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नूर - 2

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नूर
भाग _2






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तब आशुतोष कहते हैं...............
कुछ देर रूककर.... ये आप क्या कह रहे हैं मोहन राय! (थोड़ा हंसते हुए) ये तो आपने मेरे मुंह की बात छीन ली, में सोच ही रहा था की आपसे इस विषय पर चर्चा करू, में आपसे नूर-रूहान के रिश्ते की बात करने ही वाला था क्योंकि मुझे आपका बेटा रूहान बहुत पसंद हैं |

मोहन राय कुछ बोलने वाला था......की इतनी देर में ही आशुतोष के बाकी दोस्तों ने कहा की आप दोनों(मोहन राय और आशुतोष) अपनी बाते लगातार कीजिए, अब हम जाने की इजाजत चाहेंगे, आज आपसे और आपके परिवार से मिलकर बहुत अच्छा लगा अब हमे जाने कि थोड़ी जल्दी है| फिर मिलेंगे !तब आशुतोष कहते हैं हमे भी आप सभी से मिलकर बहुत अच्छा लगा .......

'आज हमारी वो सभी पुरानी यादें फिर से ताजा हो गई, जो बस अब इस दिल में यादो का घर बनकर रह गयी है वो दिन भी क्या दिन थे ' |

इतना कहकर सभी दोस्तों को गले मिलता हैं इसके बाद मोहन राय भी सभी दोस्तों से कहता है मैं बहुत खुश हूँ कि आज हम सभी एक दूसरे से इतने दिनों बाद मिले और हमने आपस में बैठकर कितनी बाते की आज का दिन कैसे बित गया सच्च में पता ही नहीं चला '........ये कहकर सभी दोस्तों से हाथ मिलाता है और उन्हें ये कहकर विदा करता हैं कि 'फिर मिलेंगे ' |
(मोहन राय के अलावा सभी दोस्त आशुतोष के घर से चले जाते हैं और उनके जाने के बाद )................................

आशुतोष कहता है मोहन राय आप कुछ कहने वाले थे!.....
मोहन राय कहते है 'हा '!


में यह कहना चाह रहा था की क्या आप मेरे बेटे को पहले से जानते हैं? मैने तो आपको कभी अपने बेटे से मिलवाया ही नहीं फिर आप मेरे बेटे रूहान को कैसे जानते हैं! तब आशुतोष कहते हैं कि मैं आपके बेटे रूहान से मिल चुका हूँ वह बहुत ही समझदार, विनम्र व सरल स्वभाव का लड़का हैं ,और रूहान मुझे उसी दिन से पसंद हैं जिस दिन में उससे पहली बार मिला था |

तब मोहन राय पुछता हैं की आप दोनों की मुलाकात कहाँ हुई थी और कब मिले थे आपकी जान पहचान कैसे हुई जरा हमे भी बताइए...... |तब आशुतोष मोहन राय के सारे सवालो का जवाब देते हुए सारी बाते तसल्ली से बताता हैं और कहता है की ......

हम पहली बार एक विवाह समारोह में मिले थे जो की मेरे पड़ोसी "रमाकांत जी" के बड़े बेटे का था, इस विवाह में आपके बेटे की बहुत अहम भुमिका थी, ये दुल्हे राजा के प्रिय व घनिष्ठ मित्र जो थे (हंसते हुए), ये वहा पुरी लग्न के साथ अपने दोस्त के पिताजी का वैवाहिक कार्यो को करने में सहायता कर रहे थे |

तभी रमाकांत जी ने रूहान की प्रशंसा करते हुए मुझसे रू-ब-रू करवाया था और उसी दौरान आपके बेटे से मेरा मिलना हुआ था | तब हम आपस में बाते कर रहे थे और उसी बातचीत के दौरान मुझे ये पता चला था की वह (रूहान) तुम्हारा बेटा हैं |


मोहन राय सारी बाते सुनकर ............ अच्छा तो ये बात है !
ये तो और भी अच्छा हुआ की आप मेरे बेटे को पहले से जानते हैं ,और यह जानकर खुशी हुई की आप भी मुझसे इस रिश्ते की बात करना चाहते थे !

यह सुनकर आशुतोष रूहान की तारिफ करते हुए कहते हैं की मोहन राय आपका बेटा हैं ही इतना समझदार !
आशुतोष आगे कहता है कि हम दोनों को ये रिश्ता करने से कोई आपति नहीं है लेकिन मैं चाहता हूँ की हमारे बच्चे भी एक दूसरे से मिल ले और आपस में एक दूसरे को पहचान ले तो ओर भी अच्छा होता !

क्योंकि नूर और रूहान एक दूसरे को पसंद करते हैं या नहीं हमारे लिए यह जानना बहुत जरूरी है |


मोहन राय कहता है ........

'हाँ आशुतोष जी ये बात तो आपने बहुत ही पते की कही आखिर शादी हमारे बच्चों को करनी हैं हमे थोड़ी '|

हमें हमारे बच्चों को पहले एक दूसरे से मिलवाना चाहिए ,हम ऐसा ही करेंगे.......
(मोहन राय आशुतोष से कुछ देर बाते करता है और कहता हैं ...)


आशुतोष जी अब हम भी अपने घर जाने की इजाजत चाहेंगे, आपसे ये बाते करके दिल को तसल्ली हो गयी ,आप ने हमारी बहुत आवभगत की आपका बहुत बहुत धन्यवाद !


हमारे घर पर आकर आप भी हमे आवभगत का मौका दिजिए......... अपने साथ नूर बिटिया को भी लेकर आना!
इसी बहाने हमारे बच्चों का भी एक दूसरे से मिलना हो जाएगा |

आशुतोष कहते हैं ..... आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद मोहन राय जी की आप समय निकालकर हमसे मिलने हमारे घर आये .....में भी आपका बहुत बहुत आभारी हूँ... .. हमे जैसे ही समय मिलेगा हम आपके घर अपनी बेटी नूर को लेकर जरूर आयेंगे |

इसके बाद दोनों दोस्त गले मिलते हैं और मोहन राय भी आशुतोष के घर से चला जाता है |




(आशुतोष अपनी बेटी के साथ मोहन राय के घर जाता है या नहीं ?)



To be continued.........

धन्यवाद 🙏