Dockdown and coaching kota - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

लोक डॉउन एंड कोचिंग सिटी कोटा - भाग 1                          

अचानक जिंदगी कुछ ऐसे ही बदल गई थी, मानो हर-हराता झरना एक ही रात में बर्फ में तब्दील हो गया हो। सड़के, बाजार, स्कूल, कॉलेज, मॉल, बसें- ट्रेनें सब मुंह बाएं खड़े थे, स्तब्ध से, हर जगह रेलम-पेल, धक्कम-धक्क मचाती वो भीड़ कहीं जैसे गुम हो गई थी । 135 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश की जनता को कोई इतना शांत कैसे करवा सकता है ? कभी सोचा नहीं था, वो घटित हो गया था। 135 करोड़ ! यह केवल जुमला नहीं था.... हमारे देश के प्रधानमंत्री का, 135 करोड़ की जनसंख्या ने हमेशा अपने होने का पुरजोर प्रमाण दिया था। लेकिन अब जैसे ऊपर वाले जादूगर ने जादू की छड़ी घुमा दी थी और सब को जैसे सांप सूंघ गया गया था। पर यह खामोशी अधिक समय नहीं रह सकती थी जैसे लहरों की आदत होती है, जैसे हवाओं की आदत होती है, बादल स्थिर नहीं रह सकते हम भी अपनी आदतों से मजबूर थे, या कह लीजिए लातों के भूत बातों से नहीं मानते ।अब लोक डाउन का पालन डंडे के बल पर प्रशासन द्वारा करवाया जा रहा था । कोई हंसी खेल तो नहीं है जनता के ठांठे मारते हिलोरे लेते इस समंदर को संभालना । कोई हफ्ते भर पहले की ही तो बात है, जब सब कुछ सामान्य सा था । अलबत्ता बाहर से आने वाली फ्लाइट के यात्रियों को क्वेरनटाइन किया जा रहा था । कोरॉना नाम के किसी वायरस की सुगबुाहट भी आई थी, पर कोराना कहर बन जाएगा यह नहीं सोचा था। चीन से शुरू हुआ ये ड्रेगन पूरी दुनियां में अपना विषैला जाल बिछा लेगा, ये ख्वाबों में भी गुमान न था | चलिए..... चलते हैं, एक हफ्ते पहले.... यानि 20 -3 - 2020

*2020, 20 मार्च

आज के दिन के जैसे खास नंबर थे । वैसा ही खास दिन था ये। कल ही बेटा अमित और बहू अनाया दुबई घूम कर लौटे थे । शादी के बाद यह उनका पहला ट्रिप था। यानी हनीमून। फरवरी में ही अनाया और अमित की धूमधाम से शादी हुई थी। 4 दिन तक रस्मो रिवाज चलते रहे, यूके और यूएस में रहने वाली सुमेधा की दोनों ननदें खास तौर पर शामिल होने आई थीं | यही नहीं, उनके बच्चे भी बड़े उत्साह से शादी में शामिल होने आए थे | क्योंकि भारतीय शादियां उनके लिए कौतूहल और अचंभे का विषय था |

वे स्वयं लगभग छह - सात महीनों से शादी की प्लानिंग और खरीदारी कर रहे थे | यह बच्चे बड़े कुतूहल से हर रस्म को देख रहे थे और हर रस्म के फोटो अपने मित्रों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे थे। भारतीय शादियां होती ही ऐसी हैं | 7 दिन पहले से ही कार्यक्रम शुरू, सर्वप्रथम विनायक स्थापना, हल्दी, मेहंदी, मंगल कलश, मंगल गीत, मंडप-भात, महिला संगीत और न जाने क्या-क्या ढेर सारी रस्में, फिर फेरों की मुख्य रस्म और इसके बाद लगभग 1000- 2000 लोगों के प्रीतिभोज के साथ विवाह-समारोह का समापन, उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों में भारत ने इसी प्रकार की शादियां होती हैं । शादी के बाद मेहमानों की विदाई और दो-चार दिन साथ रहकर अमित और अनाया दुबई घूमने चले गए । और पूरी योजना की तहत घूम कर सीधे हमारे पास लौट आए |

