Lucknow Murder Case - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

लखनऊ मर्डर केस - 2



लखनऊ मर्डर केस। भाग-2











"कैसे जानते हो तुम इस महिला को..?" खत्री ने उस आदमी की तरफ देखते हुए पूछा।
"सर..ये मेरी वाइफ है..नित्या मित्तल! मतलब थी..!!" उस आदमी ने मासूमियत से कहा।
"तुम्हारी वाइफ थी..और तुम आज आ रहे हो..? कल तक कहाँ थे..तुम! और आज अचानक तुम्हारी आँख कैसे खुली..?" खत्री ने लगभग झल्लाते हुए कहा।
"सर मैं कल इसलिए नहीं आ पाया क्योंकि कल तक मुझे इस सब की खबर नहीं थी..वो तो आज सुबह मैंने जब अपना फोन चेक किया तब मुझे पता चला।"
"कैसे आदमी हो तुम..? तुम्हारी वाइफ की मौत 19 जुलाई यानी कि परसों रात को हुई..और तुम्हें जरा भी फिक्र नहीं थी कि तुम्हारी वाइफ दो दिन से कहाँ गयी होगी..?"
"सर कुछ समय से मेरे और मेरी पत्नी के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे थे इसलिए हम एक दूसरे के कामों में दखल नहीं देते थे..!! और वो तो पहले भी कई बार दो-दो, तीन-तीन दिन के लिए घर से बाहर गयी है वो भी मुझे बिना बताये..अब तो मुझे आदत हो गयी है इसलिए मुझे कुछ भी न तो कुछ अजीब लगा और न ही डाउट हुआ..!!"
"क्या प्रॉब्लम चल रही थी तुम दोनों के बीच..?"
"सर ये हमारा निज़ी मामला है..आप इसमें दखल मत दीजिये।"
"अब ये तुम्हारा निज़ी मामला नहीं है मिस्टर...?"
"नीतेश..नीतेश मित्तल..!!"
"हाँ..तो मिस्टर नीतेश मित्तल अब ये आपका पर्सनल मेटर नहीं हैं..!! अब ये एक मर्डर केस है..इसलिए आप से जो पूछा जाए उसका सीधा सीधा जवाब दीजिये..!! क्या प्रॉब्लम चल रही थी आप दोनों पति पत्नी के बीच..?" इंस्पेक्टर खत्री ने अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा।
"सर..नित्या के पापा मिस्टर लक्ष्मीकांत खरे इस शहर के मशहूर गोल्ड बिजनेसमैन हैं..!" नीतेश कह ही रहा था कि खत्री बीच में ही बोल पड़ा।
"हाँ..उन्हें कौन नहीं जानता..? उनकी बेटी थी नित्या..?" अनिरूद्ध खत्री ने चोंकते हुए पूछा।
"हाँ..सर..एकलौती!!"
"अच्छा..!! ठीक है आगे बोलो..!!"
"नित्या के पापा ने पांच साल पहले जब हमारी शादी हुई थी तब मुझे एक लाख रुपए दिए थे ताकि मैं अपना खुद का बिज़नेस चला सकूँ..!! लेकिन वो बिज़नेस महज दो सालों तक ही चल पाया क्योंकि उसमें मुनाफे से ज्यादा नुकसान हो रहा था। और फिर एक दिन वो ठप्प पड़ गया। उनके सारे पैसे डूब गए। बस तब से ही वो मुझे रोज फोन कर करके उनके पैसे वापस करने के लिए धमकाते रहते हैं..!! यहाँ तक कि नित्या भी जब देखो तब मुझे निकम्मा... कामचोर बुलाने लगी थी और उसके पापा के पैसे वापस करने के लिये दवाब बनाने लगी। बस इस सब के कारण हमारी आये दिन लड़ाइयाँ होने लगी। अब तो हालात इतने खराब हो गए थे कि हम कई कई दिनों तक एक दूसरे से बात ही नहीं करते थे..क्योंकि डरते थे कि बात की तो कहीं फिर से लड़ाई न हो जाये.!!"
"अच्छा..तो मतलब तुमने प्रेशर में आकर नित्या का क़त्ल कर दिया..!!"
