Him Sparsh - 58 books and stories free download online pdf in Hindi

हिम स्पर्श- 58

58

वफ़ाई और जीत झूले पर थे, एक साथ, प्रथम बार, वास्तव में। दोनों एक दूसरे के अत्यंत समीप थे।

“पिछले सात घंटों से हमने एक भी रेखा, एक भी बिन्दु चित्रित नहीं किया, जानते हो तुम जीत?” सात घंटों के मौन के पश्चात वफ़ाई ने कुछ शब्द कहे।

“तो क्या हमने यह सात घंटे व्यर्थ नष्ट किए हैं?” जीत ने वफ़ाई को छेड़ा।

“चित्र कला की द्रष्टि से कहें तो हाँ, हमने नष्ट किए हैं यह सात घंटे।“ वफ़ाई ने भी जीत को छेड़ा। वफ़ाई के अधरों पर नटखट स्मित था। जीत ने उत्तर में स्मित दिया।

जीत झुले से उठा और केनवास पर गया। उसने चित्राधार पर एक नया, सफ़ेद, खाली केनवास लगा दिया।

वफ़ाई झूले पर ही बैठी रही, जीत के कार्यों को निहारती रही।

“केनवास पर जो जीत है वह भिन्न है। कितना आत्म विश्वास से भरा है जीत! जीत तुम मुझे पसंद आने लगे हो।“ वफ़ाई मन ही मन बोली।

“प्रीत किसी शुष्क ह्रदय में भी विश्वास भर देता है।“ वफ़ाई बोली। उसे अपने ही शब्द पसंद आ गए। उस के अधरों पर स्मित था।

इस क्षण कोई चित्र रचाने मे वफ़ाई की रुची नहीं थी। नए नए बने स्नेह के विश्व में वह रहना चाहती थी। जब से जीत ने उस की प्रीत का स्वीकार किया था तब से प्रत्येक व्यतीत की गई क्षण को वह मन ही मन याद करना चाहती थी, उस में खो जाना चाहती थी। वह क्षण उसे आकर्षित कर रही थी। वह उस में खो गई। वह भूल गई कि उस की प्रीत, उस का जीत सब उस के सामने थे।

चित्र बनाते बनाते एकाध घंटा व्यतीत हो गया। जीत रुका, चित्र को निहारा, स्मित दिया और वफ़ाई की तरफ मुड़ा।

वफ़ाई कोई भिन्न विश्व में थी जैसे गहन ध्यानावस्था में हो। एक दिव्य प्रतिमा सी लग रही थी वह।

“वफ़ाई, अत्यंत मोहक मुद्रा है यह तुम्हारी। तुम्हें देख कर मेरे मन में एक विचार जन्मा है। मैं इस विचार को मेरी मुट्ठी में बंदी बना लेता हूँ।“

उस क्षण के मौन को भंग किए बिना, वफ़ाई को विक्षेपित किए बिना जीत ने केनवास बदल दिया। उस ने शीघ्र ही उसे रंगों से, आकारों से भर दिया। कुछ आकृतियाँ प्रकट हो गई केनवास पर। जीत ने पुन: वफ़ाई को देखा, वह अभी भी ध्यान मग्न थी।

जीत धीरे धीरे चलते हुए झूले पर वफ़ाई के निकट बैठ गया। एक मृदु घात को झूले ने झेला। किन्तु वफ़ाई उसे झेल नहीं सकी, वह ध्यान से जाग गई।

“जीत तुम?”

जीत स्मित कर रहा था।

“जीत, तुम हंस क्यों रहे हो?” वफ़ाई ने पूछा।

“कुछ भी तो नहीं।“ जीत खुलकर हंस पड़ा।

“कहीं कुछ अनुचित तो नहीं...?”

“मुझे ऐसा नहीं लगता।“

“तो तुम क्यों हंस रहे थे?”

“मुझे आश्चर्य हो रहा है कि कैसे...?’

