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प्रतिशोध - 1

आशीष दलाल

(१)

ढ़लती दोपहर को अपने कमरे की खिड़की के पास बैठे हुए श्रेया बाहर बरसती बारिश की बूंदो को अपलक निहार रही थी । पास रखे उसके मोबाइल पर जगजीत और चित्रा सिंह की आवाजें गूंज रही थी ।

‘ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो । भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।

मगर मुझको लौटा दो । बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी ।’ 

असंख्य बूंदों का धरती पर गिरते ही अपना स्वरूप मिटा कर पानी की पतली सी धारा में एकाकार होते हुए देखना श्रेया को बचपन से ही बेहद पसन्द था । जब बारिश होती उसका चंचल मन मयूर बन नाच उठता । मौसम की पहली बारिश में भीगने का लोभ वह छोड़ नहीं पाती लेकिन जिन्दगी के पिछले एक साल के समय ने जैसे बहुत कुछ बदल डाला । बारिश अपने पूरे यौवन पर थी लेकिन फिर भी श्रेया अनमनी से खिड़की के पास बैठी बारिश के पानी में भींगते पेड़ों की पत्तियों को निहारते हुए कुछ याद कर रही थी । बचपन में बारिश के बरसते पानी में नैतिक के साथ कागज की नाव बनाकर खेलने से लेकर स्कूल से साथ साथ एक ही साइकिल पर भीगते हुए घर आकर मम्मी की डांट खाने का सिलसिला कॉलेज के दिनों में नैतिक के साथ भीगते हुए ग्लोरी गार्डन के बाहर सड़क के किनारे एक ही भुट्टे को साथ साथ खाने का रोमांसभरे उस आनन्द की अनुभूति को अनुभव कर वह आज भी रोमांचित हो उठती । नैतिक के संग खेलते हुए उसका बचपन जहां निर्दोषता से भरा हुआ था वहीं यौवन उसके प्यार में पूरी तरह भीगा हुआ था । नैतिक के साथ बिताई एक एक बारिश का हिसाब आज भी उसे मुंह जबानी था । साथ साथ कॉलेज जाते हुए उसने नैतिक को लेकर कई सतरंगी सपने भी देख डाले थे । समय के साथ उन दिनों की यादों को लगभग वह भुला ही चुकी थी लेकिन आज घर में छाया हुआ अकेलापन उसे खाने को दौड़ रहा था और उस पर अचानक से बारिश का आगमन जैसे नैतिक की याद दिलाते हुए उसके खालीपन को भरने की कोशिश कर रहा था ।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई । श्रेया चौंक गई, ‘इतनी बारिश में अभी कौन आ सकता है भला ?’ उसने दीवार पर लगी घड़ी पर नजर डाली । साढ़े छह बजने को थे लेकिन बारिश और पूरे आकाश में छाये बादलों की वजह से रात होने का अहसास हो रहा था । उसने मोबाइल पर बज रही गजल को बंद किया और उसने अपने कमरे से बाहर ड्राइंग रूम में आकर आगुन्तक का परिचय पाने की चेष्टा से दरवाजा खोलने से पहले पूछा, ‘कौन है ?’ 

बारिश की बूंदे एक एककर करती हुई धरती से आकर मिल रही थी और उनके मिलन की इस घड़ी में प्रकृति द्वारा छेड़े गए संगीत के सुरीले स्वरों में शायद श्रेया का स्वर बाहर खड़े आगुन्तक को सुनाई नहीं दिया । बाहर से कोई जवाब न पाकर श्रेया ने दरवाजे के पीपहोल से बाहर देखने की कोशिश की लेकिन उसे कुछ स्पष्ट रूप से दिखाई न दिया । डोरबेल एक बार फिर से बज उठी । अंततः श्रेया ने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया । सामने खड़े पुरुष आगुन्तक को देखकर वह ठिठक गई ।

‘तुम ! इस वक्त ?’ अपने सामने पूरी तरह से भीगे हुए नैतिक को खड़ा पाकर वह अब असंमजसभरी स्थिति में थी ।

