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सुर - 3

सुर

CHAPTER-03

JANVI CHOPDA

आगे आपने देखा,

परवेज़ ने गुस्से में आके बोल तो दिया, की कलेक्टर की बेटी का किडनेपिंग हो चुका है, लेकिन वाकेही में उसका कोई अत्ता-पत्ता नहीं था। कोई नहीं जानता था कि, "तारा" थी कहाँ ! क्योंकि कलेक्टेर ने उसकी सेफ़्टी का काम राका को सोपा था, और राका अपने किसी भी काम में क़सर नहीं छोड़ता। उसने "तारा" को कहीं ऐसी जगह छुपा रखा था, कि परवेज़ भी उसे ढूंढ नहीं पा रहा था।

अब आगे,

जुबेर, अमोल, मुकेश, अयान !_सब खड़े थे परवेज़ के सामने ! और वो कुर्सी पर बैठ कर आराम से जुल रहा था।

उसने कहाँ_ 'मुकेश ! सिगरेट नहीं पिलाओंगे आज अपने दोस्त को !?'

'अरे, क्यूँ नहीं भाई !'_ उसने सिगरेट जलाते हुए कहाँ।

2 मिनट तक कोई कुछ नहीं बोला। सब परवेज़ के सिगरेट पीने के उस अंदाज़ को देखते रहे।

वो धुंआ उगलते हुए बोला_ 'आज का नयाँ ज्ञान दोस्तों ! जानते हो...दोस्ती कैसी होती है ? बिलकुल इस सिगरेट की तरह...जब तक साथ रखो, तब तक ठीक ! और जैसे ही इसे कोई जलाने वाला मिल जाए, तो दुश्मनी का धुआँ उगलने लगती है ! क्यूँ, सही कहाँ ना मुकेश ?'

उतने में घड़ी के 5 ट्कोरें पड़े। शाम के 5 बज चुके थे। परवेज़ ने दादू को दिया वख्त खत्म हो चूका था, "तारा" के बारें में किसीको कोई इंफॉर्मेशन नहीं थी। और इस ओऱ परवेज़ डायलॉग-बाजी कर रहा था। 5 बजते ही दादू की एन्ट्री हुई...सब चौकन्ने हो गए। परवेज़ अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ, और उसी कुर्सी पर दादू बैठ गया। परवेज़ के अलावा हर कोई अपनी आँखे जुका के खड़ा था। दादू कौनसे सवाल करने वाला था, वो सब जानते थे, जिसके जवाब किसीको मालूम नहीं थे।

दादू ने कहाँ_ 'शिर जुका के गुनेहगार खड़े रहते है, तुम सब तो परवेज़ के मददग़ार हो ! और फिर रेस में वो दौड़ा करते है जिसे क़िस्मत आज़मानी हो, परवेज़ तो क़िस्मत से खेलना जानता है ! ख़ुशी मनाओं बच्चों, किडनेपिंग की पिच पे हमने सदी मारी है !'

सब परवेज़ की ओर दंग होकर देखने लगे...उन सबके चहरे पर सवालों के ढ़ेर थे।

उसने कहाँ_ 'सबके सवालों के जवाब मिलेंगे, लेकिन उसके पहले एक बहोत ही अहम काम तो कर ले !'

'अब क्या बाकि है, भाई ?'_अयान ने पूछा।

'जब भी कोई अच्छा काम होता है तो लोग मिठाईया बाँटते है, लेकिन हमारी मिठाई तो ये गोलियां है ! मतलब तुममें से किसीको तो आज ये गोली खानी पड़ेगी।'_ परवेज़ बंदुक निकालते हुए बोला।

'पागल हो गया है क्या ? कुछ भी बोल रहा है ! दादू, आप इसे कुछ कह क्यूँ नहीं रहे !?'_ जुबेर ने कहाँ।

'परवेज़, बात क्या है ?'

'एक बात बताओं आप सब मुझे ! अगर कोई घर का आदमी भेदी निकले तो ? अगर ग़द्दारी करे तो ! क्या करना चाहिए उसके साथ ?....दादू आप बोलो पहले !'

'साप को कितना भी दूध पिलाओ, वो ज़हर उगलना नहीं छोड़ता ! समझदारी उसी में है कि, उसे मार दिया जाए। _दादू ने कहाँ।

'जुबेर ! क्या सज़ा देनी चाहिए ?'

'मौत !'_जुबेर ने कहाँ।

'अमोल !?'

'मौत !'_अमोल ने कहाँ।

'अयान !?'

'मार डालना चाहिए, साले को !'

'मुकेश !?'

'मौत, भाई !'_मुकेश ने भी वहीँ कहाँ।

'अच्छा !? तो फिर यहाँ आ !'

