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लौट के बुद्धू घर को आये (अंतिम किश्त)

"मैं तो छोटे थे तब एक शादी में आये थे।"मरी सी आवाज में उस बुजर्ग ने जवाब दिया था।
ड्राइवर ने कंडक्टर से कहा"नीचे उतरकर पता लगाओ ज़रा।"
दूल्हे के बड़ा भाई ही कर्ता धर्ता था।उसी ने रिश्ता तय किया था।वो ही जनता था गांव का पता।लेकिन वह बेंड वालो को लाने के लिए आगरा रुक गया था।कैसी बरात थी।मंज़िल का पता नही और चले जा रहे थे।कंडक्टर लौटकर बोला,"गांव का रास्ता काफी पीछे रह गया है।"
ड्राइवर ने सिर पीट लिया।दोनो तरफ खेत की ऊंची ऊंची मेड।बस को मोड़ने के लिए कोई जगह नही।लिहाज ड्राइवर को करीब दो किलो मीटर आगे जाना पड़ा।बस मुड़कर फिर गांव की तरफ चली।बस की आवाज सुनकर लोग दौड़े चले आये।बस कक वहीं रुकवाकर एक सज्जन बोले,"बस बेंड बाजे के साथ अंदर जाएगी।"
"लेकिन बेंड वाले तो पीछे आ रहे है।"एक बाराती बोला।
"बेंड नही आता तब तक बस यही खड़ी रखो।"
हम पांचों उतर गए।शाम के छः बजे चुके थे।गर्मी से बुरा हाल था।हम एक खेत मे घुस गए।खेत मालिक का घर भी खेत मे था।हमने उससे बाल्टी मांगी और उसके खेत के कुएं पर पानी पिया और नहाए थे।पूरे दिन की गर्मी सहकर निकले पसीने से तन चिप चिप कर रहा था।ठंड जल से नहाकर मन खिल उठा।
नहाने के बाद एक पेड़ के नीचे चद्दर बिछाई और हम बैठ गए। बड़े बाबू,सैनी और भाटिया शराब पीते थे।वे अपने साथ बोतल लाये थे।बाबा भांग का शौकीन था।वह अपने साथ भांग लाया था।मैं किसी रंग में नही था।उन्हें नशा करते हुए देखने लगा।जब ये लोग अपना कार्यक्रम करके फ्री हुए तब अंधेरा आसमान से धरती पर उतर आया था।गांव में बिजली नही थी।घरों में लालटेन या दिए जल रहे थे।हम गांव पहुंचे तब तक बाराती जनवासे में पहुंच चुके थे।बारातियों को नास्ता दिया जा चुका था।हम थे नही।
भूख ज़ोर की लग रही थी।गांव छोटा था और आज से चालीस साल पहले।गांव में कोई दुकान नही थी।जहां स कुछ खाने के लिए मिल सके।गांव का चक्कर लगा कर वापस आ गए।पेट मे चूहे कुलबुलाने लगे थे।
रात दस बजे बारात निकलने की तैयारी होने लगी।गैस के हंडे जलाए जाने लगे।बेंड बजने लगे।पूरे कीचड़ भरे रास्तो से एक घण्टे तक बारात गांव का चक्कर लगाती रही।और आखिर में खाने के लिए जा पहुंचे।जूते खोलकर जमीन में बिछे फर्श पर जा बैठे।दोने पत्तल परोसने वाले लड़के से पानी लाने के लिए कहा।पर पानी नही आया।भूख इतनी तेज लगी थी कि जूते के हाथों से ही खाने लगे।हलवाई अनाड़ी था या जानबूझकर सब्जियों में भयंकर मात्रा में मिर्च डाली गई थी।पेट भरा और उठ लिए।
रात के बारह बज चुके थे।जनवासे में सोने की जगह नही थी। ।सैनी बोला,"मैं पता करके आया था।परखम स्टेशन एक किलो मीटर है।वहीं चलते है।स्टेशन पर सोएंगे।"
प्रस्ताव पसंद आया।सैनी बोला,"मैने रास्ता पूछ लिया था।मेरे पीछे आ जाओ।'
"रात में पता कैसे चलेगा?"
"उस आदमी ने बताया था।परखम के आउटर सिग्नल की लाल लाइट साफ नजर आती है।उसकी सीध में चलते जाना।और हम चल पड़े।अंधेरी रात में सिग्नल साफ नजर आ रहा था।गांव से बाहर निकलकर कच्चे रास्ते पर कुछ दूर चले तो रास्ते मे घनी झाड़ियां जो दूर तक फैली थी।इसलिए उसके चक्कर लगाकर आगे बढ़े।सैनी ने बताया था।आधे घण्टे में स्टेशन पहुंच जाएंगे।पर यह आधा घण्टा नही आया।और तब बड़े बाबू बोले"अब रात में भटकने से बेहतर है यहीं रुक जाओ।सुबह होने पर चलेंगे।"
औऱ बड़े बाबू के कहने पर एक खेत मे साफ जगह देखकर सभी चद्दर बिछाकर लेट गए।भाटिया और बाबा खर्रान्टे लेने लगे।लेकिन हम तीनों जग रहे थे।करीब एक घण्टे बाद दूर से टैक्टर की आवाज सुनाई पड़ी।तब बड़े बाबू बोले,"टैक्टर वाले से रास्ता पूछते है।

मैने और सैनी ने जोर स भाटिया और बाबा कक आवाज लगाई थी।
न जाने भाटिया ने क्या सुना या वह कोई सपना देख रहा था।वह चोक कर उठा और चीखा,"बचाओ बचाओ और वह खेतो में भागने लगा और उसने बाबा को पकड़ लिया।और दोनों आपस मे ही भिड़ गए।हम तीनों उन दोनों को अलग करने लगे।तब तक टैक्टर पास आ चुका था।हमारा शोरगुल सुनकर न जाने उन्होंने क्या समझा की हमारी आवाज सुनकर टेक्टर की स्पीड और तेज कर दी।
काफी देर तक हम बाबा और भाटिया पर हंसते रहे।यह भी सोचते रहे कही हमे चोर समझकर वे हम पर बंदूक चला देते तो।खैर उजाला हुआ और एक साईकल वाला दूर खेत से जाता दिखा।सैनी दौड़कर उसके पास गया।
उस आदमी ने बताया हम रात में रास्ता भटक गए।अब यहां से परखम और अछनेरा दोनो ही छः किलो मीटर दूर है।
और हमने अछनेरा जाने का फैसला किया।वहां से ट्रेन थी।
जब ऑफिस पहुंचे तो सब हंसकर बोले"जहां जहां सन्तन के पैर पड़े वहां बंटा धार