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निम्की - 2

(2)
धर्म की आंच

गांव में निम्की के किस्से आम थे पर जमीदारो और पंचायत के आगे किसकी चलने वाली है? वक्त ने सबको आगे धक्का दिया और सब अपनी-अपनी में लग गए। पर निम्की और मुसीबत का चोला सांझा था। सावन मास का तीसरा दिन होगा जब दोपहर को रामवेत ब्राह्मण के कहने पर गांव वाले इक्ठे हुए।
रामवेत ने मनो सर पर आसमान ले रक्खा हो
- इस निम्की ने नाक में दम कर रखा है गांव की खुशाली तो इससे देखि नहीं जाती अब इसने धर्म को भी सहारा देना जरूरी नहीं समझा है। रामवेत अपने पुरे वेग से निम्की पर चिल्लाया
- क्या हुआ वेदी जी आप इतना ज्ञान अपने सर पर उठाये क्यों मिटटी में फेके जा रहे हो? जिस जमीन को तुमने अपना ठेका समझ रखा है वो मुझे जमींदार ने भेट में दे रक्खी है। तुम्हारे भगवान के पास तो वैसे ही बहोत है।
कुछ सालो पहले गावों के जमींदार ने किसानो की हत्या करा जमीन हड़प ली पर लोगो की बुदबुदाहट देख वो जमीन अपने कब्जे में पूरी तरह से न कर सका इसका फायदा देख निम्की ने बहलाफुसला कर वो जमीन जमींदार से लेली और रातो-रात पहले चार दीवारी बनवायी और बाद में निम्की के लिए उसी जमीन पर घर बनवा दिया ताकि जमींदार की अय्याशी भी चलती रहे। इस बात पर रामवेत नाराज था क्युकी इस जमीन को पाने में उसका भी हाथ था और वो जमींदार से बार-बार आग्रह कर रहा था की वहाँ मंदिर बनवा दिया जाये। जमींदार ने मंदिर छोड़ अपने लिए ऐश जरूरी समझी पर वेदी नाराज न हो तो निम्की को हर महीने बतौर किराया कुछ पैसे देने के लिए राज़ी कर लिया। पर अब सब अपने हाथ में देख निम्की ने ये रकम भी देना बंद कर दिया।
- देखो जमींदार साहब आ गए अब वेदी अपनी जबान अंदर रक्खे भीकू ने कहा
- क्या बखेड़ा खड़ा कर रखा है ये सब? जमींदार जोर से चिल्लाया। अपने सामने सबको हाथ बांधे देख वो और सर चढ़ कर बोला
- क्यों से हरिया आज काम से बड़ा जी चुरा रहा है। इस वक़्त तुझे बैलो के साथ होना था ना? याद रख अगर बैलो की सेहत में कमी आयी तो खुद अपने बेटे के साथ हल खींचता नजर आएगा (जमींदार माहौल देख कर समझ गया की भीड़ काम ना हुई तो बात उलटी पड़ सकती है। इसलिए काम का बहाना देकर सबको डराकर भगाने की सोच रहा था।)
- क्या माजरा है अब? जमींदार बोला
- देखिये जमींदार जी आपके कहने पर निम्की हर महीने रकम की अदायकी करती रही पर अब धन पर साप सी बैठ कर भगवान का अपनाम करने पर लज्जा नहीं आ रही।
- अगर हर महीने भगवान के नाम से मेरी चौखट पर रकम पीटते हो तो मेरा भी हक़ बनता है की तुम्हारे मंदिर में उस पत्थर की मूर्ति को मैं भी देख सकू पर मंदिर में कदम भर रखने से जो भूचाल आएगा उसका क्या कहना (निम्की ने बहाना लगाया)
- इस निर्लज के शब्द सुनो जरा (वेदी और ज्यादा भड़क गया)
मसला हल ना होते देख धीरे-धीरे जमींदार, पंचायत वह से खिसकती नजर आने लगी। निम्की अपनी बात पर अडी रही और वेदी अपनी बात पर। निम्की की छवि पहले से खराब होने के कारन जमींदार का भी जोर ना चला ऊपर से निम्की के तीखे शब्द सबकी मर्यादा तोड़े जा रहे थे। लोग गुस्से में थे मानो ये मसला अब केवल कुछ रुपयों का नहीं बल्कि सबके घर का मसला हो। रामवेत ने भी खूब वाह-वाही लूटी मानो ये ना हो तो धर्म का नाश होना तय है। रामवेत ने अपना लालच छुपा ये जता दिया की बात आर-पार की रहे तीन-चार दिन हल्ला इतना रहा की अंग्रेजी सरकार को दखल देना पड़ा और वो किसी सरकारी बाबू को गांव भेजने पर मजबूर हो गए।