Ek pyali chaay aur shaukilal ji - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

एक प्याली चाय और शौकीलाल जी - भाग 3



बीवी का प्रस्ताव सुन शौकीलाल जी भीतर तक कांप उठे। हजार रुपए बड़ी मुश्किल से उन्होंने घर खर्चे में कटौती कर बचाये थे ताकि कई महीने पूर्व शर्मा जी से लिये कर्ज का भुगतान कर सकें किन्तु श्रीमती द्वारा उस रकम पर भी डाका डालने की साजिश से वाकिफ होते ही चिंतित हो उठे।
-' उठिये न जी, अब देर मत कीजिए। देखिए, मैं तैयार हूं। सिर्फ आप को तैयार होना है।'

आदेश देकर पत्नी जी घर के बाकी काम निपटाने चली गई। शौकीलाल जी आज श्रीमती की चंचलता देख हैरान थे। और दिन तो तैयार होने में घंटो लगा देती है, इतना कि आराम से एक झपकी ले लो। लेकिन आज......। उन्होंने जाती हुई पत्नी को पुकार कर देश की खराब हालत, बिगड़ी हुई आर्थिक स्थिति की याद दिलानी चाही लेकिन आवाज गले में घुट कर रह गई।

बैंक मोड़ पहुंच कर अचानक तिपहिया वाहन रूक गया। चालक पैसेंजरों को शीघ्र गाड़ी से उतरने के लिए चिल्लाने लगा। शौकीलाल जी तो उतर गए लेकिन तिपहिया के भीतर खुद को किसी तरह अटकाये बैठी श्रीमती को उतरने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। बीच सड़क पर गाड़ी रूकी देख सामने से डण्डा लहराती पुलिस को अपनी ओर आता देख चालक खीज उठा- ' माता जी थोड़ा कम खाया करो न । आप उतर नहीं पा रही हैं और उधर देखिए , वह सिर पर चढ़ा आ रहा है।'

श्रीमती बुरी तरह झल्ला उठीं- 'मुए, मुझे माता कहता है। मोटी बनाता है। खुद तो भुचकुल्ली(बहुत छोटी) भर के टैम्पु रखा हुआ है और मुझे जल्दी उतरने को बोल रहा है। माता होगी तेरी मां। मोटी होगी तेरी बहन।' बड़बड़ाते हुए वे टैम्पु से बाहर निकलने के लिए जोर आजमाइश करने लगीं।

जोर आजमाइश के दौरान टैम्पु किसी तूफान में घिरे जहाज सा हिचकोले खा रहा था। इधर शौकीलाल जी शर्म से पानी पानी हुए जा रहे थे और उधर तमाशबीन मुफ्त का तमाशा देख कर मजा ले रहे थे। पुलिस भी डण्डा लहराना छोड़ नजारा देखने लगी थी। खैर किसी तरह बड़ी मशक्कत के बाद श्रीमती बाहर आईं।

चालक टैम्पु को एक झटके में ले उड़ा मानो उसे बड़ी मुश्किल से प्रेत बाधा से मुक्ति मिली हो।

शौकीलाल जी ने कलाई घड़ी देखी। ग्यारह बज रहा था। कल तक देश के लिए रोना रोने वाली बीवी को आज इस बात का जरा भी ख्याल नहीं था कि बेवजह भाड़े में पैसे खर्च करने और बिना जरूरत साड़ी खरीदने में उनकी खुद की हालत कितनी दयनीय होनेवाली है। शौकीलाल जी रास्ते भर परेशान रहे यह सोचकर कि देश की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए विश्वबैंक है , जनता द्वारा प्राप्त करों के करोड़ो रुपए हैं लेकिन उनकी हालत की सुध लेनेवाला कौन है? उन्हें झुंझलाहट इसलिए भी हो रही थी कि कल से उन्हें चाय की एक बुंद भी नसीब नहीं हुई थी।

चेहरे पर मायूसी और मस्तिष्क में चिंतन का तूफान लिये शौकीलाल लाल जी श्रीमती के पीछे-पीछे राठौर मेंसन के भव्य बाजार में दाखिल हुए। रास्ते में श्रीमती कुछ कुछ बड़बड़ाती रही और श्रीमान जेब की रकम हलाल होने के बचाव की तरकीब सोचते रहे।

शौकीलाल जी को अचानक ख्याल आया, काश ऐसी नाजुक घड़ी में कहीं सरिता देवी दिख जातीं तो उनसे निवेदन किया जाता कि भाषण की घुट्टी-उट्टी पिलाकर श्रीमती का मिजाज चेंज करें ताकि मेरी माली हालत पर गिरने वाली गाज से छुटकारा मिल जाए। पर सरिता जी कहीं दिखें तब न।

