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रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड - 3 - 9

रहस्यों से भरा ब्रह्माण्ड

अध्याय 3

खंड 9

उस जगह से उठ कर हम्जा आगे बढ़ा वो इस बात से अंजान था कि वो किस युग में आ पहुँचा है।

वो किसी प्रकार के चिन्ह की खोज में या किसी व्यक्ति के मिलने की आशा में मिलो पैदल चलता रहा अंत में संध्या के समय अचानक तेज बरसात शुरू हो गई। हम्जा खुद को सुखा रखने की कोशिश में एक गुफा में जा घूंसा, उस गुफा में जाने से पहले हम्जा को गुफा से मध्यम रोशनी दिखी थी। जिसका सीधा सा मतलब था कि उस गुफा में कोई मनुष्य है। जिसने वो रोशनी की हुई है।

मगर उस गुफा में घुस कर हम्जा ने पाया वो गुफा काफी विशाल है। और उसके शुरुवाती हिस्से में कुछ मशालें लटकी थी।

जिनमें से एक मशाल हम्जा ने उठा ली।

हम्जा ने देखा जहाँ तक मशाल की रोशनी जाती है। गुफा उससे भी कई गुना अधिक लंबी है। उसकी रोशनी की क्षमता के बाहर गुफा में गुप अंधेरा और ख़ौफ़नाक सन्नाटा था।

हम्जा गुफा में आगे बढ़ा तो उसको दीवारों पर अजीब ओ गरीब चित्रकारी दिखी जिसमें कोई दो मुंह वाला विशाल राक्षस है। जो गाँव के गाँव तबाह कर रहा था।

आगे चल कर उसने देखा कि चित्रकारी द्वारा दर्शाया गया था कि कुछ गाँव वाले उस राक्षस से समझौता कर लेते है। जिसके चलते वो हर सातवीं रात एक बच्चे की बलि देते दिखाए गए है। फिर ये सिलसिला एक परंपरा सा बन गया और कई दशकों से वहाँ के निवासी बच्चों की बली देते आ रहे है। ताकि उनके गांव सलामत रहे।

इस चित्रकारी को देखने में हम्जा इतना मगन था कि उसका ध्यान आगे पीछे बिल्कुल नहीं था तभी उसका पैर किसी चीज़ पर पड़ा जो टक की आवाज़ करके चटक गई। हम्जा ने उसको उठाया और देखा तो वो एक बाल मानव के हाथ की हड्डी थी। उसे देख कर हम्जा अपनी मशाल से धरती पर रोशनी करता है। तो उसको और भी ऐसे अवशेष मिले जो किसी बच्चे के थे। वो उसी दिशा में आगे बढ़ता चला जाता है। उन बाल कंकालों की संख्या भी बढ़ती जाती है। अंत में वो ऐसी जगह आ पहुँचा जहाँ पर वो दैत्य सो रहा था उसकी गर्म साँसे इतनी तेज थी कि हम्जा को दूर से ही महसूस हो रही थी। हम्जा वहाँ से निकलने में ही अपनी भलाई समझ कर मुड़ता है। तभी उसको किसी बालक की सिसकियों की आवाज़ आती है। हम्जा उस दिशा में अपनी मशाल करता है। तो एक नन्हा 5 वर्षीय बालक वहाँ डरा सहमा बैठा रो रहा था। जिसे देख कर किसी को भी उसकी हालत पे दया आ जाती उसके चेहरे से स्पष्ट था कि वो जनता है। उसको यहाँ क्यों छोड़ा गया है। और वो अत्यंत भय के बावजूद भी वहाँ से भाग नहीं रहा था जो इस बात को प्रमाणित करता है। कि उस बच्चे ने इस प्रकार मरना अपना भाग्य मान लिया था।

हम्जा के लिए उसको देख कर अनदेखा करना असंभव था। वो उन लोगों में से नहीं था जो खुद की मृत्यु के भय से किसी अबोध बालक की बली चढ़ाता, बल्कि वो उन साहसी वीरों में से था जो किसी अज्ञात अबोध बालक के लिए स्वयं का भी निःसंकोच बलिदान कर देते है। उसने एक गहरी सांस ली और उस बालक की ओर धीरे धीरे कदम बढ़ाए। अपनी ओर आते व्यक्ति को बालक ने बड़ी अचरज से देखा जैसे पूछ रहा हो क्या तुम इस दैत्य राज से भय नहीं खाते।

