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कहानी प्यार कि - 19


" चलो बेटा ! बारात का समय हो गया है " जगदीशचंद्र ने हरदेव के पास आते हुए कहा..

" हा चलिए पापा ..."
हरदेव जाके अपनी घोड़ी पर चढ़ गया...

" चलिए ... बजाइए....." जगदीशचंद्र ने कहा और बैंड वालो ने बजाना शुरू किया...
सभी लोग जूम जूम कर नाच रहे थे.. जगदीशचंद्र भी खुल कर नाच रहे थे.. उनके बेटे कि जो शादी थी...

" बारात यहां से निकल चुकी है " कबीर ने फोन मे कहा..

" ठीक है कबीर .. तुम हरदेव पर नजर रखना और उसके पीछे ही रहना ... " अनिरूद्ध ने कहा और फोन काट दिया...

" बारात निकल चुकी है ..." अनिरूद्ध ने सब को ब्लूटूथ डिवाइस से बताया.. जिसे सब ने कानो में लगाया हुआ था ताकि वो सब एक दूसरे के कॉन्टेक्ट मे रह सके...

सिंघानिया मेंशन मे बारात के स्वागत कि तैयारियां शुरू हो चुकी थी... आज तो बड़े बड़े बिजनेसमैन और राजनेता भी अतिथि बनकर आए हुए थे... मीडिया भी आज इस विवाह में शामिल होने वाली थी..

" लगता है बारात आ गई चलिए ..." रागिनी जी ने राजेश जी को बुलाते हुए कहा...

रागिनी जी राजेश जी मोहित और परिवार के और बड़े लोग दरवाजे पर बारात का स्वागत करने के लिए खड़े हो गए...

बारात के अंदर आते ही रागिनी जी ने हरदेव कि आरती उतारी और तिलक किया और फिर जगदीशचंद्र त्रिपाठी को भी तिलक करके हार पहनाकर उनका स्वागत किया...

उन सब के लिए नाश्ते का इंतजाम किया हुआ था तो सब नाश्ते पानी मे जुड़ गए ..

संजना और किंजल तैयार हो गई थी...
संजना ने वही पिंक वाला शादी का जोड़ा पहना था.. आज वो इतनी सुन्दर लग रही थी .. इतनी सुन्दर लग रही थी कि पूछो ही मत ... गुलाब कि कली सी कोमल .. चांदनी सी खूबसूरत .. जैसे कोई चांद का टुकड़ा ही जमी पर आ गया हो... किंजल भी बादामी रंग के लेहेंगे मे बहुत प्यारी लग रही थी... वो दोनो पार्लर से बाहर आई ..

" अब टाईम आ गया है संजू .. तू फोन लगा उस हरदेव को ..." किंजल संजना को फोन देती हुई बोली..

" हा .. " संजना ने इतना बोलकर हरदेव को फोन लगा दिया.. उधर हरदेव नास्ता कर रहा था .. उसने जैसे देखा की संजना का फोन आ रहा है उसने तुरंत कोल उठा लिया..और वहा से थोड़ा दूर आ गया ...

" हेलो ..." हरदेव ने फोन उठाते हुए कहा..

" हरदेव जी आप आ गए क्या ..? "

" हा हम यहां पहुंच गए है पर आप ने अभी इस वक्त कोल किया कुछ प्रॉब्लम है क्या ? "

" नहीं नहीं .. एसी कोई बात नहीं है ...वो हम पार्लर मे आए थे अब बस वही आ रहे है ..."

" ओह.. जरा जल्दी आइए .. मे आपका इंतजार कर रहा हूं..."

" हा पर वो.. आपसे कुछ कहना था..."

" हा कहिए ना ..."

" एसे नहीं ...."

" तो फिर कैसे..? "

" वो ..."

" घबराइए मत संजना जी .. बोलिए ना ..."

" वो में ये कह रही थी कि क्या आप मुझसे मिल सकते है ? "

" अभी ..? "

" हा अभी .. आप से बहुत ही जरूरी बात करनी है ..."

" कुछ हुआ है क्या ..? आप एसे इस वक्त मुझे बुला रही है ...मतलब इस वक्त एसे कैसे मे आ सकता हूं "

" आप ये समझिए कि कुछ तो हुआ है .. और जो भी हुआ है इससे हमारा रिश्ता जरूर बदलने वाला है .. और मे चाहती हूं कि ये जो हुआ है उसे में आपको आपकी आंखो में देखते हुए बताना चाहती हूं और वो भी हमारी शादी से पहले.." संजना बहुत प्यार से ये सब बोली..

हरदेव ये सुनकर खुश हो गया..

" ठीक है मे आता हूं ... पर मुझे आना कहा है ? "

" हमारे घर के पीछे जो स्टोर रूम है वहा आ जाइए .. वो क्या है ना की वहीं एक जगह है जहां आज कोई नहीं होगा.. "

" हा ये भी सही है ... मे अभी आता हूं "

" हा ध्यान से ..और किसी को पता ना चले एसे आइएगा..."