"नहीं...नहीं..सर! मैं उसका मर्डर कैसे कर सकता हूँ..? मैं तो उससे प्यार करता था..!! और उसे मारकर मुझे क्या मिलता..? उसके पापा तो मुझसे पैसे फिर भी लेते..और नित्या को मारकर मैं अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मारूँगा..जब मुझे पता है कि उसके पापा तो सीधे सीधे मुझ पर ही इल्ज़ाम लगायेंगे।"
"तुमने कहा कि शादी से पहले तुम्हारे ससुर ने तुम्हें बिज़नेस स्टार्ट करने के लिये एक लाख रुपए दिए..तो उससे पहले क्या करते थे तुम..? और अब क्या करते हो..?" खत्री ने नीतेश के आसपास घूमते घूमते कहा।
"पहले मैं एक कॉल सेंटर में काम करता था..और अब मैं ग्लोबल सॉफ्टवेयर कंपनी में एक एम्प्लॉय हूँ।"
"शादी से पहले तुम्हारे ससुर को ये बात पता थी कि तुम एक मामूली से कॉल सेंटर में काम करते हो.. तो फिर उन्होंने अपनी एकलौती बेटी नित्या की शादी तुमसे क्यों कर दी..?"
"हाँ..उन्हें सब कुछ पता था..!! सब जानते थे वो..लेकिन हमारे प्यार के आगे उन्होंने घुटने टेक दिए। नित्या ने उन्हें साफ साफ कह दिया था कि वो शादी करेगी तो सिर्फ मुझसे वरना अपनी जान दे देगी..!! और फिर नित्या प्रेग्नेंट भी हो गयी थी.. बस इसलिए उसके पापा ने हमारी शादी करवाई..वो अपनी एक मात्र बेटी को खोना नहीं चाहते थे।"
"अच्छा..तो अब ये बताओ कि 19 जुलाई को नित्या कहाँ गई थी...? और उसका मोबाइल नंबर दो मुझे..!!"
"मुझे नहीं पता वो उस दिन कहाँ गयी थी..? मुझे कुछ भी बता कर नहीं गयी थी..!!" नीतेश ने कागज पर नित्या का मोबाइल नंबर लिखते हुए कहा।
इंस्पेक्टर खत्री ने नंबर लेते ही तुरन्त बेल बजायी तो श्याम इंस्पेक्टर के केबिन में आया।
"श्याम इस नंबर की कॉल डिटेल्स निकलवाओ..!!" खत्री ने नित्या का नंबर श्याम को देते हुए कहा। उसने वो कागज खत्री से लिया और फिर बाहर चला गया।
"19 की रात को तुम कहाँ थे..?"
"सर मैं घर पर ही था अपने बेटे के पास।"
"नित्या जब घर से निकली तब तुम क्या कर रहे थे..?"
"सर मैं मेरे बेटे को खाना खिला रहा था।"
"तो तुमने कुछ भी नहीं सुना..नित्या कहाँ जाने की बात कर रही थी..? कुछ तो सुना होगा तुमने..?"
"नहीं सर मैंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। शायद कुछ मीटिंग वगैरह थी उसकी उस रात..!!"
"कैसी मीटिंग..? नित्या कुछ काम करती थी..?"
"यस सर..! शी इज़ आ वर्किंग वीमेन..!! वो वेडिंग प्लानर थी। इन्फेक्ट उसका काम काफी अच्छा चल रहा था और कई बड़े बड़े लोगों ने उसकी कंपनी वेडिंग एक्सपर्ट एंड इवेंट मैनेजर से शादियां करवाई है। तो ऐसी मीटिंग्स रात में होना आम बात थी।"
"पर मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि जब तुम्हारे ससुर मिस्टर लक्ष्मीकांत जी का अच्छा खासा व्यापार था तो फिर नित्या को काम करने की क्या जरूरत थी..?" इंस्पेक्टर खत्री ने इस बार अपनी चेयर पर बैठते हुए पूछा।
"सर शादियाँ मैनेज करने का शौक था नित्या को..!! जब हम कॉलेज में एक साथ थे तब से ही वो कहती रहती थी कि एक दिन प्रोफेशनल वेडिंग प्लानर बनेगी। उसके पापा को उसका ये काम बिल्कुल भी पसन्द नहीं था। उनका कहना था कि अगर नित्या को काम ही करना है तो उनका ही बिज़नेस जॉइन कर ले..!! लेकिन नित्या को उनके बिज़नेस में कोई इंटेरेस्ट नहीं था और वो खुद के दम पर कुछ करना चाहती थी। उसके पापा को न तो उसका काम पसन्द था और न ही मैं।"
"कमाल है..!! उनकी एकलौती बेटी दो दिन से मिसिंग थी और उन्होंने न तो कंप्लेंट की और न ही अब तक आये हैं कुछ भी पूछताछ करने..!!"
