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गली बॉय फिल्म रीव्यु

फिल्म रिव्यूः ‘गली बॉय’… बात बन जाती अगर कहानी में होता दम…

'अपना टाइम आएगा...' फिल्म ‘गली बॉय’ की कहानी इस एक गाने में समा जाती है.

फिल्म की कहानी समाज के दबे-कुचले वर्ग की है जो अभावों में जीते हैं, और सामाजिक बहिष्कार का सामना करते रहते है. मुंबई की धारावी झोंपडपट्टी में रहने वाले मुराद (रणवीर सिंह) को रैपर बनने की चाह है, लेकिन उसके घरवाले इसके खिलाफ है. एक छोटे से घर में मुराद अपनी अम्मी, पिता, दादी, छोटे भाई और छोटी अम्मी के साथ रहते हैं. बाप आफताब शेख (विजय राज) से मुराद की बिलकुल भी बनती नहीं है. मेडिकल की छात्रा सफीना (आलिया भट्ट) मुराद की गर्लफ्रेंड है और उनके लिए काफी पजेसिव है. जिंदगी के खस्ता हालात मुराद के अंदर आक्रोश भर देते हैं जिसे वो अपने रैप के जरीए पेश करता है. क्या वो सफल रैपर बन पाता है..?

रीमा कागती और जोया ने मिलकर इस फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखा है जो की काफी साधारण और सरल है. इतना सरल के उसकी वजह से पूरी फिल्म कमजोर पड जाती है. न तो कहानी में कोई सरप्राइजिंग ट्विस्ट आता है और न ही कोई ड्रामा क्रिएट होता है. हां, फिल्म में पात्रो का गठन करने में महेनत की गई है और वो पर्दे पर साफ दिखता है. जमीन से जुड़े किरदारों को सभी कलाकारों ने बखूबी पेश किया है. फिल्म का सबसे मजबूत पासा ही इसका एक्टिंग डिपार्टमेन्ट है. संघर्षशील युवा के रोल में रणबीर छा गए है. रैपर बनने के जूनून, स्ट्रगल को उन्होंने बहोत ही बढ़िया तरीके से पेश किया है. फिल्म के हिट हो चुके रैप गाने उन्होंने खुद गाए है, और काफी लाजवाब ढंग से गाए है. उनका लूक बहोत ही रियल लगता है. डार्क मेकअप की वजह से सच में लगता है की वो झोंपडपट्टी की पैदाइश है. तकरीबन पूरी फिल्म में सभी कलाकारों को बिना मेकअप के दिखाया गया है, जो की फिल्म के माहोल के साथ जचता है.

बिंदास, बोल्ड और आक्रमक लड़की के रोल में आलिया भट्ट ने भी जबरदस्त अभिनय किया है. रणवीर के साथ उनकी केमेस्ट्री खूब रंग लाई है. दोनों के बीच तीन-चार किसिंग सीन है, जो की अच्छे है. रणवीर के खड़ूस पिता के रोल में विजय राज भी काफी सराहनीय है. कल्कि कोचलिन का रोल छोटा है लेकिन फिर भी वो अच्छी लगीं. रणवीर के साथ उनके किसिंग सीन भी मजेदार लगे. मुराद के दोस्त मोईन के रोल में विजय वर्माने भी तगडा परफोर्मन्स दिया है. फिल्म का सबसे बडा सरप्राइजिंग पैकेज है एम.सी. शेर की भूमिका निभानेवाले सिद्धांत चतुर्वेदी. उनका स्क्रिन प्रेजन्स इतना बढिया है की लगता नहीं के ये उनकी पहेली ही फिल्म है. रैपर के एटिट्यूड, बॉडी लैंग्वेज, स्वैग और एक्सप्रेशन को उन्होंने बखूबी दर्शाया है. लगता है की एक एक्टर के तौर पर उनका भविष्य उज्ज्वल होगा. बाकी के कलाकारोंने भी अपनी अपनी भूमिका में जान डाल दी है.

जय ओझा के केमेरे ने धारावी और मुंबई को अच्छा कैप्चर किया है. मूवी के डायलोग्स असरदार है. फिल्म के सभी गाने रैप स्टाइल के है, तो जिनको पसंद आएंगे उनको आएंगे, बाकी जिनको समज में नहीं आएंगे उनको बोर करेंगे. देश की युवा पीढी रैप कल्चर से आकर्षित है, तो उनके लिए इस फिल्म से कनेक्ट करना आसान है, लेकिन जो लोग रैप कल्चर से अनजान हैं उनको इस फिल्म का म्युजिक शायद पसंद नहीं आएगा.

इससे पहले 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' और 'दिल धड़कने दो' जैसी कमर्शियल और मसालेदार फिल्मों का निर्देशन कर चुकी जोया अख्तर का निर्देशन तो ‘गली बॉय’ में भी बहोत उमदा है, सभी कलाकारों से उन्होंने टोपक्लास अभिनय करवाया है, और फिल्म के टेक्निकल पासें भी एक नंबर है, लेकिन सबसे जरूरी होती है दमदार कहानी, और यहां ‘गली बॉय’ मार खा जाती है. फिल्म जरूरत से ज्यादा (दो घंटे तीस मिनट) लंबी है और इसका अंत भी निराशाजनक है. फिल्म में मनोरंजन की कमी है. अगर आप फिल्में एंटरटेनमेंट के लिए देखते है तो ‘गली बॉय’ आपको निराश करेगी. कुछ हटके देखनेवालों को ये फिल्म पसंद आएगी. मेरी तरफ 5 से में से 3 स्टार्स.