" हा ..."
इतना कहकर संजना ने कोल कट कर दिया..

" वाह ! क्या बॉटल मे उतारा है तूने उस हरदेव को ..! इंप्रेसिव .."

" या बेब्स ..." संजना ने कहा और दोनो हसने लगे...

" चलो अब जल्दी चलो ..." संजना और किंजल दोनो घर कि तरफ पीछे के रास्ते से जाने लगी...

हरदेव जैसे ही वहा से निकला .. कबीर भी उसके पीछे जाने लगा...

संजना और किंजल पीछे के दरवाजे से स्टोर रूम तरफ जाने लगी...
" किंजल तू वहा जाके छुप जा ... " संजना ने कहा..

" हा ..."

फिर संजना स्टोर रूम मे हरदेव का वेट करने लगी...
" मे स्टोर रूम मे पहुंच चुकी हूं " संजना ने सबको खबर पहुंचा दी ...

संजना पीछे मुड़ कर एक जगह खड़ी हो गई... हरदेव जैसे ही वहा आया... उसने संजना को वहा खड़ा हुआ देखा...
" संजना जी ..."

संजना ये सुनते ही हरदेव कि तरफ मुड़ी...
संजना को देखकर हरदेव जैसे उसकी खूबसूरती मे खो ही गया....
संजना धीरे धीरे हरदेव के करीब आई ...
हरदेव अभी भी संजना को देख रहा था...

" हरदेव जी ...! "
संजना ने कहा पर हरदेव ने कोई जवाब नहीं दिया...
" हरदेव जी ..." संजना ने चुटकी बजाते हुए फिर से कहा..
तब हरदेव होंश मे आया..
" हा..."

" क्या हुआ ...? "

" वो आप बड़ी खूबसूरत लग रही है "

" थैंक यू .." संजना मुस्कुराती हुई बोली..

" वो आप मुझसे कुछ कहना चाहती थी ...? "

" हा .. वो में यह कहना चाहती थी कि ... "

" क्या ...? "

संजना हरदेव के और करीब आने लगी.. हरदेव कि धड़कने तेज होने लगी थी...

" मे ये कहना चाहती थी कि ..." संजना हरदेव कि आंखो मे आंख मिलाकर बोल रही थी...

हरदेव भी उसकी आंखो मे खोता जा रहा था...
जैसे ही संजना को वीक मोमेंट महसूस हुई उसने अपने हाथ में पीछे छुपाया हुआ रुमाल निकाला और हरदेव को सूंघा दिया जिसमे क्लोरोफॉर्म डाला हुआ था...

संजना जोर से रुमाल हरदेव के मुंह पर दबाने लगी ... हरदेव उसका हाथ पकड़ कर छुड़ाने कि कोशिश करने लगा .. पर छुड़ा नहीं पाया और बेहोश होने लगा..
और तभी सौरभ वहा आ गया जो वहीं स्टोर रूम मे छिपा हुआ था...
सौरभ ने उसे पकड़ लिया...
किंजल भी वहा आ गई .. सौरभ ने उसे पकड़ कर कुर्सी पर बैठा दिया ..

" अनिरूद्ध आजा भाई ..." सौरभ ने अनिरूद्ध को मेसेज पहुंचा दिया...

थोड़ी देर में अनिरूद्ध भी वहा पहुंच गया...

" सब ठीक तो है ना कोई प्रॉब्लम नहीं हुई ना ...? "

" नहीं सब ठीक है अनिरूद्ध ..." संजना ने शांति से कहा..

" उसने कोई बत्तमीजी तो नहीं कि ना तुम्हारे साथ ? "

" नहीं ... सब प्लान के मुताबिक ही हुआ है .."

" अब जल्दी तुम ये हरदेव के कपड़े पहन कर आ जाओ..." सौरभ ने अनिरूद्ध के पास जाते हुए कहा..

" हा ... संजना किंजल तुम दोनों जाओ .. सब तुम्हारी राह देख रहे है.. हम अभी आते है ... इस हरदेव को ठिकाने भी लगाना है ..." अनिरूद्ध ने हरदेव कि तरफ देखते हुए कहा।

अनिरूद्ध ने अभी संजना पर गौर नहीं किया था...संजना बड़ी आस से उसकी तरफ देख रही थी पर अनिरूद्ध का माइंड अभी हरदेव के बारे में ही सोच रहा था...

" अरे ! जाओ ... " अनिरूद्ध ने संजना को अभी भी वहा खड़े देखकर कहा...तो संजना मुंह बिगाड़कर वहा से चली गई...

" ये शादी का मूहर्त शुरू होने वाला है और ये हरदेव कहा चला गया...? " जगदीशचंद्र ने हरदेव के कजिन भाई से पूछा..

" पता नहीं अंकल मैंने भी उसे कहीं देखा नहीं "

" ये लड़का भी ना ...सुनो तुम सब जाके देखो तो .. " जगदीशचंद्र ने अपने कुछ आदमी को हरदेव को ढूंढने भेजा...

