अनसुनी यात्राओं की नायिकाएं - Novels
by Pradeep Shrivastava
in
Hindi Fiction Stories
ढेरों रंग-गुलाल से भरी होली एकदम सामने अठखेलियां करने लगी थी. फाल्गुन में फगुनहट जोर-शोर से बह रही थी. पेशे से तेज़-तर्रार वकील, मेरे एक पारिवारिक मित्र 'दरभंगा' से वापस 'लखनऊ' आ रहे थे. इस यात्रा के दौरान ट्रेन ...Read Moreउनके साथ बड़ी ही अजीब घटना हुई.
ऐसी कि परिवार नष्ट होते-होते बचा. परिवार के सकुशल बच जाने का पूरा श्रेय वो ईश्वर और अपनी ब्रॉड माइंडेड पत्नी को देते हैं. यह अक्षरश: सत्य भी है. क्यों कि, यदि उनकी पत्नी बहुत सुलझे, खुले विचारों वाली नहीं होती, तो परिवार का बिखरना सुनिश्चित था.
घटना से वह इतना आहत थे कि, पूरी होली किसी से मिलने नहीं गए. पचीस वर्ष में पहली बार मेरे यहाँ भी नहीं आए. होली बीतने पर जब मैंने फ़ोन किया तो बड़े अनमने ढंग से बोले,'आता हूँ किसी दिन.'
दो दिन बाद रविवार को आए तो उसी समय उन्होंने उस अजीब घटना के बारे में मुझे बताया. जिसे सुनकर मैं अचंभित रह गया. घटना पर विश्वास करना मेरे लिए बड़ा कठिन हो रहा था. मैंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था, न ही कभी किसी से सुना या पढ़ा था कि, ट्रेन में ऐसा भी हो सकता है.
मेरे वह मित्र झूठ का सच, सच का झूठ करने वाले पेशे के ऊंचे खिलाड़ी हैं. लेकिन व्यक्तिगत जीवन में समान्यतः वह सच ही बोलते हैं. अपनी बात को सीधे-सीधे मुखरता से कह देते हैं. किसी को बुरा लगेगा या भला, इसकी परवाह रंच-मात्र नहीं करते.
मैंने उनकी बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा,' समझ नहीं पा रहा हूं कि, इस घटना को आपके लिए अच्छा कहूं या बुरा, खुशी व्यक्त करूं या दुःख.'
(उपन्यास) प्रदीप श्रीवास्तव **** समर्पित पूज्य पिता ब्रह्मलीन प्रेम मोहन श्रीवास्तव जी एवं प्रिय अनुज ब्रह्मलीन प्रमोद कुमार श्रीवास्तव, सत्येंद्र श्रीवास्तव की स्मृतिओं को ****** भाग 1 ढेरों रंग-गुलाल से भरी होली एकदम सामने अठखेलियां करने लगी थी. फाल्गुन ...Read Moreफगुनहट जोर-शोर से बह रही थी. पेशे से तेज़-तर्रार वकील, मेरे एक पारिवारिक मित्र 'दरभंगा' से वापस 'लखनऊ' आ रहे थे. इस यात्रा के दौरान ट्रेन में उनके साथ बड़ी ही अजीब घटना हुई. ऐसी कि परिवार नष्ट होते-होते बचा. परिवार के सकुशल बच जाने का पूरा श्रेय वो ईश्वर और अपनी ब्रॉड माइंडेड पत्नी को देते हैं. यह अक्षरश:
प्रदीप श्रीवास्तव भाग 2 ट्रेन चल दी थी, चाय वाला उस गति से आगे नहीं आ पाया. उसके हाथ में चाय की केतली, बांस की डोलची थी, जिसमें डिस्पोजल कप, कुल्हड़ दोनों ही थे. मैंने मन में कहा कोई ...Read Moreनहीं, इस समय चाय की ज्यादा जरूरत है.... '' अर्थात एक बार फिर आपके साथ अच्छा नहीं हुआ.'' '' हाँ, कह सकते हैं, क्योंकि वह एक चाय मुझे पचास रुपये की पड़ी. चाय जब खत्म की तो सोचा, देखूं तीनों परिवार हैं कि गएँ. जाकर देखा तो वहां कोई नहीं था. मन ही मन कहा कि, हद हो गई, इतने