हम्जा बालक को इशारों में अपनी गोद में आराम से आने के लिए कह कर अपने हाथ खोलता है। जिसे देख कर बालक को लगा मानो कोई देवता उसको जीवन दान देने आए है। जो आशा उसके सगे माता पिता ने उसको नहीं दी वो आशा उसको हम्जा द्वारा दी जा रही थी। जीवित रहने की आशा।

बालक ने इस सुंदर अवसर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और हम्जा की गोद में इस प्रकार कस कर जा बैठा की अब उसको कोई भी शक्ति इस महापुरुष से अलग नहीं कर सकती। हम्जा बालक को गोद में लेकर धीरे धीरे उस जगह से आगे बढ़ने लगा। और उसी बीच फिर से उसका पैर एक कंकाल पर जा पड़ा जिसके कारण उस शांत और भव्य गुफा में वो ध्वनि गूंज उठी और इसी के साथ उस दैत्य की आंखें भी खुल गई।

किसी हाथी के समान कद और चीते के समान सडोल शरीर रखने वाला वो दैत्य जिसके चार पशु की भांति पैर और मनुष्य कि भांति दो हाथ थे। उसके दो मुख थे एक बाज की आकृति का रूप था मगर विशाल दूसरा किसी भेड़िया का रूप दर्शा रहा था। दोनों ही मुंह अपने भोजन को जाता देख भयंकर गर्जन करने लगे जो शायद उसकी ओर से एक चेतावनी थी। हम्जा ने उस चेतावनी को अनदेखा कर दिया। और उस बालक को तेजी से ले कर भागा मगर अपने फुर्तीले शरीर की सहायता से वो दैत्य दो छलांगो में ही हम्जा के आगे आ कर खड़ा हो गया। और फिर से एक अंतिम चेतावनी के रूप में गर्जन करी। जिस पर हम्जा ने बच्चे को धीरे से नीचे उतारा। ये देख कर दैत्य को लगा शायद हम्जा उसकी बात समझ गया है। और वो थोड़ा सा रास्ता छोड़ कर खड़ा हो गया जैसे कह रहा हो केवल तुम्हें जाने की अनुमति है। इस बालक को नहीं। उसके द्वारा छोड़े रास्ते को देख कर हम्जा ने तेजी से अपनी तलवार निकाली और उस दैत्य के ऊपर वार करते समय चिल्ला कर बालक से बोला भागो...

मगर सब व्यर्थ गया दैत्य की फुर्ती इतनी अधिक थी की उसने पहले अपने मुंह से हम्जा को धकेला फिर उस बालक पर अपनी धार दार चोंच से वार कर उसको दीवार पर दे मारा बालक के सुंदर मुख पर उस की चोंच से एक गहरा घाव पड़ गया और दीवार पर सर टकराने के कारण वो बालक मूर्छित हो कर गिर पड़ा।

दैत्य द्वारा दो बार की चेतावनी को अनसुना करता देख दैत्य को अब हम्जा पर क्रोध आ गया और अब वो हम्जा को भी जीवित नही छोड़ना चाहता था।

हम्जा ने भी देखा कि उस जंगल के राक्षस की ही भाँति तलवार का वार इस दैत्य पर भी व्यर्थ सिद्ध हुआ तो हम्जा ने वो खंजर निकाला जिसे उसकी प्रिय ने दिया था और जिससे वो पहले भी एक राक्षस का वध कर चुका था। उस खंजर के तिलिस्म पर पूरा विश्वास कर हम्जा एक और बार पूरी शक्ति से वार करता है।

पर ये क्या इस बार इस खंजर का भी वार तलवार की भांति निष्क्रिय रहा। और इस बार जब दैत्य ने पलट वार किया तो हम्जा के हाथों से वो खंजर भी छूट कर दूर जा गिरा और हम्जा ये देख कर उस खंजर को उठाने भागा पर पीछे से दैत्य ने हम्जा पर एक और वार कर उसको दूसरी दिशा में धकेल दिया।

हम्जा इस बात से परेशान हैरान की खंजर का तिलिस्म काम क्यों नहीं किया। कि तभी उसको सब कुछ समझ आ गया। कि असली तिलिस्म खंजर में नहीं उसके रक्त में है। जो राक्षसों और दैत्यों के लिए किसी तेजाब समान है।