दो-चार दिन साथ में रहने के लिए। आज घर में लोगों की आवाजाही लगी थी । देवर सौरभ और देव रानी सुनंदा अपने बच्चों अनिकेत और संचिता सहित आ गए थे। आज हम सब ने नाश्ता साथ किया था । ढेर सारी बातें और उनके दुबई ट्रिप के अनुभव साझा किए थे । अनाया और अमित ने बताया कि 18 मार्च की जगह 14मार्च को ही दुबई से लौट आए थे। क्योंकि दुबई में कोरोनावायरस के भय के चलते सब कुछ बंद सा था । कुछ उन्हें भी वहां ज्यादा रुकना अच्छा नहीं लग रहा था। तो फिर कहां रहे इतने दिन सीधे घर क्यों नहीं आए । सुमेधा ने बेटे की ओर देखते हुए कहा । 'आइसोलेशन मम्मा हम जिस हॉस्पिटल में हम जॉब करते हैं ना, उसी में 3 दिन हमें आइसोलेशन वार्ड में रखा गया था। उसके बाद जब हमारा टेस्ट नेगेटिव आया तो हम घर लौट आए ।'

'वह भी दिल्ली वाला जॉब छोड़ कर' अनाया ने क्षुब्ध होकर कहा।

'जॉब छोड़कर, मगर क्यों?'

जब हम आइसोलेशन में थे तो पूरे हॉस्पिटल में न जाने किन लोगों ने यह फैला दिया कि हम कोरोना पॉजिटिव हैं ।सोशल मीडिया पर हमारी फोटो के साथ ही ये झूठीं अफवाह वायरल होने लगी | यही नहीं वहां के लोकल टीवी चैनल ने बाकायदा हमारा फोटो हमारे नाम दिखा कर यह न्यूज़ दिखाई। समझ नहीं आता कि लोगों को और मीडिया वालों को इस तरह की बकवास दिखाने में क्या मजा आता है | हम बहुत दुखी थे| अनाया तो रोने ही लगी थी। तभी हमने सोच लिया था कि अब इस हॉस्पिटल में जॉब नहीं करेंगे।

और इतनी बड़ी बात तुम हमसे छुपा गए अपने दुख में घर वालों को शामिल नहीं किया जाता क्या ? सुमेधा ने झिड़कते हुए हुए कहा। क्या बताते मम्मी जब हमें सोच ही लिया था कि अब इस हॉस्पिटल में काम नहीं करेंगे तो आपको बता कर परेशान क्यों करते । और इस तरह से अनाया और अमित ने कोटा कोचिंग इंस्टिट्यूट में नीट के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना टेंपरेरी जॉब ढूंढा ।यह पूरा दिन खुशनुमा हंसी खुशी में बीता, सुनंदा शाम के खाने के लिए घर पर इनवाइट कर के चली गई।

आज दिन भर से एक मैसेज टीवी स्क्रीन पर दिखाया जा रहा था कि आज रात को 8:00 बजे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमें संबोधित करेंगे सभी लोग बड़े कुतूहल से इंतजार कर रहे थे कि आखिर आज कौन सी खास बात वो कहना चाहते हैं | शाम को हम सब सौरभ- सुनंदा के यहां थे। सुनंदा खाना बनाने में बहुत एक्सपर्ट है | आज उसने बच्चों की पसंद की सारी चीजें बनाई थी | छोले - भटूरे, पास्ता और आइसक्रीम। अनाया और सुरभि भी उसकी मदद के लिए थोड़ा जल्दी आ गई थीं, ठीक 8:00 बजे हम सब अपना सारा काम छोड़कर टी.वी. के सामने बैठ गए थे कि नरेंद्र मोदी जी क्या कहते हैं, यह जानने के लिए |सुरभि नोटबंदी वाले दिन की याद दिला कर चुटकियाँ ले रही थी | ठीक 8:00 बजे वे अपने संबोधन के लिए आए, हम सब बहुत ध्यान से सुन रहे थे कि जरूर कोई खास बात तो है और उन्होंने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के लिए आह्वान किया | साथ में ही कोरोना वॉरियर्स, डॉक्टर, नर्सेस, आशा सहयोगिनी, मेडिकल स्टाफ टीम और पुलिस वाले इन सबके लिए थाली और ताली बजाकर उनका हौसला बढ़ाने के लिए और उनके सम्मान के लिए आवाहन किया | जनता कर्फ्यू और यह टास्क हमारे लिए उत्साह का विषय था | तब सपने में भी नहीं सोचा था कि यह सिर्फ 1 दिन के लिए नहीं बाकी आगे लंबे समय के लिए पूरे संपूर्ण देश का लोक डाउन है। आज के बाद ऐसे अनेक दिन निकलने वाले हैं | जो हम अपने घर की चारदीवारी के भीतर ही बिताएंगे।