तभी मंडप मे पंडितजी ने दूल्हे को आने के लिए कहा...

" अरे ! कहा रह गया ये.. अपना मन तो नहीं बदल लिया ना ..? नहीं नहीं एसा नहीं हो सकता ... तो फिर किधर गया..." जगदीशचंद्र टेंशन मे बोले जा रहे थे और नजर घुमाके हरदेव को ढूंढ रहे थे...

" लो आ गया दूल्हा ..." पीछे से कोई बोला..

तो जगदीशचंद्र ने देखा तो उनकी जान मे जान आई ... हरदेव कि शेरवानी पहन कर अनिरूद्ध मंडप में आ चुका था... और माथे पर सेहरा बांधा हुआ था.. अनिरूद्ध सीधा किसी से मिले बिना मंडप मे जाकर बैठ गया..

थोड़ी देर बाद पंडितजी ने दुल्हन को बुलाने के लिए कहा...
और ये सुनते ही सब का ध्यान सीढ़ियों कि तरफ गया .. संजना मोहित और राघव का एक एक हाथ थामे खड़ी हुई थी... और पीछे किंजल और मीरा हाथ मे फूलों कि थाली लिए हुए थी...

मोहित और राघव संजना का हाथ थामे धीरे धीरे नीचे उतर रहे थे.. और किंजल और मीरा संजना पर फूलों कि बरसात कर रही थी...
इस नजारे ने सब का मन मोह लिया था... और अनिरूद्ध ने जब संजना को आते हुए देखा तो .. उसके तो होश ही उड़ गए...
उसका तो मन हो रहा था कि अभी वो अपना सेहरा हटाए और संजना के पास जाकर उसे अपनी गोद में उठा ले ... पर खैर वो भी क्या करता .. ! उसके पास और कोई ऑप्शन भी तो नहीं था... एसे ही उसे अपनी सपनो कि राजकुमारी को देखना पड़ रहा था...

जो ख्वाब उसने देखे थे ... आज वो सच हो रहे थे .. संजना उसी के कहे पिंक लहंगे में उसके पास आ रही थी...
" ये कोई सपना तो नहीं है ना ..." अनिरूद्ध ने आंखे मिंच कर फिर से देखा और मन में कहा...

" नहीं ये सपना नहीं बिल्कुल सच है ..." पीछे खड़ा सौरभ अनिरूद्ध की बात सुनकर बोला...

और ये सुनकर अनिरूद्ध मुस्कुराने लगा..

अनिरूद्ध खड़ा हो गया... संजना जैसे ही मंडप के पास पहुंची .. अनिरूद्ध ने अपना हाथ आगे बढाया...

मोहित ने संजना का हाथ अनिरूद्ध के हाथो मे रख दिया... और ये देखकर सभी लोग तालिया बजाने लगे...
संजना अनिरूद्ध का हाथ पकड़कर मंडप मे बैठ गई... और पंडितजी ने आगे कि विधि शुरू कर दी...

" ये पिंक लहंगा... खुली जुल्फे... आंखो मे काजल ये शर्माता चेहरा.. उफ़...! एसे ही जान मांग लेती.. इतने इंतजाम क्यों किए... मोहतरमा..! " अनिरूद्ध धीरे से संजना के कानो मे उसकी तारीफ करता हुआ बोला...

पर संजना ने कुछ जवाब नहीं दिया...
" अरे ! कुछ कहो तो सही ..."

" पूजा मे ध्यान दो... बातो मे नहीं..." संजना ने धीरे से कहा...

" तुम इतनी ख़ूबसूरत लग रही हो कि मेरा ध्यान तुम पर से हट ही नहीं रहा .. एसेमे में पूजा मे ध्यान कैसे दू ..बोलो ..! "

" ओह फाइनली तुम्हारा ध्यान मेरे पर आया तो सही ... ! "

" मेरा ध्यान हमेशा तुम्हारे पर ही होता है .. संजू .."

" हा जैसे पीछे स्टोर रूम मे तो में जैसे पुराने कपड़े पहनकर आई थी ना ..? इसीलिए तुम्हारा ध्यान नहीं गया ना मुझ पर ..? " संजना अनिरूद्ध को टोंट देती हुई बोली..

तब अनिरूद्ध को समझ में आया कि उस वक्त अनिरूद्ध ने संजना पर ध्यान नहीं दिया था कि वो उसके फेवरेट लहंगे में रेडी होकर आई थी..

" ओह... अब समझ आया कि तुम एसे बात क्यों कर रही हो...! तुम लड़कियो को तो कोई भी सिट्यूएशन मे अपनी तारीफ ही सुननी होती है.."

" क्या मतलब तुम्हारा ? "

" मतलब यही कि उस वक्त मेरा पूरा ध्यान उस हरदेव पर था.. एक तो मुझे तुम्हारी फिक्र हो रही थी कि कई उसने तुम्हारे साथ कुछ किया तो नहीं और बस इसीलिए मेरा पूरा फोकस हमारे प्लान पर था..."

