Risate Ghaav- 9 books and stories free download online pdf in Hindi

रिसते घाव (भाग ९)

घर पहुँचकर श्वेता ने अपने पास रही चाबी से लॉक खोला और अन्दर आकर दरवाजा बंद कर लिया । उसने अपनी कलाई पर बँधी घड़ी पर नजर डाली । अभी सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे । दबे पैरों से आहट किए बिना वह अपने कमरे में चली गई । कमरे में अँधेरा होने से उसने अपने मोबाइल की रोशनी से अपने बिस्तर को टटोला और उसके सिरहाने रखा गाउन लेकर कपड़े बदल डाले । आहट पाकर पास के बेड पर सोई हुई आकृति ने करवट ली और फिर वापस सो गई । श्वेता ने रसोई में आकर एक गिलास पानी पिया और आकर अपने बिस्तर पर लेट गई । तभी उसके मोबाइल पर एक मैसेज आने की ध्वनि सुनाई दी ।
‘आय लव यू !’ उसने मोबाइल की स्क्रीन पर झलकते अमन के हुए व्हाट्सअप मैसेज को पढ़ा और मन ही मन मुस्कुरा दी । श्वेता ने प्यार वाली एक इमोजी अमन को भेज दी ।
‘आस बाकी रह गई, प्यास अधूरी रह गई ।’ अमन ने श्वेता को जवाब भेजा ।
‘तेरी मेरी अधूरी ये कहानी...’ श्वेता ने टाइप किया और उसके साथ हँसती हुई एक इमोजी डाल दी ।
तभी आकृति का मोबाइल बज उठा । श्वेता ने समय देखा । सुबह के चार बज रहे थे । आकृति ने तकिये के नीचे से मोबाइल उठाकर बज रहे अलार्म को स्नूज कर दिया और फिर से सो गई ।
‘घर पर बात कर लेना वीक एण्ड में । अब रहा नहीं जाता ।’ श्वेता ने मोबाइल में झलकते हुए मैसेज को पढ़ा ।
‘ट्राय करुँगी । अब सो जाओ । गुड नाईट ।’ श्वेता ने अमन को जवाब दिया और मोबाइल का डेटा बंद कर उसे तकिये के नीचे सरका दिया ।
‘आकृति उठ । चार बज गए है । आज पेपर है न तेरा ।’ श्वेता ने बिस्तर पर लेटे लेटे आकृति को आवाज लगाई ।
श्वेता की आवाज सुनकर अर्धजागृत अवस्था में आकृति ने फिर से करवट ले ली । तभी रागिनी ने कमरे में प्रवेश किया ।
‘आकृति ! ओ आकृति ! उठ । चल बेटा उठ । मैं चाय बना देती हूँ ।’ रागिनी ने आकृति के अपास आकर उसे जगाते हुए कहा ।
‘मामी, आप सो जाइए । चाय मैं बना देती हूँ ।’ श्वेता ने बिस्तर पर से खड़े होते हुए रागिनी से कहा ।
‘तू जाग रही है ? कब आई ?’ रागिनी ने श्वेता की ओर देखकर पूछा । तभी आकृति उठकर बैठ गई ।
‘थोड़ी देर पहले ही आई पर नींद नहीं आ रही है ।’ कहते हुए श्वेता कमरे से बाहर निकल गई ।
आकृति को उठता देख रागिनी वापस अपने कमरे में जाने को मुड़ी ही थी कि श्वेता के मोबाइल की रिंगटोन बजने लगी ।
रागिनी के बढ़ते कदम वहीं ठिठक गए । श्वेता रसोई से दौड़कर कमरे में आई और कॉल डिसकनेक्ट कर दी ।
‘इस वक्त किसका फोन था ? और तूने बात क्यों नहीं की ?’ रागिनी ने शंकाभरी नजर श्वेता पर डाली ।
‘व ... व ... कोई नहीं मामी । रांग नंबर था ।’ जवाब देते हुए श्वेता वहां से जाने लगी ।