प्रदीप श्रीवास्तव भाग 3 मैं बड़ी कोशिश करके भी, अपनी दृष्टि उसके स्तनों पर से हटा नहीं पा रहा था. दूध की धार निकाल कर, उसने एक नजर मेरी आंखों में देखा, कुछ इस भाव से कि, अब बताओ, ...Read Moreठीक कहा कि नहीं. वह बच्चे को फिर से दुलारने लगी. लेकिन स्तन को कुर्ती में वापस नहीं ढंका. वे खुले ही रहे. वह बच्चे के साथ खेलती रही, निरर्थक बातें भी बोलती रही. इसी बीच गाड़ी धीमी होने लगी. मैं अंदर ही अंदर बहुत तेज़ उबलना शुरू हो गया था. मन में डरावने काले बादलों का भयानक तूफ़ान उठ
प्रदीप श्रीवास्तव भाग 4 इतना कह कर वकील साहब फिर ठहर गए. फिर मेरी आँखों में गौर से देखते हुए बोले,'' लेखक महोदय अपनी कलम से न जाने कैसे-कैसे, एक से एक अद्भुत दृश्य आपने कागज़ पर रचे होंगे. ...Read Moreउस समय मैंने जिस अद्भुत, अकल्पनीय दृश्य को देखा, वो आज भी मेरे मन-मस्तिष्क में कैद है. इस समय भी मुझे ऐसा महसूस हो रहा है, जैसे कि मैं उसी बोगी में, उसी स्थिति में, उस अद्भुत दृश्य को देख रहा हूँ. जैसे किसी आर्ट फिल्म का दृश्य हो. सोचिये एक युवा स्त्री, गोद में अपने शिशु को लिए, बिलकुल
प्रदीप श्रीवास्तव भाग 5 मैं भी हंसा तो वह आगे बोली, 'जो भी हो, अपने मजे के लिए उन बेचारों को परेशान करना अच्छा नहीं था. दोनों ही बहुत ही शर्मीले हैं. मुझे दूध पिलाते देख उलटे पाँव लौट ...Read Moreआदमी दो बार बोला 'क्षमा कीजिएगा, क्षमा कीजिएगा.' बेचारे नए-नए मियां-बीवी हैं. पहली होली में बीवी को लेकर अपनी ससुराल जा रहा होगा. होई सकत है कि, हम लोगन की तरह उनकी भी ट्रेन छूट गई हो.' उनके लिए उसकी सहानुभूति देख कर मैंने कहा, ' घबराओ नहीं, मैंने उनकी ख़ुशी का भी पूरा ध्यान रखा है. उनके लिए भी
प्रदीप श्रीवास्तव भाग 6 मैंने उससे कहा कि, मैंने घर मिसेज़, बच्चों से बात कर ली है. तुम्हारे पति का कोई नंबर हो तो बताओ, बात करा दूँ. इस पर वह बड़ी कड़वी हंसी हंस कर बोली, 'कैसा घर, ...Read Moreकिसी को मेरी चिंता नहीं है. इसलिए बताया भी नहीं है कि, मैं आ रही हूं.' उसकी स्थिति समझते हुए, मैंने तुरंत विषय बदल कर कहा, 'कोई बात नहीं, चाय पीजिए ठंडी हो रही है. खाना वगैरह मिलने की तो अब कोई उम्मीद नहीं है. केला, संतरा जो हैं, वह भी आगे थोड़ा-बहुत काम देंगे.' वह चाय पीती हुई बोली,
प्रदीप श्रीवास्तव भाग 7 मैंने सोचा कि, इससे पूछ ही लूँ ऐसे फूहड़ तरीके से दूध पिलाने के बारे में. चाय देते हुए कहा, 'पिछले दो स्टेशन पर कुछ ले ही नहीं पाया, खाने का टाइम हो रहा है, ...Read Moreकिसी स्टेशन पर मिलेगा तो ले आऊंगा.' मोहतरमा ने चाय लेते हुए कहा, ' इतना परेशान ना हो, केला, संतरा, सेब, सब ले चुके हो. इसी से काम चल जाएगा.' उसने बिलकुल पत्नी के से अंदाज़ में कहा, तो मैं उसे गौर से देखने लगा. इस पर वह बोली, 'ऐसे क्या देख रहे हो?' अब-तक मेरी नजर बच्चे, दूसरे स्तन
प्रदीप श्रीवास्तव भाग 8 (अंतिम भाग) उसने मेरे इस स्पष्टीकरण को सुनने लायक भी नहीं समझा कि, मैं तो आगे बढ़ा ही नहीं था, उसने ही मुझे खींच कर गिरा लिया था खुद पर. ऐसे में मैं क्या करता? ...Read Moreक्या, कोई भी मर्द उस स्थिति में खुद को संभाल ही नहीं सकता था. कोर्ट में खुर्राट से खुर्राट न्याय-मूर्तियों को भी अपनी बात सुना कर ही मानने वाला, मैं घर में पत्नी के कठोर ऑर्डर-ऑर्डर वाले हथौड़े की भारी-भरकम चोट से कुचल कर शांत हो गया. वह मुझे अपनी छाया के पास भी फटकने नहीं दे रही थी. घर