Risky Love - 37 books and stories free download online pdf in Hindi

रिस्की लव - 37



(37)

अंजन एक बार फिर ‌मीरा के सामने खड़ा था। मीरा सर झुकाए बैठी ‌थी। जब अंजन मीरा के पास आया था तो ‌उसने फिर उससे यही कहा कि ‌उससे बहुत बड़ी गलती हो गई। उसे माफ कर दे। इस पर अंजन ने उससे सवाल किया था कि तुमने मेरे प्यार की कीमत लेकर उसका सौदा मेरे दुश्मनों से किया। मुझे धोखा दिया।‌ इसके बावजूद भी तुम मुझसे माफी की उम्मीद कैसे रख सकती हो।‌ उसके इस सवाल पर ही मीरा नज़रें झुकाए बैठी थी।
अंजन उसके चेहरे को घूर रहा था। मीरा के पास उसके सवाल का कोई जवाब नहीं था। जवाब वह देती भी क्या। सब कुछ तो उसने जानते बूझते किया था। अंजन ने उससे कहा,
"तुमने जो गुनाह किया है वह माफ नहीं किया जा सकता है। तुम्हें सज़ा तो भुगतनी ही होगी।"
अंजन की यह बात सुनकर मीरा के मन में भी एक विचार आया। उसने नज़रें उठाकर सीधा संबंध अंजन की आंँखों में देखा। अचानक उसमें आए इस परिवर्तन से अंजन भी अचंभित था। मीरा ने कहा,
"अंजन मैं तुम्हारी गुनहगार हूंँ। तुम्हारे हिसाब से गुनाह करने वाले को सजा मिलनी ही चाहिए। मैं भी तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को तैयार हूँ। बस एक बात का जवाब दो।"
मीरा के चेहरे पर अब डर का भाव नहीं था। उसने स्वीकार कर लिया था कि उसकी मौत पक्की है। पर अब वह जान की भीख नहीं मांगना चाहती थी। उसने आगे कहा,
"मैं तुम्हारी गुनहगार हूंँ। इसलिए तुम मुझे सज़ा देना चाहते हो। पर तुम भी तो मानवी और निर्भय के गुनाहगार हो। इसलिए उन्होंने तुम्हें सज़ा दी थी। फिर अब तुम उनके पीछे क्यों पड़े हो ? तुमने गुनाह किया और उन्होंने उसकी सज़ा दी। हिसाब बराबर हो गया। अब छोड़ दो उन्हें।"
अंजन को तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि मीरा उससे ऐसा सवाल करेगी। मीरा का सवाल सुनकर वह भी उसी तरह चुप हो गया जैसे कुछ समय पहले मीरा चुप थी। वह उसके सामने से हटकर बालकनी में जाकर खड़ा हो गया। खुद उसके मन में भी तो यही बात आई थी कि उसका किया हुआ ही अब उसके सामने आया है। पर मीरा को कोई जवाब तो देना ही था। वापस आकर उसने कहा,
"मानवी भी उस निर्भय के लिए मुझे धोखा दे रही थी।‌ तुमने भी मुझे धोखा दिया। दोनों ही धोखेबाज़ हो।"
मीरा अब चुप रहने के मूड में नहीं थी। वह उसकी हर चोट पर बराबरी की चोट करने को तैयार थी। उसने अंजन को घूर कर देखा। वह बोली,
"तुम हमें धोखेबाज़ कह रहे हो। ज़रा खुद के गिरेबान में झांक कर देखो। तुमसे बड़ा धोखेबाज़ कौन है। तुमने मानवी को अपने प्यार में फंसकर धोखा दिया। उसका सब कुछ छीन लिया। उसकी दौलत पर राज करते रहे। उसे उसके ही घर में किनारे कर दिया। इतने पर भी चैन नहीं पड़ा तो उसे और निर्भय को मारने के लिए आदमी भेजा। यह तो उनकी किस्मत थी कि दोनों बच गए।"
मीरा ने अंजन के गुनाह उसके सामने ला दिए थे। उसकी इस हरकत पर वह तिलमिला उठा। गुस्से में बोला,
"तुम अपनी मौत को दावत दे रही हो। संभल जाओ।"
मीरा ने भी उसी तेवर में कहा,
"मैं समझ गई हूँ कि तुम मुझे छोड़ोगे नहीं। इसलिए मौत का डर छोड़कर तुम्हारे सामने गिड़गिड़ाना बंद कर दिया। पर तुम जो दूसरों को उनके किए की सज़ा देने की बात करते हो उसे आइना दिखाना भी ज़रूरी है। अगर मैं गुनहगार हूँ तो तुम भी हो।"
मीरा ने अंजन के सामने आइना रख दिया था। उसमें वह अपने किए गए गुनाहों का अक्स देख रहा था। उसकी इस हरकत पर अंजन को बहुत गुस्सा आ रहा था। वह मीरा की तरफ बढ़ा। उसके हाथ उसकी गर्दन तक पहुँचकर रुक गए। वह उसका गला घोंटने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। खिसिया कर वह पैर पटकता हुआ चला गया।
जब वह नीचे आया तो सागर खत्री ने उसे अपने पास बुलाया। उसके लिए एक ड्रिंक बनाया। उसे पकड़ाते हुए बोला,
"मीरा को लेकर तुम बहुत उलझन में हो। कोई फैसला नहीं कर पा रहे हो। मुझे कोई जल्दी नहीं है। जब तक तुम कोई फैसला नहीं लेते तब तक मीरा आराम से यहाँ रहेगी। उसकी कोई फिक्र नहीं है। मुझे फिक्र है तो इस बात की कि जब तक तुम उसके बारे में कोई फैसला नहीं करोगे तब तक तुम इसी तरह परेशान रहोगे। खुद को मीरा में उलझाए रखना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।"
अंजन ने आधे से अधिक ड्रिंक एक सांस में गटक ली। वह सचमुच बहुत उलझन में था। उसने कहा,
"क्या बात है समझ नहीं आता ? वो मुझे ना जाने क्या क्या सुनाती रही। मेरे किए गुनाहों की गिनती करती रही। कोई और होता तो मैं उसकी गर्दन तोड़ देता‌। पर उसकी गर्दन तक जाकर मेरे हाथ रुक गए। आज तो मैंने सोच लिया था कि उसका हिसाब कर दूँगा। लेकिन कुछ नहीं कर पाया।"
सागर खत्री समझ गया कि मीरा अंजन को कमज़ोर कर रही है। इससे पहले उसने कभी भी अपने गुनाहों के बारे में बात नहीं की थी। उसका कमज़ोर पड़ना उसके जी ठीक नहीं था। सागर खत्री ने कहा,
"अंजन मैं और तुम जिस दुनिया में हैं अगर अपने गुनाहों के बारे में सोचेंगे तो उनके बोझ तले दबकर मर जाएंगे। यह लड़की मीरा तुम्हें कमज़ोर बना रही है। कमज़ोर पड़ना ठीक नहीं है। तुम्हें बहुत कुछ करना है।"
सागर खत्री ने जो कुछ कहा वह अंजन को एकदम ठीक लगा। जबसे मीरा ने उसे उसके गुनाहों के बारे में बताया था वह उनके बारे में सोचकर एक बोझ सा महसूस कर रहा था। उसने बचा हुआ ड्रिंक खत्म करके कहा,
"ठीक है.... मैं अपनी कमज़ोरी को खत्म ही कर देता हूँ।"
यह कहकर वह मीरा के पास जाने के लिए उठा। सागर खत्री ने उसे रोककर कहा,
"रुको....जल्दबाज़ी नहीं करते हैं। पहले अपना मूड बदलते हैं। उसके बाद मीरा को रास्ते से हटाने का अच्छा सा रास्ता निकाल लेंगे।"
अंजन ने बैठते हुए कहा,
"मेरा मूड तो ठीक होने वाला नहीं है।"
"ज़रूर होगा। तुम मेरे साथ चलो। ऐसी जगह ले जाऊँगा कि सब भूल जाओगे।"
"ठीक है, ले चलो। मैं सबकुछ भूल जाना चाहता हूँ।"
सागर खत्री अंजन को लेकर चला गया।

