velentain day...! - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

वेलेंटाइन डे...! - 4

पार्ट -4

रात हो चली थी... अस्पताल की चहल कादमी दिन से कम पर वरकरार थी...

रोहन बेड पर लेटा हुआ हुआ कुछ सोच रहा है...मुकुंद दूसरे बेड पर दूसरी तरफ करबट के बल लेटा हैं तभी रोहन मुकुंद से पूछता है

रोहन- कल 3 तारीख हैं ना मुकुंद..?

मुकुंद - हा भईया कल 3 जानबरी हैं... क्यों क्या हुआ भईया...?

रोहन - कुछ नहीं बस ऐसे ही क्या तुम जरा वो मेरा ब्लैक फाइल फोल्डर निकाल कर दोगे..

मुकुंद फ़ौरन उठते हुए

मुकुंद- हा भईया एक मिनट अभी देता हूं

और मुकुंद बेग मेसे फाइल फोल्डर निकलता हैं और रोहन को लाकर देता हैं

मुकुंद - ये लो भईया

रोहन मुकुंद से फाइल लेता हैं उसे खोलता हैं 4पेज फोल्डर पलट कर 5वे फोल्डर से एक शादी का कार्ड निकलता हैं.. मुकुंद चुपचाप खड़ा देख रहा हैं
रोहन शादी के कार्ड को सहला कर महसूस करता हैं.. और खयलों में डूब जाता हैं....

रोहन बेड पर बैठा हैं और गिटार बजा रहा हैं तभी उसका दोस्त नीलेश आता हैं रोहन को किसी के आने की आहट होती हैं तो वो गिटार बजाना एकदम बंद कर देता हैं

रोहन - कौन...? निलेश

नीलेश चुप चाप रोहन के पास बैठता हैं

रोहन- क्या बात हैं यार आज तू कुछ उदास हैं

नीलेश पेट के पास के शर्ट का एक बटन खोल कर वहां से छिपाया हुआ एक शादी का कार्ड निकलता हैं और रोहन के हाथ में रख देता हैं

रोहन- (कार्ड को टोलते हुए पूछता हैं) ये क्या हैं यार...?

रोहन -अरे ये तो शादी का कार्ड है किसकी शादी का कार्ड हैं ... बता ना...?

नीलेश चुप रहता हैं

रोहन - अच्छा साले तूने बताया भी नहीं सीधे अपनी शादी का कार्ड मेरे हांथो में रख दिया

नीलेश- खीजते हुए... मज़ाक बंद कर यार... ये..

नीलेश चुप हो जाता हैं

रोहन - चुप क्यों हो गया यार बोलना ये क्या..
?

नीलेश- (रोहन का हाथ थामते हुए ) ये रीटा की शादी का कार्ड हैं...

इतना सुनते ही रोहन धक्क से रह जाता है...कमरे में सन्नाटा सा छा जाता हैं कुछ देर बाद रोहन पूछता हैं

रोहन-(लड़खड़ाती जुबान में पूछता है ) कब हैं रीटा की शादी..?

नीलेश- कल..?

रितेश -ओह...!....... गुड़... गुड़.....चलो अच्छा ही हैं... अब मुझमे वो बात ही कहा रही... दोस्त इसमें इतना क्या सोचना उसने जो भी डिसीजन लिया ठीक ही लिया... बेचारी सारी उम्र मेरा बोझ ढोती...तो कैसे ढोती... और फिर मैं भी किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता...

नीलेश रोहन को देखता हैं रोहन की आंखो से आंसू गिरने लगते हैं नीलेश रोहन से लिपट जाता हैं..

नीलेश- यार कल तेरा बर्थडे भी हैं ये तो तेरे प्यार के इन्सल्ट की हद ही हो गई..

रोहन- अब हो गई तो हो गई.... पर हा... नीलेश आजके बाद अब मैं कभी भी अपना बर्थडे नहीं मनाऊंगा...

नीलेश- मैं क्या करू मेरे दोस्त तेरे लिए...? तुं बोल तो...

रोहन - नहीं मेरे दोस्त हम करने को बहुत कुछ कर सकते हैं.. लेकिन उस ऊपर वाले को मंजूर नहीं अब जो भी होगा उसकी मर्ज़ी से होगा...मैं ज़िन्दगी की हर चोट से घायल होने वालों मे से नहीं हूं... मैं हर चोट पर कमज़ोर नहीं होऊंगा दोस्त तुम देखना मैं मजबूती से खड़ा रहूंगा..

नीलेश - लेकिन उसने तुझे धोखा दिया है..

तू मुझे मिले या न मिले बस इतनी सी दुआ है मेरी
तू जिसे भी मिले तुझे उससे जिंदगी की हर ख़ुशी मिले...!!

रोहन- ये मोहब्बत है भाई इस में सब ज़ायज़ है.. किसी को धोखा मिलता है तो किसी इश्क़ मिलता हैमेरे दोस्त...दोस्त ये तेरी नज़र का नजरिया है.. लेकिन मेरे नजरिए की मोहब्बत है.. मैंने उसके जिस्म से नहीं रूह से मोहब्बत की है जो हर वक़्त मेरे ख्यालों में मेरे साथ रहेंगी...

मिरी आशिकी की भी हद तो देखों
इश्क़ में धोखे के बाद भी हम उनपर ही मरेंगे...

और नीलेश रोहन की इस अदा को देखता रह जाता है...

यहां रोहन की आंखे नम हो जाती हैं... रोहन अपनी हथेलियों से अपने आंसू पोछता हैं...और शादी का कार्ड फोल्डर मे रखते हुए मुकुंद से कहता हैं

रोहन - मुकुंद कल तुम्हे एक काम करना होगा

मुकुंद- ज़ी बताएं भईया...?

रोहन - तुम कल हॉस्पिटल के एडमिट डिपार्टमेंट के ऑफिस में पता करो कि कोई रीटा वर्मा नाम की पेसेंट एडमिट हुई हैं क्या उनके हसबेंड का नाम मयंक वर्मा हैं... और हा बहुत ही गोपनीय रह कर तुम्हे ये जानकारी जुटानी है.. समझे

मुकुंद- जी भईया आप निश्चिंत रहें...कल सुबह पता लग जाएगा... लाओ ये फाइल बेग में रख दूं...

रोहन -नहीं अभी इसे मेरे पास ही रहने दो... वैसे अभी टाइम क्या हो रहा है..?

मुकुंद -8 बजने वाले हैं भईया जी

रोहन - लेटते हुए खाना भी आता ही होगा अभी

मुकुंद - हा भईया....मैं जब तक पीने का पानी ले आता हूं.

रोहन- हां ठीक हैं..

और मुकुंद पानी की बोतल उठा कर बाहर जानें के लिए दरवाज़े की तरफ चला जाता हैं... रोहन बिस्तर पर लेटा लेटा... कुछ सोच में डूब जाता हैं.कुछ पल शांत रहने के बाद वो फिर बुडबड़ता सा हैं..

अंधेरे में जो ढूंढे हैं हम आफ़ताब
बंद आंखें कर जो हम उजाले देखते हैं...!
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क्रमशः