Triplets - 3 in Hindi Motivational Stories by Raj Phulware books and stories PDF | ट्रिपलेट्स भाग 3

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ट्रिपलेट्स भाग 3

ट्रिपलेट्स भाग 3

लेखक राज फुलवरे

अध्याय 6 : जब आईने आमने-सामने आए
भाग 1 : सुनसान फैक्ट्री — टकराव की जगह
शहर के बाहरी इलाके में एक पुरानी बंद फैक्ट्री थी।
टूटी हुई खिड़कियाँ, जंग लगे गेट, और हर तरफ़ सन्नाटा।
रात गहरी थी।
हवा में नमी और डर मिला हुआ था।
अमर और प्रेम फैक्ट्री के अंदर दाख़िल हुए।
हाथों में सिर्फ़ हिम्मत थी।
प्रेम ने धीमे स्वर में कहा—
“यहीं बताया था रानू ने… यही जगह है।”
अमर ने चारों ओर देखा।
“बहुत शांति है… ज़रूरत से ज़्यादा।”
अचानक—
तालियों की आवाज़ गूँजी।
“वाह… अपनी ही शक्ल से डर रहे हो?”
आवाज़ सामने से आई।
धुएँ के बीच से एक आदमी बाहर आया।
कद, चेहरा, चाल—सब वही।
अमर और प्रेम एक साथ बोल पड़े—
“तू…”
वह आदमी मुस्कराया।
“राज।”
भाग 2 : पहली नज़र, पहला झटका
कुछ पल तक कोई नहीं बोला।
तीन चेहरे—एक जैसे।
तीन साँसें—तेज़।
प्रेम की आवाज़ काँप गई—
“ये कोई मज़ाक है?”
राज ने ठंडी हँसी हँसी—
“मज़ाक? मेरी ज़िंदगी मज़ाक नहीं थी।”
अमर आगे बढ़ा।
“हम तुझे ढूँढ रहे थे।”
राज की आँखों में चिंगारी चमकी।
“और मैं तुम्हें… बिना ढूँढे।”
भाग 3 : शब्दों से पहले मुक्के
राज ने अचानक हमला किया।
एक तेज़ मुक्का—
अमर पीछे गिरा।
प्रेम ने राज को पकड़ने की कोशिश की,
लेकिन राज ने घुटने से वार किया।
तीनों ज़मीन पर लुढ़क गए।
लोहे की रॉड उठी।
हड्डियों से टकराई।
प्रेम चिल्लाया—
“रुक जा!”
राज—
“रुकना मैंने सीखा ही नहीं!”
अमर ने पीछे से राज को जकड़ा।
“अगर तू हमें मारना चाहता है… तो पहले सुन!”
राज ने कोहनी मारी।
अमर दर्द से कराहा।
भाग 4 : गुस्से के पीछे छुपा दर्द
तीनों थक कर रुक गए।
साँसें फूल रही थीं।
राज ने ज़ोर से कहा—
“तुम दोनों को क्या लगता है? एक जैसे चेहरे होने से हम एक जैसे हो जाते हैं?”
प्रेम—
“नहीं… लेकिन खून तो एक ही है।”
राज ठहाका मारकर हँसा।
“खून? मैंने खून माँगा था… मुझे सड़क मिली।”
अमर ने आँखों में आँखें डालकर कहा—
“तू अकेला नहीं है।”
राज पलभर के लिए चुप हुआ।
भाग 5 : सच्चाई की पहली दरार
प्रेम ने धीरे से पूछा—
“तेरे कंधे पर तीन तिल हैं?”
राज चौंक गया।
“तुम्हें कैसे पता?”
अमर ने काँपती आवाज़ में कहा—
“क्योंकि वही निशान… हमारा भी है।”
राज पीछे हट गया।
“झूठ!”
उसने शर्ट उतारी।
कंधे पर तीन तिल—सीधी लाइन में।
तीनों सन्न।
राज की आवाज़ टूट गई—
“ये… ये क्या है?”
भाग 6 : डॉक्टर का साया
अचानक फैक्ट्री में गूंजती आवाज़—
“बहुत भावुक हो रहे हो, राज।”
ऊपर से स्पीकर में डॉक्टर एन. चंद्रन की आवाज़।
“याद रखो… ये तुम्हारे दुश्मन हैं।”
राज ने दाँत भींचे।
अमर चिल्लाया—
“वो तुझे इस्तेमाल कर रहा है!”
डॉक्टर—
“राज, उन्हें खत्म कर दो।”
राज के हाथ काँपने लगे।
भाग 7 : फैसला जो आसान नहीं था
राज ने बंदूक उठाई।
निशाना अमर पर।
प्रेम बीच में आ गया।
“अगर गोली चलानी है… तो मुझे मार।”
राज चीखा—
“चुप!”
डॉक्टर की आवाज़—
“राज!”
राज की आँखों से आँसू गिर पड़े।
“बस!”
उसने बंदूक ज़मीन पर फेंक दी।
भाग 8 : पहली बार — भाई
सन्नाटा।
सिर्फ़ बारिश की आवाज़।
राज फुसफुसाया—
“अगर तुम सच कह रहे हो… तो मेरी पूरी ज़िंदगी झूठ थी।”
अमर ने आगे बढ़कर हाथ रखा।
“झूठ को सच से लड़ना पड़ता है।”
प्रेम—
“और अब तू अकेला नहीं लड़ेगा।”
राज ने पहली बार सिर झुकाया।
भाग 9 : जंग तय हो चुकी थी
ऊपर कहीं कैमरा बंद हुआ।
डॉक्टर चंद्रन ने स्क्रीन बंद करते हुए कहा—
“तो युद्ध चाहते हो… युद्ध मिलेगा।”
फैक्ट्री में तीनों भाई खड़े थे।
एक साथ।
तीन नहीं—
एक ताक़त।

