Jhuki hui phoolo bhari daal - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

झुकी हुई फूलों भरी डाल - 4

झुकी हुई फूलों भरी डाल

[कहानी संग्रह ]

नीलम कुलश्रेष्ठ

4 - आर्तनाद

कुलधरा !कहीं वह गलती से कुलधरा गाँव में तो नहीं आ निकली ?जहां के सारे लोग रातों रात अपना सामान और मवेशी लेकर गायब हो गए थे क्योंकि गाँव की एक लड़की की इज़्ज़त का प्रश्न था, फिर कभी वापिस नहीं लौटे। सारा गाँव ऐसे ही उजड़ा पड़ा रहा। सूनी गलियां, बंद दरवाज़े, खिड़कियाँ, इधर उधर औचक देखती झूमती पेड़ों की पत्तियां और रुंधे गले से सरसराती हवा ----जैसे उसका गला दबाने की कोशिश की गई हो। नहीं, नहीं वह तो मोबाइल में नक़्शे को बहुत ध्यान से देखते हुए बहुत सावधानी से इस गाँव में पहुँची है, जो सारे देश केअखबारों की सुर्खियाँबना हुआ है. सुबह के ग्यारह बजे ही सांय सांय करते गाँव में वह अपनी जीप एक नीम के पेड़ के नीचे खड़ी करके ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर घूम रही है। इसे किसी छोटी पहाड़ी को काटकर बसाया गया है। वो तोअच्छा है अखबार के संपादक मिस्टर सिंह ने जीप अरेंज कर दी थी वरना वह तो अनगढ़ स्टाफ़ कार से ही आती।

तभी उसे घरों के पीछे से गाय या भैंस के रम्भाने की आवाज़ सुनाई देती है --इस समय मवेशी गाँव में ?इस समय तो इन्हेंआस पास के जंगलों में चराने के लिए ले जाया जाता है। इसका मतलब तो कोई जंग खाये कुंडी दरवाज़ों के पीछे है । थेंक गॉड !ये कुलधरा नहीं है। तीन चार गलियों को पार करके उसे सामने सफ़ेद पुताई किये एक छोटे से घर पर एक बोर्ड दिखाई -` पंचायत घर `-- उफ़ ! उसके सामने के समतल छोटे से मैदान मे भीड़ जुटी होगी, साज़िश रची गई होगी।वह अपना कैमरे से खटाखट फ़ोटो लेने लगती है लेकिन उसका दिल व हाथ क्यों थरथरा रहे हैं ?क्या किसी स्त्री वजूद के तार तार हुए टुकड़ों के स्थल को कैमरे में समेटना इतना आसान होता है ?कैमरे में दिल नहीं होता लेकिन-----. क्यों कोई काले बालों के उड़ते कतरे उसकीआँखों मे धंसे जा रहे हैं। ये हवा में उड़ते, उसके चेहरे से चिपकने का अहसास कराते काले बाल किसके हैं ---डायन के ---या चुड़ैल के? या ----.

उसने तो सिंह साहब से बहाना बनाया था,"सर !मैं इस गांव जाकर क्या करूंगी ?सब कुछ तो खुली किताब है। कितने अखबार, कितने चेनल्स उस गाँव में पहुंच गए हैं।"

"नो, नो, माई सिक्स्थ सेंथ इज़ टेलिंग मी देयर इज़ अ स्टोरी बिहाइंड दिस स्टोरी। यू मस्ट एक्सप्लोर दिस।"

"बट हाउ केन कम्युनिकेट विद विलेज पीपल ?आई कान `ट स्पीक मारवाड़ी ?"उसकी कॉन्वेन्टी नाक इतराई थी।

सिंह साहब आगबबूला हो गए थे,"तो क्यों यहां काम करने आईं ?डेल्ही में काम नहीं था ? मारवाड़ी कोई साउथ इंडियन लैंग्वेज है जो समझ नहीं आएगी ?"