22 मार्च जनता कर्फ्यू का दिन, ऐसा पहली बार हुआ कि हम सब सुकून से घर में थे, लेकिन किसी को कहीं जाना नहीं था | न किसी दोस्त के यहाँ, न आज कोई पार्टी थी, ना बाजार जाना था |ये भी जीने का एक तरीका था | जिससे हमारे बच्चे पहली बार रुबरू हो रहे थे| हाँ बचपन में हमने ये सुकून भरे पल जिए थे | आज हमने हवन किया और ठीक 5 बजे बरामदे में थाली, घंटी ले कर निकल आये | सोचा नहीं था, पर थोड़ी ही देर में हम देख कर चकित रह गए आश्चर्य जनक तरीके से वातावरण में ये ध्वनियाँ गुंजायमान हो रही थीं |अच्छा लगा कोरोना वारियर्स का ये सम्मान | सुमेधा के घर में चार कोरोना वारियर्स थे | समीर, अमित, अनाया डॉक्टर और सौरभ पुलिस में सी. आई | ध्वनी यंत्रों द्वारा कोरोना वारियर्स के सम्मान के देश भर से आये विडियो सोशल मिडिया पर देख कर मन पुलकित था |मार्च 23 को राजस्थान और मार्च २४ को सम्पूर्ण देश में लोक डाउन कर दिया गया | समीर सुमेधा के पति तो इस समय रोज हॉस्पिटल जा कर इस दुश्मन से दो -दो हाथ करके लोट रहे थे | एक दहशत सी बनी रहती सुमेधा को न जाने यह कब उसके दरवाजे पर दस्तक दे दे |

*फुर्सत के दिन और लोक डाउन

बडे खाली-खाली से फुर्सत भरे दिन है, सुमेधा का स्कूल बंद है। सुरभि की कोचिंग भी बंद है |

आज ये पास्ता और बनाना केक बना रहे हैं | लोक डाउन के इन दिनों में जब चारों तरफ दहशत भरा हुआ माहौल है | ये लोग थोड़े से सुकून भरे पल इसी तरह से चुरा लेते हैं, सुरभि केक बनाने में व्यस्त है, और अनाया पास्ता के लिए वेजिटेबल्स काट रही है । सुरभि सुमेधा की बेटी है, जो कोचिंग इंस्टिट्यूट में टीचर है, और अनाया बहू है ।आज बहुत दिनों बाद सुरभि खुश है | भाई-भाभी के आने से, वर्ना तो जबसे उसका ब्रेक अप हुआ है, वो नाखुश सी ही रहती है | अनाया और अमित दोनों डॉक्टर हैं। आज कल सुबह से शाम तक उनकी यही दिनचर्या होती है। घर के काम, झाड़ू, सफाई, नाश्ता-खाना, घर में सर्वेंट्स की छुट्टी कर दी गई है। यही लोक डाउन की पहली शर्त थी, कि या तो सर्वेंट अपने घर में रखें या फिर अपना काम स्वयं करें। अब सभी इस समय घर पर मौजूद थे, तो यही सोचा कि हम खुद अपना काम करेंगे।