अंजन के खिसिया कर चले जाने के बाद मीरा उठी और फ्रिज से जूस निकाल कर गिलास में डाला। जूस पीते हुए वह अच्छा महसूस कर रही थी। उसने अंजन को यह एहसास करा दिया था कि वह भी गलत है। बल्कि वह उससे भी बड़ा गुनाहगार है। उसने सिर्फ मानवी को ही नहीं बल्कि उसके भाइयों के साथ भी दगा किया था।
वह अपने आप को गुनहगार मान रही थी। मौत के डर से अंजन के सामने खुद को माफ करने के लिए गिड़गिड़ा रही थी। लेकिन अंजन उसे माफ करने के मूड में नहीं था। वह उसे गुनहगार बता कर उसे सज़ा देना चाहता था। मीरा को लग गया था कि अब उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है। उसी समय उसके मन में आया कि मरना तो तुम्हें है ही। फिर क्यों इसके सामने गिड़गिड़ा रही हो। इतने गुनाह करके भी यह तुम्हें तुम्हारी गलती की सज़ा देना चाहता है। डरो मत इसे भी इसके गुनाहों का एहसास कराओ। मीरा के मन का डर गायब हो गया। उसने भी अंजन को उसके किए कर्मों की याद दिला दी।
मीरा समझ रही थी कि उसकी इस बात का कुछ असर तो हुआ था। गुस्से में उसकी गर्दन की तरफ बढ़े हाथ रुक गए थे। अंजन को अपने गुनाहों का एहसास हो गया था। वह जानती थी कि इतना होने के बाद भी अंजन उसे छोड़ेगा नहीं। पर अब उसके अपने मन में ना तो डर था ना कोई बोझ।