वह सिर झुकाकर उनके केबिन से निकल आयी थी। बेमन वह यात्रा की तैयारी करती रही थी। कुछ सम्पर्क खोजकर फ़ोन करती रही थी. उसने मोबाईल में जी पी इस सिस्टम से इस गाँव का नक्शा सेव कर लिया था क्योंकि वहां इंटरनेट होने की संभावना कम ही थी। वह भी सोचने पर मजबूर हो गई थी कि यदि कोई स्त्री अपने पति के भाई के बेटे की विधवा बहू से पुनर्विवाह करने के लिए कहे तो क्या सिर्फ़ इसी बात के लिए उसके साथ इतना बड़ा काण्ड, इतनी बड़ी साज़िश की जा सकती है ?वह भी सरपंच के सामने गाँव में भरी पंचायत में ?

वह कैमरा संभाले आगे बढ़ती है, सेंडिल वाला पाँव एक गढ्ढे में कारण लचक जाता है। वह अपने को संभालती है कि तभी एक भूरे रंग का कुत्ता तेज़ी से उस पर भौकता हुआ पीछे की गली में भाग जाता है। हर जगह एक गंध समाई हुई है, बहुत देर में वह समझ पाती है कि ये गोबर से लिपे पुते घरों की महक है जिसमे नीम की पत्तियाँ की गमक भी घुली हुई है. वह दांयी तरफ की गली में मुड़ती है, ये देखकर खुश हो जाती है, दो औरतें कुँये पर पानी भर रहीं हैं। वे उसे देखकर भरी बाल्टी छोड़कर भागना चाहतीं हैं। वह जबरन उनका रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है,"इस गाँव में जो कुछ हुआ है, बताएंगी।"

"मूँ अठे थी ही नीं।"

उसने दूसरी औरत से पूछा,"आपने किसी घटना के बारे में नहीं सुना ?"

" म्हारे काईं बात हुणवा मेईज नई आई।"

" गाँव में एक आदमी ने फांसी लगा ली. उसके बाद एक बड़ा कांड हुआ और आपने कुछ नहीं सुना ?"

"पतो नी कुण जीवतो न, कुण मरयो।"

उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन उसने धीरज से काम लेते हुए पूछा,"ये तो बता दीजिये मुम्बई में काम करने वाले वरदीसिंह का घर कौन सा है ?"

"पतो नी।" दोनों अपनी बाल्टियां उठाये वहां से खिसक लीं। वह हैरान परेशान कच्चे रास्ते पर बंद दरवाज़ों को देखती खड़ी रह गई। उसने बैग में रक्खी बोतल को मुंह से लगाकर पानी पीया. उसने आस पास के घरों में जाकर बार बार दरवाज़े खड़खड़ाये। एक आँख लकड़ी के दरवाज़े की झिरी के पार दिखाई देती और बस ---- उसे आगे बढ़ जाना पड़ जाता। निपट सुनसान पड़े गाँव में जाने वह कौन से गली में निकल आई थी, मायूस थी। वह खाली हाथ लौटना नहीं चाहती थी लेकिन कहीं कहानी का कोई सूत्र हाथ नहीं लग रहा था। लौटकर कैसे सामना करेगी वह सिंह साहब का ?

तभी सामने से एक सत्रह अठारह वर्ष का लड़का कंधे पर बैग लिए आता दिखाई दिया। जल्पा ने उसे इशारे से रुकने का संकेत किया व पूछा,"आपको वनदेवी का घर पता है, जो किस्सा अखबारों में उछला है ?"

वह लड़का खुश होकर मुस्कराने लगा,"आप अखबार की पत्रकार हो?"

उसने हामी में सिर हिलाया। वह कहने लगा,"मैं बात तो दूँगा लेकिन मेरा नाम नहीं आना चाहिये."

वह हंस पड़ी,"मुझे तो आपका नाम ही नहीं पता।"

वह लड़का भी खिसियाया सा हंस पड़ा,"मेरे साथ आओ ।"

उसके पीछे चलते हुए वह पूछने लगी,"क्या शहर में पड़ते हो ?"

" इतना पैसा कहाँ है ? मैं जयपुर मज़दूरी करता हूँ।"

उसने दूर से एक घर दिखाया,"वो पांचवा मकान जिसके दरवाज़े पर गेरू से कुल देवता का चित्र बना हुआ है वही मनदेवी ताई का मकान है."

"उनके रिश्तेदार हो ?"

