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हीरोइन - 15

नई सदी में फ़िल्म कलाकारों की मानसिकता में एक बड़ा बदलाव ये आया कि कलाकार अपनी भूमिका और उसमें उनके अभिनय के असर पर ज़्यादा ध्यान देने लगे।
उनके लिए ये महत्वपूर्ण न रहा कि रोल हीरोइन का है, खलनायिका का है, कॉमेडी है,या सपोर्टिंग है।
एक साथ ही नायिका और सह नायिका,या खलनायिका का काम करने में भी उन्हें ऐतराज़ न रहा।
शरत चन्द्र के उपन्यास "परिणीता" के फिल्मांकन से हिंदी फ़िल्मों में कदम रखने वाली विद्या बालन इससे पहले दक्षिण की फ़िल्में करने के साथ बांग्ला में भी काम कर चुकी थीं।
उन्हें लोगों ने हम पांच, लगे रहो मुन्ना भाई,गुरु, हे बेबी, भूल भुलैया और हल्ला बोल जैसी फ़िल्मों में देखा, जहां फ़िल्म चली या न चली विद्या के अभिनय की सराहना होती रही।
इस दौर में हिंदी सिनेमा में नायिकाओं की एक बड़ी खेप सक्रिय थी। हर महीने, और कभी कभी तो हर पखवाड़े कोई न कोई नई अभिनेत्री मैदान में आ रही थी।
मंहगी और बड़ी फ़िल्में पिट रही थीं, और अच्छी स्क्रिप्ट पर नए लोगों को लेकर लोग अच्छा कमा रहे थे।
सेलिना जेटली, आयशा टाकिया, सोनम कपूर, असिन, प्राची देसाई, श्रुति हासन, जैकलीन फर्नांडिस और अनुष्का शर्मा जैसी नायिकाओं ने अपने को सिद्ध किया और दर्शकों का ध्यान खींचा।
इनमें से अनुष्का शर्मा की फ़िल्मों पर दृष्टिपात करें तो ये ये साफ़ दिखता था कि व्यावसायिक सफ़लता के साथ वे एक बड़ी हीरोइन बनने की राह पर हैं। उन्हें कई फिल्मी पुरस्कार भी मिल चुके थे।
शाहरुख खान के साथ आई "रब ने बना दी जोड़ी" तो उनकी बड़ी फिल्म थी ही, "बैंड बाजा बारात, जब तक है जान,दिल धड़कने दो, ऐ दिल है मुश्किल,सुल्तान और पी के" जैसी लोकप्रिय,भव्य फ़िल्मों में अनुष्का को पर्याप्त सराहना मिली थी।
इधर क्रिकेट सुपर स्टार विराट कोहली से उनके इश्क़ के चर्चे भी मीडिया में उन्हें झूला झुला रहे थे।
लेकिन फ़िल्म दर्शकों का मिज़ाज शायद केवल इतने से ही नहीं बहलता। उन्हें लगातार नए और असरदार किरदारों के चित्रांकन देखने की वांछना बनी रहती है।
विद्या बालन अभिनीत फ़िल्म "डर्टी पिक्चर" ने तहलका मचा दिया,जो दक्षिण की स्टार सिल्क स्मिता के जीवन पर आधारित थी। इस फ़िल्म ने हर तीसरे निर्माता को किसी बायोपिक पर काम करने के लिए जैसे प्रेरित कर दिया।
फ़िल्म ने प्रशंसा और पुरस्कार, दोनों जम कर बटोरे। किस्मत कनेक्शन और "पा" ने भी लोगों का ध्यान खींचा।
ऐसा लगा कि विद्या और अनुष्का बराबरी पर आ गई हैं। दोनों की लोकप्रियता भी चरम पर थी और दर्शकों के बीच उनकी स्वीकार्यता भी। अनुष्का ने कई बड़ी फ़िल्मों में काम किया और सराहना पाई। वरुण धवन के साथ आई उनकी फ़िल्म सुई धागा भी एक साधारण किरदारों वाली दिलचस्प फ़िल्म थी जिसमें लगभग ग्लैमर विहीन भूमिका निभा कर अनुष्का ने सिद्ध किया कि वो एक बेहतरीन अभिनेत्री भी हैं।
लेकिन विद्या बालन का सिक्का भी फ़िल्म बाजार में बहुत खनक के साथ चल रहा था। उनकी फ़िल्म डर्टी पिक्चर के बाद आई "कहानी" ने अभिनय के ऐसे झंडे गाढ़े कि कहानी कुछ और ही हो गई।
"तुम्हारी सुलु" फ़िल्म के रिलीज़ होने के समय दर्शक इस उम्मीद में सिनेमा घरों में घुस रहे थे कि वो समय की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री को देखने जा रहे हैं। अंतरिक्ष अभियान को दर्शाने वाली अक्षय कुमार के साथ आई उनकी फ़िल्म "मिशन मंगल" भी एक जबरदस्त फ़िल्म थी जिसके कथानक की नवीनता को दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया।
फिल्मी दुनिया में दर्शकों की अदालत सबसे बड़ी सुप्रीम अदालत है।
लिहाज़ा विद्या बालन भी "नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी,वैजयंती माला, साधना, शर्मिला टैगोर, हेमा मालिनी, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित,काजोल, ऐश्वर्या राय, रानी मुखर्जी, प्रियंका चोपड़ा" के साथ हिंदी फ़िल्मों की हीरोइनों के "नंबर वन क्लब" का नया नाम बन गईं।