" तो अभी तुम्हरा फोकस किस पर है ? "

" अभी मेरा पूरा फोकस हमारी शादी पर है जो अभी हो रही है ... इसीलिए प्लीज़ तुम भी अपनी नाराज़गी छोड़ दो ना..."

" मे कोई तुमसे नाराज नहीं हूं.. मे तो बस एसे ही तुम्हे परेशान कर रही थी..."

सौरभ दोनो को कब से इस तरह खुसुरपुसुर करता देख रहा था ... उसने किंजल को इशारा किया ...

किंजल भी समझ गई .. और संजना के पास गई और उसकी चुनरी ठीक करने लगी..
" तुम दोनो थोड़ी देर चुप नहीं रह सकते क्या ..? शादी के बाद तुम दोनो के पास टाइम ही टाईम होगा .. इसीलिए अभी बातो पर नहीं रस्मो पर ध्यान दो .. नहीं तो किसी को शक हो जाएगा ..."
किंजल चुनरी ठीक करती हुई धीरे से बोली...

ये सुनकर दोनो चुप हो गए और पंडितजी के कहे मुताबिक करने लगे...

इस तरफ हरदेव को धीरे धीरे होश आने लगा था... उसने धीमे धीमे अपनी आंखे खोली...
तभी उसे अहसास हुआ कि उसे तो रस्सी से बांध दिया गया है ..

हरदेव के दोनो हाथ कुर्सी के पीछे बांधे हुए थे... हरदेव कि आंखो मे खून उतर आया...
" ये तुमने अच्छा नहीं किया संजना... अच्छा नहीं किया..." वो गुस्से में जोर से चिल्लाया...

" अब तक तो शादी का मूहर्त शुरू हो गया होगा... और मेरे कपड़े...? मैंने तो शेरवानी पहनी हुई थी .. ये किसके कपड़े मैंने पहने है... ? संजना... तुमने ये जो गेम खेला है ना मेरे साथ उसका फल तो तुम्हे भुगतना पड़ेगा... " हरदेव ने अपनी मुठ्ठी कस ली थी गुस्से मै...

" अब तुम मेरा वो रूप देखोगी जो तुमने सपने में भी नहीं सोचा होगा.. ये अच्छे वाले हरदेव का तुमने अच्छा फायदा उठाया है ... अब मे बताऊंगा तूझे की फायदा उठाना किसे कहते है ...! " हरदेव इतना बोलकर रस्सी खोलने कि कोशिश करने लगा...

" आप दोनो वरमाला के लिए खड़े हो जाइए..." पंडितजी ने कहा..

संजना और अनिरूद्ध वरमाला के लिए खड़े हुए और फिर दोनो ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई..

फिर आगे कि विधि शुरू हो गई...

इस तरफ हरदेव रस्सी खोलने कि पूरी कोशिश कर रहा था.. तभी उसे स्टोर रूम मे रखी हुई पुरानी काच कि डिश दिखाई दी.. वो जैसे तैसे करके कुर्सी को पैरो से पीछे धकेलते हुए टेबल कि तरफ आया और उसने पीछे बांधे हाथ से वो डिश गिरा दी.. और डिश के टुकड़े टुकड़े हो गए..
फिर उसने कुर्सी गिरा दी और खुद कुर्सी के साथ नीचे गिर गया... उसने काच का टुकड़ा लिया और उससे रस्सी खोलने लगा... काच का टुकड़ा उसके हाथ मे भी लग गया और उससे खून भी बहने लगा पर वो रुका नहीं...

सब अभी शादी देखने मे बिज़ी थे इसीलिए किसी का भी ध्यान कैमरे मे गया नहीं ... जो वो स्टोर रूम मे भी लगा के आए थे...

हरदेव ने थोड़ी कोशिश के बाद रस्सी खोल दी उसने बाद में अपने पैर भी खोल लिए और खड़ा होकर बाहर जाने लगा.. पर स्टोर रूम बाहर से बंध था... हरदेव को ये देखकर और भी ज्यादा गुस्सा आया और उसने गुस्से में जोर से दरवाजे पर पैर दे मारा और दरवाजा तोड़ दिया...

हरदेव गुस्से में आग निकालता हुआ... होल कि तरफ जाने लगा...

" फेरे के लिए खड़े हो जाइए..." पंडितजी ने कहा..

अनिरूद्ध और संजना फैरे के लिए खड़े हो गए...

कबीर ने उस वक्त एक बार सिसिटिवी फुटेज चेक करने के लिए अपना मोबाइल निकाला... उसने जैसे ही कैमरा देखा तो उसे हरदेव गुस्से में वही आता हुआ दिखाई दिया.. वो बस कुछ ही कदम दूर था..

" ओह शिट...! " इतना बोलते हुए वो जल्दी से दरवाजे कि तरफ भागा... अनिरूद्ध ने उसे जाते हुए देख लिया...
" कुछ तो गड़बड़ जरूर हुई है..." अनिरूद्ध मन में ही बोला...