“क्यों आश्चर्य हो रहा है? मैंने तुम्हें तुम्हारे हंसने का कारण पूछा था। उत्तर देने से तो रहे तुम, तुमने एक नयी बात सामने रख दी। तुम मुझे दुविधा में डाल देते हो, जीत।“

“सभी लड़कियों में यह सौन्दर्य होता है, तुम भी...।”

“फिर नयी बात? तुम भी ना, बार बार नई बातें करते रहते हो।“

“क्रोध से तुम्हारे गाल लाल, नहीं, गुलाबी हो गए हैं। श्वेत गालों वाली पर्वत कुमारी के गाल गुलाबी हो गए। गालों का यह गुलाल सुंदर है, मन मोहक है। ऐसा प्रतीत होता है कि पुर्णिमा के चंद्र पर कोई गुलाब खिला हो। इन गुलाबी गालों को बस देखता रहूं।”

“ऐसे ना देखा करो। मैं...।” वफ़ाई ने पलकें झुका दी,”क्या देख रहे हो? यह भी कोई पहेली तो नहीं? मैं उस का भेद नहीं पा रही।”

“जब कोई लड़का गुलाब को देख रहा हो तो उस में विक्षेप नहीं किया करते। गुलाब को भी उस में विक्षेप नहीं करना चाहिए। बस, मुझे देखने दो।”

“ओह प्रीत कुमार।” वफ़ाई ने जीत का हाथ पकड़ा। जीत ने हाथ को देखा, गुलाबी रंग हाथों तक व्याप्त हो गया था।

“कहो हिम कुमारी, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?”

“जो भी पहेलियाँ अभी रची थी उस का भेद एक एक करके खोल दो।“

“अवश्य। गिनते रहना। यदि मैं कोई चूक जाऊं तो मुझे बता देना।“

“ओ छोकरे सीधे सीधे बात पर आ जा।“

“प्रथम, मैंने स्मित किया था क्यों कि तुम सुंदर दिख रही हो। उस अनुपम सौन्दर्य की आभा तुम्हारे मुख पर दिखाई दे रही है। मेरा स्मित मेरी प्रसन्नता प्रकट करता है।

दूसरा, मैं खुलकर हंसा था क्यों कि मैंने तुम्हारे अंदर आए परिवर्तन को देख लिया है। पहले मैं किसी भिन्न जगत में जी रहा था, जो मेरी कल्पना से भरा था, मेरे स्वप्न से भरा था। अब तुम जी रही हो ऐसे किसी जगत में।”

“क्या?”

“जब मैं चित्र रच रहा था तब तुम किसी भिन्न ब्रह्मांड में थी। मैंने सुना है कि वैज्ञानिकों ने नयी सूर्यमला, नया ब्रह्मांड तथा नई पृथ्वी भी खोज निकाली है। वह कहते हैं कि हजारों सूर्य है, हजारों सूर्यमाला है, हजारों ब्रह्मांड है। तो इस में से तुम किस पर थी?”

“यदि तुम जो कह रहे हो वह सत्य है तो उन में से किसी में भी मैं रहने को उत्सुक हूं। तुम चलोगे मेरे साथ? चलो चलते हैं।” वफ़ाई उत्तेजना से भरी थी।

“अवश्य। मैं तैयार हूं।“

“तो चलो।” वफ़ाई चलने लगी।

“रुको, वफ़ाई अभी रुक जाओ। अभी नहीं फिर कभी हम चलेंगे।“

“क्यों? अभी क्यों नहीं?”

“वहाँ तक यात्रा करने के लिए तुम्हारी जीप में पर्याप्त ईंधन नहीं है।“ जीत की इस बात पर दोनों हंसने लगे।

“आगे कहो, चलो।“

“तुम्हारे जैसा सौन्दर्य...!”

“मेरे जैसा? अर्थात कैसा?”

