Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 9 books and stories free download online pdf in Hindi

चन्देरी, झांसी-ओरछा और ग्वालियर की सैर - 9

चन्देरी-झांसी-ओरछा-ग्वालियर की सैर 9

Chanderi-Jhansi-Orchha-Gwalior ki sair 9

यात्रा वृत्तांत

लेखक

राजनारायण बोहरे

ललितपुर से झांसी की तरफ बढ़े तो पाया कि अब खूब चौड़ी और चिकनी रोड थी। जीप बडी आसानी से तेज गति से भाग रही थी। मेरी नजर जीप की रफृतार वाले मीटर पर पडी , ज्यांेही सुई 60 से उपर होती में ड्रायवर बूटाराम को टोंक देता और गाडी की रफ्तार घट जाती ।

नौ बजने में दस मिनिट शेष थे , तब हम झांसी पहॅुच गये थे ।

जेल रोड चौराहे पर ही एक होटेल देखकर मैंने ठहरने की व्यवस्था की , और तुरंत ही बच्चों को भोजन कराने की लिए चल पड़ा।

इलाईट टॉकीज चौराहे के पास एक शाकाहारी रेस्टोंरेंट में हम लोगों ने भोजन प्राप्ति की संभावना जाननी चाही तो पता लगा कि बच्चों की पसंद का मटर मनीर, तुवर की तड़का दाल, तन्दूरी रोटी और पुलाव तैयार था। झांसी में इस रेस्टोंरेट पर सबसे अच्छा भोजन मिलता है, और मिठाई भी क्योंकि रसगुल्ला भी सब लोगों ने दो दो खाए और लॉज वापस चले आये

रात दस बजे थे, तब हम लोग अपने बिस्तरों पर जा लेटे बच्चे दिन भर बैठे बैठे उब गये थे। इसलिए अपने बिस्तरों पर लेटे हुये ये फिल्मी गानों की अंताक्षरी खेलने लगे-

अंशू ने गाया- समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करा अंताक्षरी लेकर हरि का नाम !

म से अभिशेक ने गाया-मेरे नयना सावन भांदो फिर भी मेरा मन प्यासा

स से हन्नी ने गाया- सुन साहिब सुन प्यार की धुन, मैने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन!

न से अंशू ने गाया- ना ना करके प्यार तुम्ही से कर बैठे

करना था इनकार, मगर इकरार तुम्ही से कर बैठे

अब सब परेशान थे कि ठ अक्षर बड़ा कठिन था। हमको बीच में बोलने की इजाजत न थी सो हम किसी की मदद नही कर पा रहे थे और अंशू सबके मजे ले रही थी कि अचानक अभिशेक को याद आया और उसने पाकीजा फिल्म का गीत गा दिया -

ठाड़े रहियो, ओ बांके यार ठाड़े रहियो

तो अंशू ने बताया कि यह गाना ठा से शुरू नही होता बल्कि च से शुरू होता है ऐसे कि -चांदनी रात बड़ी देर के बाद आयी है ,

ये मुलाकात बड़ी देर के बाद आई है,

आज की रात वो आए हैं बड़ी देर के बाद,

आज की रात बड़ी देर के बाद आई है।

अब फिर से सब ठ पर गीत खोज रहे थे और मैं अंशू के फिल्मी गीतों के ज्ञान पर चकित हो रहा था । मुझे खुद कोई गीत याद नहीं आ रहा था जबकि सोचते सोचते बच्चे सोने लगे थे और फिर पता नही कब सबसके सब नीदं की गोदी में लुडक गये ।

अगले दिन सुबह आठ बजे हम लोग तैयार होकर जीप मे बैठे और ड्रायवर से ओरछा चलने को कहा। झंासी के बस स्टेंड से कानपुर रोड पर बढ़ते ही दो किलोमीटर आगे से ही खजुराहों के लिए रोड मुड़ गया है। हम इसी खजुराहो रोड पर आगे बढे़ ।

