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जु़र्म - 1

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बरसों से बिजली की चमक और बादलों की गड़गड़ाहट संग होती, तेज बारिश अपरा के लिए दहशत का सबब थी| जब कभी तेज बारिश होने का अंदेशा होता, वो खुद को कमरे में कैद कर, कामों में व्यस्त कर लेती| ताकि बारिश होने का एहसास कम से कम हो| शादी के बाद न जाने कितनी बार अतिन ने उसके साथ भीगने की ख्वाहिश की…

‘अपरा चलो न बाहर गार्डन में,दोनों साथ-साथ भीगकर बारिश का आनंद लेते हैं|’

‘अतिन! मुझे बारिश में भीगना अच्छा नहीं लगता| आप तो जानते ही हैं बारिश मुझे आनंद नहीं देती, डराती है| आप और बच्चे खूब मज़े लीजिए| मैं आप सबके लिए गरमा गरम पकोड़े बनाकर, आपके आनंद को दुगना करती हूँ|’ अपरा हमेशा ही अतिन के इस आग्रह को बहुत प्यार से नकार देती|

‘मैं हूँ न अपरा तुम्हारे साथ| तुम्हारा डर खुद-ब-खुद भाग जाएगा|’...

अतिन के मनावने करने पर भी अपरा इनकार करती तो एकांत मिलने पर अतिन पूछते...

‘तुम्हारे डर की वज़ह क्या है अपरा?... साझा कर लोगी तो मन से स्वतः ही डर दूर हो जाएगा|’

‘कोई वज़ह नहीं है अतिन| आप प्लीज ज़िद मत करिए|... आप और कुछ भी करने को कहेंगे जरूर करूंगी, बस बारिश में नहीं भीग पाऊँगी|’

शादी के बाद कुछ सालों तक अतिन ने पूछने की कोशिश की, मगर अपरा टस से मस न होती| अपरा अक्सर ही अतिन की इस ख्वाहिश को मार देती| अतिन बहुत सीधे थे| बहुत ज़िद करना उनकी आदत में नहीं था| हमेशा कहते....

‘अगर तुम्हें अच्छा नहीं लगता, मत करो| पर कभी डरने की वज़ह साझा करोगी, तो अच्छा लगेगा| हम मिलकर समाधान खोजेंगे|’

अतिन जब तक जीवित रहे उन्हें हमेशा वज़ह जानने की इच्छा रही| दरअसल बारिश के संग अपरा के चेहरे पर छाई हुई बेचैनी से अतिन घबराते थे|

अब तो अतिन को गए हुए भी सात महीने होने वाले थे| अनायास ही अतिन का हृदयाघात से चला जाना अपरा को तोड़ गया था| अक्सर अपरा को अतिन की यादें बहुत रुलाती थी| उनके आग्रह को टालना भी| गुज़रते वक़्त के साथ अपरा ने दूसरी यादों के साथ अतिन की यादों को भी मन में सहेज लिया था|

तीन दिन से लगातार हल्की बूँदाबाँदी के बाद, आज भी सुबह से आसमान काले घने बादलों से लदा पड़ा था| बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली के लगातार चमकने से लग रहा था कि किसी भी वक़्त तेज बारिश शुरू हो सकती है| घर के काफ़ी कामों को बच्चों ने सवेरे ही कर दिया था| सिर्फ़ खाने से जुड़े काम अपरा को करने थे| उसने बच्चों की पसंद का खाना बनाया| और बाक़ी बचे हुए कामों को भी निबटा दिया, ताकि सब तसल्ली से बैठकर लंच कर सके|

अपरा अच्छे से जानती थी कि एक बार तेज बारिश शुरू होने पर, उसके न सिर्फ़ काम करने की गति कम हो जाएगी, बल्कि उसके कुछ काम धरे के धरे भी रह जाएंगे| मुंबई की बारिश का अपरा ने सुन रखा था| मगर बारिश के मौसम में बच्चों के साथ रहना पहली बार हुआ| अतिन के जाने के बाद अपरा जयपुर से मुंबई शिफ़्ट कर गई थी| गुज़रे हुए पाँच-छः सालों से बच्चे मुंबई में थे|

चार-पाँच दिन की छुट्टियाँ होने के बावजूद आज बेटी अनुष्का के ऑफिस की सवेरे दो-तीन मीटिंग्स थी| वो अपरा को बोलकर गई थी, साथ में लंच करने के बाद थोड़ा-सा काम बचेगा| उससे फ्री होकर, वह बाकी का काम माँ के पास बैठकर करेगी| बेटे तेजस को कॉलेज के कई प्रोजेक्ट मिले हुए थे|

बेटी अनुष्का ने लंच लेते हुए कहा...

