Mukambal Mohabat - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

मुक्म्मल मोहब्बत - 9


मुक्म्मल मोहब्बत -9

आज जब मैं झील पर पहुंचा तो मधुलिका पहले से ही वोट के पास मौजूद थी.उसने मुझे दूर से ही देखकर फ्लाइंग किश दिया. मैं भी उसे फ्लाइंग किश दिया और वोट का प्रीपेड करने लगा.वापस आया तो मधुलिका इत्मिनान से वोट में बैठी हुई थी. पलभर के लिए मेरा माथा फिर ठनका-लड़की बिंदास है या और कुछ भी.दो मुलाकातों में इतना विश्वास ! लेकिन, अगले ही पल मैंने इस विचार को झटका दे दिया. उम्र ही क्या है, बेचारी की.दुनियां देखी ही कहां है.चेहरे की मासूमियत और आँखों का भोलापन गवाही दे रहा है-दुनियां की बदसूरती से रूबरू हुई ही नहीं है.


मैंने प्यार से उसकी ओर देखा. वह मुस्कुरा दी-"हाय !स्वीट."


"कैसी हो'मधुलिका?" मैंने वोट में अपना बैग रखते हुए कहा.

"बैग!लेपटॉप है न !"वह मेरे प्रश्न का उत्तर न देखकर चहक कर बोली.

"हां ,तुमने लेकर आने के लिए कहा था न !"मैंने बैठते हुए कहा.

"ओह !बेरी नाईस.यू आर बेरी स्वीट."उसने अपनी दोनों हथेलियों को आपस में उलझा कर भींचा और कसकर चूम लिया.

अपनी खुशी अपने को ही चूम कर जाहिर करने का अंदाज अच्छा लगा मुझे.


आज भी उसने लॉग फ्राक ही पहनी थी.हल्के हरे रंग की. सफेद लेस वाली. उसी से मैच करती कैप .ऐसा लग रहा था कि हरी पत्तियों के बीच मोंगरा खिल उठा हो.हाथों में मोंगरे के फूलों का गजरा.पैरों में सफेद मोजे के साथ हल्के हरे रंग के जूते. बड़ा प्यारा कॉम्बिनेशन है.दाद देना चाहता हूं. उसकी पंसद की.

शाम ढ़ली नहीं थीं. झील में वोट भी कम थीं. वैसे भी, सुबह सूर्य उदय होने पर सूर्य की लाली की छटा जब झील के पानी में पडती है,तो नजारा खूबसूरत होता है. सूर्य की रोशनी में ,यहां सात पहाडियों पर स्थिति भवनों एंव वनस्पतियों का प्रतिबिंब -झील मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है.
रात्रि में पहाड़ों के ऊपर ढ़लानों पर जलते बल्ब या झील के किनारे लगे बल्बों की रोशनी ,झील के पानी में जादुई एहसास भर देती है. झील के यही नजारे देखने के लिए ,झील में सुबह शाम सैलानियों की संख्या बढ़ जाती है.

वोट झील के बीचों बीच पहुंच गई थी. आज मधुलिका झील के पानी को नहीं देख रही थी. कहीं खोई हुई थी.

"क्या सोच रही हो, मधुलिका?"मुझे उसका गम्भीर चेहरा उसकी उम्र के मुताबिक कुछ जमा नहीं.


"डियर, रायटर....."कहकर वह अपनी कलाई में लिपटा गजरा सूंघने लगी.

उसका सम्बोधन सुन मुस्कुरा दिया ,मैं. उसके सम्बोधन भी कितने बेबाक हैं. कोई सामाजिक ,औपचारिक नाता ही नहीं. बिना लाग लपेट के कह दिया-डियर रायटर.... हाय स्वीट...."

वैसे भी बहुत कम लोग इतने बिंदास होते हैं. वह भी इतनी कम उम्र में. लगता है, मधुलिका को भी औपचारिकता पंसद नहीं ,जो मन में आया कह दिया. वैसे भी कोई लड़की हर किसी को भैया क्यों बनाने लगी.अंकल में लगता नहीं.

"हलो,डियर रायटर ! मैं तुम्हें जो कहानी बताऊँगी, वही लिखोगे न !"मधुलिका ने मुझे विचारों में डूबा देखकर सवाल किया इस बार उसकी नजरें सीधे मेरे चेहरे पर टिकी हुई थीं.


"जो कहानी तुम सुनाओगी, अपनी ममा से सुनी है?" मैंने पूँछा.

"नहीं."

"नानी या दादी से?"

"उनको मैंने कभी देखा ही नहीं."