कबीर भागता हुआ हरदेव को रोकने अपने और दो साथी के साथ जाने लगा.. वो तीनो हरदेव के सामने आ कर खड़े हो गए... हरदेव ने गुस्से में कबीर पर जोर से वार किया पर कबीर वहा से हट गया...और पीछे से उसे पकड़ लिया... तीनो ने हरदेव को कस कर पकड़ा हुआ था पर वो तीनो उसे कंट्रोल नहीं कर पा रहे थे...
हरदेव ने जोर से तीनो को धक्का दे दिया ..और दरवाजे कि तरफ जाने लगा...

अनिरूद्ध और संजना जैसे ही फेरे के लिए कदम आगे बढ़ा रहे थे ... तब आवाज आईं...

" रुक जाओ...." हरदेव जोर से बोला...
ये सुनकर सब उस तरफ देखने लगे... और हरदेव को वहा देखकर सब चौंक गए....

जगदीशचंद्र के तो होश ही उड़ गए... वो तो भागते हुए हरदेव के पास आ गए...
" बेटा ये क्या हालत बनाई हुई है ...? और तुम यहां हो तो मंडप मे कौन है ...? "

" मंडप मे कौन है वो तो संजना जी ही बताएगी... क्यों संजना जी ...? " हरदेव संजना को आंखे दिखाता हुआ बोला...
ये सब देखकर राजेश जी अनिरूद्ध के पास आए और उसका सेहरा निकाल दिया....
अनिरूद्ध को सामने देखकर उनकी पैरो तले जमीन खिसक गई... और जगदीशचंद्र और हरदेव कि तो जैसे जान ही हथेली मे आ गई थी...

" तुम ...? " राजेश जी गुस्से में बोले...

" ये कैसे हो सकता है ..." हरदेव जगदीशचंद्र कि तरफ देखकर बोला...

" मुझे भी अपनी आंखो पर यकीन नहीं आ रहा ..." जगदीशचंद्र के तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था..

" हा पापा मे .. अनिरूद्ध..." अनिरूद्ध शांत स्वर मे बोला..

" खबरदार जो मुझे पापा कहा है तो... और तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी के साथ मंडप मे बैठने कि ....! " राजेश जी ने गुस्से से अनिरूद्ध का कोलर पकड़ लिया..

" पापा ये आप क्या कर रहे है ... छोड़िए अनिरूद्ध को ..." संजना राजेश जी का हाथ छुड़ाते हुए बोली...

" तुम जानती हो इसने तेरे साथ क्या किया है फिर भी तुम मुझे रोक रही हो..? "

" हा पापा क्योंकि मे यह जानती हूं जो आप सब नहीं जानते..."

" हा पापा संजू सही कह रही है... अनिरूद्ध बेकसूर है ... उस दिन जो हुआ वो इन्होंने नहीं किया था..." मोहित राजेश जी के पास आता हुआ बोला..

" हा मासा... अनिरूद्ध ने कुछ नहीं किया..." किंजल भी अनिरूद्ध के साथ खड़ी हो गई थी...

सब लोग ये ड्रामा देख रहे थे .. हरदेव और जगदीशचंद्र कि तो घबराहट बढ़ने लगी थी... और एक और हरदेव को बहुत गुस्सा भी आ रहा था..."

" वाह.... वाह... संजना जी ... आपने बहुत अच्छा खेल खेला है मेरे साथ ..." हरदेव ताली बजाता हुआ संजना के करीब आने लगा...

" ये लड़का अब क्या कर रहा है ...? एक तो खुद पर कंट्रोल रहता नहीं है इसका ... ये मुझे भी मरवाएगा ..." जगदीशचंद्र अच्छे से वाकिफ थे हरदेव के गुस्से से...

" गेम खेला है .. और वो भी मेरी बेटी ने...? " राजेश जी ने आश्चर्य के साथ कहा...

" जी पापा ...पहले इन्होंने मुझे स्टोर रूम मे मिलने बुलाया और फिर मुझे बेहोश करके रस्सी से बांध दिया ... और मेरी जगह इस धोखेबाज अनिरूद्ध को मंडप में बैठा दिया..." हरदेव शरीफ बनने का नाटक कर रहा था...

ये सुनकर अनिरूद्ध संजना मोहित किंजल सब उसे घूरते हुए देखने लगे...

" संजना क्या तुमने ये सब किया है ...? " राजेश जी ने जोर से संजना से पूछा..

" हा पापा मैंने ही ये सब किया है..."

ये सुनते ही राजेश जी को और भी गुस्सा आया...
" संजना तुम्हे अपने बाप कि जरा सी भी इज्जत नहीं है ? इस लड़के के आते ही तुम सब भूल गई..? "

" देखिए ना पापा... इस लड़के ने ही संजना और बाकी सब को अपनी बातो में फसाया होगा... " हरदेव फिर से बोला...

