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आजादी - भाग 5



राहुल ने स्वतः ही सामने रखी बाल्टी उठा ली और बगल की दुकान के सामने लगी बोरिंग से पानी भरने के लिए चल दिया । बोरिंग के हत्थे पर जोर लगाते हुए राहुल के मस्त्तिष्क में अभी कल ही गुजरी दिनचर्या किसी चलचित्र की भांति घुम गयी ।
‘ ………………सुबह के आठ बज रहे थे । हमेशा की तरह राहुल अभी भी सोया हुआ ही था । तभी उसकी माँ ने कमरे में प्रवेश किया और उसको जगाते हुए बोली ” राहुल ! बेटा राहुल ! आठ बज गए हैं और तुम अभी तक सो रहे हो ? नहाना धोना , तैयार होना फिर स्कूल जाना कितना समय लगेगा ? अब देर करोगे तो स्कूल के लिए देर हो जाएगी । ”

माँ उसको तरह तरह से समझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन राहुल था कि कुछ भी सुनना नहीं चाहता था । करवट बदलते हुए चद्दर से मुंह ढंकता हुआ बडबडाया ” क्या माँ ! थोडा और सोने दो न ! अभी अभी तो नींद लगी है ।”
” अब समय नहीं बचा है बेटा सोने का ! उठ जाओ ! ” कहते हुए कल्पना ने चद्दर उसके मुंह पर से खींच लिया था ।
और कोई चारा न देख राहुल अनमने मन से उठ तो गया लेकिन मन ही मन वह अपनी माँ से बहुत ही नाराज था । इतनी अच्छी नींद लगी थी थोडा और सो लेता तो क्या हो जाता ? ज्यादा से ज्यादा स्कूल नहीं जाता । रोज रोज स्कूल जाना जरुरी है क्या ? ‘ राहुल ब्रश करते हुए यही सब सोच रहा था ।
ब्रश करके नहाधोकर नाश्ते की मेज पर उसे एक बार फिर माँ की जबरदस्ती का सामना करना पड़ा था । सुबह सुबह नाश्ता करना उसे बिलकुल भी पसंद नहीं था लेकिन बचपन से ही उसकी माँ तरह तरह से बहला फुसला कर उसे कुछ न कुछ खिलाने का प्रयास करती थी । कल भी किसी तरह बेमन से नाश्ता करके वह जल्दी जल्दी स्कूल के लिए तैयार हुआ । उसी वक्त इन तमाम बंदिशों से निकलने के लिए राहुल ने योजना बना ली थी । योजना के तहत उसने अपने कमरे में जाकर अपना एक जोड़ी कपड़ा अपने बस्ते में छिपाकर रख लिया था । ‘
बाल्टी भरकर पानी बहने लगा था और राहुल अपनी ही दुनिया में खोया बोरिंग के हत्थे को चलाये जा रहा था कि तभी मालिक की तेज कर्कश आवाज ने उसकी तन्द्रा भंग की ” अबे नासपीटे ! अब क्या बोरिंग उखाड़कर ही मानेगा क्या ? बाल्टी भरके पानी कबसे बह रहा है फिर भी बोरिंग चलाये जा रहा है । ” कहने के साथ ही मालिक नेे उसे एक भद्दी सी गाली दी थी ।
बाल्टी उठाकर दुकान की तरफ बढ़ते हुए राहुल के मन में घर छोड़कर आने की अपनी गलती के लिए पछतावा ही था ।
इधर विनोद और कल्पना की रात घर में फर्श पर बैठे बैठे आँखों ही आँखों में गुजर गयी थी । सवेरा हो गया था । रह रहकर नींद की अधिकता की वजह से अब उनकी पलकें भारी हो रही थीं । आँखें लाल सुर्ख हो गयी थीं । रात भर राहुल के ख्याल ने उन्हें सोने नहीं दिया था और नींद से बोझिल पलकें अब बड़ी मुश्किल से खुल पा रही थीं । सुबह के सात बजनेवाले थे और पुलिसवाले ने दस बजे बुलाया था । विनोद को पता था कि पुलिसवाले किसी भी हाल में ग्यारह के पहले रपट नहीं लिखेंगे । कल्पना को समझाते हुए बोला ” अभी बहुत समय बाकी है । पुलिस चौकी में जाकर नींद आएगी उससे तो बेहतर है कि थोड़ी देर सो ही लेते हैं । मैं सोने जा रहा हूँ । बेहतर होगा तुम भी थोड़ी देर सो जाओ । ” कहकर विनोद सोने के लिये अपने कमरे की तरफ बढ़ गया ।
कल्पना को भी विनोद की बात अच्छी लगी थी । वह भी सोने चली गयी ।
सुबह लगभग नौ बज रहे थे । विनोद और कल्पना अभी सोये हुए थे । दरवाजे पर पड़ोस के शर्माजी बार बार बेल बजा रहे थे लेकिन अन्दर से कोई आवाज नहीं आ रही थी । शर्माजी बार बार बेल बजा रहे थे और साथ ही बडबडा भी रहे थे ” ऐसे होते हैं आजकल के माँ बाप ! लड़का कल से लापता है और ये दोनों मियां बीबी घोड़े बेच कर सो रहे हैं । ”
बडबडाते हुए शर्माजी ने दरवाजे को थोड़ी जोर से खटखटाया । दरवाजा ठोंकने की तेज आवाज सुनकर कल्पना चौंककर उठ बैठी और तुरंत ही दरवाजे की तरफ बढ़ गयी ।
दरवाजा खोलते ही सामने शर्माजी को खड़े पाया । उसकी इजाजत का इंतजार किये बिना ही शर्माजी घर में आ गए थे और कहने लगे ” कब से दरवाजा खटखटा रहा था ? लगता है आप लोग सोये थे । विनोद भाई कहाँ हैं ? ”
” आप बैठिये भाईसाहब ! उनको बुलाती हूँ !” कहकर कल्पना अन्दर चली गयी । थोड़ी देर में ही
विनोद बाहर आकर शर्माजी के पास बैठ गया । शर्माजी ने विनोद को देखते ही पूछा ” क्या हुआ ? राहुल का कुछ पता चला ? ”
विनोद ने जवाब दिया ” कहाँ शर्माजी ! पता चला होता तो हम लोग अब चले न गए होते उसे लाने के लिए ? ”
शर्माजी ने बात का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए पुछा ” भाईसाहब ! पुलीस में शिकायत की ? ”
” हाँ ! गए तो थे पुलीस चौकी में शिकायत करने लेकिन उन लोगों ने रपट नहीं लिखी । आज बुलाया है । अभी हम लोग वहीँ जायेंगे थोड़ी देर में !” विनोद ने बताया ।
शर्माजी ने विनोद से कहना जारी रखा ” कल मैं किसी काम से रेलवे स्टेशन गया था । वहाँ मैंने राहुल को प्लेटफोर्म पर देखा था और उससे पूछा भी था कि वह वहाँ क्या कर रहा था ? राहुल ने जवाब दिया था कि वह अपने किसी दोस्त को रिसीव करने आया था । चूँकि वह स्कूल के कपड़ों में नहीं था इसीलिए मेरा उसपर शक भी नहीं गया । यही कहने के लिए मैं आपसे मिलना चाहता था । शायद इससे राहुल को ढूंढने में कुछ मदद मिल जाये । ” कहकर शर्माजी खामोश हो गए ।
विनोद ने तुरंत ही उन्हें धन्यवाद देते हुए उनसे विनती की ” शर्माजी ! क्या आप मेरे साथ पुलीस चौकी चलेंगे ? ”
” हां ! हाँ ! क्यों नहीं ! अब क्या मैं इतना भी काम नहीं आऊंगा ? चलो ! फटाक से तैयार हो जाओ ! अभी चलते हैं । ” शर्माजी ने तुरंत ही जवाब दिया ।

