटी की बाबत ही ई मेल का आदान-प्रदान हुआ है। इससे अधिक इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता।“

“फिर तू इतना घबरा क्यों रही है ?“

“मैं तो यह सोचती हूँ कि अगर यहाँ एफ.बी.आई वालों ने एक बार किसी चक्कर में फंसा लिया तो फिर पीछा नहीं छूटेगा। अपना मुल्क अपना ही होता है। मैं तो सिर्फ़ इसी कारण कह रही हूँ। अगर नहीं जाना तो कोई बात नहीं, तू गुस्सा न हो।“ आफिया ने उस समय अमजद को ठंडा कर लिया। अमजद को भी उसकी बात पर यकीन आ गया।

अगले दिन अमजद सो कर उठा तो उसने देखा कि आफिया अपना सामान बाँध रही थी। उसे इस तरह तैयारी करते देख वह हैरान-सा होकर बोला, “आफिया यह क्या ? रात अपनी बात खत्म हो गई थी कि हम कहीं नहीं जा रहे।“

“अमजद, मैंने घर फोन किया था। अब्बू की सेहत खराब है। मैं चाहती हूँ कि जल्दी से जाकर उनका पता लूँ।“

“पर चार दिन पहले ही तो अपनी बात हुई थी। तब तो वे ठीक थे।“

“तुझे पता है कि वह दिल के मरीज़ हैं। अगर में अब न जा सकी तो फिर कई महीने नहीं जा सकूँगी। तू जानता ही है, इस वक़्त मैं सात महीनों की गर्भवती हूँ।“ आफिया ने बैग तैयार करना जारी रखा और अमजद के अंदर ही अंदर गुस्सा होते मन ने सोचा कि अब्बू की बीमारी का यह सिर्फ़ बहाना बना रही है। कुछ सोचता हुआ वह बोला, “पर तुझे पता ही है कि हमें एफ.बी.आई. ने हिदायत दे रखी है कि हम उनकी इंटरव्यू पूरी किए बग़ैर कहीं नहीं जा सकते।“

“कुएं में जाए तेरी एफ.बी.आई.। मैं यहाँ अब एक पल भी नहीं रुकूँगी।“ आफिया गुस्से में पैर पटकती बोली।

उसकी बात सुनकर अमजद को गुस्सा तो बहुत आया, पर इस समय वह मज़बूर था। आफिया के गर्भवती होने के कारण वह उसके साथ कोई झगड़ा नहीं करना चाहता था। लेकिन आफिया उसकी कोई बात नहीं मान रही थी। उसने अपने वकील को फोन करके बताया कि आफिया के डैड बीमार हैं, इसलिए इस वक्त उनका पाकिस्तान जाना बहुत ज़रूरी है। उसने पूछा कि क्या यह इंटरव्यू आगे बढ़ सकती है। वकील ने मशविरा देते हुए कहा, “मि. अमजद, इस तरह इंटरव्यू बीच में छोड़कर जाना ठीक नहीं है। तुम्हारा केस खुला ही रह जाएगा जो कि तुम्हारे लौटने पर तुम्हारे लिए मुश्किल खड़ी कर देगा। अच्छा यही है कि तुम अपनी एपाइंटमेंट पूरी करके जाओ।“

“सर, इस वक़्त मेरे पास कोई दूसरा चारा नहीं है। वापस लौटकर दुबारा इंटरव्यू की तारीख ले लेंगे।“

“मि. अमजद इंटरव्यू तो मैं कैंसिल करवा देता हूँ। पर इस तरह तुम शक के घेरे में आ जाओगे। एफ.बी.आई. एक बार जिसके पीछे पड़ जाए तो फिर पीछा छुड़ाना कठिन हो जाता है।“

“ठीक है सर, मैं आपको अपनी वाइफ़ से सलाह करके बताता हूँ।“ वकील से फोन पर बात खत्म करके अमजद ने आफिया से वकील के साथ हुई बात बताई। उसकी बात सुनते ही आफिया भड़कती हुई बोली, “अगर तू चाहता है कि मैं मारी जाऊँ तो जाने की बात छोड़ देते हैं।“

“यह तू क्या कह रही है, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा।“ अमजद आफिया की ओर देखता हुआ सोचने लगा कि कोई न कोई बात अवश्य है जो यह यहाँ से भागने के लिए उतावली हुई पड़ी है। आफिया की हरकतों ने उसका यह शक पुख्ता कर दिया कि वह सच में ही नाइन एलेवन की साजिश के बारे में कुछ न कुछ जानती है। पर उसने एकबार और उसको समझाना चाहा तो वह वैसे ही गुस्से में चीखती हुई बोली, “ओ.के. ठीक है। तू अपनी मर्ज़ी कर। पर मैं अपने बच्चों को लेकर आज ही जा रही हूँ।“

फिर अमजद ने वकील को दुबारा फोन करके कहा कि उसको जाना ही पड़ेगा। वकील ने एफ.बी.आई. के ऑफिस में फोन करके बता दिया कि उसके क्लाइंट तय की गई तारीख पर नहीं पहुँच सकेंगे। अमजद ने अपने काम पर से भी एक साल की छुट्टी ले ली।

(जारी…)