नैतिक कुछ देर तक भौंचक्का सा खड़ा हुआ श्रेया को निहारता रहा । गुलाबी साड़ी में लिपटी श्रेया की नाजुक देह और स्लीवलेस ब्लाउस से झांकती उसकी कोमल सुडौल बाहें देखकर नैतिक के मन में उसके संग बितायें बारिश के दिन तैरने लगे । काले घने बालों को पोनी टेल की तरह बांधे रखने से उसका अण्डाकार चेहरा और ज्यादा खूबसूरत लग रहा था और उस पर आंखों का काजल तथा माथे पर लगी छोटी सी काली बिंदी उसके सौन्दर्य को और ज्यादा निखार रही थी ।

‘हां, मैं पर आंटी नहीं है क्या घर में ?’ श्रेया को दरवाजे पर पाकर दो कदम पीछे हटते हुए नैतिक ने अपने घुंघराले बालों से चेहरे पर फिसलती बारिश की बूंदों को पोंछते हुए पूछा ।

‘नहीं । मम्मी सुबह से दीदी के यहां गई है । बारिश की वजह से वापस नहीं आ पाई । कल सुबह तक आ जाएगी । काम था कुछ ?’ श्रेया ने अचकाते हुए स्पष्ट किया और नैतिक से पूछा ।

‘नहीं । मम्मी दोपहर को मामा के यहां गई है तो घर की चाबी तुम्हारे यहां रखकर गई होंगी । बस वही लेने आया था ।’

‘आओ, अन्दर आओ ।’ नैतिक की बात सुनकर श्रेया ने उसे अन्दर आने को कहा ।

‘नहीं, वैसे ही पूरी तरह से भीग गया हूं । फिर इस वक्त आंटी की गैरहाजरी में आना ठीक नहीं होगा ।’ कहते हुए नैतिक के होंठ ठण्ड से बुरी तरह कांप रहे थे । काफी देर से बारिश में भीगने की वजह से ठण्ड से उसके पूरे बदन में कंपकंपी छूट गई थी ।

‘तुम पूरी तरह से भीग गए हो । ठण्ड तुमसे सहन नहीं होती है । अन्दर आ जाओ वरना सर्दी हो जाएगी । चाय पीकर चले जाना, थोड़ी राहत रहेगी ।’ श्रेया ने पूरे अधिकारपूर्वक कहा तो नैतिक उसे मना नहीं कर पाया । उसके अन्दर आते ही श्रेया दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया ।

‘ये टॉवेल लो और बाथरूम में जाकर शरीर पोंछ लो ।’ श्रेया ने उसके हाथ में टॉवेल थमाते हुए कहा और खुद कीचन में चली गई । ठण्डी से कांपते हुआ नैतिक टॉवेल लेकर बाथरूम में चला गया ।

कमर पर टॉवेल लपेटकर भीगा हुआ शर्ट पहनकर वह बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गया । यूं तो उसका बचपन ही इस घर में गुजरा और फिर कई बार वह इस घर में आ चुका था और घर के एक एक कोनों से वाकिफ था पर आज न जाने क्यों वह अपने आपको यहां अजनबी महसूस कर रहा था । तभी श्रेया चाय लेकर आ गई । झिझकते हुए नैतिक खड़ा हो गया । भीगी हुई शर्ट पहनने के कारण वह अब भी कांप रहा था ।

‘तुम्हें अभी तक अक्ल नहीं आई । ठण्ड से कांप रहे हो और भीगी हुई शर्ट पहने हुए हो ।’ चाय की ट्रे सोफे के पास रखी टेबल पर रखते हुए श्रेया बिना संकोच के उसे डांट लगाते हुए बोल गई ।

‘नहीं, मैं ऐसा ठीक ही हूं । शर्ट के नीचे कुछ पहना नहीं है । घर जाकर अभी बदल लूंगा ।’ नैतिक की आवाज में अभी भी झिझक समायी हुई थी ।

‘तो क्या हुआ ?’ श्रेया ने नैतिक को घूरा । 

‘अच्छा नहीं लगेगा तुम्हारे सामने इस तरह शर्ट उतारकर बैठना ।’ नैतिक ने बड़े ही सभ्यतापूर्ण ढंग से अपने शब्दों पर ध्यान देते हुए जवाब दिया ।

‘भूल गए वो दिन जब बचपन में तुम केवल चड्डी पहने हुए बारिश में मेरे संग खेलते थे । तुम्हें तो बारिश में नंगा होकर शू शू करते हुए भी देखा है मैंने । चलो उतारो ये शर्ट । निचोड़ कर सूखने डाल देती हूं ।’ कहते हुए श्रेया नैतिक के करीब आ गई । 

