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भूत बंगला - भाग 7 - भूत से सुहागरात

भूत से सुहागरात


रागिनी एक अच्छी कंपनी में काम करती थी. रागिनी एक स्वतंत्र विचारों वाली लड़की थी. इसलिए उसने एक बेरोजगार लड़के से शादी की. शादी के बाद वह एक नए मकान में शिफ्ट हो गये. अब दोनों की सुहागरात यहीं पर होनी थी.


रागिनी के पति का नाम प्रेम था. प्रेम ने रागिनी से कहा आज हमारी सुहागरात है. मैं बाजार से कुछ सामान लेकर आता हूं. यह कहकर प्रेम अपनी बाइक में बैठकर मार्केट की तरफ चल पड़ा. एक-दो घंटे बाद दरवाजे पर खटखट की आवाज हुई. रागिनी ने दरवाजा खोला तो प्रेम सामने था.


शाम के 9:00 बज रहे थे. आते ही प्रेम ने रागिनी को अपने से लिपटा लिया और रागिनी को दबोच कर वह काम करने लगा जिसके लिए शादी की जाती है.


अब अचानक दरवाजे पर फिर खट - खट की आवाज सुनाई दी. रागिनी ने प्रेम को बगल में धकेला और दरवाजा खोलने चल पड़ी. दरवाजा खोलते ही उसके होश उड़ गए. सामने चार पुलिस वाले खड़े थे और उनके साथ में एक स्ट्रेचर पर एक लाश पड़ी हुई थी.


रागिनी ने लाश के चेहरे का कपड़ा हटाया तो वह आश्चर्यचकित रह गई. यह तो प्रेम था. पुलिस वाले बोले मैडम 2 घंटे पहले इनका एक्सीडेंट हुआ था. जिसमें इनकी मृत्यु हो गई. बड़ी मुश्किल से आपका पता खोज कर हम यहां आए हैं.


रागिनी ने कमरे के अंदर दृष्टि दौडाई तो वहां कोई नहीं था. तो क्या रागिनी से सुहागरात मनाने उसके मृत पति की आत्मा आई थी.






भूतनी से सुहागरात


रमेश एक होनहार लड़का था. वह पढ़ाई में बहुत तेज था. एक बार वह रात को बैठ कर पढ़ाई कर रहा था. रात के लगभग 12:00 बज रहे थे. रमेश की उम्र 17 -18 वर्ष के करीब थी. इस उम्र में बच्चों के अंदर सेक्स की प्रबल इच्छा जागृत हो जाती है.


रमेश काल्पनिक सुंदरी के बारे में सोचने लगा. उसकी आंखों के सामने गोरे गदराये बदन वाली सुंदरी की छवि उभर रही थी. अचानक घुंघरुओं की आवाज सुनाई दी. वह दरवाजा खोलकर बाहर आ गया. अचानक उसे अपनी स्वप्न सुंदरी सामने दिखाई दी.


वह सुंदरी अंदर आई. रमेश ने सारी रात उससे संभोग किया. अब यह रोज का क्रम बन गया. लेकिन अच्छा खाता - पीता स्वस्थ जवान रमेश धीरे-धीरे सूखने लगा. एक दिन उसने उस लड़की से उसका पता पूछा, तो उसने सामने के घर की ओर इशारा किया.


अगली सुबह जब रमेश उस घर की तरफ चला तो वहां उसे एक खंडहर दिखाई दिया. रमेश समझ गया कि वह किसी भूतनी के चक्कर में फंस गया है. उसने एक बड़े तांत्रिक से झाड़-फूंक करवाई. अब वह लड़की रात को आना बंद कर दी. धीरे-धीरे रमेश का स्वास्थ्य भी ठीक हो गया.






तारों के साथ


मनोज एक फैक्ट्री में काम करता है. आज उसने चार-पांच घंटे फालतू काम किया था. घर आते - आते उसे काफी देर हो गई. रात के 1:00 बज रहे थे. उसकी फैक्ट्री से उसके घर के बीच में एक कब्रिस्तान पड़ता है.


मनोज जैसे ही कब्रिस्तान से गुजरा. उसने आसमान में देखा कि बहुत से तारे आसमान में चमक रहे हैं. अचानक 10-12 तारे नीचे कब्रिस्तान में गिर गये. मनोज वहां पहुंचा तो उसने देखा कई लोग नाच - गा रहे हैं. एक सुंदर सा महल खड़ा है और किसी की शादी चल रही है. तभी दो - तीन लोग मनोज की तरफ बढ़े और मनोज को जबरदस्ती शादी में ले गये.