"सर उन्हें भी पता ही नहीं होगा कि नित्या दो दिन से घर नहीं थी। क्योंकि वो नित्या से बात ही नहीं करते थे। वो नाराज रहते थे क्योंकि पहले नित्या ने मुझसे शादी करने के लिये उन्हें फ़ोर्स किया और फिर शादी के एक साल बाद ही उसने अपनी कंपनी खोलने का ऐलान कर दिया। जबकि उन दोनों के बीच डील हुई थी कि या तो नित्या मुझसे शादी कर सकती है या फिर अपनी कंपनी खोल सकती है..!! तब नित्या ने मुझसे चुना..!! लेकिन नित्या के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। उसने मुझसे शादी की और फिर कंपनी भी खोल ली। इस बात से उसके पापा बहुत नाराज भी हुए थे लेकिन नित्या ने ये कह कर बात खत्म कर दी कि अब वो शादीशुदा है और उसके फैसले वो खुद ले सकती है..! इसलिए कोई भी उसके काम में टांग न अड़ाए तो ही अच्छा है। ससुर जी को उनकी रिपुटेसन की चिंता थी कि जब सोसाइटी में ये बात पता चलेगी कि दी लक्ष्मीकांत की बेटी कोई मामूली सी वेडिंग कंपनी चला रही है तो उनकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी।"
"अच्छा...तो मतलब तुम्हारे ससुर ने ही अपनी ही बेटी को मारा है..?"
"मुझे कैसे पता होगा सर..? और वैसे भी इस बात को चार साल बीत गए हैं.. तो अब वो ऐसा क्यों करेंगे..? प्लीज्..सर आप जल्द से जल्द मेरी पत्नी के क़ातिल को पकड़िये..!!"
"अच्छा ठीक है..अब तुम जाओ.. कुछ पता लगेगा तो मैं तुम्हें इन्फॉर्म कर दूँगा!! अरे हाँ नंबर तो दो मुझे तुम्हारा..इन्फॉर्म कैसे करूँगा..?" इंस्पेक्टर खत्री ने सारे सवाल पूछने के बाद कहा।
"प्लीज्..सर जल्द से जल्द आप मेरी वाइफ के क़ातिल को ढूंढ निकालिए..!!" नीतेश ने नंबर देने के बाद कहा।
"अरे...हाँ ढूंढ लेंगे.तुम जाओ अब..!! और हाँ शहर छोड़कर मत जाना।" इस बार चहल ने कहा जो अब तक चुपचाप कुर्सी पर बैठे बैठे उन दोनों की बात सुन रहा था। नीतेश ने हाँ में सिर हिलाया और फिर चुपचाप वहाँ से निकल गया।
नीतेश के जाने के बाद खत्री ने अपनी डायरी में कुछ बातें नोट की। और फिर चहल से केस डिसकस करने लगा तभी बाहर से एक आदमी की जोर जोर से चिल्लाने की आवाज़ आने लगी।

"कहाँ है....इंस्पेक्टर खत्री..? मुझे उससे बात करनी है..? कहाँ है वो..?"
"कौन है ये..? औऱ ऐसे क्यों चिल्ला रहा है..?" खत्री ने चहल की तरफ देखते हुए कहा ही था कि श्याम वहाँ दौड़ता हुआ आया और बोला
"सर...लक्ष्मीकांत आया है और आपसे मिलना चाहता है..!!"
"हाँ..हाँ भेजो उसे अंदर..उसका ही तो इंतज़ार था मुझे..!!" खत्री ने मुस्कुराते हुए कहा।
"किसने मारा मेरी बेटी को..? किसकी हिम्मत हुई..? बताओ इंस्पेक्टर मुझे..!! मैं उसका ऐसा हाल करूँगा की उसकी सात पुश्ते भी याद रखेंगी कि लक्ष्मीकांत से पंगा लेने का मतलब क्या होता..!!" लक्ष्मीकांत ने खत्री के केबिन में आते ही जोर जोर से बोलना शुरू किया तो खत्री ने उसे बीच मे ही टोकते हुए कहा
"ये मेरा पुलिस थाना है! प्लीज्...नीची आवाज़ में बात कीजिये। चुपचाप बैठ जाइये..यहाँ!!" खत्री ने उसकी टेबल के आगे रखी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा।
"दो दिन से कहाँ थे आप..? आपकी बेटी का मर्डर परसों रात को हुआ है।"
"वो सर मैं बिज़नेस के सिलसिले में परसों ही शहर से बाहर गया था। आज जब लौटा तब पता चला मुझे तो मैं सीधा यहीं आया हूँ।" लक्ष्मीकांत ने हड़बड़ाते हुए कहा।
"अच्छा..!! आपके आपकी बेटी के साथ रिश्ते कैसे थे..?" खत्री ने लक्ष्मीकांत की आँखों में आँखें डालते हुए पूछा।
"क्या मतलब कैसे थे..? जैसे एक बेटी और उसके पिता के बीच होते हैं वैसे ही थे..!!"
