Han, Main bhagi hui stri hun - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग इक्कीस)

पिता से अनबन की बात बेटा कई बार कर चुका है।उसे लगता है कि इस बात से मैं खुश होऊँगी और कोई ऐसा कदम उठा लूंगी जिससे उसको लाभ होगा।शायद पिता से मिलकर वह इस तरह की साज़िशें रचता है। शुरू से ही वह मेरी हर बात पिता तक पहुँचाता रहा है।यहां तक कि व्हाट्सऐप पर उससे जो भी बातचीत होती है,उसे भी भेज देता है।इसका पता तब चलता है,जब उसका पिता मेरी लाइनों को कोड कर मुझसे गाली -गलौज करता है।मुझे कोसता है।एक बार नहीं कई बार वह ऐसा कर चुका है।मेरे पूछने पर बेटा साफ मुकर जाता है।
एक बार उसकी पत्नी से उसका झगड़ा हुआ था।दोनों मेरे घर आए तो बहू ने उसके सामने ही कहा कि--मैं बताऊँ इनको कि आज यहाँ आने पहले आपने पापा जी से इनके खिलाफ क्या -क्या बातें की?मैंने रिकार्ड कर लिया है।सुनाऊँ।बेटे ने मुँह लटकाकर कहा-क्या फालतू काम कर रही हो।ये वैसे ही मुझ पर शक करती हैं।
मैंने बहू को शांत कर कहा-रहने दो मुझे सब पता है।
बेटे ने कहा-देखा न,इन्होंने विश्वास कर लिया।मैंने बात टाल दी।
पकड़े जाने पर भी बेटा अपनी गलती स्वीकार नहीं करता जैसा उसका पिता नहीं करता।
छोटे बेटे ने भी एक बार मेरी छोटी बहन से अपने बड़े भाई की इस विशेषता का उल्लेख किया था कि वह जब भी घर जाता है।ब्लैकबोर्ड पर पिता द्वारा उसे समझाया जाता है कि माँ के घर कब और कैसे जाना है तथा क्या-क्या बात करनी है?
यानी कि वह अपने पिता की कठपुतली है।उसका इस्तेमाल मुझसे बदला लेने के लिए..मुझे तकलीफ देने के लिए किया जाता है।दुःख का जो कोटा पति से छूट गया वह बेटे द्वारा पूरा किया जाता रहा है।
पति के शिकंजे से भागकर भी मैं जिंदा हूँ ,अच्छी जिंदगी जी रही हूँ-यह बात मेरे बेटे के पिता को हज़म नहीं हो रही।वह मुझे हारा -थका ,मुसीबतों से घिरा हुआ देखना चाहता है।उसकी मंशा है कि मैं रोऊँ -गिड़गिड़ाऊँ,अपनी उन गलतियों पर पछताऊं,जो मैंने की ही नहीं है।उसे लगता है कि मैं आज़ाद हूं ....जिम्मेदारियों से मुक्त हूँ और उस पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है।
वह मुझे गलत कहता है।मुझे गलत समझता है।मेरी बुराई करता है फिर भी चाहता है कि मेरे पास जो कुछ भी है,वह सब बेटे को आगे कर हथिया ले और मुझे दर- दर की भिखारिन बना दे। वह खुद को मेरा विधाता मानता है और अपने हाथों से मेरा नसीब लिखना चाहता है।वह आज भी कहता है कि मेरी मुक्ति का मार्ग उसकी तरफ से ही जाएगा।वह धमकी देता है कि मेरी चिता को आग लगाने कोई नहीं आएगा न पति, न पुत्र।मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी।जाने किस सदी का प्राणी है वह।
वह नहीं जानता कि मैं इन सब बातों में विश्वास नहीं करती और ना ही मुझे इसकी परवाह है।मरने के बाद शरीर का जो कुछ भी हो,क्या फ़र्क पड़ता है?मैं जीते -जी चैन से रहना चाहती हूं।मेरे पास जो भी है,वह बेटे को मेरे मरने के बाद ही मिलेगा,जीते- जी नहीं।अब मैंने अपनी भावनाओं पर विजय पा ली है।
आखिर कब तक मैं एकतरफा जिम्मेदारी से बंधी रहूंगी।ममता में अपना अपमान होते देती रहूँगी।पति से तो सारे रिश्ते तोड़ चुकी हूँ लगता है बेटों से भी दूर होना होगा।शारीरिक रूप से दूर तो पहले ही से थी अब मानसिक दूरी भी बनानी होगी। कभी बेटे की सास तो कभी उसकी पड़ोसन कभी कोई और यह बताता है कि बेटा मुझे एक खराब ,गैरजिम्मेदार ,स्वार्थी माँ कहता है।
गैर पारिवारिक,गैर सामाजिक तो वह पहले से ही कहता रहा है।अभी हाल ही में मेरी छोटी भाभी ने मुझे बताया कि बेटा उनसे मिलने आया था और मेरी बहुत बुराई की।उसने यहाँ तक कहा कि ऐसी स्त्री को आप अपने घर क्यों आने देती हैं?मैंने तो जाना छोड़ दिया है।पिता ने मना किया है।
बेटा वर्षों नहीं आता फिर आना शुरू करता है ।एकाध महीने बाद फिर किसी बहाने आना बंद कर देता है।पता नहीं वह मुझसे क्या चाहता है?
रिटायरमेंट के बाद तो वह मुझसे बिल्कुल कट गया है।सबके सामने तो कहता है कि चिंता की कोई जरूरत नहीं।पर अपनी तरफ से चिंता दूर करने का कोई उपाय नहीं करता।एक बार भी नहीं पूछता कि बिना पेंशन कैसे जीवन चला रही हैं?कोई जरूरत तो नहीं।एक बार बोला कि घर बेचकर पैसे उसे दे दूँ और आकर उसके साथ रहूँ।शर्त ये है कि मेरी बीबी के हिसाब से रहना होगा।
मेरी कल्पना में एक दृश्य उभर आया।बेटे के घर में उसका पिता आया हुआ है और सबके सामने मेरी इज्जत उतार रहा है।मुझे 'भागी हुई स्त्री' कहकर ज़लील कर रहा है।
नहीं ,मैं उनके साथ नहीं रहूँगी।मैं किसी के भी साथ नहीं रहूँगी।
मैं अपनी मेहनत से बनाए घर में रहूंगी।लेखन कार्य करूंगी।बच्चों को ट्यूशनें पढ़ाना तो शुरू भी कर दिया है।कम से कम में जीवन चलाना जानती हूँ।ज्यादा की ललक नहीं। कोई महंगा शौक़ नहीं।लोगों की नजर में अकेली हूँ पर सच में अकेली कहां हूँ। मुझे सबसे ज्यादा प्यार करने वाला परमेश्वर मेरे साथ है।अब मुझे किसी की परवाह नहीं। कल का नहीं जानती,पर आज अपने साथ खुश रहने का प्रयास कर रही हूँ।
अब तक मुझे इस बात से कष्ट होता था कि पति और बेटे भागी हुई स्त्री के रूप में मेरा प्रचार करते हैं।आज मैं खुद ही सारी दुनिया के सामने गर्व से कह रही हूँ कि हाँ,मैं भागी हुई स्त्री हूँ ।