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बागी आत्मा 9

बागी आत्मा 9

नौ

जंगलों के ये लोग दिन में आराम करते हैं और रात सैर-सपाटे, लूट-खसोट में गुजारते हैं। इनकी रात अमानवीय कृत्य करने के लिए, जश्न मनाने के लिए देवी-देवताओं की पूजा करने के लिए रहती है। जंगल की शरण पाने वाल,े इन्हीं सब बातों में अपना गौरव अनुभव करते हैं।

यहां के वातावरण में सूनापन होता है। इसमें भी लोग मौज करते हैं। किसी के बच्चे किसी की पत्नी, संयोगवश मिलने आ जाती हैं। तो उनके ठहरने के लिए जंगलों से घिरे गावों की शरण लेना पड़ती है। कभी-कभी ठहरने की व्यवस्था तम्बू लगाकर भी कर ली जाती है। उनमें उनके बच्चे, पत्नी स्वयं मौज करते देखे जा सकते हैं।

आशा को पता चल गया था कि किस खोह में इनका पड़ाव है। इनके पड़ाव तो बदलते रहते हैं। प्रतिदन या मौका समझा गया तो दिन में दो-दो बार तक बदलना पड़ जाते हैं। सुरक्षित स्थान हुआ तो 8-10 दिन तक एक ही जगह पड़े रहते हैं। दिन अस्त होने से पहले यदि वहंा पहुंच पाये तो रात्री में उस क्षेत्र की कल्पना नहीं की जा सकती। वह यही सब सोचते हुए चलती जा रही थी-

मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि यहां आना पड़ेगा। मैं यहां आने को मना क्यों नहीं कर सकी। मुझे क्या हो गया था ? जो यहां आने का विरोध भी न कर सकी। मेरे माताजी पिता जी मेरी खुशी देखते हैं। जैसा कहती हूँ करने को तैयार हो जाते हैं। मैं भी कैसी हूँ जो अपराधी से प्यार। लेकिन प्यार करने के समय तो माधव अपराधी नहीं था। शादी हो जाती, उसके वाद माधव अपराधी बन जाता तो ं ं ं मैं उसे छोड़ देती।‘ इतना ही सोच पाई थी कि सामने माधव दीख पड़ा। खाकी ड्रेस। कन्धे पर बन्दूक टंगी थी। छोटी-छोटी मूछें, रोब देने वाली थी। आशाको देखकर वह तेजी से आशा की ओर बढ़ा। पास आ गया। चेहरे पर की खुशी साफ-साफ दिख रही थी। माधव की आवाज उसके कानों में सुन पड़ी?‘

‘ जंगलों में चलते चलते थक गई होगी।’

‘ आप से मिलने की आकांक्षा में थकान कहां?’

किसन जो आशाको साथ लेकर आया था पीछे चला आ रहा था उसने ये बातें अच्छी तरह सुनली तो बोला -‘बिटिया,यहां आने में जो थका, वह गया काम से। क्या पता अभी हाल ही यहां से भागना पड़ जाये। हम ऐसी जगह पर आ खड़े हुए हैं जहां आदर्श की बात करना मौत है, जेल है, फांसी है।‘ माधव को आधार मिल गया बोला- देखो आशाहमारे किसन काका भी कितने गहरे अनुभव की बात बताते हैं ? अब तक बातें करते-करते पड़ाव पर पहुंच चुके थे। एक पत्थर की पटिया पर बिस्तर पड़ा था। आशाको उस पर बिठा दिया गया। वहीं आस पास सभी लोग खड़े हुए थे। आशाके वहां पहुंचते ही थोड़ी सी हलचल हुई और सभी वहां से हट गये। माधव भी वहीं आ बैठा। एक आदमी जो सिपाही की ड्रेस में था, खाना ले आया दोनों खाना खाने बैठ गये। खाना देख कर आशा बोली -

‘सोच रही हूँ ये मिठाइयां, ये बिस्कुट यहां कहां से ं ं ं?‘

मिलने को तो आशायहां सभी चीजें सुगमता से उपलब्ध हो जाती हैं पर कभी भूखा रहकर जीना पड़ता है। यहां सबसे बड़ा प्रश्न है मौत से कैसे बचे रहें ?‘ और मौत है कि हर क्षण सिर पर सवार रहती है। बात सुनकर आशा बोली-

‘मौत तो सभी जगह सभी के सिर पर सवार रहती है कबीर दास जी ने एक दोहा कहा है-

साईं गरव न कीजिए काल गहे कर केस।

न जाने कहां मरिहैं कै घर कै परदेश।।

अरे वाह भई, क्या ऊंची बात कही है ? तुम्हारी बात तो मुझे मौत की ओर से निश्चिन्त बना रही है। मौत है यहां भी आ सकती है कहीं भी आ सकती है।