शौकीलाल जी चलते हुए दोनो तरफ की दुकानो पर नजर भी डालते जा रहे थे ताकि कहीं देवी जी दिख जाएं । लेकिन शायद उनकी किस्मत खराब थी। गाहे-बेगाहे दिखने वाली सरिता देवी का दर्शन आज दुर्लभ हो रहा था।

शौकीलाल जी को लगा कोई उनकी बांह पकड़कर खींच रहा है। वे थोड़ा घबराये फिर जब चैतन्य हुए तो पाया श्रीमती बांह पकड़े लगभग घसीटते हुए बाम्बे सिल्क हाउस की सीढ़ियां चढ़ रही है। उन्होंने ठंडी सांस ली। बचाव का और कोई रास्ता न देख उन्होंने मिमियाती आवाज में कहा-' श्रीमती जी, यह फिजूलखर्ची है। कम से कम सरिता देवी के भाषण का ख्याल कीजिए। हमें अपने खर्चे में कटौती कर ........।'

-' चुप रहिए जी, न समय देखते हैं, न जगह। जब जो मन में आता है, बक देते हैं। शो रूम का मालिक क्या सोचेगा!' श्रीमती ने झिड़क दिया।

कई साड़ियां देखने परखने के बाद श्रीमती को एक साड़ी पसंद आई। इस दौरान शौकीलाल जी उस ओर से उदासीन हो पैंट की जेबों में हाथ डाले घुमते रहे। साड़ी पैक करने के बाद सेल्समैन ने मेमो थमा दिया। मेमो देख शौकीलाल जी की जान में जान आई। उनके सौ रुपए फिर भी बचने वाले थे। कीमत चुकाने के बाद साड़ी का पैकेट लेकर वे जल्दी जल्दी सीढ़ियां उतरने लगे। श्रीमती पीछे छूट गई।

-' चलो जल्दी घर चलें। बच्चे राह देख रहे होंगे।' सीढ़ियां उतरते उतरते शौकीलाल जी ने कहा। दरअसल वे जल्दी इसलिए कर रहे थे ताकि श्रीमती बाहर निकले तो सौ रुपए की बचत पक्की हो। लेकिन शौकीलाल जी की बातों का असर श्रीमती पर जरा भी नहीं दिखा। वह आंचल सम्हालती मंथर गति से साथ लगे एक डिपार्टमेंटल स्टोर में घुस गई। साथ चलते हुए शौकीलाल जी ने कान के नजदीक फुसफुसा कर उसे फिजूलखर्ची की याद दिलाई। लेकिन श्रीमती के तेवर देख शौकीलाल जी कुनमुना कर रह गए।

उधर श्रीमती शृंगार के सामानों में उलझी थी और इधर शौकीलाल जी आतेजाते लोगों को निहार रहे थे। तभी अचानक उनकी नजर सरिता देवी पर चली गई। वे उनके पीछे दौड़ पड़े। शायद अब भी उन्हें उम्मीद थी कि सौ रुपए बच जाएंगे। लेकिन सरिता देवी भीड़ में कहीं गुम हो गईं। वे निराश हो वापस हो ही रहे थे कि सरिता देवी दिख गईं। एक बड़े से साड़ी की दुकान में बैठी थीं और कीमती साड़ियां उनके आगे फैली थी। वे पसंद की साड़ी अलग रखवा रही थीं। यह देखकर शौकीलाल जी ने माथा पीट लिया। जिनसे वे अपनी श्रीमती से दवा लेना चाहते थे वो खुद उसी बीमारी से ग्रस्त थीं। वे खड़े खड़े देश की आर्थिक चादर को तार तार होते देखते रह गए।

जेब से सबकुछ लुटाकर पिटे मुंह लिए शौकीलाल जी घर वापस आ गए। मारे थकान के उनके शरीर का पोर पोर दुख रहा था। फ्रेश होने के बाद एक प्याली चाय पीने की उनकी इच्छा बलवती हो गई। उन्होंने पुकार कर श्रीमती से एक प्याली चाय बनाने के लिए आवाज लगाई। तत्काल श्रीमती की आवाज आई-' आप मर्दों को चाहे तोते की तरह रटा दो, फिर भी बात गले से नहीं उतरती। आखिर चाय जैसी फिजूल की चीजों में पैसे फूंकने से क्या फायदा? दो पैसे बचेंगे तो देश के विकास में मदद मिलेगी। आखिर सरिता बहन झूठ थोड़े ही कहती हैं।'

शौकीलाल जी हथेलियों के बीच सिर रखे किचेन की ओर ताकते रह गए।😦

✍कृष्ण मनु
9939315925