बड़े प्यार से उन्होंने मनोज की आवभगत की और उसे खाने के लिए विभिन्न मिठाईयां आदि दिए. मनोज ने ऐसी सुंदर स्वादिष्ट मिठाइयां कभी नहीं खाई थी. इसलिए चुपके से उसने कुछ मिठाईयां अपनी जेब में रख ली. इसके बाद मनोज अपने घर चला गया. रात को मनोज को सुंदर - सुंदर सपने दिखाई दिए. जब वह उठा तो उसने अपनी जेब में हाथ डाला ताकि फिर से मिठाइयों का आनंद ले सके.


तभी उसने देखा उसकी जेब से टट्टी, बिच्छू, कबाड़ निकल रहा है. मनोज डर गया. मनोज दौड़ते - दौड़ते कब्रिस्तान तक पहुंचा तो उसने देखा कि वहां एक भयंकर खंडहर है और वहां सांप - बिच्छू रेंग रहे हैं. कुछ पतीले भी वहां रखे हुए हैं. मनोज समझ गया कि यह सब एक प्रेत लीला थी.







प्रेत की सुहागरात


मैं एक बहुत ही अच्छा और स्मार्ट आदमी हूं. एक बार मैं जंगल से होकर जा रहा था कि अचानक मेरी बंदूक की गोली से एक हिरण मर गया. मरते - मरते हिरन एक ऋषि में बदल गया. ये क्या किया मैंने. यह तो हिरण नहीं था. यह तो एक ऋषि थे.


ऋषि ने मरते - मरते मुझे श्राप दिया, हे दुष्ट मानव तूने मुझे मारा है. तूने राक्षसी काम किया है. इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूं तू आज से प्रेत बन जा. मैं देखते-देखते एक भयन्कर प्रेत बन गया. मेरा विशाल 16 फीट का शरीर लंबा - चौड़ा शरीर, शक्तिशाली बदन, सारे बदन पर काले - काले बाल, सफेद - सफेद आखें थी.


अभी मुझ में इंसानी बुद्धि थी. मैंने ऋषि से प्रार्थना की. हे ऋषि राज मुझे मुक्ति का उपाय बताइए. ऋषि बोले हे दुष्ट तूने मुझ निर्दोष को गोली मारी है. इसलिए तू हमेशा प्रेत ही रहेगा. मैं ऋषि की आगे गिड़गिड़ाया. ऋषि तो आखिर ऋषि ही थे. वे एक दयालु व्यक्ति थे. उनको मुझ पर दया आ गई. ऋषि ने कहा है तुमने अनजाने में मुझ पर गोली मारी है.


मैं अपने श्राप को मिटा तो नहीं सकता हूं. लेकिन जब कोई हनुमान जी का नाम लेकर तुम्हें गोली मारेगा तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी. यह कहकर ऋषि ने अपने प्राण त्याग दिये. अब मैं भयंकर प्रेत बन चुका था. मैं जंगली जानवरों का शिकार करने लगा. गैंडा, हाथी, शेर तक मेरे हाथों से बच नहीं पाते थे. मैं उन्हें बड़े चाव से खाने लगा.


कभी-कभी कोई मनुष्य भी मेरे कब्जे में आ जाता था. मैं उसे भी बड़े चाव से खाता था. एक बार कुछ शिकारी जंगल में शिकार खेलने आए. जंगल में थोड़े ही प्राणी बचे थे, क्योंकि ज्यादातर को मैंने खा लिया था. शिकारी मेरे कब्जे में पड़ गये. मैं शिकारियों को खाने लगा. शिकारियों ने मुझ पर गोलियां बरसाई. लेकिन मुझ पर गोलियों का कुछ असर ना हुआ.


लास्ट में एक नवयुवती जो अपने बाप शिकारी के साथ वहां आई थी, ने हनुमान जी का नाम लेकर मुझ पर गोली चला दी. हनुमान के नाम की गोली लगते ही मैं जमीन पर गिर गया और मेरे सारे बदन से आग निकलने बैठ गई. थोड़ी देर में वहां मेरे वदन की राख गिरी हुई थी. चारों तरफ मौत का कहर था. अचानक हवा से राख ऊपर उड़ने बैठ गई और एक सुंदर सजीला राख का व्यक्ति बन गया. थोड़ी देर में वह व्यक्ति एक जिंदे व्यक्ति में बदल गया. वह मैं ही था.


मैंने उस शिकारी नवयुवती को अपनी कहानी सुनाई. युवती बड़ी प्रसन्न हुई और उसने मुझसे शादी कर ली. जंगल में ही हमारी सुहागरात मनी और हम बड़े प्रेम से जंगल में एक कुटिया बनाकर रहने लगे.
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