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डेथ वारंट ऑफ़ गांधी

तो आपके इलाके से कितने सांसद हैं??

अजीब सवाल है। एक ही सांसद होगा भई।
पर गांधी न होते, भारत मे कुछ और ही सिस्टम बन रहा था।
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1930 में अंग्रेजो ने तय किया कि भारत को होमरूल दिया जाएगा। याने राज्यो में इंडियन्स की सरकार, केंद्र में संसद बनेगी।

चुनाव कैसे हों,ये तय करना था। साइमन कमीशन यही करने आया। आगे डिस्कसन के लिए गोलमेज कॉन्फ्रेंस बुलाई। रैम्जे मैकडोनाल्ड प्रधानमंत्री थे। प्रस्ताव दिया-

धर्म के आधार पर सांसद चुनो। एक ही क्षेत्र में हिन्दू अलग सांसद चुने, मुसलमान अलग..

याने,धर्म के आधार पर सेपरेट इलेक्टोरेट।
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ये गहरी चाल थी। दांडी मार्च, सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद, कांग्रेस पूर्ण स्वराज की हुँकार भर चुकी थी। देश मे अभुतपूर्व ऊर्जा बह रही थी। इसे ठंडा करना था।

टुकड़े टुकड़े करना था। तो कहने को तो "आधी आजादी" दी जा रही थी। मगर कुछ यूँ, कि भारतवासी, आधिकारिक रूप से सदा के लिए फिरकों में बंट जायें।

अपने जात धर्म के नेता चुने। फिर तो नेता ही अंग्रेजी राज सुनिश्चित करते। वे जनता को ख़ूनाखून लड़वाते।

अंग्रेज कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए यहां बने रहते।
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सम्मेलन में किसी रजवाड़े के प्रतिनिधि, अंबेडकर ने कहा - डियर सर, सब बढ़िया। बस हिन्दुओ में दलित सीट की व्यवस्था कीजिए। उनको भी सेपरेट इलेक्टोरेट दीजिए।

याने जब "सोसायटी बांटो अभियान" चल ही रहा है, तो लगे हाथ दलित भी का भी भला हो। उनका सेपरेट इलेक्टोरेट हो जाये, तो दलित मिलकर अपना सांसद चुनेंगे।

सुनकर अंग्रेज भी सोच में पड़ गए। पर अभी सेपरेट ईलेक्टोरेट की मांगें और भी आईं। सिखों को अपना सांसद चाहिए, बौद्ध भी, को एंग्लो इंडियन को भी। यहां तक कि ट्रेड एंड इंडस्ट्री को भी कोटा चाहिए।

उधर रजवाड़े चुनाव-फुनाव नही चाहते थे। देश की 55% जनता रजवाड़ों में थी। राजाओं ने अपनी मर्जी से अपना प्रतिनिधि नामित करने का अधिकार मांगा।

कुल मिलाकर खाली काँव काँव चल रही थी। गोलमेज सम्मेलन, बिना नतीजा खत्म हो गया।
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तो यही था मैकडोनाल्ड अवार्ड। धर्म आधारित होने के कारण, इसे कम्युनल अवार्ड भी कहते हैं।

इस पोस्ट को पढ़ने वाला, हिन्दू-मुस्लिम, दलित-ब्राह्मण, जो भी हो, सोचिये- क्या आज, ऐसा प्रस्ताव आपको मिले, तो क्या कम्युनल अवार्ड/सेपरेट इलेक्टोरेट मंजूर करेंगे??

जो आपका जवाब होगा,
वही गांधी का था।
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क्योकि रेवड़ियां नही बंट रही थी जनाब। देश गढ़ने की बात हो रही थी। गांधी ही क्या, कोई भी भारतीय, समाज यूँ तोड़ा जाना मंजूर नही करेगा।

गांधी अनशन पर बैठ गए।

आज शोर मचाया जाता है कि गांधी अछूतों को अधिकार मिलने के खिलाफ अनशन पर उतर गए। ये 24 कैरेट विशुद्ध झूठ है। अनशन सेपरेट इलेक्टोरेट के खिलाफ था।

हल्ला ये भी, कि गांधी तो अनशन करके, मरने ही वाले थे।अंबेडकर ने समझौता करके, गांधी के प्राण बचाये, ये 20 कैरेट झूठ है।
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अंग्रेजो ने गांधी को लन्दन बुलाकर, राजा के साथ चाय पानी पिलाकर, मनाने की कोशिश की। जब न माने तो जेल में डाल दिया।

तो गांधी पूना जेल में थे। वहीं अनशन कर रहे थे। मदन मोहन मालवीय, उनके और अंबेडकर के बीच मे डील सेट कर रहे थे।

अंबेडकर तो, महज 70 दलित सीट मांग रहे थे। बारगेनिंग के बाद शायद 35-40 सीट भी मिल जाती। मगर गांधी ने छप्पर फाड़ ऑफर दिया- 147 सीट।

गांधी ने सन्देसा था - सेपरेट इलेक्टोरेट की मांग छोड़ो। सीट ही चाहिए न, वो मिलेगी। हम आपसी समझौता करें कि 147 आम सीट पर "सिर्फ दलित" लड़ेंगे।

आरक्षण!!

ये तो अंबेडकर को उम्मीद से दुगना था। गांधी प्राण त्याग दें, इसके पहले लपक कर अनुबंध साइन किया। यही पूना पैक्ट कहलाता है।

युवा वकील रातोंरात हीरो बन गया। यहीं से डॉ. अंबेडकर का लेजेंड खड़ा हुआ।
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पूना पैक्ट न होता, तो 71 सीट उन्हें मिलती। दलित वर्ग को 76 सीट एक्स्ट्रा मिली। एकता भी बच गई, मांग भी पूरी हुई।

मगर इतिहास के अपाहिज, अंधे, नाशुक्रे उस गांधी को गाली देते हैं, जिसने 76 एक्स्ट्रा सीट दी
पूना पैक्ट से निकली अमृत की हांडी, अंबेडकर को मिली,

गांधी के हिस्से हलाहल आया।
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अब वे उच्च वर्गीय हिन्दुओ के निशाने पर थे। कल्याण पत्रिका ( वही गीता प्रेस वाली) ने गांधी को लेकर तमाम गन्दी गन्दी बाते छापी।

बापू निकले। रिजर्व सीट वाले इलाकों में लोगो को समझाने गए। भयंकर विरोध का सामना किया। लोगो को लगता था, इसी गांधी के कारण उन्हें किसी अछूत को अपना को अपना नेता पड़ेगा।
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मुसलमानो से नफरत करने वालो के निशाने पर थे ही, अब दलितों से नफरत करने वालो के निशाने पर भी थे।

15 साल बाद, वे ऐसे संगठन के हत्यारे की गोलियों से मरे, जो मुसलमान औऱ अछूत, दोनो से नफरत करता था।
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जी हां। गांधी ने अपना डैथ वारंट, पूना में साइन किया था।