बार-बार टीवी पर समाचार देखना और इसी विषय पर बातें करना उनकी दिनचर्या का बड़ा हिस्सा बन चुका है। अभी-अभी आजतक पर न्यूज़ आ रही थी कि मुरादाबाद में डॉक्टर पर हमला हुआ है । अनाया को इस बात पर गुस्सा आ रहा था। वह कह रही थी मां कितने जाहिल लोग हैं ये जहां डॉक्टर जान की बाजी लगाकर इनकी जांच के लिए जा रहे हैं, और यह उन्हीं पर हमला कर रहे हैं । जब इस कोरोनावायरस के भय से सब लोग अपने घरों में दुबके बैठे हुए हैं। बड़े-बड़े नेता, प्रेस कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक दूसरे से बात करते हैं, वीडियो जारी करके बात करते हैं| ऐसे में कोरोना वॉरियर्स हमारे डॉक्टर नर्सें, आशा सहयोगिनी या अध्यापक जनसेवा के लिए अपनी जान की बाजी लगाकर के और जनता की सेवा कर रहे हैं और यह कैसी कृतघ्न लोग हैं कि उन्हीं पर पत्थर फेंक रहे हैं। सच में गुस्सा सुमेधा को भी आ रहा था । लहूलुहान डॉक्टर का फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था, साथ ही लोगों का आक्रोश भी, चंद अनपढ़ जाहिल सी औरतें छत पर खड़ी होकर डॉक्टरों पर ऐसे पत्थर फेंक रही थी जैसे कोई पत्थर नहीं होकर फूल हो। जो फरिश्ता बनकर इन लोगों की जान बचाने के लिए गए, उनके साथ ऐसा सलूक!

जब पूरा विश्व कोरोना के खिलाफ एक जंग लड़ रहा था तो हमारा देश भारत, दोहरी लड़ाई लड़ रहा था| एक जंग थी ऐसे जानलेवा वायरस से जो पूरी दुनिया को भस्मासुर की तरह लील लेना चाहता था। ऐसी भयानक महामारी न कभी विश्व ने देखी थी, ना इससे पहले कभी हुई थी, चंद दिनों पहले हम सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसी कोई महामारी आएगी, ना इसकी कोई दवा थी ना कोई वैक्सीन ।कुछ ऐसे नासमझ जाहिल लोग थे| जिन्होंने हमारी सरकार की लाख एहतियात बरतने पर भी कोरोना को फैलाने में पूरी ताकत झोंक दी थी। कहा नहीं जा सकता कि यह कोई षड्यंत्र के तहत हो रहा था या फिर नासमझी और जाहिलता कि हद तक इनकी बुद्धि पहुंच जाने के कारण। पास्ता और केक बन चुके थे । मैंगो शेक बनाकर हम डाइनिंग टेबल पर इंतजार कर रहे थे अमित का और समीर का। अमित अभी क्लास ले रहा था | अमित आजकल अपने दोस्त सुशांत की वेबसाइट पर कोटा कोचिंग इंस्टीट्यूट के छात्रों को पढ़ा रहा था | अनाया भी छात्रों के लिए क्लास से लेती थी। इन दोनों ने अपना टेंपरेरी पार्ट टाइम जॉब ढूंढ लिया था। दोनों डॉक्टर होते हुए भी अपना काम क्यों नहीं कर रहे थे, यह इनके दुबई से लौटने पर क्वेरेंटाईन किये जाने वाले किस्से से पता चल ही गया होगा । बाद में तो लोक डाउन ने सबको जहाँ के तहां रोक दिया |जैसे बचपन में गेम नहीं होता था स्टेच्यू बनाने वाला |

