DAIHIK CHAHAT - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

दैहिक चाहत - 4

उपन्‍यास भाग—4

दैहिक चाहत – 4

आर. एन. सुनगरया,

...........देवजी की आवाज़ नेटवर्क की भॉंति कटऑफ हो गई। घौर सन्‍नाटा, जैसे काली अँधेरी रात जम गई, वर्फ की तरह ! शीला सन्‍न–सुट्ट हो गई, चेतना मूर्छा में बदल गई। पूछना, बोलना, जानना एवं कहना दुर्लभ लगने लगा।

देवजी, पत्‍थर की तरह निर्विकार, शोकाकुल गहरी उदासी में देखकर शीला को भय लगने लगा, कन्‍धे पर हाथ रखकर मामूली सा झिंझोड़कर, पूछा ‘’देवजी ! क्‍या हुआ !’’ शीला ने बहुत ही महीन मुस्‍कान धारण कर आगे कहा, ‘’आखिर............!’’ ध्‍वनि का फ्लो, एकदम रूक गया।

‘’वह वर्ताव पचा नहीं पाया, आज तक......।‘’ बामुश्किल मुँह खुला देवजी का। बहुत गहरा असर हुआ है, दिल-दिमाग पर, ठहरा हुआ ट्यूमर, जो फट पड़ने को उदित ! तभी तो देवजी ने, अप्रत्‍येक्ष रूप से मनोवैज्ञानिक स्‍तर पर विवश किया, शीला को अपना स्थिर गुबार सुनने हेतु। सम्‍भवत: वह कुलबुला-विलविला कर, देवजी को सताता रहता है। बाहर खुलकने के लिये। शीला को अपनी अपमान व्‍यथा बताकर देवजी को मानसिक राहत का आभास हो रहा होगा। शीला सोचने के लिये बाद्य हो गई। कैसे-कैसे मंजर आते हैं, जिन्‍दगी की राह में, अनचाहे बिन बुलाये एवं अनसुलझी गुत्‍थी की भॉंति तथा अनायास ही अपना स्‍थाई दुष्‍प्रभाव छोड़ जाते हैं, मगर उनकी चुभन सदैव तरो-ताजा रहती है, टोंच मारती रहती है, निरन्‍तर........जिस किसी को भी यह असाध्‍य रोग लग जाता है, वह तड़फ-तड़फ कर ही अपना सफर तय करता है। परन्‍तु ईलाज की खोज जारी रखता है।

शीला को देवजी के प्रति सहानुभूति जाग गई, अपने हृदय में, जल्‍द–से-जल्‍द उन्‍हें सामान्‍य करने हेतु कुछ तरकीब सूझ नहीं रही है। देवजी साक्षात बुत्त की तरह स्‍थापित हो गये शायद, इतनी गम्‍भीरता से, लगा लिया दिल-दिमाग पर ! जो पूरे व्‍यक्तित्‍व पर हावी हो गया। खून के रिश्‍तों की स्‍वार्थपरता की असलियत की विकृत तस्‍वीर का दिल-दिमाग पर आक्रमण सहन नहीं कर पाये देवजी, उससे बचाव भी करना देवजी के वश में नहीं है, कदाचित !

आहिस्‍ता-आहिस्‍ता यह उनके मानसिक रोग का कारण बने, देवजी को इस दुष्‍प्रभाव से मुक्‍त करने के लिये कोई कारगर योजना बनानी होगी। इन्‍सानियत के नाते, यह उपकार देवजी का जीवन सुखी-सुरक्षित कर सकता है। ताकि वे अपना शेष जीवन सर्व सामान्‍य रूप में व्‍यतीत कर सकें।

‘’देवजी ।‘’ शीला ने ढॉंढ़स भरे लहजे में कहा, ‘’अतीत को अतीत में ही दफन करके, वर्तमान की खुशहालियों का निश्चिंत होकर आनन्‍द उठाईए, जिन्‍दा-दिली से, उमंगों, हर्षोल्‍लास और जीवन्‍तता पूर्वक अपने परिवेश में, सम्‍पूर्ण मनोभावनाओं का भरपूर सुख अर्जित करके, सबसे घुल-मिलकर अपनत्‍व का माहौल गठित कीजिये व उसमें मस्‍त तथा बिन्‍दास रहिए !’

