Tears of palash books and stories free download online pdf in Hindi

पलाश के आँसू

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सालों से देख रहे थे हम सब, वो उस पलाश के पेड़ के नीचे ही रहती आ रही थी। चाहे जैसा भी मौसम हो वो वंही रहती, बहुत बार म्युनिसिपल वालों ने उसे वँहा से भगाया पर वो फिर लौट के आ जाती। उसी पलाश के पेड़ के तने के सहारे उसने पुरानी पन्नियों और बोरियों से अपने रहने का ठिकाना बना लिया था। वो कंही भी नही जाती और न ही किसी से कुछ बात करती और न ही किसी को परेशान, मुहल्ले वाले ही तरस खा कर उसे खाने पीने का सामान दे दिया करते थे। वो उस पलाश के पेड़ के नीचे लगी बरसों पुरानी लकड़ी की पुरानी बेंच पर बैठे बैठे शून्य में ताकती रहती। एक पुरानी सी तस्वीर हमेशा उसके पास रहती थी जो वो अपने सीने से लगाये रखती। कई बार लोगों ने उसके बारे में उससे जानने की कोशिश की पर वो सिर्फ शून्य में ताकती रहती।

साल बदले मौसम बदले हम जवान हो गए और वो बूढ़ी।

उम्र के साथ साथ उसकी काया भी ज़र्ज़र और जीर्णशीर्ण होने लगी थी। न जाने कितने बसंत भी देखे थे और पतझड़ भी उसने लेकिन वो हर पहर हर घड़ी हर मौसम उसी पलाश के पेड़ के साथ ही रही। पतझड़ का मौसम फिर आ गया था पलाश के पेड़ की पत्तियों और फूलों ने उसका साथ छोड़ना शुरू कर दिया था पर वो आज भी उस ठूंठ होते तने के पास लगी उस पुरानी बेंच पर रोज की तरह बैठी थी। उदास, ख़ामोश, अकेली सीने से उस तस्वीर को चिपकाए। उसके चारो ओर पलाश के फूल बिखरे पड़े थे। कुछ सूखे कुछ ताज़े।

हम सबने उसे देखा आज वो बहुत ज्यादा बीमार और दुखी लग रही थी, शायद रोई भी थी वो क्योंकि उसके मटमैले चेहरे पर आंसुओं से बनी धारें साफ नजर आ रही थीं। कुछ लोगों ने कोशिश भी की उसकी तकलीफ जानने की लेकिन वो तो बस शून्य में ही ताकती रही। थकहार कर उसको उसी के हाल में छोड़ दिया गया। उसके लिए खाना भी रख आया गया पर उसने उसकी तरफ पलट के भी न देखा। देर रात तक वो उसी बेंच में उसी तरह बैठी रही।

अगली सुबह मुहल्ले में हड़कंप मचा था, वो नही रही.....
वो अभी भी उसी बेंच पर वैसे ही बैठी थी... पलाश के लाल फूल उसके ऊपर बिखरे थे। सीने से अब भी वो तस्वीर चिपकी थी। उसका खाना उसके बगल में वैसे ही रखा था शायद उसने उसे छुआ तक न था।

म्युनिसिपल वाले लोगों ने जब उसके शरीर को उस पलाश के पेड़ के नीचे से उठा कर गाड़ी में रखना चाहा तो अचानक ढेर सारे पलाश के ढेर सारे लाल फूल उस पर गिरने लगे जैसे पलाश के पेड़ को भी उसका साथ छूट जाने का अहसास हो गया था और वो भी रो रहा था और उसके वो आंसू फूल बनकर बरस पड़े।

बड़ी मुश्किल से उस तस्वीर को उसके सीने से अलग किया जा सका सालों से हमसब के लिए राज बनी वो तस्वीर हमारे सामने थी। वो तो एक खूबसूरत से लड़के की तस्वीर थी साथ मे वो भी थी। वो दोनों इसी पलाश के पेड़ के नीचे इसी बेंच में बैठे थे। लड़की का सर लड़के के कंधे पर था और लड़के का एक हाथ उसके पीठ पर और दूसरे हाथ से उसने लड़की का हाथ पकड़ा हुआ था।

अचानक भीड़ में खड़े एक बुजुर्ग बोल पड़े "अरे ये लड़का तो इस मुहल्ले में सालों पहले रहने वाले जॉन डिकोस्टा का बेटा है पीटर...जिसकी मौत आज से लगभग 40 साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में हो गई थी जब वो अपनी शादी के लिए चर्च जा रहा था और उसकी मौत के बाद उसके सदमे में जॉन डिकोस्टा की भी एक दिन रहस्यमयी मौत हो गई।

तो क्या ये वही थी जिससे पीटर की शादी होने वाली थी और वो यंहा इस पलाश के पेड़ के नीचे इस पुरानी ज़र्ज़र लकड़ी की बेंच में बैठ कर अपने पीटर का इंतजार करती थी और अंतिम सांस तक करती रही?

ज़वाब जल्द ही मिल गया। उसके पास मिली मैली कुचैली गुदड़ी में एक बेहद पुराना पर खूबसूरत सा सफ़ेद शादी का जोड़ा जो ईसाई धर्म मे लड़की पहनती हैं मिला जो कई जगह से कट फट चुका था पर सलीके से रखा था इसलिए अभी भी बचा रह गया। हमसब की आंखे नम हो गईं। सर झुक गए उसकी मोहब्बत के आगे। वो मरते दम तक इंतजार करती रही अपने महबूब का जो अब कभी नही आ सकता था फ़िरभी शायद वो इस उम्मीद में रही कि कभी तो ये पतझड़ ख़तम होगा कभी तो बहार आएगी पतझड़ के बाद।

बाद में खोजबीन करने पे मालूम हुआ कि वो "रोज़ी" थी, एक अनाथ। पीटर और रोज़ी एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे, और वो दोनो रोज यंही इसी पलाश के पेड़ के नीचे मिलते थे घण्टों उस लकड़ी की बेंच में बैठे भविष्य के सपने बुना करते। उन दोनों की शादी का दिन था पीटर घर से चर्च को निकला था जँहा रोज़ी दुल्हन के लिबास में उसका इंतज़ार कर रही थी पर अचानक रास्ते मे पीटर की कार का एक्सीडेंट हो गया और पीटर की वंही मौत हो गई। रोज़ी सदमे में चली गई, वो ख़ामोश हो गई हमेशा हमेशा के लिये, वो रोज इस पलाश के पेड़ के नीचे आ जाती और घण्टों पीटर का इंतजार करती, धीरे धीरे वो यंही रह गयी शायद ये सोचकर कि उसका पीटर कभी भी आ सकता है और उसे वँहा न पाकर वापस न चला जाये....पर पीटर कभी वापस न आया वो इंतज़ार करती रही.. करती रही... करती रही...

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सालों और गुज़र गए लेकिन हम सब को वो आज भी याद है और उसकी वो इन्तहा इंतज़ार की भी। वो पलाश के पेड़ आज भी है पर अब उसपर फूल अब कभी नही आते जैसे उसके लिए पतझड़ कभी गया ही नही। वो पुरानी लकड़ी की बेंच भी अपना अस्तित्व लगभग खो चुकी है अब वँहा कोई बैठता भी तो नहीं...आखिर पतझड़ में पेड़ में पत्तियां भी तो नही होती तो छाया कँहा होगी...