खजुराहो रोड पर आठ किलोमीटर चलने के बाद एक चौराहा मिलता है। यहां सें चार रास्ते गये तो वाकई यह है तो चौराहा लेकिन चौथा रास्ता पीतमपुर इण्डस्टी इलाके की एक छोटी सी गली होने से इस चौराहे को ओरछा तिगैला कहते है यानि कि ओरछा तिराहा। हमे यही से दायीं और एक दूसरी सड़क जाती दिखी, हम उस पर बढ़े। उसी रोड की शुरूवात मे ंएक बड़ा दरवाजा बना हुआ था। इस प्रवेशद्वार से पता चला कि यही सडक औरछा जाती है। हमारी जीप इसी मार्ग पर चलदी। थोड़ी दूर चलने पर हमे रेल गाडी की पटरियॉ मिली, पटरियां पार करते वक्त हमने देखा कि पास ही एक छोटा रेल्वे स्टेशन बना हुआ था। यहीं ओरछा रेल्वे स्टेशन था। झांसी से मानिकपुर जाने वाली रेलगाडियां इसी स्टेशन पर रूकती है । ओरछा यहॉ से पांच किलामीटर है ।

ओरछाा की दिशा में लगभग दो किलामीटर और चलने के बाद एक पुलिया मिली। पुलिया के नीचे एक छोटी और साफ नदी बहती दिख रही थी। पुलिया के पहले दायीं तरफ चहसरदिवारी के भीतर कुछ मकान बने हुए थे । मेरा इशारा पाकर ड्रायवर ने गाडी रोक दी।

मैंने उतर के सामने का बोर्ड देखा तो पता चला कि वह सातान नदी है। सातार नदी के किनारे पर हमारे देश के स्वतं़त्रता संग्राम सैनानी श्री चन्द्रशेेखर आजाद ने बहुत दिनों तक छुपकर निवास किया था। चहार दिवारी के भीतर झांकने पर पता चला कि भीतर कई छोटे -छोटे रेस्ट हाउस बने हैं। दरवाजे के पास ही बोर्ड लगा था। जिस पर लिखा था सातार-अतिथि गृह!

हम लोग जालीदार गेट खोलके गये तो सामने ही चंन्द्रशेखर आजाद की मूर्ति दिखी। चन्द्रशेखर आजाद ने उघारे बदन पर सूत का जनेउ और पिस्तौल का बेल्ट बांध रखा था। उनका दॉंया हाथ अपनी बायें तरफ की मुंछ उमेठ रहा था। मूर्ति देख कर बच्चे बडे़ प्रसन्न हुए अैर मुझसे चन्द्रशेखर आजाद के बारे मे बताने क लिए आग्रह करने लगे।

मैंने सबको वही स्टेच्यु के सामने बैठनेे को कहा और उन्हें आजाद के बारे में बताना शुरू किया ‘‘चन्द्रशेखर आजाद हमारे देश की आजादी के आंन्दोलन में गर्म दल की ओर से भाग लेने वाले ऐसे क्रंतिकारी थे जिन्हांने अपनी हरकतो से अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर रखा था। ’’

‘‘आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के आदिवासी जिला झाबुआ के गांव भावरा में हुआ था। अपनी किशोरावस्था में ही आजाद क्रातिकारियों के संर्पक मे आगये थे और धीरे धीरे स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अंग्रेजो के खिलाफ मारकाट मचाने वाले स्वतंत्रता सैनानीयों के साथ जुडते चले गये उन्हांेने पिस्तोैल बंदुक,छूरा, लाठी, चलाने से लेकर बम तक बनाना सीखा। आजाद का नाम अंग्रेजी पुलिस के कागजों मे ख्ूांखार कं्रातिकारियों की सूची मे लिखा गया तो हजारों सिपाही उनकी तलाश मे जुट गये तो उन्होने क्रातिकारी साथियों की सलाह मानकर जगह बदल दी । वे भेश बदलकर मेरठ, झांसी होेते हुए ओरछा आ पंहुचे । इस बीच उनका कई बार पुलिस से सामना भी हुआ लेकिन भेश बदलने के कारण आजाद कई बार पुलिस को चकमा देने मे कामयाब होगये । उन दिनांे सातार नदी के इस तट पर घंना जंगल था और ंजंगल मंे हनुमान जी का एक मंदिर था। आजाद ने साधु का वेश बनाया और भभुत रमा कर मंदिर मंे रहने लगे कभी कोई पुलिस वाला यहॉं आता भी तो उन्हे साधु समझता और उन्हे प्रणाम करके चला जाता अकेले में आजाद उघारे बदन अपनी कमर में एक सफेद धोती को लुंगी की तरह बांध कर और अपनी प्यारी पिस्तोंल से निशाना लगाने का अभ्यास करते रहते। यहीं वे बम बनाने का अभ्यास भी करते रहते। झांसी के भगवान दास माहोर और कुछ दूसरे दोस्त आजाद को सामान पॅहुचाते रहते थे।’’