"ओह!फिर किसी स्टोरी बुक में पढ़ी होगी. अच्छी लगी होगी."मैंने उसे कुरेदा.

"डियर, रायटर ! कहानी वह होती है, जिसे दिल से जिया जाये. महसूसा जाये.वह नहीं जो किसी से सुनी या पढ़ी हो."उसने गम्भीरता से कहा.


उसकी बात मेरे गले उतरी. मैं भी वही लिखना पंसद करता हूँ. जिसे जिया जाये... महसूस किया गया हो.फिर मुझे उसकी गूण बात पर हंसी आ गई.

"अरे,तुम रायटर हो .फिर भी हंस रहे हो.नहीं जानते तुम कहानी वह है जो दिल से निकले और सामने वाले के दिल से गुजर जाये."

"वाह!मधुलिका. तुम्हें दाद देनी पडेगी. तुम कहानी को इतनी गहराई से महसूस करती हो."

"हां,तभी तो लिखवाना चाहती हूं."वह गहरी सांस लेकर बोली.

"अच्छा, बताओ.कहानी का हीरो कौन होगा. कहानी की थीम क्या है"मैं वोट को और आगे ले गया.

"हीरो दोस्त. थीम दोस्ती."वह सहजता से कह गई.


मुझे लगा इसका कोई अच्छा दोस्त होगा.और अब माई फ्रेड़ का ऐसे बोलने लगेगी. मैंने उसका मन रखने के लिए कहा -"अच्छी थीम है.वैसे मैं एक अद्भुत प्रेम कथा लिखना चाहता हूं."

"अरे,बुध्दू !दोस्ती से जायदा अद्भुत प्रेम कहां होता है.न शादी का लालच.न उस पर निर्भर रहने का स्वार्थ. बस,दोस्ती हुई. मिट गये एक -दूसरे पर.एक -दूसरे के दर्द पर रोये. एक -दूसरे की खुशी पर हँसे.बिना किसी लालच के.बिना किसी स्वार्थ के."कहकर उसने एक गहरी सांस ली. लेकिन, बोलते हुए उसके चेहरे पर एक गहरा आत्मविश्वास था.आँखों में अथाह प्यार.

मैं अवाक सा उसका चेहरा देखता रह गया. मासूम गुडिया सी लड़की.बातें इतनी बड़ी -बड़ी.

मैं सोच रहा था, शायद इसका कोई अच्छा दोस्त इससे बिछुड़ गया होगा. दोनों एक -दूसरे का बहुत ख्याल रखते होंगे. उसी को डेलीकेट करने के लिए यह कहानी लिख वाना चाहती है. लेकिन, दोस्ती के प्रति उसके विचार मुझे अच्छे लगे.

"डियर, मधुलिका जी.मैं आपकी सोच को सलाम करता हूँ."मैंने झुककर उसे सलाम किया.


वह खिलखिला कर हंस पडी.ऐसा लगा चारों ओर हजारों घंटियां एक साथ बज गई हों. खनकती हुई हंसी.... मैंने पहली बार उसको हँसते हुए देखा था.उसकी हसीन हँसी से चारों ओर हजारों कंवल खिल गए थे.

मैं टुकुर -टुकुर उसका चेहरा देख रहा था.

बड़ी मुश्किल से उसने अपनी हँसी पर काबू पाया-"ऐसे सलाम कर रहे हो, जैसे मैं कोई राजकुमारी हूँ."

"हो न !"


"राजकुमारी नहीं, राजकुमारी जैसी."

"अच्छा राजकुमारी जैसी ही."मैं उसका दिल दुखा नहीं पा रहा था.

"डियर, स्वीट !चलें."उसने धीरे से कहा.

"कहां?"मैंने अचकचा कर पूँछा.

"वापस, अंधेरा घिरने लगा है."वह ऊपर आसमान की ओर देखते हुए बोली.

"तुम कहानी सुनाने वाली थीं. तुमने लेपटॉप मंगवाया था."जाने का नाम सुनकर मैंने उसे याद दिलाया.

"ऐसा करो.आज हेडिंग डालो.कल से कहा नी शुरू करते हैं."

"बताओ."

"सच्ची दोस्ती... प्यारा दोस्त.... मुक्म्मल मोहब्बत....एक नाम चूज करो."कहकर वह चुप हो गई.

"मुक्म्मल मोहब्बत."मेरे मुँह से अनायास निकल गया.

"डन !"उसने अँगूठा दिखा कर हेड़़िंग फाइनल कर दिया.

मैंने वोट किनारे की ओर मोड़ ली.उसे देर न हो .इस बात की मुझे भी चिंता थी.




क्रमशः