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अधुरी कहाणी - 1

बरसात के दिन थे, नायब तेज रफ़्तार के साथ खड्डों से भरे हुए रास्ते को काटते हुए मोटरसाइकिल तेज भगा रहा था । उसके गाँव से 30 किलोमीटर पर हायवे था जो उसको और तेजी से उसको उसके ठिकाने की तरफ पहुँचाने मे मदत होती और खड्डों से मुक्ति भी मिलती। नायब को खासकर हायवे पर सुबह के वक़्त और शाम के वक्त मोटरसाइकिल चलाने का शोख़ था, साथ ही कानों मे पसंदीदा गाने और रास्ते मे चाय-सिगरेट ! इसलिये वह कुछ खाए-पिए बिना सुबह घर से निकला ।
जैसा-जैसा रास्ता कट रहा था वैसे बी उसका सिना जो-जोर से धडक रहा था, शायद कोई बेचैनी उसे अंदर ही अंदर सताए जा रही थी, उसकी मोटरसाइकिल उसके धड़कन के हिसाब से और तेज हो रही थी, उसे भी उस बैचैनी की वजह मालुम नही हो रही थी, शायद अनेकों वहज हो ? 20 किलोमीटर का रास्ता खड्डों से भरा होने के कारण, मन ही मन मे राजनेताओं को कोसते हुए वह आगे बढ़ने की कोशिश मे लगा हुआ था ।

पेट की आवाज सुनकर उसे ब्रेकफास्ट करने का मन हुआ, सुबह से भुखा जो था । एक अच्छा सा होटेल दैखकर कहीँ रूका जाए और ब्रेकफास्ट कर कर उसकी पसंदीदा आदत चाय के साथ सिगरेट के कुछ कश पिएँ जाए, यही विचार करते-करते आगे बढ़ने लगा ।

वैसे तो नायब मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक है, माँ-बाप का अकेला ही बेटा, उसकी तीन बहनें जो उनकी शादी हो चुकी है और शहरों मे रहती है । पिताजी रिटायर शिक्षक होने के साथ अब खेत संभाल रहे है, गांव के अहम फैसलों के अंदर उनकी भुमिका अहम मानी जाती है, बड़े-बड़े राजनेताओं का साथ उनकी अच्छी दोस्ती है, लेकिन कभी भी राजनीति मे कदम नही रखा, उसे वह नापसंद करते थे । नायब की माताजी बड़ी श्रद्धालु है, घर के काम के साथ दिन भर भक्ति मे लिन रहती। नायब ने हाल-फिलहाल मे अपने जिंदगी के 23 वर्ष पुरे कर लिए, अभी इंजीनियरिंग छोड़ कर उसने स्नातक की पढ़ाई शुरू की । और उसी स्नातक के पहले वर्ष की परीक्षा देने के लिए वह सुबह-सुबह अपनी 2010 की माडेल की बाइक से परीक्षा सेंटर की और निकला है जो उसके गाँव से तकरीबन 150 किलोमीटर की दूरी पर है । परिक्षा लगभग 12 दिन तक चलने वाली थी, परिक्षा की जगह उसके लिए नई थी और उसका कोई जान पहचान वाला भी वहाँ मौजूद नही था । उसे वहाँ जाकर रूम और मेस की व्यवस्था करनी थी, और उपर से परीक्षा का भय उसे थोड़ा-बहोत परेशान किया हुआ था ।

एक होटेल देकर उसने मोटरसाइकिल की रफ़्तार धिमी की और उस होटेल के सामने अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की, उसने अबतक आधा रास्ता पुरा कर लिया था ।

नायब और मनचत दोंनो की मुलाकात स्नातक मे प्रवेश लेते वक्त हुई थी, तब से दोनो गहरे मित्र हो गए थे । उन दोनों का वादा परीक्षा के वक्त साथ रहने का और फुल मस्ती करने का था, शायद यह नियती को मंज़ूर नही था, अचानक से मनचत के पिताजी सुरजलाल की तबियत बहोत खराब होने के कारण वह उन्हें लेकर मुंबई गया हुआ था, उसके कारण वह परीक्षा को आने वाला नही था, और यह सब परिक्षा को निकलने के कुछ वक्त पहले ही उसका आना रद्द होने से नायब को अकेले जानाँ वजन लग रहा था, शायद वही बैचैनी उसके दिल मे घर कर गई थी ।


(जारी रहेगा ...)