मुकेश दबे पाँव परवेज़ के पास गया।

'तो, बोल ! किस हथियार से मरना पसंद करेंगा ? ये घोडा चलेगा?'_ परवेज़ ने पिस्तौल घुमाते हुए कहाँ।_ 'या फिर...दसवीं मंज़िल से धक्का मार दूँ तुजे?... तुजे ज़िंदा भी दफ़ना सकता हूँ मैं !...सीधा ही छुरा भौंक दूँ? ये सबसे अच्छा रहेंगा !...चल ये सब रहने दे, तू मेरा आदमी है, इस लिए बम्पर ऑफ़र देता हूँ तुजे ! चुल्लू भर पानी में डूब के भी मर सकता है तू !'

'बस, परवेज़ ! तेरा दिमाग तो ठीक है !? तू अपने ही आदमी को मारने की बातें कर रहा है ! आखिर किया क्या है, मुकेश ने !?'

'धोखा ! बेवफाई ! ग़द्दारी !...हमारे प्यारे काका- राका को हमारी सारी इंफॉर्मेशन देने वाला और कोई नहीं, यही था।'

'क्या !!'_सब एक साथ बोल पड़े।

'क्यों...सच कहाँ ना मैंने, मुकेश !...कितने पैसे देता था राका तुजे, इस नमक हलाली के लिए?'_ परवेज़ ने पूछा।

'वो....भाई...मैं...!'

'बोल, कमीने ! वरना...!'_इस बार परवेज़ ने पिस्तौल मुकेश के सिर पर रखी और चिल्लाया।

'एक खोखा, भाई !'

'ओह्ह, मतलब मैं देता था, उससे 25000 ज़्यादा !...तो तूने सिर्फ इतने पैसो के लिए मेरे से दुश्मनी मोल ली !...बहोत महेंगी पड़ेगी तुजे !'

परवेज़ ने खत्म भी नहीं किया, उतने मैं तो जुबेर ने आके मुकेश को ज़ोर से थप्पड़ मार दिया।

'मैं लाया था...तुजे, यहाँ पे ! भरोसा दिलाया था... दादू को, की मुझसे भी ज्यादा ईमानदार है, तू ! जिस घर का रखवाल बनाया तुजे, तूने उसी घर में डाका डाला !?'_ जुबेर ने कहा।

'हाँ, किया मैंने धोखा ! क्योंकि आज तक ईमानदारी कर के भी कौनसा तीर मर लिया !?...मैंने हमेशा आपके नक्शे-कदम पर अपने पाँव रखे, जुबेर भाई! लेकिन ना कभी आपने मुझे इज्ज़त दी, ना कभी दादू ने। यहाँ तो सुबह भी परवेज़ से होती है और शाम भी ! अरे , वो तो छोडो...यहाँ की तो हवाओं में भी परवेज़ पाया जाता है ! और ऐसी हवाओं में, मैं साँस नहीं ले सकता।'

'बस......बहोत हुआ, ये इमोशनल ड्रामा ! अब मुद्दे पे आते है। वैसे मैं किसीको उसकी आखिरी इच्छा पूरी का मौका तो नहीं देता, लेकिन तुजे और एक बम्पर ऑफ़र ! बता, मरने से पहले कोई विश !?'_परवेज़ बोला।

'मेरी कोई इच्छा नहीं है, बस इतना बता दो परवेज़ ! की तुम्हें पता कैसे चला ये सब कुछ!?'

'ओह्ह, तो अब "भाई" में से "परवेज़" !? "आप" से सीधा "तुम" !? बकरा भले ही हलाल होने जा रहा हो लेकिन शिंग मारना नहीँ भूलता ! चल, तो फिर बता ही देता हूँ तुजे ! आप सब भी मेरा राज़-ए-हुन्नर सुन लो.....दुनिया में तीन तरह के लोग होते है, एक "कम समझदार" , दुसरा "समझदार" , और तीसरा "कुछ ज्यादा ही समझदार"। में दूसरे टाइप का इंशान हूँ, यानी की "समझदार"...मुझे ये नहीं पता था कि हममें से वो है कौन जो यहाँ की A to Z इंफॉर्मेशन राका को पहोंचा रहा है, और नाहीँ मुझे किसी पे शक था।'

'अयान शहर से बाहर था, उसे इस क़िस्से के बारे में कुछ भी पता नहीं था, मतलब वो तो पुरे चित्र में कहीं था ही नहीँ। अब बचे जुबेर, अमोल और मुकेश ! साइन्स के टीचर ने मुझे सिखाया था, की हर एक्शन का कोई ना कोई रिएक्शन जरूर होता है। तो मुझे कुछ ऐसा करना था जिसका रिएक्शन, राका की तरफ से मिले।'

