Samraat - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

सम्राट - 2

2 : धुंध

नवरंग एवम मित्रों के पास रात गुजरने के लिए गुफा एवम खाने की व्यवस्था के लिए जंगलों से प्राप्त होने वाले फल थे | परंतु सुरक्षा की समस्या अभी बनी हुई थी | गुफा उनकी ज़रूरतों को पूरा कर रही थी परंतु गुफा की सुरक्षा भी जरूरी थी | गुफा की सुरक्षा के लिए गुफा के मुँह को दरवाज़े का रूप दिया जाना जरूरी था । जंगल से लकड़ियों तथा छालों के द्वारा मजबूत दरवाज़े से गुफा को ढक दिया गया । इतना करते करते दिन गुजर गया | रात मैं खाने के बाद सभी मित्रों ने बारी बारी पहरा देने का निश्चय कर के सो गए ।

रात के आखिरी पहर मैं जब नवरंग पहरे पर थे वह पिछली रात देखी हुई धुंध के बारे मैं सोच रहा था उसे यकीन था की धुंध आज भी दिखाई देगी परंतु आज भी उसे नहीं पता था की उन लोगों को धुंध से कोई खतरा है या नहीं । उसे नहीं पता थे की वह क्या कर सकता था अगर धुंध किसी किस्म के खतरे को पैदा करती । परंतु नवरंग को सिर्फ इतना पता था की उसे सावधान रहना है । शायद यही कारन था की उसे नींद आने के बावजूद वह सतर्क था|

नवरंग सावधानी से अपनी जगह पर बैठा हुआ उसी जगह को देख रहा था जहाँ पर उसे पिछली रात धुंध दिखाई दी थी । पिछली रात की तरह ही आज रात भी धीरे धीरे सफ़ेद धुंध पैदा होना शुरू हो चुकी थी । धीरे धीरे धुंध पुरे एरिया मैं फ़ैल रही थी । नवरंग लगातार धुंध को देख रहा था । काफी देर बाद नवरंग ने ध्यान दिया तो उसे महसूस हुआ की धुंध के बीच हलके हलके जलते हुए अंगारों के जैसी दो आंखे लगातार उसे घूर रही हैं । नवरंग भी लगातार अंगारों मैं देखने लगा वह डरा हुआ था परंतु वह सावधान था । काफी देर तक अंगारों मैं देखने के कारण नवरंग की आँखें भी जल रही थी उनमे पानी निकलने लगा था ।

मजबूरन नवरंग तो अपनी आँखें बंद करनी पड़ी । कुछ देर बाद जब नवरंग ने अपनी आँखें खोली वह डर के कारण अपनी जगह से हिलना भी भूल गया । वह चिलाना कहता था अपने दोस्तों को जगाना चाहता था परंतु न तो वह हिल पा रहा था न ही उसके मुह से कोई आवाज़ ही निकल पा रही थी । डर का कारण धुंध गुफा के मुह तक आ पहुंची थी । अंगारे जैसी आँखें उससे सिर्फ एक हाथ के फैसले पर मौजूद थी तथा उसे लगातार घूर रही थी । धुंध तथा नवरंग के बीच लकड़ियों एवम शालाओ से बने दरवाज़े के अलावा कुछ नहीं था । नवरंग सिर्फ हाथ बड़ा कर धुंध को छु सकता था परंतु न तो नवरंग ऐसा करना चाहता था न ही उसमे इतनी हिम्मत बची थी |

काफी देर तक नवरंग ऐसे ही खड़ा रहा । धीरे धीरे उसकी चेतना वापिस आ रही थी । वह सोच रहा था की जब अंगारे जैसे आँखों वाली धुंध गुफा के मुह तक आ पहुंची है तो अब अंदर क्यों नहीं आ पा रही परंतु उसे नहीं पता था क्यों न ही वह इस बारे मैं कुछ सोचना चाहता था । उसे बस इतनी ही तसल्ली थी की धुंध गुफा के अंदर नहीं आ पा रही । काफी देर तक धुंध को देखते रहने के बाद नवरंग पीछे हट कर एक पत्थर पर बैठ गया । उसे यकीन था की धुंध किसी कारण से गुफा मैं नहीं आ सकती परंतु फिर भी वह अपनी नज़रें धुंध से नहीं हटाना चाहता था । नवरंग के पत्थर पर बैठने के बाद धुंध ने लगातार आगे बढ़ कर गुफा मैं प्रवेश करने की कोशिश जारी रखी परंतु किसी कारण से न तो गुफा के अंदर जा सकी न ही प्रयास बंद हुए |