समीर सुमेधा के पति यहां सरकारी हॉस्पिटल में सीनियर फिजिशियन के पद पर इस समय कॉरोना वार्ड में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वह अभी आएंगे जरूर, पर घर के अंदर नहीं। लोन के पास बने सर्वेंट क्वार्टर में आएंगे वहीं बाहर वाले बाथरूम में नहाएंगे और सर्वेंट क्वार्टर में ही अपना खाना खाकर सो जायेंगे। समीर को कभी इस तरह सोने की आदत नहीं है, उन्हें कुछ ज्यादा ही गर्मी लगती है। वह गर्मियों में बिना ऐ.सी के कभी नहीं सो पाते, लेकिन अब जैसा जीवन जीने को मिल रहा है, वह एडजेस्ट कर रहे हैं | सर्वेंट क्वार्टर में एक पुराना सा रूम कूलर डाल दिया है| इस भीषण गर्मी में वही सोते हैं। सर्वेंटक्वार्टर में कभी ढंग का कूलर भी नहीं लगाया, क्योंकि कोई सर्वेंट सुमेधा ने कभी रखा ही नहीं अक्सर शहरों में क्राइम के चलते उसने हमेशा ऐसी व्यवस्था रखी की सर्वेंट सब काम के समय आए और फिर चले जाए। समीर उन्हें उस कमरे की सफाई करने भी नहीं आने देते, बहुत दूर से खाना रख कर चले जाने को कहते हैं। अगर कभी गलती से थोड़ा पास जाकर भी रख दो तो गुस्सा होने लगते हैं| यह वायरस है ही ऐसा ना... इतना खतरनाक कि कब चुपके से अटैक कर दे कुछ पता ही नहीं चलता, अमित अपनी क्लास लेकर नीचे आ गया है। समीर का फोन आया है कि, उन्हें आने में अभी कुछ टाइम लगेगा, आज थोड़ा काम ज्यादा है। सब लोग खाना खा कर चले गए हैं, अपने-अपने कमरे में, सुमेधा अनमनी सी वहीं बैठी समीर का इंतजार कर रही है | मन डरा -डरा सा रहता है। पूरे विश्व में हजारों लोगों को यह महामारी लील चुकी

* लोक डाउन का प्रकृति पर प्रभाव

सबके अपने कमरे में जाने के बाद, सुमेधा बाहर लोन में आ गई समीर अभी तक नहीं आए थे । वह इंतजार कर रही थी कि आखिर आज उन्हें इतनी देर कैसे हो गई, वह हमेशा 8:30 तक घर पर आ जाते हैं ।अब तो रात्रि के 10:00 बज रहे थे। वो लान में टहलने लगी। तभी उसकी नजर सुनंदा पर पड़ी | दोनों के मकान के बीच में सिर्फ एक एक ही दीवार है, दोनों के लोन के मध्य महज 4 फिट की ऊँची दीवार है। सुनंदा के पति सौरभ यानी सुमेधा देवर पुलिस विभाग में सी आई हैं, वो भी अभी तक शायद नहीं लौटे थे ।तभी सुनंदा लोन में चहलकदमी कर रही थी। एक ही बड़ा प्लॉट लेकर दोनों ने साथ मकान बनाए थे। अक्सर दोनों घरों में आना-जाना बना रहता था। कभी-कभी खाना भी साथ खाते थे। लेकिन इस कोरोना नाम की भयानक महामारी के चलते अब उनका एक दूसरे के यहां जाना भी लगभग बंद सा हो गया था। अपने ही घर में कैद वे लोग कभी-कभी छत पर से, या दीवार के इस पार से बातें कर लिया करते हैं। समीर और सौरभ दोनों ही ऐसे पदों पर हैं कि जब लोक डॉउन के चलते पूरी दुनिया घरों में कैद है , वह कोरोना वारियर्स बनकर लोगों की मदद में जुटे हैं । लोगों को इस महामारी से बचाने के लिए जी-जान से जुटे हुए अपना अपने कर्तव्य पथ पर डटे हुए हैं । लेकिन कभी भी संक्रमित होने का खतरा बराबर बना हुआ है ।एक की वजह से कहीं दोनों परिवार ही चपेट में ना आ जाएं, सावधानी के चलते अब वे लोग एक दूसरे के घर में भी नहीं आ-जा रहे थे। सुमेधा लोन में कुर्सी पर आकर बैठ गई । उसकी नजर आसमान पर गई, नीले आसमान पर ढेरों सितारे दमक रहे थे । सितारे जिन्हें वह कभी बचपन में देखा करती थी। जब अपने दादी-बाबा के गांव में वे रहा करते थे।लेकिन बहुत सालों से यह सितारे कम से कम उनके शहर में तो दिखाई ही नहीं देते थे। उनका शहर कोचिंग सिटी कोटा यहां थर्मल, अन्य फैक्ट्रियों व आवागमन के साधनों के प्रदूषण के चलते आसमान पर सितारे कभी दिखाई नहीं देते थे ।कभी-कभी इक्का-दुक्का सितारे दिखते थे, लोक डाउन के चलते वाहनों का आवागमन लगभग बंद हो गया था ।सुमेधा के पीछे की सड़क लगभग सुनी रहती थी। जो कि कभी क्रॉस करना भी बहुत मुश्किल हो जाता था । क्योंकि सारे कोचिंग इंस्टीट्यूट नए कोटा के इसी क्षेत्र में थे ।