तभी उस समय जब खंजर पर उसका रक्त था वो भी तिलिस्मी हो गया था और जब उसने खंजर को धो कर साफ किया तो उसका तिलिस्मी रक्त उस से साफ हो गया।

इस बात को जांचने के लिए हम्जा अपने सीधे हाथ की उंगली पर इतनी जोर से काटता है। कि उसमें से रक्त बहने लगा। तभी वो दैत्य हम्जा को पीछे से पकड़ अपने हाथों से उठा कर अपने मुंह के पास खाने के लिए लाता है। हम्जा अपने रक्त को दोनों हाथों में मल दोनों हाथों को उसकी आँखों में घुसा देता है। अब उसकी चार में से दो आंखें फुट गई। केवल आँखें फूटी ही नहीं हम्जा का रक्त उसके शरीर में पहुँच कर उसको अपार पीड़ा देने लगा। वो हम्जा को एक ओर फेंक जोर जोर से दहाड़ने लगा तभी हम्जा दौड़ कर पास पड़ी तलवार को उठा कर उस पर अपना रक्त लगा देता है। फिर पास के एक पत्थर पर चढ़ कर उस दैत्य की पीठ पर बैठ गया। अब हम्जा दैत्य की दोनों गर्दनों को अपने तलवार में फंसा कर एक हाथ से तलवार का मुट्ठा पकड़ कर दूसरे हाथ से तलवार का दूसरा सिरा पकड़ कर किसी दरांती की तरह तलवा का उपयोग कर एक ही वार में उस दैत्य के दोनों सर धड़ से अलग कर देता है।

इस दैत्य युद्ध में हम्जा को भी छोटी मोटी चोट आई पर वो उस बालक को उठा कर कैसे तैसे एक तालाब के पास ले आया। गुफा से निकलने से पहले हम्जा उस दैत्य के कुछ दाँत तोड़ लेता है। अब तक रात का अंधकार चारों ओर छा चुका था।

हम्जा जब बालक के मुंह पर पानी छिड़क कर उसको जगाता है। तो भय से खड़ा हो कर वो बालक इधर उधर ऐसे देखता है। जैसे उस दैत्य का भय यहाँ भी उसका पीछा ना छोड़ता हो। इस को देख कर हम्जा अपने पास से उस दैत्य के जबड़ों से उखड़े दांत उस बालक को दिखाता है। जिसे देख कर बालक समझ गया कि इस महापुरुष ने दैत्य का वध कर दिया और ऐसा कर हम्जा ने केवल उस बालक की ही नहीं उसके जैसे भविष्य में दैत्य की खुराक बनने वाले अन्य कई बालकों के प्राणों की भी रक्षा की है।

जब हम्जा उसका मुंह तालाब के पानी से साफ करता है। तो उसके मुंह पर दैत्य द्वारा दिया घाव देख, हम्जा को ये समझते देर ना लगी कि ये बालक वही वृद्ध है। जो भविष्य में उसको मिला था। हम्जा हल्की सी मुस्कान दिखा कर उस बालक को भेंट में दो मोतियों में से एक दे देता है। इस प्रकार उसके पास अब केवल एक ही मोती बचा था।

बालक ये सोच कर हम्जा को अपने कबीले ले जाता है। की जब उसके कबीले वालो को पता चलेगा कि इस महापुरुष ने दैत्य का वध किया है। तो इसका आदर सत्कार होगा।

मगर जब वो दोनों बालक के कबीले पहुँचे तो वहाँ के लोगों में हाहाकार मच गया। उनको लगा कि ये परदेसी बालक को दैत्य की गुफा से उठा लाया, और अब दैत्य किसी भी क्षण इन पर क्रोध में भरा हमला कर देगा। मगर वो बालक अपनी भाषा में कबीले के लोगों को कुछ बोलता है। जिससे उनके बीच एक सन्नाटा सा पसर गया, फिर बालक हम्जा को संकेत कर के उससे दैत्य के दाँत मांगता है। उस दैत्य के दांतों को देख कर सब लोग अचरज में पड़ गए फिर उस बालक का पिता जो कबीले का मुखिया भी था साधारण भाषा में हम्जा से बोला " क्या ये सत्य है परदेसी की तुमने उस दैत्य का वध कर दिया।