‘’कोशिश तो करता हूँ ।......एक बार और सही।‘’ देवजी ने उदासीन नजरों से शीला को देखा, देवजी का आत्‍मविश्‍वास को डगमगाता, ढुलमिल, थर्थराता व कॉंपता महसूस किया शीला ने।

‘’जोशो-खरोश से बोलिए।‘’ शीला ने हौसला अफजाई की, ‘’दृढता पूर्वक बोलो, क्‍या बुझी-बुझी आवाज में बुदबुदा रहे हैं।‘’ शीला ने अधिकारिक स्‍तर में कहा और मन्‍द-मन्‍द मुस्‍कान से निहारते हुये, जैसे व्‍यंग्‍य का तंज कस रही हो।

‘’हॉं !’’ देवजी लगभग हँसते और चिल्‍लाते हुये, ‘’बिन्‍दास रहूँगा।‘’

‘’ये हुई ना बात !’’ दोनों हँसते हुये ठहाकों पर उतर आये, शालीनता का ध्‍यान किये बिना !

देवजी की मनोदशा एवं दिमागी स्थिति को विचार करके शीला को महसूस हुआ कि देवजी का मनोबल बढ़ाना परम आवश्‍यक है।

देवजी उच्‍च शिक्षित, सामान्‍य साधारण सरल स्‍वभाव, सभ्‍य समाज साफ-सुधरे व्‍यक्तित्‍व के सौम्‍य परिवार के सम्‍मानीय सदस्‍य का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। उन्‍होंने रिश्‍तों–नातों, सम्‍बन्‍धों को पारिभाषिक स्‍वर पर ही आंकलन किया है। परम्‍परागत खून के सम्‍बन्‍धों को आदिकाल से चले आ रहे मापदण्‍ड से ही मर्यादित दायरों में ही व्‍यवहारिक, एवं संस्‍कारिक स्‍तर पर अपने दिमाग में संजो कर रखा है। भाई-बहन, भतीजे-भतीजा, भाई-भाभी इत्‍यादि रिश्‍ते परस्‍पर एक-दूसरे को रिश्‍तों के निर्धारित पैमानों का ध्‍यान रखकर ही बात-व्‍यवहार, मान-सम्‍मान का निर्वहन करेंगे। धोखा-धड़ी, झूठ-सच साजिश चालाकी, विश्‍वासघात अमान्‍य हरकतें इत्‍यादि-इत्‍यादि का सहारा लेकर अपना स्‍वार्थ सिद्ध नहीं करेंगे। समाज क्‍या कहेगा इसका जरूर ध्‍यान रखेंगे। जगहंसाई का काम नहीं करेंगे।

देवजी पाररिवारिक फितरत से नावाकिफ हैं। पारिवारिक यथार्थ का अनुभव नहीं है। आज रिश्‍तों में कितना बिघटन-बिखराव, स्‍वार्थपरता, लोलिपता, दयाहीनता, परस्‍पर प्रीत का हृास आदि-आदि हथकण्‍डों का ज्ञान नहीं है; आज लोगों की हड़प-नीति बहुत कारगर हथियार हो गई है। मुफ्तखोरी का मौका मिले तो आपके अंग के कपड़े तक उतार ले जायें। अपना पेट भर गया, तो समझो कोई भूखा नहीं है। मुँह में राम-राम और बगल में छुरी वाली कहावत चरितार्थ हो रही है, हर तरफ........।

शीला ई-रिक्‍शा में बैठी थी तभी मोबाइल की वेल बजी, परिन्‍दे की आवाज में स्‍क्रीन देखा,……अरे देवजी का नम्‍बर.........तुरन्‍त ऑन किया, ‘’हॉं कहिए.......देवजी........।‘’

‘’शीला जी, आप कहॉं हैं।‘’

‘’मैं यह........मुख्‍य बाजार में हूँ।‘’

‘’आप वहीं रहिए, आपके सराऊन्डिंग में ही हूँ। आता हूँ’’

कुछ ही मिनिट की प्रतीक्षा के उपरान्‍त देवजी आ धमके, बोले, ‘’शीला जी, आपके बूस्‍टर डोज का असर हुआ, मैंने अतीत को दफ़न कर दिया।‘’