‘अरे ! वो सब तो बचपन की बातें थी ।’ श्रेया की बात सुनकर नैतिक असहज हो उठा ।

श्रेया नैतिक की बात को अनसुना कर उसके शर्ट के बटन अधिकार पूर्वक खोलने लगी । नैतिक उसके हाथों की गर्माहट महसूस करते हुए उसे एकटक देखता रह गया । सहसा श्रेया का हाथ नैतिक की खुली हुई चौड़ी छाती को छू गया । नैतिक के खुले बदन का स्पर्श पाते ही श्रेया के पूरे शरीर में रोमांच की एक लहर फैल गई । उसकी हथेलियां उसके चौड़े कंधो पर आकर थम गई । 

तभी अचानक उसकी और नैतिक की नजरें एक हुई और वह पीछे हट गई ।

नैतिक ने शर्ट उतार कर उसके हाथों में थमा दी । श्रेया शर्ट लेकर अन्दर बाथरूम में चली गई ।

जब तक वह बाहर आई वह चाय पी चुका था । 

‘अच्छा अब मैं चलता हूं ।’ नैतिक ने खड़े होते हुए कहा ।

‘बारिश बहुत हो रही है । बाहर निकलते ही फिर से भीग जाओगे । कुछ देर यहीं बैठो, बारिश कम हो जाये तो चले जाना ।’ श्रेया ने उसे रोकते हुए कहा ।

‘इस हालत में रुक जाऊं ?’ नैतिक ने झिझकते हुए कहा ।

‘सॉरी । घर में एक भी मर्दाना कपड़ा नहीं है । पापा के गुजरने के बाद मम्मी ने उनके सारे कपड़े गरीबों को बांट दिए ।’ नैतिक के कहने का भाव समझते हुए श्रेया ने अपनी मजबूरी दर्शायी ।

‘यूं मात्र टॉवेल लपेट कर तुम्हारे सामने बैठना, कुछ अनकम्फर्टेबल सा फील कर रहा हूं मैं ।’ 

‘पलक झपकते ही कितना कुछ बदल गया न नैतिक ? सच सच बताना तुम अब भी मुझसे प्यार करते हो ?’ नैतिक की बात को अनसुना करते हुए श्रेया ने उससे पूछा ।

‘अब क्यों पूछ रही हो यह सब ? क्या करोगी जानकर ?’ नैतिक ने कुर्सी पर बैठते हुए उल्टे श्रेया से ही प्रश्न किया ।

‘माना गलती मेरी थी पर तुम रोक भी तो सकते थे मुझे ?’ श्रेया ने भूतकाल को याद कर अपनी गलती स्वीकार करते हुए नैतिक को जवाब दिया ।

‘नहीं श्रेया, उस वक्त शायद मैं ही गलत था ।’ नैतिक ने रूखे हुए स्वर में जवाब दिया । 

‘अभी तक रूठे हुए हो ? कम ऑन नैतिक । तुम अब भी वैसे के वैसे ही हो ।’ श्रेया ने नैतिक के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए कहा ।

‘मुझे समय देखकर रंग बदलना नहीं आता । इन्सान हूं, गिरगिट नहीं ।’ कहते हुए नैतिक का चेहरा तंग हो गया । 

‘तो तुम्हें भी मैं ही गलत नजर आ रही हूं ?’ 

‘ऐसा तो नहीं कहा मैंने । तुम्हें उस वक्त मुझसे ज्यादा काबिल रोहन नजर आया । उसमें तुम्हें तुम्हारी जिन्दगी की सारी खुशियां दिखाई दी । तुमने वही किया जो तुम्हें पसंद था तो गलत कैसे हो सकती हो ।’ सालभर पहले की बात याद करते हुए नैतिक अपनी जगह से खड़ा हो गया । 

‘नहीं, यह गलत है । मैं उस वक्त भी तुम्हें चाहती थी और आज भी तुम्हें ही प्यार करती हूं ।’ श्रेया ने जवाब दिया ।

‘मैं कोई खिलौना नहीं हूं श्रेया जो जब चाहा तब खेल लिया और फिर एक कोने में फेंक दिया ।’ नैतिक अपमान की भावना से तिलमिला उठा । 