अंजन अपने कमरे में लेटा हुआ था। उसका मन शांत होने की जगह और अशांत हो गया था। सागर खत्री उसे ऐसी जगह ले गया था जहाँ शबाब का मेला था। अलग अलग जगहों से लाई गई खूबसूरत औरतें लोगों के मन बहलाव के लिए उनके सामने इस तरह पेश की जा रही थीं जैसे किसी दुकान पर सामान का प्रदर्शन किया जाता है। उसने भी अपने लिए एक औरत चुन ली थी। कुछ समब उसके साथ बिताने के बाद वह अच्छा महसूस कर रहा था।
जब वह और सागर खत्री उस जगह से लौट रहे थे तब सागर खत्री ने पूँछा,
"कैसा लगा ?"
"बहुत अच्छा.... उसके साथ अपनी परेशानियां भूल गया था।"
"मेरा भी मूड फ्रेश हो गया। मैंने कहा था ना कि जब मूड अच्छा होगा तब मीरा को रास्ते से हटाने का आइडिया सोचेंगे। देखो वहाँ से चलते समय मेरे दिमाग में एक आइडिया आ भी गया।"
उसकी बात सुनकर अंजन जानने को उत्सुक हो गया कि उसने क्या सोचा है। सागर खत्री ने कहा,
"मीरा को मारने से अच्छा है कि वह हम दोनों का मन बहलाए। जब तक मन करेगा रखेंगे। नहीं तो उसे ऐसी ही किसी जगह पहुँचा देंगे।"
सागर खत्री का यह सुझाव सुनते ही अचानक अंजन के मन में गुस्से का ज्वालामुखी फूट पड़ा। उसने सागर खत्री का गिरेबान पकड़ लिया। सागर ने अपना गिरेबान छुड़ाकर कहा,
"होश में रहो अंजन। इस तरह की हरकत आज पहली और आखिरी बार माफ कर रहा हूँ। मत भूलो कि तुम पुलिस के डर से यहाँ मेरे घर पर रह रहे हो।"
अंजन कुछ ढीला पड़ा। उसे भी एहसास हुआ कि उसने उस दोस्त का गिरेबान पकड़ लिया था जिसने उसकी मदद की है। इन दिनों उसका बुरा समय चल रहा है। ऐसे में इस तरह की हरकत उसके लिए ठीक नहीं है। वह शांत होकर बैठ गया। सागर खत्री ने कहा,
"मैं कह रहा था ना कि वह लड़की तुम्हारी कमज़ोरी बन गई है। तुम्हारे मन में उसके लिए प्यार है। पर यह प्यार तुम्हारे किसी काम का नहीं है। मीरा तुमसे प्यार नहीं करती। यह बात कभी मत भूलना कि उसने तुम्हें धोखा देकर तुम्हारे दुश्मनों की मदद की थी।"
लौटकर आने के बाद से ही अंजन बहुत परेशान था। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसका दिल चाहता क्या है।