" शट अप हरदेव जी अब एक और शब्द नहीं... और ये जो आप शरीफ बनने का नाटक कर रहे है ना वो बंध करिए क्योंकि हम आपकी सच्चाई जानते है..." संजना गुस्से से बोली...

" संजना... ये क्या तरीका है बात करने का " राजेश जी फिर से चिल्लाए..

" पापा आप नहीं जानते इसकी सच्चाई ... तुमने जो मुझे और मेरे अनिरूद्ध को जुदा करने कि साजिश रची थी ना .. उसमे तुम फैल हो गए हो क्योंकि हम दोनों को जुदा करना मुश्किल नहीं नामुमकिन है समझे " संजना हरदेव के पास जाती हुई बोली...

हरदेव ये सब सुनकर आगबबूला हो गया .. अब तक उसने अपनी मुट्ठी बंध किए अपने गुस्से को कंट्रोल किया हुआ था पर संजना को अपनी आंखो में आंखे डालकर इस तरह बोलते देख उसका गुस्सा लिमिट से बाहर हो गया...

" तुम समझती क्या हो खुदको ... हा... तुम्हे क्या लगा मुझे एसे बेहोश करके .. तुम इससे शादी कर लोगी... ? तुम मुझे जानती नहीं हो ये हरदेव जिसे अपना मान लेता है उसे अपना बनाकर ही छोड़ता है ..." हरदेव दात मिंचते हुए संजना का हाथ जोर से पकड़ता हुआ बोला..

उसने इतने जोर से संजना का हाथ पकड़ा हुआ था कि उसका दर्द संजना के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था...

" बेटा .. ये क्या कर रहे हो छोड़ो उसका हाथ ..." राजेश जी ने कहा...
पर हरदेव ने हाथ छोड़ा नहीं...

" छोड़ो संजना का हाथ...." अनिरूद्ध हरदेव के पास आता हुआ गुस्से से घूरता हुआ बोला..

" नहीं छोडूंगा क्या कर लेगा ..? "

" मैंने कहा छोड़ो संजना का हाथ...."

" नहीं छोडूंगा कहा ना ...."

अनिरूद्ध ने हरदेव का हाथ पकड़ लिया और इतने जोर से पकड़ा कि उसके हाथ से संजना का हाथ छूट गया और फिर अनिरूद्ध ने एक जोरदार मुक्का उसके मुंह पर मारा... और हरदेव मुंह के बल गिर गया..

" बेटा तू ठीक तो है ना " रागिनी जी तुरंत संजना के पास आती हुई बोली..

" हा मम्मा ..."

" तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर हाथ उठाने कि ..."
हरदेव उठा और अनिरूद्ध को मुक्का मारने के लिए हाथ आगे बढाया...
पर अनिरूद्ध ने उसका हाथ पकड़ लिया...

" आज नहीं... हरदेव ... आज जो करूंगा वो सिर्फ में करूंगा..."

" तू कुछ भी नहीं कर सकता... जानते हो ना मैंने क्या किया था तुम्हारे साथ...? "

" हा जानता हूं .. पर तू नहीं जानता कि में क्या क्या कर सकता हूं...."

अनिरूद्ध और हरदेव कि बात किसी को समझ नहीं आ रही थी कि ये लोग क्या बात कर रहे है.. जो लोग सच्चाई जानते थे वो समझ चुके थे पर दूसरे सब परिवार के लोग बिना अंग्रेजी जाने अंग्रेजी मूवी देखने के जैसे यहां चल रहा ड्रामा देखे जा रहे थे..

" ये सब क्या चल रहा है कोई बताएगा..." राजेश जी अब परेशान होते हुए बोले...

" पापा आप यह समझ लीजिए कि सगाई वाले दिन जो हुआ वो करने वाला और कोई नहीं पर ये हरदेव और उसका बाप ये जगदीश चंद्र त्रिपाठी थे.." मोहित बोला..

" अबे तू ये सब क्यों बोल रहा है ...? तू ही तो हमारे पास आया था ना इस अनिरूद्ध की खोजने के लिए मदद मांगने ... और तू तो उसे सजा दिलवाना चाहता था ना.. कितना ड्रामा करके गया था.. ड्रामेबाज़ कहिका... " हरदेव मोहित कि बात पर भड़क उठा था...

" जुबान संभलकर बात करो हरदेव ..." अनिरूद्ध ने उसका कोलर पकड़ते हुए कहा...

" रहेने दे अनिरूद्ध... जैसी सोच होगी वैसी ही जुबान खुलेगी ना... और हा सही कहा तुमने .. मै सिर्फ ड्रामा कर रहा था... मे तो सच पहले से ही जानता था... " मोहित तीखी मुस्कुराहट के साथ बोला

" और तू जानता है ... आज मे यहां तेरे सामने हूं तो किसकी वजह से हूं..? मोहित कि वजह से... तू सोच रहा होगा की इसे तो मैंने समुंदर मे फैंक दिया था पर .. मोहित ने आके मुझे बचा लिया था..." अनिरूद्ध बोला..