"हाँ, यहां हमारे खानदान के तीस लोगों का परिवार है।"

जल्पा ने उस घर की कुंडी खटखटाई अंदर से तेज़ आवाज़ आई,"कौन है ?"

“मैं हूँ जल्पा, मुझे इन्स्पेक्टर मीणा ने भेजा है।"

उसके ये कहते ही दरवाज़ा धीरे से खुला और आवाज़ आई,"जल्दी अंदर आओ।"

वह जल्दी से अंदर चली गई। उस मध्यवयस की स्त्री ने अपना परिचय दिया,"मैं आशा सहयोगिनी हूँ इन्स्पेक्टर ने फ़ोन पर बताया था कि आप आज आने वालीं हैं इसलिए मैं भी आ गई जिससे आपको भाषा की परेशानी ना हो।"

"मैं आपके मोबाइल पर घर का रास्ता पूछने के लिए कॉल कर रही थी लेकिन उसका स्विच ऑफ़ आ रहा था।

"सॉरी !मेरे यहाँ मेहमान आ गए थे मैं चार्ज करना भूल गई. अभी दो मिनट पहले ही यहां पहुंची हूँ।"

एक घाघरा ओढ़नी पहने गर्भवती लड़की ने उसे पानी का गिलास पकड़ाया और कहा,"घणी खम्मा।"

आशा ने परिचय करवाया,"ये मनदेवी की छोटी लड़की है। बड़ी के कल रात को बेटा हुआ है। दोनों बहिनें यहां सोहर के लिए आई हुईं थीं और ---."सहयोगिनी के भी आंसू छलछलाये।

जल्पा जानती है केंद्रीय व राज्य सरकार ने आशा सहयोगिनियों की नियुक्ति की हुई है जिससे उनके व गांववालों के बीच सम्पर्क बना रहे। ये सरकार की योजनाओं की जानकारी गाँव वालों को दे सकें, उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य मामलों में उचित मशविरा दे सकें। वह पानी पीकर सहयोगिनी से पूछती है,"आपका असली नाम क्या है ?"

" मेरा नाम जानकी है।"

"और वो -----."इस घर में आकर जैसे साँस लेना भी मुश्किल हो रहा है। लग रहा है किसी स्त्री की बेचैन रूह से निकलता कराहता, चीखता, रुदन उसकी श्वास नली से लिपटा जा रहा है। इस घर की रूह भय से थर्रायी हुई लग रही है ।

" इनकी बेटी बता रही थी कि कल रात वो सारी रात नहीं सोईं हैं। उन्हें मैंने धोखे से नींद की गोली देकर बहुत मुश्किल से सुलाया है। आप उन्हें बस देख आइये।"

"लेकिन मैं तो उन्हीं से बातचीत करने आई थी।"

"आप उनसे क्या बात करेंगी ?वे तो किसी अजनबी को देखकर इतना चीखने लगतीं हैं कि सम्भालना मुश्किल हो जाता है. आप उन्हें बस देख आइये।"

मनदेवी की गर्भवती बेटी उसके आगे अपने उदर के भार के कारण धीरे धीरे चली और उसने पास के कमरे के द्वार खोल दिये," `वठे रइ बाई ` ।"

चारपाई पर एक दुबली पतली आकृति कथरी से ढकी सो रही थी, एक हाथ थोडा चारपाई से नीचे ढलक आया था । गेंहुए चेहरे पर सोते में भी जैसे भय व दुःख पुता हुआ था. उसके सिर पर नज़र जाते ही उसे अपनी चीख़ रोकनी मुश्किल होगी क्योंकि सिर के बाल सारे सफ़ाचट थे।जल्पा जल्दी से लड़खड़ाती लौट ली।

"वनदेवी सो रहीं हैं इसलिए आपने उनकी शक्ल देख ली वरना अपनी ओढ़नी से पूरा चेहरा कसकर ढके रहतीं हैं। उनकी उंगली तक नहीं दिखाई देती, चाहे घर के लोग ही क्यों ना हों। ऐसा लगता है कोने में घुसा जाता कोई बोरा रक्खा है।"