“माँ! आप सब कुछ कितना टैस्टी बनाती है| जब आप जयपुर में थी, हमें व्यस्तताओं के चलते कई बार खाना बाहर से ही ऑर्डर करना पड़ता था| मगर अब... लव यू मम्मा! आप हमारे पास हो तो ऐसा लगता है हम कितना रिलेक्स हो गए हैं| बस अक्सर महसूस होता है, हम अपने कामों में कुछ ज़्यादा ही व्यस्त रहते हैं, और आप अकेली हो जाती हैं|”

“दीदी ने सच कहा माँ! अक्सर मैं जब आपके पास सोने आता हूँ,आप सो चुकी होती हैं| हम बहुत कम समय दे पाते हैं न आपको?” तेजस ने अपनी दीदी की बातों को विस्तार देते हुए कहा|

“मैं बिल्कुल भी अकेला महसूस नहीं करती हूँ बेटा| न ही तुम दोनों मुझे कम समय देते हो| अभी दोनों की बहुत मेहनत करने की उम्र है| बच्चों के घर में होने का एहसास, न सिर्फ़ घर को रौनकों से भर देता है बल्कि मेरा संबल भी बनता है| तुम दोनों मेरी आवाज़ भर की दूरी पर हो, ये बहुत खूबसूरत एहसास है बेटा| बच्चों के साथ होने से ही रसोई में हलचल है| तुम्हारे पापा के जाने के बाद मेरा खाना बनाने का दिल ही नहीं करता था| तुम्हारी हर रोज़ की फ़रमाइश मुझे बहुत कुछ नया ट्राई करने को कहती हैं| दिन कैसे फुर्र कर निकल जाता है| तुम दोनों के साथ रसोई में काम करना मुझे बहुत खुशियां देता है| बच्चों का अपनी माँ को चलते-फिरते प्यार करना, सारे दिन की थकान मिटा देता है| जब तुम दोनों के बच्चे होंगे तब तुम्हें पता चलेगा, इन सबसे क्या सुख मिलता है बेटा|”

“बच्चों का सुख अभी से? मुझे नहीं दीदी को जल्द महसूस होगा मम्मा| इस साल के आखिर में उनकी शादी जो फिक्स है| मेरा तो अभी कॉलेज भी पूरा नहीं हुआ| माँ! अधिकतर घरों में बेटे काम नहीं करते, मगर आपने मुझे सब सिखाया है| सब आपकी ट्रैनिंग है| किसी दिन मुझे सिर्फ़ आपकी पसंद का खाना बनाकर..खिलाना है|”

अपनी बात पूर्ण कर तेजस अपरा के माथे पर चुंबन लेकर अपने कमरे में चला गया|

बच्चों का इस तरह लाड़ करना अपरा को भावुक कर देता था| छोटे-बड़े कामों में  मदद करना, अपरा और अतिन ने अपने बच्चों को बचपन से सिखाया था| घर के काम खुद करने की वज़ह से बच्चों को काम की क़ीमत बहुत अच्छे से महसूस हो गई थी| तभी दोनों अपने माँ-पापा की बहुत इज़्ज़त करते थे|

अपरा बेटे और बेटी की बातों में खोई हुई थी कि अनुष्का की बात से वर्तमान में लौट आई|

“माँ! अब आप भी थक गई होंगी| आराम करिए| मैं जल्द ही फ्री होकर आपके पास आती हुँ| तेजस तो शाम तक फ्री होगा| अब आप अपना मँगवाया हुआ नया नॉवल भी पढ़ सकती हैं|”

अपरा के सहमति में सिर हिलाते ही, अनुष्का भी अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गई| अपना खाना खत्म करने के बाद अपरा ने टेबल साफ़ की और कमरे में पहुंचकर अपनी नॉवल लेकर रॉकिंग चेयर पर पढ़ने बैठ गई| अपरा खाना खाने के इकदम बाद लेटती नहीं थी| कुछ देर कुछ न कुछ अपनी पसंद का पढ़कर आराम करती थी| नॉवल पढ़ते-पढ़ते कब दो घंटे निकल गए अपरा को पता ही नहीं चला| उसका ध्यान तेज़ बारिश शुरू होने से टूटा| बारिश के साथ उसकी बढ़ती हुई धड़कनों ने बेचैनी बढ़ा दी|

कमरे की खिड़कियों से जोरदार आवाज़ कर टकराती बूंदों की प्रतिध्वनियां अपरा को बेचैन करने लगी| अपने कानों में रुई खोंस लेने के बाद उसे चैन नहीं था| वह बार-बार भगवान से प्रार्थना कर रही थी.....

‘हे भगवान हौले-हौले भी तो बारिश हो सकती है| पानी बरसाओं मगर इतनी भीषण आवाजों के साथ नहीं कि दिल और दिमाग दोनो ही दहल जाए।‘

तभी अचानक जोर से बिजली कड़कने से अपरा ने आंखें बंद कर अपनी रॉकिंग चेयर के हत्थों को ज्यों ही कसकर पकड़ा, उसकी आंखों से आंसुओं की धार बह चली| जितना वह अपने आंसुओं को पोंछने की कोशिश करती न जाने कहां से उतने ही आंसू बरसने को तैयार हो जाते| उसकी घबराहट लगातार बढ़ रही थी| टपाटप गिरती बूंदों की आवाज़ों के बढ़ते ही अपरा का खुद के डर पर कंट्रोल करना दूभर हो गया| उसने अनुष्का को न चाहते हुए भी आवाज़ लगा दी.....

“अनुष्का!.....अनुष्का! कहां हो बेटा? मेरे कमरे में आ जाओ और आकर कुछ देर मेरे साथ बैठो|”