"अच्छा..पर हमें तो कुछ और पता चला है।"
"क्या पता चला है..? और किसने बताया आपको..? उस नीतेश ने..? उसकी बात का भरोसा मत कीजिये आप.. वो एक नंबर का झूठा और लालची इंसान है। मेरी बेटी से शादी करने से पहले उसे कितने हसीन ख्वाब दिखाये थे..मैं ये करूँगा.. मैं वो करूँगा..!! और किया कुछ भी नहीं..!! उसने सिर्फ और सिर्फ मेरे पैसे के लिये नित्या को फंसाया...हैं। मैंने ही उसका बिज़नेस खुलवाया था वरना उससे पहले तो एक मामूली से कॉल सेंटर में काम करता था..!! न तो उसका मन उस कॉल सेंटर की जॉब में लगता था और न ही जो मैंने बिज़नेस खुलवाया उसमे लगा.. और उसने मेरे सारे पैसे डूबा दिए।"
"और इसलिए आपने इसका बदला अपनी बेटी को मारकर लिया..?"
"ये क्या बकवास कर रहें हैं आप..? अगर मुझे बदला ही लेना था तो मैं नीतेश से लेता..नित्या को मारकर मुझे क्या मिलता.?"
"सुकून...!! सुकून मिलता आपको..क्योंकि आपके पैसे डूबे तो आपकी बेटी की ही वजह से थे..!! और शायद इसलिए आपने गुस्से में नित्या को मार दिया हो..?"
"सबूत दिखाइये..!! कहाँ है सबूत..? जब आपके पास मेरे खिलाफ सबूत ही नहीं है तो आप किस बिनाह पर मुझे मुजरिम करार दे रहे हैं..!! और चलो मान लो कि मैंने मारा अपनी बेटी को..तो इसका कारण क्या है आपके पास..? अगर आप सोच रहें हैं कि मैंने उन पैसों के लिये ये सब किया तो पहली बात तो ये कि पैसे मैंने नीतेश को दिए थे न कि नित्या को.. तो अगर मुझे मारना ही होता तो मैं नीतेश को मारता। और दूसरी बात ये पैसे वाली बात पाँच साल पुरानी है..तो उसका बदला मैं अब पाँच साल बाद क्यों लूँगा..?"
"वो तो आप ही जाने..!! चलो मान लिया पैसे वाली बात नीतेश से जुड़ी है और उसने वो पैसे पांच साल पहले लिए थे..लेकिन आपकी बेटी की वेडिंग प्लानर कंपनी..वो तो नित्या ने खुद ही शुरू की थी और जिसके आप सख़्त खिलाफ थे..!! तो कहीं इसलिए आपने नित्या का क़त्ल तो नहीं कर दिया..?"
"लगता है आपने मुझे ही नित्या का क़ातिल मान लिया है...!! तभी तो घुमा फिराकर आप बात को वापस मेरे ऊपर ला रहें हैं..!! तो एक बात मैं आपको क्लियर कर दूँ..कि हाँ मैं नित्या के कंपनी खोलने वाली बात से नाराज़ था..लेकिन इस बात को भी चार साल हो गए हैं..!! अगर मुझे कुछ करना ही था तो मैं चार साल पहले ही करता..अब क्यों करूँगा भला..? इंस्पेक्टर अनिरुद्ध खत्री..!! सिर्फ थिओरी मत सुनाइये..कुछ प्रैक्टिकल भी कीजिये और सबूत लेकर आइये..!! और जल्द से जल्द मेरी बेटी के क़ातिल को ढूंढ निकालिए वरना...आपको मेरी ताकत का अंदाज़ा नहीं है..!! अच्छा अब मैं चलता हूँ..मुझे जल्द से जल्द क़ातिल चाहिए।" लक्ष्मीकांत ने कुर्सी पर से उठते हुए कहा और फ़िर उसने अनिरुद्ध को ऊपर से नीचे तक एक बार घूरा और फिर तेज़ कदमों से केबिन से बाहर चला गया।

"सर ये तो काफी गर्म खोपड़ी का इंसान मालूम होता है..!! जबकि इसके बारे मैं सुना था कि काफी शांत स्वभाव का है..!!" चहल ने लक्ष्मीकांत के जाते ही खत्री से कहा।
"ये बड़े लोग ऐसे ही होते हैं..!! दुनिया के सामने कुछ और....घर वालों के सामने कुछ और....!! खेर...केस काफी हाई प्रोफाइल है चहल..!! अगरर हमने इसे सॉल्व कर दिया न तो अपना दोनों का ही प्रमोशन पक्का है..!! इसलिए जी जान लगाकर इस केस को सॉल्व करने में लग जाओ..! बाकी के पेंडिंग केस इस केस को सॉल्व करने के बाद देखेंगे..!!" खत्री ने कुछ सोचते हुए कहा।