‘’बहुत बडि़या किया।‘’ शीला ने दार्शनिक मुद्रा में बताया, ‘’असल में अतीत इतिहास बन चुका होता है, हम ही उसे कुरेद-कुरेद कर, गड़े मुर्दे की भॉंति उखाड़ते हैं, एवं वर्तमान में संड़ान्‍ध फैलाकर बहुमूल्‍य वर्तमान बर्वाद कर लेते हैं।‘’

‘’ठीक कहा आपने’’ देवजी ने अपनी दिनचर्या बदलाव के बारे में बताया, ‘’मैंने अपने नौकर को आज छुट्टी दे दी, छुट्टी के दिन सारे रोजमर्रा के अपने काम स्‍वयं करूँगा। निजि ड्राइवर को भी रेस्‍ट हेतु छोड़ दिया। खुद ही कार ड्राइव करके आ रहा हॅूं।‘’

शीला बहुत ही हैरत से खामोश देखे जा रही थी, देवजी ने पूछा, ‘’अब बतायें।‘’

शीला तत्‍काल कुछ नहीं कह पाई, देवजी ने ही कहा, ‘’ठीक किया ना मैंने।‘’

‘’ऑफ कोस !’’ शीला ने आत्‍मनिर्भरता का समर्थन किया, ‘’प्रत्‍येक व्‍यक्ति अपनी लाइफ स्‍वयं जीता है।‘’

‘’मैं अपने आपको व्‍यक्तिगत तौर पर इतना व्‍यस्‍त कर लूँगा कि पीछे मुड़कर देखने का या अतीत को सोचने का मौका ही नहीं होगा।‘’ दृढ़ संकल्‍प जैसा स्‍पीड में बोल गये देवजी।

‘’मेरी शुभकामनाऍं आपको।‘’ शीला ने देवजी को प्रोत्‍साहित किया।

‘’थेंक्‍यू मैडम !’’ देवजी ने पूर्ण सम्‍मान के साथ कहा, ‘’आइए !’’ अपनी कार का डोर खोला। कहा, ‘’अपनी-अपनी मार्केटिंग करते हैं, सुपर बाजार से।‘’

दोनों कार में बैठ गये एवं मुख्‍य बाजार से सुपर बाजार की ओर रवाना हो गये। देवजी ने ड्रइविंग में ध्‍यान लगाया। शीला खामोशी से नजारे देखती रही। दॉंये-वॉंये।

मॉल की सीडि़यॉं चढ़ते हुये देवजी ने शीला को देखते हुये, ‘’अपनी शापिंग करके इन्‍हीं सीडि़यों पर मिलते हैं।‘’

‘’ओ. के. सर !’’ शीला ने कहा। दोनों अपने-अपने स्‍टाल ढूँढ़ने हेतु अलग-अलग दिशाओं में व्‍यस्‍त हो गये।

शीला पहले ही अपना शापिंग करके सीडि़यों पर आ खड़ी हुई। इन्‍तजार करते-करते सोचने लगी, देवजी में अभूतपूर्व, आश्‍चर्य जनक रूप से परिवर्तन दिखाई दे रहा है। जो व्‍यक्ति बुझा-बुझा धीर गम्‍भीर, नपी-तुली काम की बातें करने वाला, अपने-आपको समेटता-सिमटा हुआ, उदास-उदास सा नज़र आने वाला, जो अब खिला-खिला सा। वाक्‍य पटु, सारी चिन्‍ताओं से रहित। निश्चिंत स्‍वतंत्र परिन्‍दे की तरह खुले आसमान में उड़ान भरते हुये। जैसे समग्र सुख समेटकर अपना दामन शीघ्र-अति-शीघ्र भर लेना चाहता है। अपने-आपको समर्पित कर रहा है। वर्तमान के एक-एक क्षण को भरपूर जीना चाहता है। ना अतीत की काली छाया है और ना ही भविष्‍य की भयग्रस्‍त काल्‍पनिक परछाईयॉं।