‘‘लेकिन एक बार पुलिस को शक हुआ तो आजाद यहॉं से भी खिसक गये।’’

‘‘ कई हत्यारे और अत्याचारी अंग्रेजो का गोली मारने व बम फेकने केबाद वे पुलिस से बचते रहे, लेकिन एक विश्वासघाती दोस्त के कारण कानपुर में अल्पेड़ पार्क में उन्हे पुलिस ने धेर लिया । आजाद के पास जब तक पिस्तोल थी गोलियॉ रही थी वे पिस्तौल चलाते रहे। जब एक ही गोली बची तो पिस्तौल को कनपटी पर लगाकर उन्होने ख्ुाद को ही गोली मार ली।’’

‘‘अग्रेंजो के हाथ पडते ही उन्हे भारी यातनाएं दी जाती इसी वजह से उन्होने आत्म बलिदान कर दिया ऐेसे वीर क्रातिकारियों की वजह से हमारा देश आजाद हो सका है। इसलिए हमें इन लोगो के बलिदान को सदैव याद रखना चाहिए ।’’

आजाद की कथा सुनकर अभिशेक बोला कि मामा आजाद के जीवन की इन बातों को जानकर हमारे तो रोगटें खडे हो गये।

मैंने उसकी पीठ थपथपाई और उन सब से उठने को कहा, आजाद की मूर्ति की ओर बडी श्रृद्वा से देखते हुए वे उठकर खडे हो गये । रेस्ट हाउस के कमरों के पास जाकर हम लोगो ने हरियाली और शांति के बीच बने इस विश्राम ग्रह का अपलोकन किया और कुछ देर बाद गेट पर कर बाहर आगये । पुलिया के उपर खडे होकर हमने दूर तक बह रही सातार नदी और उसके तट पर खडे पेडों का अवलोकन करते रहे मैंने घडी देखी सुबह के साडे नौ बजे थे । मै बीचमें बैठा और बच्चों को भी बैठने का इशारा किया । जीप ओरछा के लिए चल पड़ी

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झांसी- उत्तरप्रदेश का प्रसिद्ध नगर झांसी दिल्ली से मुम्ब्ंाई जाने वाली रेल लाइन पर ग्वालियर और भोपाल के बीच में पड़ता है। यहां का निकटवर्ती हवाई अडडा खजुराहो 125 किलोमीटर और ग्वालियर का महाराजपुरा 115 किलोमीटर है।

पहुंचने के साधन- झांसी पहुंचने के लिए रेल मार्ग सर्वोत्तम है, दिल्ली से मुम्बई जाने व आने वाली सभी रेलगाड़ियां यहां रूकती है, तो कानपुर लखनउ से एक रेल मार्ग झांसी से जुड़ा है तो तीसरा रेल मार्ग मानकपुर - इलाहाबाद से भी झांसी को आता है। सड़क मार्ग से भी झांसी नगर कानपुर,इलाहाबाद,लखनउ,शिवपुरी, ग्वालियर आदि नगरों और पर्यटन स्थलों से जुड़ा हुआ है जहां से कि बस या निजी वाहन से आया जा सकता है।

क्या देखने योग्य -झांसी में रानी झांसी का किला, रानी महल, संग्रहालय और यहां से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा व 125 कि.मी.दूर खजुराहो देखने योग्य प्रसि़द्ध स्थान है।

ठहरने के लिए- झांसी में ठहरने के लिए उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग का होटल वीरांगना, उत्तरप्रदेश सरकार के विश्रांतिगृह और दर्जन भर से ज्यादा थ्री स्टार होटल है