Taapuon par picnic - 47 books and stories free download online pdf in Hindi

टापुओं पर पिकनिक - 47

साजिद बहुत उत्तेजित था। वह बड़ी खबर लाया था।
साजिद के यहां काम करने वाला लड़का अताउल्ला, जो अब काम छोड़ कर जा चुका था, उसने जाते- जाते साजिद के अब्बू से उसकी झूठी शिकायत करके उसे अब्बू से मार खिलवाई थी।
बाहर से शांत दिखने वाला साजिद वैसे तो अब बेकरी के काम में लग कर व्यस्त हो गया था पर वो इस बात को भूला नहीं था। उसका युवा ख़ून किसी न किसी तरह अताउल्ला को सबक सिखाने के लिए कुलबुलाया करता था।
उसे अताउल्ला पर गुस्सा दो कारणों से था। एक तो उसने साजिद के अब्बू से साजिद की मिथ्या शिकायत इस तरह की थी कि अब्बू ने ख़ुद साजिद की बात पर विश्वास न करके उस दो टके के आदमी अताउल्ला की बात पर भरोसा किया था, और साजिद पर हाथ उठाया था।
दूसरे, अताउल्ला ने साजिद के सब दोस्तों की निगाह में ख़ुद साजिद को धोखा देकर नीचा दिखाया था। दोस्तों के कहने पर ही तो साजिद नकली ग्राहक के रूप में आगोश के पिता के क्लीनिक में भेजने के लिए उसे लाया था। अताउल्ला ने इस काम के लिए सीधे मना नहीं किया था बल्कि पहले हां कह कर सारी बातें जान ली थीं, और फ़िर दगा किया। ऊपर से उसने ये बात भी छिपाई कि वो आगोश के ड्राइवर सुल्तान का रिश्तेदार है और उसके साथ ही रहता है। वहां भी सब ग़लत कामों में वो सुल्तान के साथ शरीक था।
अपने इसी सोच के चलते साजिद के मन में अताउल्ला के लिए रंजिश की ज़बरदस्त भावना थी।
उसने अताउल्ला को खोजने के लिए अपने यहां काम करने वाले एक लड़के को लालच देकर उकसाया भी था। साजिद सोचता था कि ये लड़का अताउल्ला से संपर्क में ज़रूर रहता है और दोनों में दोस्ती भी है।
और संयोग से वो लड़का चार दिन की छुट्टी लेकर अपने गांव गया तो वहां उसकी मुलाकात अकस्मात अताउल्ला से हो ही गई।
लड़के ने अताउल्ला को एक रात ख़ूब खिला- पिला कर उससे कई राज उगलवा लिए।
और ये राज़ न केवल साजिद के लिए, बल्कि आगोश के लिए भी आंखें खोल देने वाले थे। सनसनीखेज।
साजिद और आगोश कमरे में बातें कर ही रहे थे पर साजिद का ध्यान बार- बार दरवाज़े की ओर जाता था। उसे लगता था कि कहीं आगोश की मम्मी या कोई और अचानक आकर उनके बीच हो रही बातें सुन न ले।
साजिद कह रहा था कि आगोश के पिता दिल्ली के पास में जयपुर के रास्ते में एक बहुत बड़ी इमारत बनवा रहे हैं।
कमाल है, इतना बड़ा काम, और आगोश को इसकी भनक तक नहीं। आगोश के मुंह से एक बहुत भद्दी गाली निकली।
साजिद ने बताया कि अताउल्ला ज़्यादातर वहीं रहता है। वहां सुल्तान का भी आना- जाना बहुत है। ये एक बहुत ही बड़ा काम है जिसमें देश- विदेश के बहुत से लोग जुटे हुए हैं।
ये जगह दिल्ली एयरपोर्ट से लगभग साठ किलोमीटर दूर है और मुख्य सड़क से कुछ भीतर की ओर है।
आगोश सोच में पड़ गया।
साजिद बोला- उस धोखेबाज लौंडे को तो मैं मरवा कर छोड़ूंगा।
- धीरज रख पप्पू! ये कोई एक तीतर- बटेर का काम नहीं है, ये साला धधकता ज्वालामुखी है, इसमें एक दिन हम सब को मिल कर पलीता लगाना पड़ेगा। फोड़नी पड़ेगी सालों की सबकी।
बात अधूरी रह गई। भीतर से घर में काम करने वाली लड़की एक ट्रे में मिल्कशेक के दो ग्लास लेकर आ गई थी।
साजिद जाती हुई लड़की का चेहरा देखने की कोशिश करता रहा जिसे आगोश ने भांप लिया।
आगोश हंसता हुआ बोला - क्या देख रहा है बे!
