Aamchi Mumbai - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

आमची मुम्बई - 8

आमची मुम्बई

संतोष श्रीवास्तव

(8)

वी.टी. यानी छत्रपति शिवाजी टर्मिनस.....

सवा सौ बरसों से भी अधिक पुरानी विश्व की सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशन कहलाने वाली इमारत अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कहलाती है | शॉर्ट में सीएसटी..... यह भारत का पहला रेलवे स्टेशन और एशिया की पहली ट्रेन के चलने का गौरव भी प्राप्त कर चुका है | दूर से भव्यता का एहसास कराती और नज़दीक से अपनी खूबसूरती से आकर्षित करती इस इमारत का स्थापत्य विक्टोरियन नियो, गोथिक शैली का है | इसके ३३०फीट ऊँचे बुर्ज, कंगूरेदार खंभे, नुकीली मेहराब व मीनारें, घेरेदार सीढ़ियाँ, अर्धवृत्ताकार तोरण, कलश, गोलगुंबद, पच्चीकारी कला की फूल पत्तियाँ सहज आकर्षित करती हैं | लगता है जैसे रेलवे स्टेशन नहीं किसी शहंशाह का बेशकीमती महल हो | सवा सौ साल के इतिहास को समेटे यह इमारत मानो कुछ कहती नज़र आती है कि ‘देखो, मेरे सुंदर गुम्बदों पर मौजूद एग्रीकल्चर, शिपिंग एंड कॉमर्स, इंजीनियरिंग एंड साइंस जैसी प्रतिमाएँ.....’ बीच वाले सबसे ऊँचे गुंबद पर यह जो एक हाथ में मशाल और दूसरे में पहिया थामे १४ फुट ऊँची प्रतिमा है वह प्रोग्रेस है यानी पहिया जो गति का प्रतीक है और मशाल पथ प्रदर्शन का | येदोनों ही अर्थ रेलवे को चरितार्थ करते हैं | यहाँ ६० वर्ष पहले महारानी विक्टोरिया की प्रतिमा भी हुआ करती थी लेकिन उसे उपनिवेशवाद का प्रतीक मानकर हटा दिया गया | और भी प्रतीकात्मक चिह्न उत्कीर्ण हैं यहाँ | जैसे सिंह..... अंग्रेज़ों के शासन का और चीता भारत का | साउथ विंग में पोस्टऑफ़िस का लोगो और शेरों की मूर्तियाँ हैं | इमारत की भीतरी और बाहरी सजावट जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के लॉकवुड किपलिंग और उनके विद्यार्थियों की देन है |

विक्टोरिया टर्मिनस नाम के पहले इसे ‘बॉम्बे पैसेंजर’ कहते थे | तब यह उत्तर की ओर थोड़ा हटकर हुआ करता था | आज हर मिनट पर यहाँ से तकरीबन बीस लाख पैसेंजर उपनगरों की यात्रा करते हैं | यह तो लोकल का गणित है | मुम्बई से अन्य शहरों की ओर जाने वाली गाड़ियाँ १८ प्लेटफार्मों से जाती हैं | यह महानगर का सबसे बड़ा सबवे स्टेशन है |

एक ज़माना था जब सी एस टी में कोई प्लेटफार्म नहीं था | लकड़ी से बने झोपड़ीनुमा दफ़्तर के नज़दीक समँदर हहराता था | नावों से, ट्रामों से और घोड़ा गाड़ी से उतरने वाले समृद्ध यात्रियों को यहाँ से ट्रेन पकड़ने में शर्म महसूस होती थी तो वे भायखला से ट्रेन पकड़ते थे | भायखला स्टेशन का इतिहास भी रोमांचक है | १६ अप्रैल १८५३ को वी.टी. से चली एशिया की पहली ट्रेन ‘आग गाड़ी’ कहलाती थी | उसे ठाणे तक की क़रीब ३२ कि.मी. की दूरी नापने में क़रीब ५७ मिनट लगे थे | वह दिन मानो शाही दिन था | दोपहर ३.३० बजे सेंट जॉर्ज स्थित तोपखाने से २१ तोपों ने शाही सलामी दी | गवर्नर के बैंड ने इंग्लैंड की राष्ट्रीय धुन जैसे ही बजानी शुरू की उपस्थित जन समुदाय रोमांचित हो उठा | फूल, माला से सजे धजे डिब्बों को भाप के तीन चमचमाते इंजिन सुल्तान,साहिब और सिंध ने खींचा | वी.टी. से ठाणे रेलवे स्टेशन तक भारत ही नहीं एशिया की यह पहली ट्रेन थी | जब यह ठाणे पहुँची तो वहाँ दरबार शामियाने में ४०० लोगों के लिए दावत का इंतज़ाम था | वी.टी. से ठाणे के बीच सिर्फ भायखला में स्टॉप था | सामान्य यात्रियों के लिए आग गाड़ी को हरी झंडीमिली१८ अप्रैल १८५३ से | चारडिब्बों की इस गाड़ी में तृतीय श्रेणी का किराया ५ आने, द्वितीय श्रेणी का एक रूपया और प्रथम श्रेणी का दो रुपिया था | तृतीय श्रेणी के डिब्बों में न तो सीट होती थी न छत, उसे बकरा गाड़ी कहते थे |

***