शीला ने देखा, देवजी दोनों हाथों में सामानों से भरे बेगस लटकाये, काफी ऊर्जावान युवक की भॉंति चुस्‍त–मस्‍त चाल ढाल में झूमते-झामते फुर्ती से चले आ रहे हैं। चेहरे पर विजय आभा चमक रही है। फुल कान्‍फीडेन्‍स में मुस्‍कुरा रहे हैं। निकट आते ही बोले, ‘’चलिए !’’ शीला को निहारते हुये, सॉरी मुद्रा में, ‘’ज्‍यादा वैट तो नहीं करना पड़ा ।‘’

‘’नॉट एट आल !’’ शीला ने संक्षिप्‍त उत्तर दिया।

‘’पहली बार डैयली यूजेज सामान की परचेजिंग किया हूँ। सोच-सोच कर आइटम सेलेक्‍ट करने पड़े।‘’

‘’कोई बात नहीं।‘’ शीला ने मुस्‍कुराकर औपचारिक जबाव दिया, ‘’धीरे-धीरे अनुभव हो जायेगा।‘’

कुछ ही समय बाद कार देवजी के क्‍वार्टर के सामने रूक गई, देवजी शीला की ओर मुखातिब हुआ। खामोशी से उसे देखता रहा कुछ क्षण ! शीला को बहुत ही असहज लग रहा था, तभी देवजी ने अपनी मनोकामना-मंशा व्‍यक्‍त की, ‘’शीला जी, अन्‍यथा ना लें, तो एक रेक्‍वेस्‍ट करूँ !’’

‘’हॉं हॉं बताईए.........संकोच क्‍यों।‘’

‘’कई वर्षों बाद, आज किचिन में काम करूँगा ! क्‍यों ना, आप मेरी बनाई कॉफी पी कर शुभारम्‍भ करें।‘’

शीला को हंसी आ गई। साथ ही देवजी भी हँसने लगे।

‘’चलिए !’’ शीला ने पूर्ण आत्‍मविश्‍वास एवं दृढ़ता से कहा।

दोनों दरवाजे के समीप पहुँच गये। ‘’जस्‍ट ए मिनिट।‘’ देवजी ने गुप्‍त स्‍थान पर रखी चाबी निकाली ‘’केयर टेकर को भी आज छुट्टी दे रखी है।‘’ दरवाजा खोलकर आगे बढ़ा, ‘’आइए बैठिये।‘’ शीला बैठ गई सोफे पर, देवजी ने कुछ पत्र-पत्रिकाऍं उनके सामने रखी टी टेबल पर, ‘’अभी आया।‘’ बोलते हुये किचिन में घुस गये।

कुछ ही क्षणों में, पानी की बाटल एवं ग्‍लास लेकर लौटे, ‘’काफी बनानी चालू कर दी है।‘’ पुन: लौट गये किचिन में।

कुछ ही मिनटों के पश्‍च्‍चात देवजी, हाथ में बड़ी सी ट्रे थामें हुये हैं। मंद गति से समीप आ रहे हैं। ट्रे टेबल पर रखकर, शॉंत भाव लिये बैठ गये। शीला ने ट्रे की सामग्री देखी, दो खाली कप-प्‍लेट, चीनी मिट्टी की दो छोटी-छोटी डुबलियॉं, एक में शकर व दूसरी में गर्म दूध। साथ में दो चम्‍मच। उबली हुई कॉफी की केतली उठाकर दोनों कपों को भरा, फिर दूध डाला, शीला को देखते हुये, पूछा, ‘’शुगर कितने चम्‍मच !’’

‘’दो चम्‍मच !’’

‘’सॉरी।‘’ बोलते हुये देवजी उठ खड़े हुये, ‘’अभी आया।‘’ लगभग दौड़ते हुये, किचिन में गये और कुछ स्‍नेक्‍स प्‍लेट में रखकर ले आये, ‘’गुस्‍ताखी माफ !’’ मुस्‍कुराते हुये देवजी, ‘’नया-नया हूँ। भूल गया था, चाय-कॉफी के साथ कुछ नास्‍ता स्‍नेक्‍स भी साथ होना चाहिए। यही हमारी संस्‍कृति है, मेहमान नवाजी की।‘’

दोनों कॉफी की चुस्कियॉं लेने लगे।

शीला पहली बार ऐसे सेवा भाव का अनुभव करके हर्षित हो रही है। मन ही मन !

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश:---५

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय- समय

पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्‍वतंत्र

लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