Pyar ke Indradhanush - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार के इन्द्रधुनष - 9

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डिलीवरी के दूसरे दिन रेनु की मम्मी पुष्पा को उसका भाई अस्पताल छोड़ गया था। कल शाम को अस्पताल से छुट्टी मिली थी। घर आने के बाद जब मनमोहन कूलर चलाने लगा तो पुष्पा ने कहा - ‘जमाई बाबू, कूलर मत चलाओ। अगर चलाना ही है तो केवल पंखा ही चलाना, पम्प मत चलाना।’

‘मम्मी जी, बिना पानी के तो हवा गर्म होगी। दूसरे, अस्पताल में तो चार दिन लगातार कूलर चलता रहा, आपने कोई एतराज़ नहीं किया। फिर घर में क्यों कूलर नहीं चला सकते?’

मनमोहन की बात तर्कपूर्ण थी, किन्तु पुष्पा ने परम्परागत सोच के चलते कहा - ‘अस्पताल की बात और थी बेटा। वहाँ डॉक्टर-नर्सें देखभाल को थीं। घर में पानी वाली हवा से रेनु की हड्डियों में ठंड बैठ गई तो मुश्किल हो जाएगी।’

मनमोहन ने बहस नहीं की। जैसा सास ने कहा, वैसा मान लिया। सुबह जब वह ऑफिस जाने लगा तो रेनु ने कहा - ‘सुनते हो जी, मैं कह रही थी कि एक बार डॉक्टर दीदी से मिल लेना या उनको फ़ोन करके बता देना कि गुड्डू ने अस्पताल से आने के बाद अब तक पेशाब नहीं किया है। कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं!’

‘तुम्हें पक्का पता है कि गुड्डू ने सारी रात पेशाब नहीं किया?’

‘अब मुझे पता नहीं होगा तो किसे पता होगा? मैंने दो-तीन बार करवाने की कोशिश भी की थी, पर नहीं किया।’

‘ठीक है, मैं डॉक्टर से बात कर लूँगा।’

डॉ. वर्मा ने सुनते ही पूछा - ‘मनु, बेडरूम में कूलर तो लगा है ना?’

‘हाँ, कूलर तो है। लेकिन रेनु की मम्मी ने कूलर का पम्प चलाने से मना कर दिया था।’

‘अभी तुम कहाँ हो, घर या ऑफिस?’

‘मैं तो ऑफिस में हूँ।’

‘तो अभी घर पर कहो कि कूलर का पम्प चला दें। घबराने की कोई बात नहीं है। घंटे तक भी बिटिया ने पेशाब ना किया तो मुझे सूचित करना।’

डॉक्टर की सलाह पर पुष्पा को कूलर का पम्प चलाना पड़ा। रात भर गर्म हवा की वजह से माँ और बेटी चैन से सो नहीं पाई थीं। ठंडी हवा में शीघ्र ही दोनों को नींद आ गई। घंटा-डेढ़ घंटा बीता होगा कि कपड़े गीले होने से रेनु जाग गई। गुड्डू ने खुलकर पेशाब किया था, लेकिन फिर भी सोई हुई थी। रेनु ने उसका लंगोट बदला। गीली जगह पर और चादर डालकर उसे सूखी जगह लिटाया और फ़ोन करके मनमोहन को सूचित किया। मनमोहन ने तत्काल डॉ. वर्मा को फ़ोन मिलाया और धन्यवाद देते हुए कहा - ‘वृंदा, ऑय एम प्राउड ऑफ यू। फ़ोन पर बात सुनकर ही बीमारी का इलाज कर दिया।’

‘इस तरह की स्थितियों से अक्सर दो-चार होना पड़ता है हमें। ..... अच्छा, एक बात बताओ, क्या तुम्हारे यहाँ बच्चे के जन्म पर ‘छठी पूजा’ होती है?’

‘वृंदा, फ्रैंकली स्पीकिंग, मुझे तो इस बारे में कुछ पता नहीं। मंजरी दीदी से पूछकर ही बता सकता हूँ।’

‘मुझे बताना। यदि होती है तो मैं ‘छठी पूजा’ पर आऊँगी, वरना आज शाम को आती हूँ।’

‘अहोभाग्य हमारा! हमारे घर में गुड्डू के कारण तुम्हारे चरण पड़ेंगे।’

‘गुड्डू को मैंने जब अपनी बेटी मान लिया है तो तुम्हारे लिये चाहे नहीं, उसके लिए तो मैं आया ही करूँगी।...... दीदी से पूछकर मुझे बताना।’

‘मैं अभी दीदी से पूछकर तुम्हें बताता हूँ।’

तत्पश्चात् मनमोहन ने मंजरी से ‘छठी पूजा’ के सम्बन्ध में पूछा। मंजरी को मनमोहन के जन्म पर ‘छठी पूजा’ की याद थी, किन्तु उसे यह नहीं पता था कि ‘छठी पूजा’ लड़की के जन्म पर करते हैं या नहीं। तब मनमोहन ने कहा - ‘दीदी, हमारे लिए तो गुड्डू के जन्म की ख़ुशी लड़के के जन्म की ख़ुशी से भी बढ़कर है। हम अवश्य ‘छठी पूजा’ करवाएँगे।’

तदनुसार उसने डॉ. वर्मा को अपने निर्णय से अवगत करवा दिया।

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