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वीरान सड़क

काज़ी वाजिद की कहानी - प्रेमकथा

ठीक एक वर्ष बाद मैं उसे देखूंगी। मैंने इस मुलाकात की कोई उम्मीद कभी की ही नहीं थी, हालांकि मुलाकात के अवसरों की कमी न थी। मुझे निमंत्रण देते समय सलोनी ने उस छोटे से वाक्य को दो बार दोहराया था , 'नेहा सुनो, मैंने रोहित और सपना को भी आमंत्रित किया है, तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं।' यह सुन मैंने उत्तर दिया‌ था, 'भला मुझे क्या आपत्ती हो सकती है। मुझे तो अच्छा ही लगेगा। लेकिन इस बात में कितना सच छिपा हुआ था, मेरा दिल ही जानता था। जब से हमने साथ रहना छोड़ा है, मैं तो वास्तव में जीवित ही नहीं हूं। अपने शरीर में प्राणों के दोबारा संचार के लिए पूरी तरह से उसी पर निर्भर करती हूं। इस असंभावित विचार से कि वह मुझसे फिर से प्यार करेगा...। लेकिन यह बात तो मैं सलोनी तक से कहने की हिम्मत नहीं कर सकती, जो मेरी बैस्ट फ्रैंड है।
यह तो हर कोई अच्छी तरह समझ रहा था कि हमारे संबंध विच्छेद की वजह सपना थी। मैं उसे सौतन समझती थी, पर वह अपने को रोहित की जोगन कहती थी। इस अलगाव का‌ मेरे दिल-दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ा है, किन्तु गम भुलाने के लिए एक वर्ष पर्याप्त होता है। संबंधियों ने यह मान लिया था कि या तो मैं साल भर के बाद दु:ख से उबर जाउंगी या उबर जाने का ढोंग करुंगी। ... अलगाव के तीन माह के बाद मुझे यह अहसास हो गया था कि यदि मैं नहीं चाहती कि लोग मुझे भूल जाएं, तो मुझे प्रसन्न दिखना ही होगा। मेरे सामने एक मात्र राह यही बची थी कि मैं इस तरह व्यवहार करूं कि जैसे मैं एक अच्छी-भली प्रसन्न, ज़िंदादिल स्त्री में बदल चुकी हूं। मुझमें दंपति की मिली- जुली ज़िम्मेदारियों के साथ सारे गुण भी आ चुके हैं। यानी लापरवाह रवैया और साथ ही स्त्री की नम्रता और सज्जनता, मेरे स्वभाव को प्रकट करती थी। और मैंने जो कभी एक खुशमिजाज़ प्यार करने वाली संतुष्ट पत्नी थी, दिन-व-दिन ऐसा करने का प्रयास किया था, ताकि एकांतवास के सागर में डूबी न रहूं जिसमें रोहित मुझे छोड़ कर चला गया है। मैंने सोचा कि मैं सफल हो गई हूं। ... मैं शायद एकमात्र ऐसी महिला थी, जिसने आंसुओं में रातों की नींद हराम करने के बाद यह जाना और स्वीकार किया कि यह मुक्ति निराशा के अलावा और कुछ नहीं है।
पार्टी में जाने के लिए भड़कती लाल आकर्षक साड़ी पहने अब मैं हौले- हौले कंघी किए जा रही थी। आईने से झांकते चेहरे के ऊपर बाल अधिक काले और कम सुनहरे थे। ... अचानक मैं अलगाव वाले दिन की यादों में खो गई। उस दिन मैंने लड़कियों जैसी कैज़ुअल नीली ड्रेस पहनी थी। मैंने आज आईने में देखा। ...वर्ष भर पुरानी स्त्री का चेहरा कुछ पीला, लेकिन भरा-भरा था और मेरी आंखें उस दिन आसुओं से डबडबा रही थीं। अचानक मेरा ध्यान एक हल्की आवाज़ से टूट गया था, जो कह रही थी, ' तुम्हारे शक्की मिजाज़ से मैं तंग आ गया हूं। इस बार बस अंत है और मैं तुमसे इसी कारण दूर जा रहा हूं, वह भी इतने भद्दे ढंग से सब के सामने, ताकि वे तुम्हें समझा सकें कि हमारे बीच सब कुछ समाप्त हो चुका है‌।'
मैंने आदतन काम्पैक्ट निकाला और अपने चेहरे व नाक पर पाउडर लगाने लगी। मेरा मेकअप बिल्कुल ठीक था, पार्टी में जाने के लिए मैंने अच्छी-ख़ासी मेहनत की थी। यह सब मैंने विशेषकर रोहित के लिए किया था। मैंने अपनी आंखों, होठों और गालों पर मेकअप ठीक उसी अंदाज़ में किया था जैसा रोहित को पसंद आता रहा है। हां, एक साल पहले। आज मैं फिर उन्ही आंखों में अपने को प्रतिबिंदित करने जा रही थी।
पार्टी में रोहित नहीं था। सपना को पति के साथ देखकर मैं मन- ही- मन सोचने लगी, 'रोहित बेवफा न था।' मेरी हर समय की किचकिच से उसका मोह मेरे प्रति समाप्त हो गया था।
एकाएक मैं चाहने लगी कि यह डिनर जल्दी से जल्दी ख़त्म हो जाए। मैं कॉफी और सामान्य चर्चाओं, ड्राइंग रूम में बैठ भोजन की प्रशंसा से जल्दी से जल्दी दूर चली जाना चाहती थी।
मैं बोझिल मन से धीरे-धीरे पार्टी हॉल से बाहर निकल रही थी। ठीक उसी समय रोहित, ‌हाल में घुस रहा था। मुझ से आंखें मिलीं तो पूछा, ' कैसी हो सपना?' मैं तो कुछ जवाब नहीं दे सकी पर पश्चाताप में डूबी आंखों से झरतेे आंसुओं ने सब कुछ कह दिया, जो वह सुनना चाहता था। उसने मेरे कंधों को कुछ याद-सा करते हुए स्नेह से कुछ सेकेंड तक थपथपाया और कहा,'क्या हमारे बीच सब कुछ समाप्त हो चुका है, पूरी तरह से?' ...। 'नहीं' तुम्हें मेरा विश्वास करना होगा। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं, रोहित। सच यह है कि सब के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं। और फिर अचानक मैंने ख़ुद को हल्का-फुल्का महसूस किया।
रोहित ने मुझे कार की चाबी दी और कहा, 'मेरा इंतिज़ार करो, मैं अभी पार्टी में होकर आता हूं।' मैं कार में बैठी दूर तक देख रही थी। वीरान सड़क चांदनी से नहाई लग रही थी। तभी वह चुपके से आया और जान कहकर मुझे वैसे ही चौका दिया, जैसे पहले चौंकाता था।
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