" ओह तो आप है वो...! मुझे और संजना को अलग करने वाले... पर ये में होने नहीं दूंगा... अब तो मे संजना से शादी करके ही रहूंगा ... और जैसे तुमने मेरा फायदा उठाकर मुझे ही मेरे खेल से बाहर कर दिया ना.. अब मै तुम्हे बताऊंगा की फायदा उठाना किसे कहते है .. तुम ना तो खेल मे जीत पाओगी.. नाही खेल से बाहर निकल पाओगी... " हरदेव संजना कि तरफ देखता हुआ बोला... वो इतना बोला ही था कि एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर लगी.. और थप्पड़ मारने वाले और कोई नहीं राजेश जी थे..

" एक शब्द और नहीं...! मे भी देखता हूं कि कैसे तू मेरी बेटी से शादी करता है ...! उस दिन क्या हुआ ये अभी मे तो नहीं जानता पर अब मुझे समझ आ गया है कि मेरी बेटी के लिए अनिरूद्ध से सही और कोई नहीं हो सकता..."

राजेश जी अनिरूद्ध के पास गए..और बोले

" मुझे माफ़ कर दो बेटा... मैंने तुम्हे गलत समझा ... पर हम सब जानना चाहते है कि तुम्हारे साथ क्या हुआ था ? और ये हरदेव क्या बोल रहा है ... और वो ये सब क्यों कर रहा है ? मेरी बेटी ने भला उसका क्या बिगाड़ा है ? " राजेश जी इमोशनल हो गए थे...

" मे ये सब बोल रहा हूं क्योंकि मे प्यार करता हूं संजना से ... और वो भी इस अनिरूद्ध के पहले से... इस अनिरूद्ध ने एक तो मेरे से पहले संजना को प्रपोज कर दिया.. इससे पहले इतना गुस्सा मुझे कभी नहीं आया था जितना मुझे तब आया था... मैं घर जाकर सब तोड़ फोड़ करने लगा... कंट्रोल खो दिया था मैंने... संजना को उठाने गुंडे भी भेजे पर इस इस अनिरूद्ध ने उसे बचा लिया... संजना कि वजह से मेरा दिमाग खराब हो गया.. मेरे पापा ने मुझे मेंटल हॉस्पिटल में भी भेज दिया था और ये किसकी वजह से संजना कि वजह से ... और जब मे बाहर आया तो मे क्या देखता हूं... इन दोनों कि तो सगाई होने वाली थी... तो क्या करता मे.. हा.. बोलो क्या करता...! " हरदेव चिल्लाता हुआ बोला...

" तो क्या आप जान ले लेंगे किसी कि ? " संजना कि आंख मे आंसू आ गए थे...

" हा ले लूंगा जान ...वो चाहे किसीकि भी क्यों ना लेनी पड़े..."

" हरदेव ...! क्या बोल रहे हो संभालो खुद को ... " जगदीशचंद्र हरदेव के पास आते हुए बोले...

" पापा आपने ही तो कहा था ना कि जो आप कहेंगे वो में करूंगा तो संजना मेरी होगी ... तो फिर क्यों नहीं हुआ ..? " हरदेव ने जगदीशचंद्र को भी जपेटे मे ले लिया था..

" चुप रहो क्या बोल रहे हो ..." जगदीशचंद्र नजरे चुराते हुए बोले...

" क्यों नजरे चुरा रहे है एम् एल ए साहब ... सबको बताएंगे नहीं कि यह सब किया धरा है वो आप ही का तो है... हरदेव तो सिर्फ आपके रास्ते पर चल रहा था.. अस्ली खेल तो आपका रचाया हुआ है..." अनिरूद्ध ने जगदीशचंद्र पर निशाना ताकते हुए कहा..

" क्या जूठ बोल रहे हो... तुम्हारे पास क्या सबूत है इसका...? "

" वो भी दिखाएंगे .. पर अभी उसके लिए थोड़ा टाइम है... पर अभी सब को पहले बता तो देते है कि आपने किया क्या है ...! " अनिरूद्ध बोला..