थोड़ी ही देर बाद शर्माजी ‘ विनोद और कल्पना ऑटो में बैठे पुलिस स्टेशन की तरफ जा रहे थे । कल्पना ने राहुल की तस्वीर भी ले ली थी ।
शर्माजी की वहां एक हवलदार से अच्छी पहचान थी जिसका नाम रजत था । वहाँ पहुंचकर शर्माजी ने रजत से मुलाकात की और राहुल के बारे में बताकर विनोद से उनकी पहचान करवाई । एक पुलिसकर्मी से शर्माजी की पहचान जानकर विनोद मन ही मन बहुत खुश हुआ था लेकिन शीघ्र ही उसका भ्रम टूट गया । रजत से मुलाकात करके आने के बाद शर्माजी ने बताया ” वैसे तो यहाँ रपट लिखने के ही पांच सौ रुपये लिए जाते हैं और कार्रवाई करने के लिए और अतिरिक्त हजार पांच सौ लगते हैं । चूँकि हमारी पहचान है बड़ी मुश्किल से वह पाँच सौ रुपये में ही रपट लिख कर उसपर कार्रवाई करने के लिए भी राजी हो गया है ।”
सुनकर विनोद हतप्रभ रह गया था । हताश विनोद और ज्यादा सोचकर समय नहीं गंवाना चाहता था । कल्पना को बताकर उसने तुरंत ही शर्माजी को पांच सौ का एक नोट दिया
लगभग दस मिनट बाद ही विनोद कल्पना और शर्माजी हवलदार के सामने बैठे राहुल के गुमशुदगी की रपट लिखा रहे थे ।


क्रमशः