दिन की शूरुआत हो चुकी थी सूरज की लाली आकाश मैं फैलनी शुरू हो चुकी थी । गुफा के बहार धुंध अभी भी मौजूद थी । रात मैं अंगारे जैसी चमकने वाली आँखें अभी भी मौजूद थी परंतु शायद आकाश की रौशनी के कारण इस वक़्त आँखों को देख पाना बहुत मुश्किल था । अपने दोस्तों के जागने के बाद नवरंग ने सभी की रात मैं हुई घटना के बारे मैं बताया तथा अंगारों जैसी आँखें भी दिखाई । इस वक़्त सभी दोस्त डरे हुए थे परंतु सब एक साथ थे इस लिए डर भी अपनी सीमाओं से आगे नहीं जा पा रहा था । नवरंग ने इस वक़्त गुफा मैं ही रह कर धुंध के हटने का इंतज़ार करने का फैसला किया । इस वक़्त जबकि करने के लिए कुछ भी नहीं था तो नवरत्न एक तरफ जा कर सोने की कोशिश करने लगा । नवरंग के दोस्त दूसरी तरफ सतर्क बैठे रहे । नवरंग तथा उसके दोस्त लगातार महसूस कर रहे थे को अंगारों जैसी आंखे लगातार नवरंग को घूर रही थी । आँखों के पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ नवरंग पर ही था |

जैसे जैसे दिन निकलता गया धुंध भी पीछे हटने लगी । परंतु नवरंग के दोस्त लगातार महसूस कर रहे थे की धुंध पीछे हटना नहीं चाहती परंतु उसे हटना पड़ रहा था । आखिर दिन का पहला पहर खत्म होने से पहले जब सूरज की किरणें गुफा के बाहर तक आने ही वाली थी धुंध पूरी तरह से गायब हो चुकी थी । इसी वक़्त नवरंग ने अपने दोस्तों को जरूरत का सामन इकठा करने के लिए भिजवा दिया और खुद उस तरफ बढ़ गया जहां पर से धुंध शुरू हुई थी । जब नवरंग के दोस्त फल एवम लकड़ी इकठी कर रहे थे नवरंग चट्टान पर चढ़ने के रास्ते की तलाश कर रहा था जिस से की पिछली रात धुंध शुरू हुई थी । परंतु एक गहरी खाई उसका रास्ता रोके हुई थी । न तो खाई को कूद कर पर किया जा सकता था न ही नवरंग कोई दूसरा रास्ता ही तलाश कर पाया । अंतत नवरंग के पास हार मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था ।

नवरंग अपने दोस्तों का हाथ बटाने के लिए वापिस आ गया । वह रात होने से पहले गुफा मैं काफी लकड़ी एवम फल इकठे कर लेना कहता था जिससे की अगर कुछ दिन गुफा मैं कैद भी रहना पड़े तो भी खाने एवम सर्दी की चिंता न करनी पड़े ।

धीरे धीरे रात फिर आ गयी । आज की रात नवरंग सबसे पहले पहरा दे रहा था । आज भी पिछली रात की तरह ही चारो तरफ धुंध फैली हुई थी आँखें अंगारों की तरह जल रही थी । आँखें लगातार नवरंग को घूर रही थी धुंध लगातार गुफा मैं आने का प्रयास कर रही थी । परंतु नवरंग निश्चिंत था उसे यकीन था की धुंध अंदर नहीं आ पायेगी । पूरी रात नवरंग एवम उसके दोस्त एक एक करके पहरा देते रहे परंतु न तो धुंध अंदर आ पायी न ही प्रयास बंद हुए |

फिर दिन निकला और फिर रात आ गयी इसी तरह कई दिन गुजर गए और इस दौरान नवरंग एवं दोस्तों की दिनचर्या लगभग निश्चित हो चुकी थी | धुंध का पहरा भी लगातार चालू था | दिन लगातार छोटे होते जा रहे थे इसका मतलब था की नवरंग और मित्रों के पास अपनी दिनचर्या समाप्त करने के लिए समय लगातार कम होता जा रहा था | इस बारे मैं अधिक चिंतित होने की आवशकता अभी नहीं थी क्योंकि प्राप्त भोजन और पानी जुटा लिया गया था | यदि कुछ दिन बाहर निकलना मुमकिन न हो तब भी जीवित रहा जा सकता था |

कैद तो आखिर कैद ही थी और कैद मैं घुटन महसूस होना स्वाभाविक था | कैद से बाहर आने के दो ही रास्ते थे पहला रास्ता था धुंध का रहस्य तलाश किया जाये और उसे हराया जाये | इसके लिए किसी के पास कोई निश्चित योजना नहीं थी इसीलिए दूसरा रास्ता चुना गया |