बाहर के लगभग 2 लाख बच्चों के हॉस्टल और कोचिंग इंस्टिट्यूट की ढेरों इमारतें और सड़कों पर दौड़ते वाहनों के चलते एक अजीब सा शोरगुल और आसमान पर प्रदूषण के बादल छाए रहते थे। सुमेधा ने कभी भी यह नीला आसमान और ये ढेर सारे सितारे इस शहर में नहीं देखे थे। प्रदूषण रहित नीले आसमान पर सितारे दमक रहे थे। बचपन में पापा अक्सर इन सितारों के नाम बताया करते थे। यह शुक्रतारा है, यह सप्त ऋषि मंडल है, और यह इसकी सीध में आने वाला जो तारा है, वह ध्रुवतारा कहलाता है। यह जो लाल हल्का सा चमक रहा है, यह मंगल है । सितारों की जानकारी खुले आसमान के नीचे जब वे छत जब पर सोया करते थे ।तभी घर सब बच्चों को हो गई थी। किंतु आज हमारे बच्चे इन जानकारियों को सिर्फ नेट और किताबों में पढ़ कर जाना करते हैं सुमेधा सोच रही थी । उसके घर के सामने वाला पार्क भी हरा-भरा और फूलों से लदा था। ऐसा लगता था कि प्रकृति सुंदरी अपने पूरे यौवन पर है ।यहां लोक डाउन के पहले हम लोग इस पार्क में घूमने जाया करते थे। आज सतर्कता के चलते शहर के सभी पार्कों और सामाजिक स्थलों पर ताला लगा दिया गया है। बहुत से लोग घूमने जाते वक्त यहां से फूल तोड़कर लाया करते थे । उसे अच्छा नहीं लगता था । उसने कई बार लोगों को मना किया था । किसी को उसका टोकना रास नहीं आता था । यह कैसी मानसिकता थी लोगों की। जब वह उन्हें फूल तोड़ने के लिए मना कर थी तो वे मुंह बिचका कर दलील देते थे कि भगवान के चढ़ाने के लिए 2-4 फूल ले रहे हैं । वह कभी-कभी कह दिया करती कि भगवान को फूल चढ़ाने की क्या जरूरत होती है, यह पूरी कायनात ही, पूरी सृष्टि ही उनकी बनाई हुई है | यह पार्कों में लगे हुए फूल, बगीचों में लगे हुए फूल तो वैसे भी उन्हें ही चढ़े हुए हैं, तब वे उसे ऐसी नजरों से देखते मानो वो कोई नास्तिक है । वह उन्हें कहना चाहती थी कि इस तरह बगीचे और पार्कों को नष्ट करके जो फूल हम भगवान के चढ़ाते हैं मुझे नहीं लगता कि वह इससे खुश होते होंगे । अगर हमें फूल चढ़ाने ही हैं, तो हम माली से 10 - 20 रुपए की माला या 5रूपये के फूल लेकर चढ़ा सकते हैं । हो सकता है इससे भगवान खुश हो जाए कि हम किसी गरीब को रोजी-रोटी कमाने का अवसर दे रहे हैं। मगर क्या करे वह उन्हें इतना लंबा चौड़ा भाषण नहीं दे पाती थी ।आखिर वह सुमेधा के पड़ोसी थे।सच पूछिए तो लोक डाउन के इन दिनों में सुमेधा को घर के सामने का यह खूबसूरत पार्क फूलों से लदा हुआ बेहद सुंदर लग रहा था। न जाने कहां से ढेरों चिड़िया आ गई थी।