“कृत्रिम क्रोध लड़कियों का सौन्दर्य होता है, तुम्हारे पास भी है। मुझे भा गया तुम्हारा यह क्रोध।“

“तो सहज क्रोध भी होता है। तुम उस क्रोध को सह नहीं सकोगे।”

“तुम कभी सहज क्रोध कर ही नहीं सकती।“

“तुम्हें मुझ पर अधिक विश्वास है।“

“मेरा विश्वास तो है कि मैंने सभी बात स्पष्ट कर दी है। पर्वत सुंदरी इस बात से सहमत है? संतुष्ट है?”

“मुझे देखने दो, कहीं कुछ छूटा तो नहीं।“ वफ़ाई विचारने लगी,” एक बात तुम भूल गए।“

“बता दो।”

“तुम्हें विस्मय हुआ था।”

“मुझे विस्मय हुआ था। मुझे तो अभी भी विस्मय हो रहा है।“

“कहो। क्या है वह?”

“क्या प्रीत किसी व्यक्ति को भिन्न व्यक्ति बना देता है?”

“?”

“कल तक यह जगत तुम्हारे लिए वास्तविक जगत था और मैं जिस जगत को देखता था वह भिन्न था। मैं मानता था कि यह विश्व वास्तविक नहीं है, केवल भ्रांति है। अत: मैं सदैव भिन्न जगत में जीता रहता था। इस जगत में मेरी कोई रुचि नहीं रही थी। आज, मैं मानने लगा हूं कि यह जगत ही सत्य है। कल मैं इस जगत से भाग जाना चाहता था, किसी अन्य जगत में, भले ही उस जगत का कोई अस्तित्व हो अथवा नहीं हो।”

“बात तो तुम रसभरी कह रहे हो, जीत।“

“इस का दूसरा हिस्सा अधिक रुचिकर है।“

“दूसरा हिस्सा भी है? कहो।“

“हाँ, है। वह तुम्हारे विषय में है। मैं जब भी इस भिन्न जगत में रहता था तुम चिड जाती थी। आज जब मैंने चित्र पूर्ण किया तब देखा कि तुम उस जगत में थी। अब तुम मानती हो ना कि वह जगत का भी अस्तित्व है और उस में रहना तुम्हें पसंद है।“

“क्या नाम है उस विश्व का?”

“कोई नाम नहीं है। तुम उसे नाम दे सकती हो। वह जगत इस जगत से भिन्न है जहां कल्पना, स्वप्न, भाव, आनंद, प्रीत आदि रहते हैं। तुम उस जगत को कोई भी नाम दे दो। बस, इतना ध्यान रहे कि वह इस जगत से भिन्न है।“

“मुझे भी ऐसा ही लगता है।“

“किन्तु प्रश्न यह है कि कोई नहीं जानता कि कौन सा विश्व सत्य है और कौन सा भ्रांति?”

“यह भी रुचिकर बात है, जीत।“

“तो मुझे विस्मय यही है कि प्रीत ने हम दोनों को कैसे विरूध्ध भावों में बदल दिया।“

“तुम इस जगत को चाहने लगे हो और मैं उस जगत को।“

“यही तो मैं कह रहा हूं।“

“यह तो अदभूत है, जीत।“ वफ़ाई गगन को देखती रही।

“इस वास्तविक जगत को छोडकर तुम इस मरुभूमि में क्यों रहने लगे?“ वफ़ाई ने उस प्रश्न को छेड दिया जिसे जीत लंबे समय से टाल रहा था।

‘वफ़ाई, मेरी दुविधा है कि मैं तुम से मेरी यह बात कहूँ अथवा नहीं।‘ जीत ने स्वयम से कहा।

“मैंने जो अभी चित्र बनाया है उसे तुम देखना चाहोगी? आओ मेरे साथ।” जीत केनवास की तरफ चलने लगा।

“जीत, रुक जाओ। तुम्हारे चित्र से अधिक मेरी रुचि मेरे प्रश्न के उत्तर में है।“

जीत रुक गया, वफ़ाई की तरफ मूड गया। वफ़ाई के मुख पर अनुरोध था, रहस्य को खोल देने का। “वफ़ाई, यह आँखें मेरे इस रहस्य से अत्यंत पीड़ित हुई है। अब उस रहस्य को रहस्य रखने में...।“