‘आशा अब पता नहीं क्यों मौत का डर नहीं लगता।’

ऐसी बातों में दोनों खाना खा चुके। रात्री में जमीन पर ही सोने की व्यवस्था थी। दोनों के बिस्तरे पास-पास ही थे। आशा यह देखकर बोली-

‘बिस्तरे इतने पास-पास हैं कि संयम का बांध फूट सकता है, और एक विश्वास जिसके सहारे मैं आपसे मिलने चली आई टूट सकता है।‘

‘मैं भी यही सोचता हूँ आशा कि विश्वास आधार क बिना रिश्ता नहीं है‘ एक बात कहना चाहता हूँ ं ं ं।

‘कहो ?‘

‘अब रहा नहीं जाता।‘ आखिर कब तक इस बांध को रोके रहेंगे।

‘जब तक हमारी शादीनहीं हो जाती।‘

‘शादी की व्यवस्था कर ली गई है।‘

‘मेरे बिना पूछे।‘

‘इसमें पूछने की क्या बात है ? वह तो होनी ही थी।

‘लेकिन ं ं ं ?‘

‘लेकिन मैं सब बागियों में इसकी घोशणा कर चुका हूँ।‘

‘इसका मतलब है आप अपना निश्चय नहीं बदल सकते।‘

‘आशानिश्चय बदलना पड़ सकता है लेकिन बागी जो कुछ कह देते हैं उसके लिए जान की बाजी तक लगा देते हैं।‘

यह कहकर माधव चुप रह गया कुछ सोचने लगा। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद आशाबोली -

‘चुप क्यों रह गये क्या सोचने लगे ?‘

‘कुछ नहीं यों ही सोच रहा था। बिना तुमसे पूछे घोशणा करके मैंने ठीक नही किया।‘

‘मुझे तो कोई बात नहीं है लेकिन माताजी पिताजी को तो यहां होना चाहिए।‘

उनके लिये अलग से आदमी भेजा है। शायद कल तक वे भी आ जायेंगे।

‘सच ?‘ यहाँ

‘हां आशा।‘

तभी बन्दूक चलने की आवाज सुन पड़ी। सब अपने अपने हथियार लेकर इस ओर दौड़ पड़े। माधव ने अन्धेरे में चमकती रेडिय से युक्त घड़ी पर नजर डाली। रात्री के 11 बजे थे। माधव भी इतनी देर में अपना हथियार संभाल चुका था। आशासे यह कहते हुए उस ओर लपका। सोरी, आशा शायदसमय नजदीक आ गया है स्थान बदलना पड़े। आशादेखती रही। सोचती रही ये क्या जीवन है ? जिसमंे हर समय जीने के लिए लड़ना पड़ता है।

लेकिन जीने के लिए कहां नहीं लड़ना पड़ता। कहीं अधिक कहीं कम। यहां जीने के लिए लड़ाई आमने-सामने की तो है। वहां तो पीठ पीछे लोगों के छूरा भोंका जाता है। मिलावट की जाती है। दवाओं में मिलावट होती है। सभी जगह लड़ाई लड़नी पड़ती है। एक-एक पैसे पर खून हो जाता है।

डर ं ं ं ? डर कैसा ? कहां नहीं है सभी जगह है। मैं यहां अकेली रह गई फिर भी डर नहीं लग रहा है।‘ अब वह सोचना बन्द करके आवाजे सुनने का प्रयत्न करने लगी। टिटहरी के बोलने की आवाज आभास दे रही थी। सब यहीं आस-पास मोर्चा पर हैं। वह बड़बड़ाई ‘आदमी के होने का आभास होने पर ही टिटहरी बोलती है। इतना ही कह पाई कि माधव वापस लौट आया था। आशापूछ बैठी।

‘क्या बात हो गई ?‘

‘बात क्या थी आशा? कोई मजनू आया है कहता है, उसकी प्रेमिका की शादीजबरदस्ती पैसे का लालच देकर एक बूढ़े के साथ की जा रही है। सरकार तो इस बात की शिकायत कहां सुनती है। इसलिये वह यहां चला आया।

‘क्या कह दिया आपने ं ं ं?‘

‘मैंने कह दिया उसकी शादीउससे नहीं तुम्हारे साथ होगी व षर्त लड़की तुम्हारे साथ शादीकरने तैयार हो।

‘शादी कैसे कराओगे ?‘

‘वैदिक रीति से।‘

‘पुलिस पीछा करेगी।‘

‘शादी कहां होगी पुलिस को पता ही नहीं चल सकता। फिर किराये के टट्टू मरने, सामने नहीं आ सकते।