सुबह शाम जब वे छत पर टहला करते या लोन में घूमा करती तो बेटा अमित उसे इन चिड़ियाओं के नाम बताया करता था । बायोलॉजी का स्टूडेंट होने की वजह से उन्हें उसे इन के नाम याद थे । वे लोग छत पर गमलों के पास और लोन में लगे नागचंपा के पेड़ के नीचे आजकल एक मिट्टी का बर्तन पानी से भरकर रखते थे और चिड़ियों को दाना भी डाला करते थे । मार्च का महिना यानी उतरते बसंत में था लॉक डाउन प्रथम, और अप्रैल के माह में लोक डाउन द्वितीय । इस समय चिड़ियों की प्रिय आम के पेड़ों में मंजरियां नीम के पेड़ पर सफेद फूल और छोटी-छोटी नीमोलिया खुशबू महका रही थी । ढेर सारी चिड़ियाऎं आजकल ऊपर और नीचे लोन में चहकती रहती थीं।कबूतर, गोरेया, पिनाक मोर, तोता, कोयल, बुलबुल राम चिड़िया और हां बहुत सालों में उल्लू और कौवे के दर्शन किए, सच कौवे वह धन्य हो गई उसे देखकर, अपने में खोई, कौए को देख कर वह कहां बुदबुदा उठी-- 'कहाँ खो गए थे तुम ! तुम्हारा मुंडेर पर बैठना ! अपने प्रिय जनों के आगमन का संकेत तुमसे जानना, , , अब किताबों की बातें रह गई थी। लोग श्राद्ध में तुम्हें खीर खिलाते थे। लेकिन अब तो तुम उन दिनों में भी में भी नहीं दिखाई देते। बचपन में पढा था कि कोयल की आवाज मीठी और कौए की कर्कश होती है | पर सच मैं तो कांव-कांव सुनने को तरस गई हूँ तुम्हारी । इतनी चिड़ियाऎं तो मैंने पहले कभी भी नहीं देखी थी ।हो सकता है कुछ चिड़ियाऎं चहकती भी हो तो, किन्तु प्रदूषण और वाहनों के शोरगुल के कारण मैंने यहां कभी इनकी ये खूबसूरत आवाज नहीं सुनी थी। ऐसा लगता था, जैसे दुनिया बदल रही है और एक सपनों की दुनिया धीरे-धीरे यहीं, , इसी दुनिया में प्रकट हो रही है। कभी-कभी लगता कि कोरोनावायरस के बहाने प्रकृति मनुष्य से बदला ले रही है ।आज हमें घरों में कैद करके और उन जानवरों और पक्षियों के लिए उसने एक खूबसूरत वातावरण तैयार कर दिया है। आजकल देखती हूं श्वान पार्कों में दौड़ लगाते हैं, चिड़ियायें पेड़ों पर चहकती हैं। और गाएं बेखौफ सड़कों पर घूमा करती हैं | अब राक्षस सरीखे वाहन उन्हें डराते नहीं है ।' तभी बाहर आकर समीर की गाड़ी रुकी आजकल गाड़ी को अंदर भी नहीं रखते। रात्रि के 11:00 बज रहे थे उसने नहाने के लिए कपड़े और टॉवल देते हुए पूछा- कि आज इतनी लेट कैसे हो गए तो समीर ने कहा अभी नहा कर आता हूं, फिर बताता हूं दो ऐसी घटनाएं घटी जिनकी वजह से मैं बहुत लेट हो गया । मैं समीर का खाना लेने अंदर चली गई, मन उतावला हो रहा था जानने के लिए कि आखिर ऐसी कौन सी घटनाएं घट गई, कि वे इतने लेट हो गए वैसे तो आजकल नित्य नए किस्से होते थे, और बहुत सारे उसे समीर के माध्यम से, कुछ सोशल मीडिया से और कुछ टीवी के जरिए जाने को मिलते थे । रात्रि अधिक हो चुकी थी समीर बेहद थक गए थे । घटनाओं की जानकारी दूसरे दिन के लिए छोड़ देना ही उचित लगा । वे सर्वेंट क्वार्टर में सोने चले गए ।कितना बड़ा त्याग था, अपनी अपने परिवार की सुरक्षा के लिए और अपने कर्तव्य निष्ठा पर डटे रहने के लिए। एक वह ही नहीं ऐसे हजारों कोरोना वॉरियर्स थे, जो अपनी जान हथेली पर लेकर इस महामारी से लोगों को बचाने का प्रयास कर रहे थे।