Yuhi kahi kisi mod par - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

यूंही कहीं किसी मोड़ पर - 1

पायल कार से उतरी और घर के सामने जाकर डोरबेल बजाया। दरवाजा खुला तो सामने विनय थे, सवालिया नजरों से देखते हुए उसने कहा- "आप?"
तो विनय ने कहा- "हां, आज ऑफिस में ज्यादा काम नहीं था तो जल्दी चला आया।"
पायल जाकर सोफे पर बैठ गई। वो बहुत थक गई थी। पायल को इस तरह देखकर विनय किचन में गए और एक गिलास पानी लाकर पायल को दिया। उसने मुस्कुराते हुए ग्लास पकड़ा और पानी पीने लगी। फिर विनय ने कहा- "बहुत थक गई हो तुम। लगता है आज केसेस बहुत थे?"
पायल ने पानी पीकर ग्लास टेबल पर रखा और राहत की सांस लेते हुए कहा- "कुछ ऐसा ही समझ लीजिए। मैं आधे घंटे पहले पहुंच चुकी होती, मगर ट्रैफिक इतना जाम था कि अब जाकर पहुंची हूं।"
विनय ने एक मुस्कुराहट के सिवा कोई रिस्पांस नहीं दिया, और खुद भी सोफे पर बैठ गए। पायल उठकर जाने लगी तो विनय पूछ बैठे- "कहां जा रही हो?"
तो पायल ने सहज ही उत्तर दिया- "फ्रेश होकर आती हूं।" पायल अपने रूम में आई और पर्स टेबल पर रख दिया। बाथरूम से फ्रेश होकर बाहर आई तो देखा कि पर्स के पास ही एक खूबसूरत बुके और एक लिफाफा रखा था, शायद उस लिफाफे में कुछ था। उसने उन फूलों को करीब से देखा, नकली थे फिर भी लाल, पीले, नीले और सफेद फूलों के गुच्छे हरी पत्तियों के साथ बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे। पायल उन्हें लेकर बाहर निकली तो देखा विनय ड्राइंग रूम में नहीं थे। पायल ने आवाज दिया- "विनय!"
तो किचन की तरफ से आवाज आई- "हां मैं किचन में हूं।" पायल किचन में गई तो विनय कुछ बना रहे थे। उसने पूछा- "क्या कर रहे हैं आप?"
विनय ने मुड़कर मुस्कुराते हुए कहा- "चाय बना रहा हूं गरमागरम। दोनों मिलकर पिएंगे। कुछ काम था पायल तुम्हें?"
पायल ने अपना पुराना मुद्दा पकड़ते हुए कहा- " हां ये लिफाफा और गुलदस्ता?" कहकर उसने दोनों चीजों को दिखाया तो विनय ने कहा- "अरे हां! पोस्टमैन आया था करिब आधे घंटे पहले। पहले तो मुझे लगा कि तुम आई हो, लेकिन पोस्टमैन था। ये लिफाफा और बुके देकर गया है। वैसे मैंने इसे खोला नहीं है अब तक।" खुद को निर्दोष बताते हुए विनय ने मासूमियत से कहा और अपने काम में लग गए‌। पायल ने कहा- "किसका हो सकता है?" चायपत्ती डालते हुए विनय ने कहा- "वैसे भेजने वाला काफी समझदार है असली की जगह नकली फूल भेजा है‌, नहीं....!"
इस पर पायल ने विनय की तरफ घूरकर देखा तो विनय ने कहा- "सॉरी...! अच्छा देखो कहीं मम्मी जी ने तो नहीं ना भेजा है?"
पायल ने कहा- "मम्मी इतनी दूर से यह गुलदस्ता और लेटर क्यों भेजेंगी। सीधे फोन नहीं कर लेंगी। आप भी ना।"
विनय ने कहा- "हां ये तो है। खोल कर देख लो पता चल जाएगा। तुम बाहर चलो मैं चाय लेकर आता हूं।"
पायल बाहर आई, बुके टेबल पर रख दिया और लिफाफा लेकर सोफे पर बैठ गई। फिर उसे खोला, उसमें एक पत्र था जिसमें लिखा था-
"हेलो डॉक्टर कैसी हैं? ज्यादा दिमाग पर जोर मत दीजिए मुझे पहचानने के लिए। सुना आपने शादी कर ली और बताया भी नहीं। खैर बताती भी कैसे ना हमसे कोई रिश्ता है और ना ही हम एक दूसरे का पता जानते हैं। खैर शादी मुबारक हो। उम्मीद करती हूं कि आप एक खुशहाल जीवन जी रही होंगी। आपसे मिलना चाहती हूं क्योंकि आपसे अभी भी एक रिश्ता बाकी है मेरा। ओहो ज्यादा दिमाग पर जोर मत डालिए वरना आपके मेंटल इश्सुस बढ़ जाएंगे। आपको अपनी कॉपी का वादा पूरा करना है। 4 साल बाद आपका एड्रेस मिला है मुझे, उम्मीद है आप आएंगी उसी कॉफी शॉप में, जहां 4 साल पहले आज ही के दिन आपको कॉफी पीने के लिए मैंने ऑफर किया था। मैं इंतजार करूंगी कल शाम 5:00 बजे।"
आपकी सॉरी आप की नहीं
सिर्फ स्वाति.
पायल पत्र लेकर सोच ही रही थी कि विनय दो कप चाय लेकर आ गएं। एक कप चाय पायल को थमाया और दूसरा खुद लेकर सोफे पर बैठ गएं। पायल एक हाथ में चाय दूसरे हाथ में पत्र लिए सोच रही थी। विनय ने चाय की एक चुस्कि ली और फिर कप टेबल पर रखते हुए पूछा- "किसका लेटर था?"
पायल ने कोई उत्तर नहीं दिया बल्कि अभी भी सोच में डूबी थी। विनय ने फिर पूछा- "पायल क्या हुआ? लेटर में ऐसा क्या था जो तुम परेशान दिख रही हो?"
पायल ने कुछ कहने की बजाय लेटर विनय को थमा दिया। लेटर पढ़ने के बाद विनय ने कहा- "ये स्वाति कौन है? इस बार पायल ने सोच से बाहर निकल कर चाय उठाई, तो चाय ठंडी हो गई थी। दोनों ने एक बार में ही चाय खत्म की और कप टेबल पर रख दिया। फिर पायल ने स्वाति के बारे में बताना शुरू किया- "..........


कौन है स्वाति? 4 साल पहले वह पायल को कहां मिली थी? आज 4 साल बाद क्यों स्वाति फिर से मिलना चाहती है पायल से? इन सवालों का जवाब जानने के लिए और पूरी कहानी जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए और सुनिए पूरी कहानी।

यूंही कहीं किसी मोड़ पर. जानिए पूरी कहानी-