जल्पा बाहर के कमरे की कुर्सी पर बैठी थरथरा रही है ---यही साधारण कमरा है ---इसी कमरे में अचानक कुछ लोग आ गए होंगे जिनकीअगुआई सुन्दरसिंह कर रहा होगा।पैरों की आवाज़ें सुनकर मनदेवी बाहर आईं होंगीं। सुन्दर सिंह ने अपनी बलिष्ठ हथेली में उनकी कलाई जकड़ ली होगी इससे पहले वे कुछ समझें, कहें या बोलें -यहीं से मनदेवी को घसीटते हुए कुछ लोग पंचायत घर के सामने ले गये होंगे। वह भौंचक होगी, ये क्या हो रहा है --क्यों हो रहा है --रोते रोते गिड़गिड़ाई होगी --तो उसकी कलाइयों पर मरदों के हाथों की पकड़ और मज़बूत हो गई होगी। पंचायत घर यहाँ से पास तो नहीं, तब तक वनदेवी घसीटी गई होगी -- पहाड़ी स्थल की उंची नीचे ज़मीन पर हिचकोले खाता शरीर दर्द से टूट रहा होगा, धूल भरी ज़मीन पर उसके शरीर में चाहे कितने पत्थर या गिट्टियां चुभे हों। पंचायत में जुटी भीड़ में अपने पति व बेटे को देख और चीख उठी होगी, घायल हिरनी की पनीली आँखों ने तड़प कर सहायता माँगी होगी। उन बंधक हुए बाप बेटे ने बेबसी से नजऱें झुका ली होंगीं. बेटे ने पूरी ताकत लगाकर उठने की कोशिश की होगी और उसके चार पांच थप्पड़ पड़ गए होंगे। तीनों कैसे समझ पाते कि सरपंच ने पहले से ही तैयारी करके रक्खी हैं। सबके मोबाइल अपने पास जमा करवा लिये थे कहीं कोई वीडिओ बनाकर पुलिस को ना दे दे।

कुछ लोग आगे बढ़ आये होंगे। एक के हाथ में होगी कैंची जिससे उसने मनदेवी के बाल काट ने शुरू कर दिए होंगे। दूसरे ने मुंह पर काला रंग पोतना शुरू कर दिया होगा। जब बाल क़तर गए होंगे तो उस्तरे से उनके सिर को सफ़ाचट करके उस पर भी काला रंग पोत दिया होगा। अब तक उसके शरीर के कपडे एक एक करके फाड़कर उन्हें अर्द्धनग्न कर दिया होगा । वनदेवी धरती में धंसी जा रही होगी। होश में भी रही होगी या नहीं ? भीड़ दरिंदगी से ताली बजाकर हंसती रही होगी।

तब मंगीदेवी सरपंच दहाड़ी होगी," गधे ने अठी ने लायो ।"

गधे के पांचों के सामने लाते ही दो तीन लोगों ने रोती कलपती मनदेवी के अश्लीलता से अंग मसलते हुए गोदी में उठाकर उन्हें गधे पर जबरन बिठाया होगा। उन्होंने गधे की गर्दन से चिपककर अपनेअंगों को ढकने का प्रयास किया होगा, एक आदमी ने उनकी गर्दन पकड़ कर सीधा बिठा दिया होगा," सिध्धी बेठी रै ----लोग लुगाई ने तमासा देखवा दे।"

उनके सीधे बैठते ही निर्ल्लज भीड़ ताली बजाकर हंस पड़ी होगी,"अब मजा आयो नी."

कैसा होगा वह हैवानगी का चरम जब मनदेवी गधे पर निर्वस्त्र बिठाकर काले रंग से पुती सारे गांव मे घुमाई गई होगी। पीछे हंसती, ताली बाजाती हुई दरिंदों की भीड़ चल रही होगी। इतनी सी बात के लिए कैसे इतनी बड़ी साज़िश रची जा सकती है ?मनदेवी ने अपने पति के भतीजे की विधवा से इतना भर तो कहा था, -दूजी सादी कर ले। `लेकिन किसी के पति की मृत्यु के दो दिन बाद ऐसे कैसे कोई कह सकता है ? लेकिन फिर भी बात इतनी बड़ी तो न थी.