" सगाई वाले दिन इनके आदमी वेटर के भेस में छुपे हुए थे... हरदेव ने पहले संजना को किडनेप करने कि कोशिश कि थी इसीलिए मैंने भी सिक्युरिटी का इंतेजाम किया हुआ था... पर पता नहीं कैसे पर इनको पता चल गया था कि स्टाफ के भेस में हमारे कुछ सिक्युरिटी ऑफिसर भी मौजूद है .. इन लोगो ने उन सभी को बेहोशी कि दवा वाला प्रसाद देकर बेहोश कर दिया और एक कमरे में सब को डाल दिया... मोहित सब इंतेजाम मे लगे हुए थे इसीलिए उनका भी ध्यान नहीं गया...और जब मे संजना से मिलने उसके कमरे में गया तब इन्होंने ये सब किया .. ताकि मुझे कुछ पता ना चले... मेरी सिर्फ यही गलती थी कि में उस दिन टेरेस से होकर संजना के कमरे में गया..."
ये सुनकर सब अनिरूद्ध को आश्चर्य से देखने लगे..
" और जब मे टेरेस से होते हुए नीचे जा रहा था तभी किसीने मेरे माथे पर जोर से वार किया...और मे बेहोश हो गया... जब मेरी आंखे खुली तब मे पीछे के स्टोर रूम में खुर्सी से बंधा हुआ था.. और ये हरदेव और जगदीशचंद्र मेरे सामने खड़े थे...उन्होंने मुझे वीडियो दिखाया जिसमे ... उनके आदमी वेटर के रूप में बंदूक लिए हुए .. आप सभी के आसपास खड़े हुए थे... इसने मुझे धमकी दी कि वो कहे एसा मे एक चिट्ठी में लिखूं नहीं तो वो लोग आप पर गोली चला देंगे... मुझे मजबूरी में वो सब लिखना पड़ा... वो सब सुनकर जितना आप सब टूटे थे उससे कई ज्यादा मे टूटा था वो लिखते हुए... " अनिरूद्ध की आंखो से आंसू छलक आए थे.. शायद वो दर्द आज भी वह महसूस कर पा रहा था...

" फिर क्या हुआ बेटा...? " राजेश जी ने पूछा..
पर अनिरूद्ध बता नहीं पा रहा था... उसका गला भर आया था उस सब बातो को याद कर.. पर फिर भी उसने कहना शुरू किया...

अनिरूद्ध के चिट्ठी लिखने के बाद ...

अनिरूद्ध को जैसे ही मौका मिला उसने हरदेव को धक्का मार दिया... और जगदीशचंद्र के हाथ से वो फोन भी लेकर फैंक दिया... हरदेव फिर से खड़ा हो कर अनिरूद्ध को रोकने लगा...
अनिरूद्ध ने फिर से हरदेव को लात मारी और स्टोर रूम से बाहर भागने लगा..

" रुक जाओ अनिरूद्ध... वरना मे गोली चला दूंगा..." हरदेव ने उसकी और बंदूक तानी हुई थी..

अनिरूद्ध पहले रुका और फ़िर से जाने लगा...

" मैंने कहा रुको नहीं तो सच में गोली चला दूंगा.."

पर अनिरूद्ध ने कुछ सुना नहीं और वो आगे बढ़ने लगा तो हरदेव ने अनिरूद्ध पर गोली चला दी... और गोली लगते ही अनिरूद्ध जमीन पर गिर गया...

" ये क्या कर दिया तुमने ...? " जगदीशचंद्र घबराते हुए बोले...

" वहीं जो मुझे पहले कर दे ना चाहिए था..." चलिए अब इसको ठिकाने लगा देते है...

वो दोनो अनिरूद्ध को उठा कर गाड़ी मे डाल रहे थे... मोहित कब से अनिरूद्ध को ढूंढ रहा था वो ढूंढता हुआ बाहर आया.. और तभी उसने किसी को अनिरूद्ध को गाड़ी मे डालते देखा... मोहित ने भी जल्दी से गाड़ी निकाली और उनका पीछा करने लगा... गाड़ी जाकर समुंदर के पास खड़ी हो गई और उन्होंने अनिरूद्ध को समुंदर मे फैंक दिया..

मोहित थोड़ा पीछे रह गया था... पर जब वो वहा पहुंचा तो उसे कोई नहीं दिखाई दे रहा था तभी उसकी नजर समुंदर के पानी मे गई जो अनिरूद्ध के खून कि वजह से लाल हो गया था... मोहित तुरंत समुंदर मे तैरके गया और अनिरूद्ध को पानी में से बाहर निकाला... और जल्दी से उसको हॉस्पिटल में ले गया...

मोहित ने सौरभ को भी वहा बुला लिया था... ऑपरेशन के बाद अनिरूद्ध को थोड़ी देर के लिए होश आया ...
" मोहित जब तक मे आपसे नहीं कहूं आप संजना और किसी और से कुछ भी नहीं कहेंगे..."

" पर क्यों...? "

" क्योंकि संजना वो दर्द सहन कर लेगी.. पर मुझे इस हालत में देखकर वो खुद को संभाल नहीं पाएगी...इसीलिए प्लीज़ उसको कुछ मत बताना आप को मेरी कसम .. "

" ठीक है .. नहीं बताऊंगा.."
इतना बोलने के बाद अनिरूद्ध बेहोश हो गया और फिर डॉक्टर ने बताया कि वो कोमा में चला गया है ... एक महीना वो कोमा मे रहा फिर उसे होश आया उसे पूरी तरह ठीक होने ने और एक महीना हो गया.. और फिर उन्होंने हरदेव और जगदीशचंद्र पर नजर रखनी शुरू कि... और फिर वो चेहरा बदलकर अनिरूद्ध ओब्रॉय के रूप में संजना और सब से मिलना...

अनिरूद्ध और मोहित ने अब तक कि सभी बात सब को बताई...


🥰 क्रमशः 🥰