Jivan ka Ganit - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

जीवन का गणित - भाग-3

भाग - 3


"पहाड़ों पर रात बड़ी जल्दी हो जाती है दस बजते ना बजते ऐसा लगने लगता है जैसे आधी रात हो गई हो।" वैभव ने कहा तो अवंतिका मुस्कुराने लगी।

"तू है तो जग रही हूं नहीं तो नौ बजे तक बिस्तर में पहुंचकर विथ इन टेन मिनिट्स सो जाती हूं।" कहकर अवंतिका खुद ही अपने ऊपर हंस पड़ी।

"रियली?" वैभव ने अचंभे से पूछा तो अवंतिका ने हंसते हुए सिर हिलाकर हामी भरी।

"याद है मां हम देहरादून में थे तो कभी ग्यारह बजे से पहले तो डिनर भी नहीं करते थे।" वैभव पुरानी बात याद करके खुश हो रहा था।

"वहां तो हम मूवी भी जाते थे, यहां ढंग के थियेटर तक नहीं हैं।"अवंतिका ने अफ़सोस जताते हुए कहा।

"मगर मां देहरादून भी अब पहले वाला कहां है? इतनी भीड़ भाड़ बढ़ गई हैं वहां पर,अब वो मज़ा नहीं आता जो पहले आता था। अब जाकर लगता नहीं वही शहर है।"

वैभव पुराने दिनों की बातों से अपने बचपन में पहुंच गया था।

अवंतिका उसे देखकर मुस्कुरा भर दी। हवा में ठंडक बढ़ने लगी थी अवंतिका अब तक ऑफिस के कपड़ों में ही थी,अपनी साड़ी का पल्लू घुमाकर दोनों कंधों पर ओढ़ लिया।

"अरे आपको सर्दी लग रही है?" वैभव ने चौंक कर पूछा।

"हां, यहां की रातें बहुत ठंडी होती है ना! दिन में सर्दी नहीं लगती मगर सूरज के ढलते ही…" आगे की बात बोलती तब तक वैभव उठ खड़ा हुआ,

"चलिए,अब अंदर चलना चाहिए थकी हुई हैं,आप रेस्ट कीजिए।" मां की ओर हाथ बढ़ाया तो अवंतिका ने स्नेह भरी मुस्कान के साथ उसके दोनों हाथ पकड़ लिए और उसके सहारे उठ खड़ी हुई।

बाहर और अंदर के तापमान में काफ़ी अंतर था।

"तू भी रेस्ट कर बिट्टू थक गया होगा!" हॉल से अपने कमरे की ओर बढ़ती हुई अवंतिका ने वैभव से कहा।

"जी मां, आपको भी तो ऑफिस जाना होगा!"

दोनों अपने अपने कमरों में चले गए। नीतू पहले ही अपने कमरे में जा चुकी थी।

अवंतिका दिनभर की ऑफिस के कामों से थकी थी और इतनी देर तक जागने की आदत भी छूट अब चुकी थी, उसे बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई।

पर वैभव अब भी अपने कमरे में जग रहा था। लैपटॉप ऑन करके अपने दिनभर के मेल चेक किए फिर इंस्टाग्राम पर पेज स्क्रॉल करने लगा। दो चार पोस्ट लाइक करता हुआ आगे बढ़ा। अगली पोस्ट देख ठिठक गया, आयुषी ने फोटोज शेयर किए थे। एक एक फ़ोटो देखने लगा। दो तीन फोटोज़ के बाद समझ आने लगा कि उसके छोटे चाचा के बेटे का बर्थ डे था। उसी की पार्टी के फ़ोटो थे।

शायद इसी के लिए उसे रोक रही थी। पर उसे मां के पास आना था तो वह उसके साथ कैसे रुक सकता था।

"पहले बताती तो मैं मॉम से बात ही ना करता!अब बोल कर ना जाऊं तो वो बहुत उदास हो जायेगी!"

वैभव ने अपनी लाचारी जताई।

"तुमने कब बताया था कि तुम जा रहे हो?" आयुषी ने गुस्से से भरकर उसकी ओर देखा।

"चल इस बार नहीं अगली बार किसी दूसरे कज़िन के बर्थडे पर चलूंगा तेरे साथ, तेरे यहां तो हर महीने किसी न किसी का बर्थडे नहीं तो मैरिज एनिवर्सरी होती है!" वैभव ने आयुषी को चिढ़ाने के लिए बोला था।

उसकी बात पर आयुषी खिलखिलाकर हंस पड़ी,"हर महीने नहीं,किसी महीने में दो तो किसी में चार चार इवेंट्स होते हैं मेरे घर में।"

आयुषी की तस्वीर आते ही बड़ी सी मुस्कान फैल गई वैभव के चेहरे पर।

दूध सा उजला रंग बड़ी-बड़ी गहरी आंखें जिन्हे कुदरत ने काली किनारी से बांधकर ही भेजा था शायद किसी बुरी नज़र से बचाने के लिए। लंबी घनेरी पलकें, सुतवा नाक और हमेशा शरारत से मुस्कुराते होंठ। ऐसा लगता था कि इसके दिमाग में हर समय कोई ना कोई शरारत मूर्त रूप ले रही हो।

यूं तो आयुषी अपने माता पिता की इकलौती संतान है। मगर चचेरे तहेरे, सब मिलाकर दस बारह भाई बहन हैं। घर में दादी-बाबा के साथ दो चाचा-चाची,एक बड़े पापा-मम्मी,और उसके मम्मी-पापा।

एडमिशन के टाइम पहली बार मिली थी आयुषी। तब हल्की हाय हेलो हुई थी,पर जब क्लास स्टार्ट हुई तब उसके साथ वाली सीट पर आकर बैठने वालों में पहली आयुषी ही थी। उसके हंसमुख स्वभाव के कारण दोनों में जल्दी ही दोस्ती हो गई।

पिछले दो साल से उनका रिश्ता दोस्ती से कुछ आगे बढ़ चुका था। पर आगे कैरियर को लेकर दोनों के ही सपने थे उनको पूरा करने से पहले वह किसी और चीज़ के बारे सोचना नहीं चाहते थे।

"हाय" मैसेज टोन के साथ आयुषी का मैसेज पॉप अप हुआ।

वैभव ने तुरंत रिप्लाई किया,"हाय, व्हाट्स अप?"

"ऑल गुड, तुम पहुंच गए मम्मा के पास?"

"हां,पांच बजे तक घर भी पहुंच गया था।"

"कैसी हैं आंटी?"

"अच्छी हैं!"

"तुम कहो पार्टी कैसी रही?"

"बहुत अच्छी!"

"फिलहाल मां सो गई हैं। ओके,कल कॉल करता हूं!"

"बाय"

"बाय"

छोटी सी चैट के बाद वैभव ऑफ लाइन तो हो गया मगर नींद उसकी आँखों से अब भी कोसों दूर थी। आयुषी उसके ख्यालों में घूम रही थी। क्या उसे माँ से उसके बारे में बात करनी चाहिए? पर क्या बात करने लायक कुछ है उनके बीच। पहले आयुषी से बात कर ले फिर माँ को बताएगा, पर माँ को बुरा नहीं लगेगा कि मैंने उसे पहले नहीं बताया। पर अभी उनके बीच ऐसा है क्या जो वह माँ को बता दे, जो कुछ भी है जितना भी है उतना ही बता देगा… उसने कभी भी माँ से कुछ नहीं छुपाया है। माँ उसे कभी नहीं रोकती है कुछ भी करने से तो उसे भी बता ही देना चाहिए।

इसी सब में उसको नींद पता नहीं कब आई।