अध्याय 7 : माँ, जन्म-चिह्न और टूटती–जुड़ती पहचान
भाग 1 : घर की दहलीज़ — जहाँ सच काँपता है
रात के बाद सुबह आई थी, लेकिन शांति नगर के उस घर में उजाला देर से पहुँचा।
दरवाज़े पर तीन परछाइयाँ खड़ी थीं—एक जैसी।
शारदा देवी ने दरवाज़ा खोला।
एक पल में उनका शरीर जैसे जम गया।
शारदा देवी (काँपती आवाज़ में):
“ये… ये कौन है?”
अमर ने धीरे से कहा—
“माँ… यह राज है।”
प्रेम ने आगे बढ़कर जोड़ा—
“आपका… हमारा भाई।”
राज चुप खड़ा था।
नज़रें ज़मीन पर, साँसें भारी।
शारदा देवी का हाथ दरवाज़े के कुंडे से फिसल गया।
वह वहीं बैठ गईं।
शारदा देवी:
“भगवान… वही चेहरा… वही आँखें…”
राज ने पहली बार सिर उठाया।
राज:
“अगर सच हूँ… तो मुझे सच चाहिए।”
भाग 2 : बीते सालों का बोझ
कमरे में सन्नाटा।
दीये की लौ काँप रही थी।
शारदा देवी ने गहरी साँस ली।
शारदा देवी:
“मैंने तुम्हें छोड़ने के लिए नहीं… बचाने के लिए छोड़ा था।”
अमर और प्रेम एक-दूसरे को देख रहे थे।
प्रेम:
“माँ… सब बताइए। आधा सच और ज़हर बन जाता है।”
शारदा देवी की आँखों से आँसू बहने लगे।
शारदा देवी:
“तुम तीनों एक साथ पैदा हुए थे… डॉक्टर ने कहा था—तीन में से एक कमजोर है… और हमारे पीछे लोग लगे थे।”
राज का चेहरा सख्त हो गया।
राज:
“लोग? कौन लोग?”
शारदा देवी ने सिर झुका लिया।
शारदा देवी:
“अंडरवर्ल्ड… एक आदमी… एन. चंद्रन।”
कमरे की हवा भारी हो गई।
भाग 3 : जन्म-चिह्न — आख़िरी सबूत
शारदा देवी उठीं, अलमारी खोली।
एक पुराना कपड़ा निकाला।
शारदा देवी:
“जिस बच्चे को छोड़ा था… उसके कंधे पर तीन तिल थे।”
राज ने बिना कुछ कहे शर्ट उतारी।
कमरे में जैसे साँस रुक गई।
कंधे पर—
तीन तिल।
सीधी रेखा में।
शारदा देवी फूट-फूटकर रो पड़ीं।
शारदा देवी:
“मेरा बेटा…”
राज की आँखों से आँसू बह निकले।
राज:
“तो मैं… कभी बेसहारा नहीं था?”
अमर ने राज को थाम लिया।
अमर:
“नहीं… बस रास्ता अलग था।”