'तारा का लोकेशन तो मुझे 1 बजे ही पता चल चुका था, लेकिन मैंने किसीको नहीं बताई ये बात ! दादू को भी नहीं ! फिर मैंने जुबेर को बताया कि, "जैसे बगल में छोरा और गाँव में ढिंढोरा" ठीक वैसे ही हम तारा को ढूंढ तो चारों ओर रहे है, लेकिन राका ने खुद अपने ही फार्महाउस में उसे रखा होगा, इसीलिए हमारे आदमी 2 बजे उसके घर धावा बोल देंगे, उसी मौके का फायदा उठा के मैं खुद वहाँ जा के कलेक्टर की बेटी को उठा लाऊंगा।'

'अगर जुबेर ही वो धोखेबाज होता तो वो राका को सब कुछ बता देता, और राका "तारा" को किसी दूसरी जगह ट्रांसफर करवा देता, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। फिर मैंने जो बात जुबेर से करी वही बात अमोल से करी, लेकिन तीन बजे ! फिर भी राका का कोई रिएक्शन नहीं आया, इसलिए जुबेर और अमोल तो बेक़सूर साबित हुए। अब बचा था मुकेश ! इस बार मैंने प्लान थोड़ा चेंज किया। चार बजे तक तो मैंने तारा को किडनेप कर लिया था, उसके बाद मैंने मुकेश के सामने फ़ोन पर जूठी मुट्ठी बातें कि, की तारा को पनवेल के रास्तें से ना लाया जाया क्योंकि वहाँ पुलिस तैनात है, उसे अँधेरी स्टेशन के रस्ते से लाया जाए।'

'जैसेकि मैंने अंदाज़ा लगाया था, ठीक वैसा ही हुआ। मुकेश तीसरे किसम का, यानि की "कुछ ज्यादा ही समझदार" था। उस ओर राका का दिमाग पूरी तरह से सुन्न पड़ चूका था कि, आखिर इतनी कड़ी सिक्योरिटी के बाद तारा किडनेप हुई कैसे!? फिर मेरी सुनाई हुई सारी बातें मुकेश ने राका को बता दी, और इस एक्शन का रिएक्शन तो आना ही था ! हुआ यूँ की, राका ने अँधेरी स्टेशन के पूरे रास्ते पर अपने आदमियों की फ़ौज लगा दी, ताकि हम "तारा" को ले जा ना सके। मुकेश ने राका को ये भी बताया होगा की मैंने दादू को शाम के पाँच बजे तक की मौहलत दे रखी थी। इसलिए उसके आदमियों ने शाम तक इंतज़ार किया, लेकिन कोई उस रास्ते पर फरका तक नहीं, क्योंकि "तारा" तो बहोत पहले ही किडनेप हो चुकी थी ! धेट्स ऑल !!'

'दादू सही कहते है, माधपुड़ा जितना मीठा हो, डंख उतने ही ज्यादा देता है ! जिसने तूजे एक नइ ज़िंदगी दी, आज वहीँ तेरी साँसे बंध कर के उस ज़िंदगी को ख़त्म कर देगा।'_ जुबेर मुकेश के सामने पिस्तौल तानते हुए बोला।

'भाई, माफ़ कर दो भाई ! प्लीज, एक मौका दे दो ये सब सुधारने का ! प्लीज, भाई !' _मुकेश घुटनों पे गिर के जुबेर से कहने लगा।

'मौका और माफ़ी तो सिर्फ गलतियों के लिए मिलते है ! तुमने तो गुनाह किया है, जिसकी सिर्फ सज़ा होती है।'_परवेज़ ने कहा।

जुबेर की नर्म हुई आँखे देखकर दादू बोला_ 'ग़हरी सोच फैसलो को कमज़ोर बना देती है, जुबेर ! सोच क्या रहे हो, तुम्हारे सामने एक गद्दार खड़ा है और तुम्हें उसे सज़ा देनी है।'

दादू की आवाज़ सुनते ही जुबेर ने ट्रिगर दबाया और एक ही साथ में पाँच गोलियाँ मुकेश की छाती के अंदर !!

पुरे 20 मिनट तक सन्नाटा रहा। जुबेर थोड़ा सदमें में लग रहा था। दूसरे आदमियों ने लाश को ठिकाने लगाया, क्योंकि दादू के नियमों के हिसाब से धोखा करने वाला आदमी चाहे कितना भी अपना हो, उसकी कोई भी अंतिम विधि नहीं की जाती। अमोल से रहा ना गया, उसने पूछ ही लिया_ 'भाई, ये सब तो समझ में आया लेकिन ये समझ नहीं आया की आखिर "तारा" को किडनेप किया कैसे आपने? वो भी इतनी टाइट सिक्योरिटी के होते हुए !'

'उससे भी बड़ा सवाल तो ये है, कि तुजे पता कैसे चला परवेज़ ! की "तारा" को राका ने कहाँ छुपा रखा है ? जबकि कलेक्टर खुद अपनी बेटी के बारे में नहीं जानता था !'_ जुबेर ने पूछा।

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