हम्जा " जी ये सत्य है।

मुखिया " असंभव।

हम्जा " आप चाहे तो उस गुफा में जा कर पुष्टि कर सकते है। उसके दोनों सर अब भी धड़ से अलग धरती पर पड़े हुए है।

इसको सुन कर मुखिया कुछ लोगों को उस गुफा में जाने का आदेश देता है। पर वे लोग अब भी दैत्य के प्रकोप से भयभीत थे। और किसी अजनबी की बातों को मान कर कोई बेवकूफी नहीं करना चाहते थे। पर मुखिया के लताड़ने पर वो लोग विवशता से मुंह लटका कर चले जाते है। जाने वाले लोगों के भीतर जाते समय उस परदेसी यानी हम्जा के लिए अत्यंत क्रोध था क्योंकि उनको विश्वास था कि दैत्य को कोई नहीं मार सकता वो अमर है। और आज इसके कारण उन सब को क्रोधित दैत्य का सामना करना पड़ेगा।

मगर जब वो लोटे तो उनके भीतर हम्जा के लिए अपार प्रेम सम्मान आदर और प्रसन्नता के भाव भर चूके थे। और वो आते ही खुशी से हम्जा को अपने कंधों पर उठा कर उसकी जय जय कार करने लग गए जिसे देख कर मुखिया के साथ साथ अन्य कबीले के लोगों को भी विश्वास हो गया उस दैत्य की मृत्यु का,

उस दिन पूरी रात्रि केवल उत्सव ही मनाया गया। और उस उत्सव का सारा श्रेय केवल हम्जा को समर्पित था। हम्जा के कारण वो कबीला ऐसे श्राप से मुक्त हो चुका था जिसका कष्ट वो सदियों से भोग रहे थे। वाकई इस प्रकार का असम्भव कार्य करने वाला व्यक्ति इन लोगों के बीच किसी देवता से कम नहीं हो सकता।

अगले दिन सुबह जब हम्जा सो कर उठा तो उसको पता चला कि आज चाँद की पहली तारिक़ है।

वो समझ गया कि उसके यहाँ से जाने का समय आ गया है। मगर जिस उद्देश्य से वो यहाँ आया था उसके बारे में वो कुछ भी ना जान सका उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो किस प्रकार अपने प्रियतमा का पता लगाएं एकाएक उसके मन में विचार आया, हो सकता है। जब वो वापिस पहुँचे उसको अम्बाला बिना किसी खोज बिन के मिल जाये, बस इसी आशा में वो रात होने की प्रतीक्षा करता है। उसके बाद जब रात का वही समय आया, तो वो उस बालक को अपने साथ उसी पहाड़ी पर ले गया, और बोला " दोस्त मैं इतना तो जान चुका हूँ। तुम्हें मेरी भाषा भले ही बोलनी न आती हो पर समझ अच्छे से लेते हो।

मेरी एक बात याद रखना। एक दिन एक युवक तुम्हारे पास आएगा। जिसको तुम्हें चाँद की पहली तारिक़ को यहाँ लाना है। और किसी भी तरह इस पहाड़ी से कूदने के लिए विश्वास दिलाना है। वो ऐसा करने में आना कानी करेगा मगर उसका यहाँ से कूदना बेहद ज़रूरी होगा, मेरी बातों को अच्छे से समझ गए ना।

वो बालक हम्जा की बातों के प्रति उत्तर में हाँ में अपना सर हिला कर अपनी सहमती जताता है।

बस इतना देखना था। कि बिना किसी चेतावनी के हम्जा उस पहाड़ी से छलांग लगा देता है। देखते ही देखते बालक के सामने हम्जा जमीन पर न गिर के अदृश्य हो गया।

वही हम्जा फिर से एक नया अनुभव करता है। इस बार का अनुभव भी बड़ा विचित्र पर अलग था।

हम्जा को अब सूर्य सही दिशा में अत्यंत गतिमान हो कर बार बार डूबता और उगता हुआ दिखाई देने लगा। पर साथ में आस पास की चीज़ों में भी अजीब परिवर्तन का अजीब अनुभव भी हम्जा ने किया।

जब हम्जा धरती पर गिरा तो इस बार वो जंगल में नहीं। बल्कि वसुंधरा राज्य और जंगल की सीमा पर आ गिरा।

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