भाग 4 : टूटन
राज अचानक पीछे हट गया।
राज (चीखते हुए):
“अगर आप जानती थीं… तो आईं क्यों नहीं?”
शारदा देवी काँप गईं।
शारदा देवी:
“डरती थी… तुम्हें ढूँढने गई, तो तुम मारे जाओगे।”
राज ने दीवार पर मुक्का मारा।
राज:
“मुझे सड़क ने पाला… खून ने नहीं!”
प्रेम आगे आया।
प्रेम:
“गुस्सा सही है… लेकिन सच भी यही है।”
राज की आवाज़ टूट गई।
भाग 5 : पहली बार — परिवार
शारदा देवी ने राज के सिर पर हाथ रखा।
शारदा देवी:
“माफ कर दे… अगर माँ होना भी गुनाह है।”
राज की आँखें बंद हो गईं।
वह घुटनों पर बैठ गया।
राज (धीमे स्वर में):
“माँ…”
कमरा रो पड़ा।
अमर ने दोनों को गले लगाया।
प्रेम ने हाथ जोड़े।
प्रेम:
“अब हम तीन हैं… अलग नहीं।”
भाग 6 : साया लौटता है
फोन की घंटी।
अमर ने उठाया।
दूसरी तरफ ठंडी हँसी।
डॉक्टर एन. चंद्रन:
“भावुक मिलन मुबारक हो।”
अमर सख्त हो गया।
अमर:
“अब खेल खत्म है।”
डॉक्टर—
“खेल तब खत्म होता है… जब आख़िरी मोहरा गिरता है।”
फोन कट गया।
राज ने दाँत भींचे।
राज:
“वो मुझे वापस चाहता है… या मारना।”
भाग 7 : फैसला
प्रेम ने कहा—
“भाग सकते हैं… या सामना।”
अमर—
“भागना उसकी जीत होगी।”
राज ने पहली बार साफ़ कहा—
राज:
“मैं चलूँगा… सामने।”
शारदा देवी घबरा गईं।
शारदा देवी:
“नहीं… मैं फिर किसी बेटे को नहीं खो सकती।”
राज ने माँ के हाथ पकड़े।
राज:
“आज नहीं जाऊँगा तो… हर दिन मरूँगा।”
भाग 8 : जंग की तैयारी
रात।
गोदाम में तीनों भाई।
हथियार नहीं—योजना।
अमर—
“लैब का एक ही रास्ता है।”
प्रेम—
“और बाहर निकलने का?”
राज—
“या तो सब… या कोई नहीं।”
तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
भाग 9 : तूफ़ान से पहले की खामोशी
शांति नगर में दीया जल रहा था।
शारदा देवी भगवान के सामने बैठी थीं।
“मेरे बच्चों को बचा लेना…”
उधर—
डॉक्टर एन. चंद्रन ने स्क्रीन पर तीन चेहरे देखे।
“आओ… अब असली इलाज होगा।”