Pahle kadam ka Ujala - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

पहले कदम का उजाला - 15

माँ....(रोली की नजर से)

नाना-नानी के साथ बाहर निकलते हुए मन बहुत ख़ुश था। हम माँ को एयरपोर्ट से छोड़कर बाहर निकल रहे थे। मन अभी भी उसी के पास था। माँ की आँखों का डर, जैसे कोई बच्चा अपनी माँ से अलग हो रहा हो।

माँ मुझे कहती भी थी ‘रोली, तू तो मेरी माँ है! उसका मासूम चेहरा याद करके आँखों में आँसू आ गए। एक औरत अपनी ज़िंदगी में कितना दर्द सहती है? उसके बाद भी उसके पास कुछ पल सम्मान के, अपनी ख़ुशी के हों यह ज़रूरी नहीं।

थोड़ी देर बाद माँ का फोन आया “रोली, सब कुछ ठीक से हो गया। तुम्हारी बात सही थी। पूछने से सारे काम हो जाते हैं।” माँ ने चहकते हुए कहा

“तो अब ख़ुश हो जाओ! आगे भी सब ठीक ही होगा!” मैंने माँ को हिम्मत देते हुए कहा

“तुम भी अपना ध्यान रखना रोली” कहते-कहते माँ की आवाज़ भीग गई थी। जिसे हम दोनों ने समझ लिया। फोन हाथ में थे पर हम दोनों चुप थे। ख़ामोशी वो सब कह रही थी जो हम कहना- सुनना चाहते थे।

मैंने ही उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा “तुम अब सब भूल जाओ! बस वो सब जी लेना जिसे तुम देखने जा रही हो।” फोन कट गए पर जो दिल एक बार जुड़ जाते हैं वो साथ ही धड़कते हैं…