साजिद बोला- मैं देख रहा हूं कि ये कौन सी है?
- मतलब? आगोश ने अचंभे से कहा।
- मतलब, वो वाली है जिसकी पप्पी तूने तेरे पापा के सामने ले ली थी या वो दूसरी वाली है जिसकी..
आगोश एकदम से झेंप गया।
कुछ देर रुक कर फ़िर बोला- तुझे किसने बताया बे ये सब?
- बताएगा कौन? तू ख़ुद दारू पीकर बकता है सब। तुझे कुछ होश भी है!
आगोश चुप हो गया।
साजिद ने प्लेट से एक बिस्किट उठाया और मुंह में रख ही रहा था कि आगोश एकाएक बोला- अरे हां, वो तो बता साले तुझे मनप्रीत को छोड़ने के लिए कौन धमका रहा था।
साजिद खाते- खाते हंसा।
फ़िर धीरे से बोला- अरे यार मुझे उल्लू बना रहे थे साले, ये ही दोनों, सिद्धांत और मनन।
आगोश हंसा, बोला- ले, खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
मैं आज ही शाम को लेता हूं उनकी। सालों को डांट लगाऊंगा। भला किसी के साथ ऐसा मज़ाक करते हैं क्या? बेचारे तेरा तो खड़ा हुआ बैठा दिया।
साजिद ने उल्टा हाथ उठाकर उसके सिर पर ज़ोर से एक चपत लगाई, फ़िर हंस कर बोला- पकड़ के देख ले बाबू, वो क्या बैठाएंगे मेरा, साले यूं ही मस्ती कर रहे थे, बैठे - बैठे मज़े ले रहे थे। आगोश के सिर में चपत लगाने के चक्कर में उसके हाथ में पकड़ा हुआ मिल्कशेक थोड़ा छलक गया।
आगोश अपने कपड़ों पर से बूंदें झाड़ता हुआ बोला
- नहीं, पर ये बात तो ग़लत है न उनकी, बेचारे कोई लैला- मजनू रोज़ चुपचाप आकर एक - दूसरे से बागों में मिलते हैं तो बीच में अड़ंगा लगाने की क्या जरूरत है। तुम्हारा उठे तो तुम भी पटाओ, दूसरों को क्यों घोंचा करते हो।
साजिद हंसने लगा।
कुछ रुक कर आगोश फ़िर बोला- यार, पर एक बात है, ये तो मानना ही पड़ेगा कि तुझे एक बार तो डरा ही दिया था उन्होंने, फटने लगी थी तेरी। रात को दो बजे फ़ोन पे कांप रहा था तू।
- अबे जा - जा, फ़ोन तो मैंने इसलिए किया था कि गांव से लौटे उस लड़के ने मुझे अताउल्ला की खबर दी थी। साजिद बोला।
आगोश ने कहा- ठंड रख! सब बकरों को खा- खा के मुटियाने दे,एक दिन सबको ठिकाने लगाएंगे!
- आर्यन का फ़ोन आया था क्या, वो कब आ रहा है? साजिद ने पूछा।
- उसे तो अब भूल जाओ, वो तो अब आयेगा भी तो सिटी में गाड़ी में काले शीशे चढ़ा कर घूमेगा। धड़ाधड़ शूटिंग हो रही है पट्ठे की। एक एपिसोड रिलीज़ होने दे उसका। सब दीवाने हो जाएंगे।
- वाह। साजिद बोला।
- अब मिट्ठू अपने हाथ से तो उड़ा समझो। आगोश ने कहा।
लेकिन ये कहते - कहते भी आगोश कुछ उदास हो गया। ये सच था कि आर्यन को सबसे ज्यादा मिस भी आगोश ही करता था। उसके देखते- देखते ही तो उनका बचपन का ये दोस्त कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने लगा था। आगोश को तो वो सुनहरी शाम कल की सी बात लगती थी जब अरुंधति जौहरी ने रूफटॉप में आकर आर्यन और आगोश से बेवजह पंगा लिया था। किस्मत ऐसे ही तो आती है, कोई ढोल- नगाड़े थोड़े ही बजते हैं उसके आने के।
ढेरों लड़के - लड़कियां एड़ियां रगड़ - रगड़ कर बूढ़े हो जाते हैं तब भी उन्हें कोई चांस नहीं मिलता। यहां तो ठेले पर रखे हुए किसी गदराए हुए सेब की तरह चुन कर ले गईं उसकी डायरेक्टर मैडम उसको!
- चल, शाम को मिलते हैं, सिद्धांत और मनन को भी बोल देना। कहता हुआ साजिद उठ गया।