‘तब तो वे देश के बहुत बड़े गद्दार होते हैं।‘

‘आशापैसे का लालच अच्छे-अच्छों को ठिकाने ले आता है।‘

‘इतना अगाध विश्वास है आपको लक्ष्मी पर।‘

‘आशालक्ष्मी से वयवस्था ही नहीं न्याय को भी खरीद लिया जाता है। अच्छे अच्छे न्यायाधीश बिकते नजर आते हैं। मेरे मामले में और क्या हुआ ?‘

‘क्या हुआ ?‘

‘ अरे न्यायाधीश के पास पैसे पहंुच गये थे। मुझे ठिकाने लगाने के लिए।‘

‘तुम्हें कैसे मालूम चला ?‘

‘जब मैं सजा भुगतकर घर लौट आया, किसी बहाने उन गवाहों से मिला। गवाहों ने कहा कि हमने तो पैसा लेकर गवाही दी है।‘

आशा, इन दिनों , बडे बडे नेताओं की खबरें आ रही हैं कि आप हाजिर हो जाइये। लूट का धन कुछ हमें दीजिये, आप न्यायालय से बरी हो जायेंगे। अब ‘बरी किसके लिए होना है।‘

‘किसके लिए नहीं होना। यह बात न होती तो मैं यहां तक न आती। जो बचपन से बंधन बंध गये हैं उन्हें तोड़ पाना ं ं ं।‘

‘ तुम चाहो तो तोड़े जा सकते हैं।‘

‘ कहीं मैं बन्धन तोड़कर चली गई। मैंने जाकर किसी दूसरे से विवाह कर लिया। आप मुझे छोड़ देंगे ?‘

‘छोड़ना तो नहीं चाहूँगा पर मैं जीकर भी क्या करूंगा ?‘ जिस जीवन में कोई अपना न हो। मैं तो चाहता हूँ आप लौट जायें किसी दूसरे से व्याह कर ले। सुख से रहें। मेरे लिये जो सेवा हो ं ं ं।‘

‘हा..... हा..... हा.... कितने कोमल हृदय के हैं आप। यह सब देख सकेंगे। मुझे विधवा नहीं बना डालेंगे।‘

‘अरे हट पगली, मैं इतना कायर नहीं हूँ। मैं जानता हूँ किसी बागी के साथ विवाह करने वाली युवती अपने को विधवा समझकर शादीकरे।‘

बागी का भी जीवन होता है। जितने समय वह जीता है वेदनायें, मृत्यु की आशंका उसको हर क्षण घेरे रहती है। इन छोटी-छोटी दो भुजाओं की ताकत, षासन से कभी भी अधिक षक्तिशाली नहीं हो सकती।

यह मत कहिए। हर बार विद्रोहियों ने ही सत्ता परिवर्तन करने की कोशिश की है। इतिहास साक्षी है वे कई बार सफल भी हुए हैं। यह कहकर मैं आपको और अधिक साहसी नहीं बना देना चाहती, पर जीने के नये रास्ते अवश्य खोजना चाहती हूँ।‘

‘मैं यह जान गया हूँ आशा, तुम्हारे बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है।‘

‘संसार के लोग समझेंगे मैंने धन के लालच मंे आकर माधव से शादीकर ली है।‘

‘ऐसी बातें करके तुम तो अभी से बोर करने लगी हो।‘

‘अभी क्या है ? अभी बोर करने की शुरूआत है। तुम्हें तो बोर किया करूंगी कि मजा आ जाया करेगा।‘

‘अच्छा-अच्छा तुम्हें जो ठीक लगे करना अभी थोड़ा आराम कर लो। थक गई होगी।‘ यह सुनकर वह लेट गई। माधव खिसक कर और पास आ गया। आशाउसकी हरकत समझ गई बोली -

‘माधव तुम ठहरे बागी तुम्हारा क्या विश्वास ? कहीं इस सब होने के बाद तुमने शादीनहीं की तो मैं कहीं की न रहूँगी। मैं चाहती हूँ शादीसे पहले संयम का बांध न टूटे।‘

‘आशा आदर्शवादता नारी की संगिनी रही है। पर मुझे तुम्हारी इन बातों से कोई लगाव नहीं है।‘

‘तो किन बातों से लगाव है?‘

‘मौजमस्ती बागियों के जीवन का एक अंग होता है। इसके अलावा उनके पास रह भी क्या जाता है।‘

‘ठीक है माधव अब तुम आराम कर लो। कहते हुए वह उठ कर बैठ गई। तो माधव अपने बिसतरे पर पहुंच गया।