‘बात किए बिना तुझे कैसे पता चला कि रांग नंबर था ?’ रागिनी अपनी शंका का समाधान करना चाहती थी ।
‘इस वक्त कोई जान पहचान वाला थोड़े ही फोन करेगा ।’ श्वेता ने बड़ी ही सफाई से जवाब दिया और कमरे से फौरन बाहर निकल गई ।
‘कुछ गड़बड़ तो जरुर है ।’ रागिनी बड़बड़ाते हुए अपने कमरे में चली गई ।
श्वेता ने रसोई में जाकर गैस चालूकर चाय का पानी चढ़ा दिया । तभी फिर से उसका मोबाइल बजने लगा । श्वेता ने तुरंत ही कॉल लेते हुए अमन से धीमे स्वर में बात करने लगी ।
‘अमन ! प्लीज, अभी फोन मत करो ।’
‘जानेमन ! हमारी नींद तो आप चुराकर ले गई है । अब बात भी करने से मना कर रही है ।’
‘अमन प्लीज ! बात को समझो । मामी जाग रही है । मैं कल सुबह बात करती हूँ तुमसे ।’ श्वेता ने कहा और मोबाइल वापस रख दिया ।
‘किससे बात कर रही थी ?’ तभी उसके पीछे आकर खड़ी रागिनी ने पूछा ।
रागिनी का स्वर सुनकर श्वेता हड़बड़ा गई ।
‘बताया था न रांग नंबर था । फिर से आया तो बात कर पता करने का प्रयास कर रही थी ।’ श्वेता ने हिम्मतकर बड़ी ही सफाई से झूठ बोला ।
‘अच्छा ! कितना झूठ बोलेगी ?’ रागिनी ने श्वेता को घूरा ।
‘आप शक कर रही है मुझ पर मामी ?’ श्वेता ने बात को सम्हालते हुए कहा और उबलते हुए पानी में शक्कर और चायपत्ती डाल दी ।
‘जो है साफ साफ कह दे श्वेता बेटी ! शक करने का मौका मत दे । कौन है अमन ?’ रागिनी ने अधूरी सुनी हुई बात के आधार पर अपनी बात आगे बढ़ाई ।
‘हं ...कोई नहीं । मेरे साथ नौकरी करता है ।’ श्वेता ने तैयार चाय कप में डाली और वहां से जाने लगी ।
‘तो इस वक्त क्यों फोन कर रहा है तुझे ?’ रागिनी ने आगे पूछा ।
‘मुझे छोड़ने आया था सो घर पहुँचकर उसके पहुँचने की खबर दे रहा था ।’ श्वेता ने पूरे आत्मविश्वास से कहा और अन्दर कमरे में चली गई ।
रागिनी उसे जाते हुए देखती रही और कुछ देर कुछ सोचती हुई वहाँ खड़ी रही । फिर खुद भी अपने कमरे में चली गई ।
आकृति को चाय का कप थमाकर श्वेता अपने बिस्तर पर लेट गई । तभी श्वेता के मोबाइल पर व्हाट्स एप मैसेज आया । श्वेता ने फिर से मोबाइल हाथ में लिया और एक मुस्कान के साथ कुछ टाइप कर मैसेज का उत्तर दिया । थोड़ी ही देर में मैसेज आने जाने का सिलसिला शुरू हो गया । आकृति श्वेता के चेहरे पर बार बार छा रही मुस्कान को महसूस कर रही थी । वह अपनी जगह से उठकर खड़ी होकर उसके पास आ गई ।
‘दीदी, कोई ख़ास बात है क्या ? आप अमन से मिलकर आ रही है न ?’
‘श ... चुप ! अभी कोई बात न कर । मामी जाग रही है और उठकर यहाँ कभी भी आ सकती है । तू तेरी पढ़ाई कर । कल सबकुछ बताती हूँ ।’ श्वेता ने धीमे से कहा ।
‘मुझे तो सबकुछ पता ही है अब और कुछ भी है क्या नया बताने को ?’ आकृति ने धीमे से पूछा ।
‘बहुत कुछ ।’ श्वेता ने आकृति को धक्का देते हुए अपनी जगह पर धकेलते हुए कहा ।