‘मुझे समझने की कोशिश करो नैतिक । रोहन से शादी करना मेरा खुद का फैसला न था । वो तो पापा चाहते थे कि मैं रोहन से शादी करूं ।’ कहते हुए श्रेया की आंखें भर आई ।

‘अच्छा !! अपनी गलतियां आज भी बड़ी खूबसूरती से किसी और के मत्थे जड़ना भूली नहीं हो । क्यों बेवजह अंकल को इस मामले में घसीट रही हो ।’

‘तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं ?’ परेशान होते हुए श्रेया ने अपना सिर पकड़ लिया ।

‘अब मुझे यकीन दिलाकर क्या करोगी ?’ 

‘माना कि रोहन और मैं साथ साथ एक ही कम्पनी में नौकरी करते थे और रोहन मुझे पसन्द करने लगा था लेकिन मेरा पहला और आखरी प्यार तो तुम ही रहे हो नैतिक ।’ श्रेया नैतिक के करीब आ गई ।

‘बचपन के दोस्त को और जवानी के पहले प्यार को राह बदलने पर भुला देना चाहिए श्रेया क्योंकि उनके पास अपनी जिन्दगी के गहरे राज छिपे होते है जो समय जाने पर गहरे घाव कर सकते है ।’ 

‘नहीं भुला सकती तुम्हें । आज भी जब बारिश होती है तो आंखों के सामने तुम ही घिर आते हो । रोहन से मेरी शादी हो जाना एक इत्तफाक ही था ।’ नैतिक की बात सुनकर श्रेया खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई । बारिश अभी भी हो रही थी लेकिन रुक रुककर ।

‘मैं कोई बच्चा नहीं हूं जो कुछ भी बोलकर मुझे बहला लोगी । किसी से शादी कर लेना इत्तेफाक कैसे हो सकता है श्रेया ?’ नैतिक की आवाज में अजीब सा दर्द झलक रहा था ।

‘तुम मेरी बात समझने को तैयार ही नहीं हो तो मैं कुछ भी कहूंगी तो तुम्हें वो झूठ ही नजर आएगा । ठीक है, इंसान के कमजोर समय में हर कोई उसका साथ छोड़ देता है । मैं भी अपने मन को समझा लूंगी ।’ कहते हुए श्रेया की आंखों में आंसू उमड़ आये ।

नैतिक की यह कमजोरी थी कि वह कभी भी श्रेया की आंखों में आंसू नहीं देख सकता था । बचपन में जब भी वह कोई गलती करती तो उसे अंकल आंटी की डांट से बचाने के लिए उसकी सारी गलतियां वह अपने ऊपर ले लेता था । कॉलेज के दिनों आपस में गपशप करते हुए घर आने में देरी हो जाती तो नैतिक खुद उसके साथ घर तक आता और आंटी को अपनी बातों में उलझाकर देर हो जाने के दस कारण सुना डालता था । उसकी श्रेया पर कोई उंगली उठाये या किसी बात को लेकर उसे परेशान करे यह वह बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकता था । वह कुछ देर चुप खड़ा रहा फिर श्रेया के करीब आकर बोला, “मेरे कहने का यह मतलब नहीं था श्रेया । तुम नहीं समझ पाओगी कि एक प्रेमी की क्या हालत होती है जब उसकी प्रेमिका उसकी नजरों के सामने किसी और की हो जाती है ।’

‘मैं भी कहां शादी करना चाहती थी रोहन से लेकिन उस वक्त मैं खुद कोई फैसला लेने की स्थिति में नहीं थी ।’ नैतिक की अपने लिए जाग रही कोमल भावनाओं का अहसास पाकर श्रेया ने कहा ।

‘ऐसी तो कौन सी बात थी जो तुम मुझसे उस वक्त नहीं कह सकी ?’ नैतिक जवाब पाने को बड़ी ही आतुरता से श्रेया के गोरे चेहरे को निहार रहा था ।

श्रेया चुप थी । वो जाकर खिड़की के पास खड़ी हो गई । बाहर बारिश अभी भी रुक रुककर हो रही थी । उसे चुप देखकर नैतिक ने फिर से पूछा, ‘अपने पहले प्यार को ठुकराने के पीछे ऐसी तो कौन सी वजह थी श्रेया ?’