जीत मौन हो गया। आँखें बांध कर ली तथा गहन विचार में डूब गया। लंबे विचार के पश्चात उसने निर्णय कर लिया,’अभी मैं कुछ नहीं कहूँगा।‘

वफ़ाई जीत के भावों को देख रही थी। उसके गुलाबी गाल भीगे थे। उसकी आँखों से अश्रुओं ने गालों तक यात्रा कर ली थी। वफ़ाई आक्रंद कर रही थी।

वफ़ाई की विलाप कर रही आँखें कई बात पूछ रही थी,’क्यों जीत अपना रहस्य खोल नहीं रहा? क्यों वह अपनी पीड़ा में मुझे हिस्सेदार नहीं बना रहा? क्यों वह अपने ह्रदय में मुझे प्रवेश नहीं करने दे रहा? वह मेरा विश्वास क्यों नहीं कर रहा? मैं उसे पत्येक मोड पर साथ देना चाहती हूं, साथ साथ चलना चाहती हु, किन्तु वह मेरे साथ क्यों नहीं चल रहा? वह क्या है जो उसे मेरा साथ लेने से रोक रहा है?”

‘मैं तुम्हारे सभी प्रश्न जानता हूं, वफ़ाई।‘ जीत स्वयं ही बोला।

जीत ने वफ़ाई की आँखों में देखा, वह अभी भी विलाप कर रही थी। वह निश्चल सी खड़ी थी। जैसे कोई आक्रंद करती प्रतिमा।

“वफ़ाई, तुमने आज पहली बार क्रंदन किया है। तुम तो द्रढ़ मनोबल वाली लड़की हो। तुम्हारी द्द्ढता मेरी भ्रांति नहीं हो सकती।“

“जीत, द्रढ़ लड़की के अंदर मृदु भावों वाली कोई लड़की भी होती है।“ वफ़ाई के अश्रुओं की एक बूंद जीत के मन को स्पर्श कर गई। उस बूंद ने जीत की आँखों से भी कुछ बुँदे निकाल दी। जीत ने उसे बहने दिया। अनेक अश्रु बूंदें निकल आई।

जीत वफ़ाई के पास दौड़ गया। अपने हाथों से उन गालों की बूंदों को पोंछ दिया। कुछ नयी बूंदें गालों पार आ गई। जीत ने उसे भी पोंछ दिया।

वफ़ाई ने देखा कि जीत के गाल भी भीगे हैं, उस ने जीत के गालों से अश्रु बुँदे हटा दी।

वफ़ाई जीत के अश्रु पोंछते पोंछते पुन: रोने लगी। वह कंप रही थी। जीत ने उसे संभाल लिया, उस के माथे पर तथा बालों में उँगलियाँ फेरने लगा। वह जीत को लिपट गई। जीत ने उसे अपने आलिंगन में बांध लिया। मृदु स्पर्श ने काम किया। वफ़ाई शांत हो गई, स्वस्थ हो गई। जीत के आलिंगन से मुक्त होकर वह झूले पर बैठ गई, जीत भी।

“जीत...।” जीत ने वफ़ाई के अधरों पर उंगली रख दी, वफ़ाई मौन हो गई।

“मुझ पर विश्वास रखो। मैं सब कुछ बता दूंगा। मुझे समय दो कि यह सब कहने के लिए मैं साहस जुटा सकूँ।”

“और अधिक कितना समय मांगोगे, जीत? मैं ने प्रथम दिवस से ही प्रतीक्षा की है, इतने दीवस तक मैंने धैर्य रखा है किन्तु अब नहीं। मेरा मन कह रहा है कि…।”

“वफ़ाई, बस कुछ घंटे की बात है। मैं वचन देता हूँ कि आज रात्रि तुम अपने प्रश्नों के उत्तर के साथ शयन करोगी।“जीत ने स्मित किया, वफ़ाई ने भी।