Vo Pehli Baarish - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

वो पहली बारिश - भाग 4

"क्या मुसीबत है ये, जिसके लिए यहाँ वाले प्रोजेक्ट में आई, वो तो मेरे आते ही, मुझे छोड़ कर भाग गया । अगर मुझे पता होता तो ऐसी बेवकूफी कभी नहीं करती", ऑटो से उतरती हुई निया, खुद से बोल रही होती है।




वो गेट से अंदर पहुंचती ही है की उसे पता लगता है की यहाँ उसके पुराने ऑफिस वाला कार्ड नहीं चलेगा।




"अरे भैया.. देखो ना, असली कार्ड है, ऑफिस तो सेम ही है ना, खोल दो अभी, वरना मुझे लेट हो जाएगा, मैं आज ही नई आई हूं", निया गार्ड भैया से कहती है, पर अपनी नौकरी के लिए फिक्रमंद भैया उसे मेल करवाने के लिए कहते है।




"अरे.. अरे क्या हो गया भैया, क्या कर दिया मैडम ने जो आप इन्हे यहाँ रोक कर खड़े हुए हो", बाहर से आते हुए एक व्यक्ति ने पूछा।




गार्ड ने जब उन्हें मामला समझाया, तो उन्होंने निया से बात की, कि उसे कौन से डिपार्टमेंट में जाना है, बात करने पे दोनो को पता लगा कि वो सेम ही डिपार्टमेंट के है, तो वो निया की एंट्री करा देते है।




"हाय.. आई एम निया... ", अंदर पहुंचते ही निया ने हाथ बढ़ाते हुए बोला।




"हाय.. आई एम सुनील.. ", पीली कमीज और काली पैंट पहने, हल्के सफ़ेद हो चुके बालों के साथ बड़े चकोर चेहरे वाले, निया से थोड़े बड़ी उमर के उस व्यक्ति ने भी विनम्रता से हाथ मिलाते हुए कहा। "मिलकर अच्छा लगा, वैसे मैं आपको बता ही देता हूं की मैं ही आपका मैनेजर होगा, और आप काम करने के लिए कमर कस लीजिए, यहाँ मुकाबला तगड़ा है, हम एक भी दिन बरबाद नहीं कर सकते।" सुनील ने आगे जोड़ते हुए कहा, और निया को उसकी नई टीम से मिलाने ले गया।




वो दोनो गेट से दूसरी बिल्डिंग में राइट की लिफ्ट लेकर सेकंड फ्लोर पे पहुंचते ही है, की तभी सुनील के पास आ कर एक लड़का बोला,


"सर.. वो जो नए जने ने आना था ना आज, उसने मना कर दिया है।"




"क्या कह रहे हो, ये आगे तो जा रही है वो", निया जो सुनील के कहने पे आगे बढ़ गई थी, उसकी और इशारा करते हुए सुनील बोले।




"ये..?? एक लड़के ने आना था आज तो, वो नई लड़की तो पिछले हफ्ते ही माना कर चुकी है।"




"अरे तो क्या पता इसने अपना मन बदल लिया हो, और इसलिए ये लौट आई हो।"




"हां क्यों नहीं, ऐसे पागलों में काम करने का मन तो करेगा ही उसका।" वो लड़का धीरे से बोला और आगे बढ़ दिया।




निया जो एक डेस्क को बड़े ध्यान से देख रही थी, उसकी तरफ़ बढ़ कर वो लड़का उसके पूछता है,


"एक्सक्यूज मी।"




"हां.." निया उसकी ओर मुड़ते हुए बोली।




"आप.. आई एम सॉरी.. पर अपना नेम बताएंगे.. मैं


एक्चुअली थोड़ा कन्फ्यूज हूं।"




"हां.. मैं.. तुम?" एकदम से उस लड़के के पीछे आए ध्रुव को देख कर निया ने हल्की तेज़ आवाज़ में बोला।




"हां.. मैं.. और ये मेरा डेस्क है, जहां तुम बिना परमिशन के ताका झाकी कर रही हो।", ध्रुव ने अपनी आंखें बड़ी कर निया जिस डेस्क के पास खड़ी थी, उधर देखते हुए बोला।




"पर तुम.. पर ये कैसे.. इसका तो आईकार्ड भी हमसे अलग है.. " निया उस दूसरे लड़के को ये बोल रही थी, की इतने का उसका ध्यान दूसरे लड़के के आईकार्ड पे गया। "वीटी यहाँ नहीं बैठती क्या?", वो एकदम से पूछती है।




"क्या कहा वीटी?? सुनील, ये आप किसे ले आए है।" वो लड़का सुनील को बुलाते हुए बोला।




"निया.. निया तुम यहाँ क्या कर रही हो??", अंडाकार चेहरे, पीछे की ओर नीचे बंधे हुए बाल, बीच की मांग, और आगे आई हुई कुछ लटे के साथ काला शर्ग, व्हाइट टॉप और काली पैंट पहने हुए एक महिला निया की तरफ़ आते हुए बोली।


"नीतू आप आगे चलिए ना, हम आते है।", वो अपने साथ खड़ी एक और संतरी प्लेन सूट और व्हाइट स्टॉल पहने महिला से बोली।




नीतू के आगे बढ़ते ही, निया बोली, " चंचल.. इन्होंने कहा की हमारा ऑफिस यहां है, तो इसलिए मैं.."




"सुनील, तुमने ये क्या नया शुरू किया है?", चंचल सुनील की ओर देखते हुए पूछती है।




"देखो मैंने.. " सुनील अभी बोल ही रहे होते है, की चंचल उन्हें रुकने का इशारा करती है।




"तुम अब वीटी के ऑफिस में नहीं हो, की जहाँ चाहा वहाँ घूम लिया, ये ज़रोर का ऑफिस है, यहाँ जी.टी जैसे हमारे दुश्मन कंपनी भी होंगी, तो ज़रा ध्यान से.. किसी से ज्यादा दोस्ती करने की जरूरत नहीं है।" चंचल ने सक्त से लहजे में निया को कहा।




"ओके", निया ने गर्दन नीचे रखते हुए कहा।




"यहाँ से सीधा जाओगी, तो तुम्हे हमारी टीम मिल जाएगी, यानी की इस कंपनी की लेफ्ट विंग.. याद रखना ये, मुझे तुम आगे से यहाँ दिखनी नहीं चाहिए। " चंचल ने आगे बोला।




"येस मै’म", ये कहते हुए निया लेफ्ट विंग की ओर बढ़ दी।




ज़रोर एक इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स मैन्युफैक्चर और बेचने वाली कंपनी है। वी. टी और जी. टी जैसी कंपनियां इन्हे आईटी की सर्विसेज देती है, जिनमें बात अगर सिर्फ ध्रुव और निया की टीम के काम की करे, तो इनका काम डेटा को मैनेज कर ऐसे बनाने का था, की ज़रोर को अपना बिज़नेस बढ़ाने में मदद मिले।