ये जुलूस ताली बजाता, किलकारियां भरता घंटों सारे गाँव मे घूमता रहा। चार -पांच कुत्ते भी साथ चल रहे थे। अचरज से कभी भौंकते लोगों के पास आ जाते तो लोग उन्हें हड़का देते तो किसी गली में भाग जाते, फिर भौंकते वापिस आ जाते। मनदेवी के बहते हुए आंसुओं पर किसी का ध्यान नहीं था। वह अर्द्ध बेहोशी में रोती जा रही थी, सोचते हुए वह कैसी पापिन है जो लाख प्रार्थना के बाद भी धरती मैया नहीं फट रहीं। पता नहीं ये दौर और कितनी देर चलता, अचानक भगदड़ मच गई," किसी ने पुलिस को खबर कर दी है पुलिस की जीप गाँव में आ रई है।"

जिसे जहां समझ में आया वह वहीं भाग लिया। वनदेवी को जल्दी से गधे से उतारकर ज़मीन पर पटक कर गधे को हांकते ले गए। मनदेवी धूल मे पड़ी वहीं सिसकती रह गई क्योंकि रोने की ताकत ही कहाँ बची थी ?थोड़ी देर में धूल उड़ाती जीप आ गई। उसमें से किसी कॉन्सटेबल ने उतरकर सड़क के बीचों बीच धूल मे अर्द्धनग्न पड़ी वनदेवी के शरीर पर अपनी ख़ाकी कमीज़ उतारकर ढक दी थी । एक बूढ़े सिपाही की आँखें शर्म से छलछला आईं थीं ।

शुरुआती दौर में पुलिस की ढीली ढाली कार्यवाही रही --`इमा कांई नी ख़ास बात छ; ए तो लुगाईन ने साथ ऐय्यन चाले छे. ` `लेकिन जब प्रमुख समाचार पत्र ने इसे अपना मुहिम बना लिया तब जाकर मंगी सरपँच सहित पचास के लगभग गिरफ़्तारियां हुईँ, वह भी गैरज़मानती वॉरन्ट। तब तक सुन्दरसिंह दो साथियों के साथ गायब हो गया था। कोई कहता दुबई भाग गया है, कोई कहता सिंगापुर। लोग जेल में सिपाहियों के डंडों से पिटते, गिड़गिड़ाते,"अबे अस्यो कदी नी करां।"

जल्पा क्या क्या याद करे ----टणका गाँव की अपने झोंपड़े में अकेली रहती विधवा दलित भाग्यवती को तो पीट पीट कर डायन बताकर ज़िंदा जलाने का प्रयास किया था था क्योंकि पड़ौसी की भैंस मर गई थी। सिंह सर सही कहते हैं --`देयर इज़ अ स्टोरी बिहाइंड अ स्टोरी। उस विधवा की ज़मीन तभी हथियाई जा सकती थी जब वह मर जाए। मुख्यालय से पच्चीस किलोमीटर दूर ही एक गांव में एक दबंग औरत ने दो स्त्रियों को डाकिन बता दिया था ---बस उन्हें चिमटे से दागा गया व पिटाई गई। ---गंगा को मारपीट कर पेड़ से बाँध दिया गया क्योंकि पांच बच्चे पैदा करने के बाद उसमे दम नहीं रहा था कि घर का सारा काम सम्भाले। ----भूरीदेवी का पति तो चारपाई से लग गया था, एक साल से इलाज चल रहा था. गाँव में किसी ने अफ़वाह उड़ा दी कि उसकी लुगाई चुड़ैल है जो धीरे धीरे अपने आदमी को खा रही है. जब अपना आदमी नहीं छोड़ा तो गांववालों को छोड़ देगी ?इसका मरना तो ज़रूरी हैं। भूरीदेवी के चेहरे पर ओझा की पूजा के बाद दी हुई राख मली गई. लात घूंसे लगाए गए, बाल खींचे गए. भूरीदेवी तो मरी ही, उसका मर्द तो सदमे से मर गया। घर पर पड़ौसी का कब्ज़ा हो गया, दबंगों ने उसकी ज़मीन बेचकर आपस में बाँट ली.

--- हर कोई औरत भेरूखेड़ा की जमूदेवी नहीं होती जो गांव से डाकिन बताकर, मारपीट कर बाहर निकाल दी गई। वह सात साल तक एक स्वयंसेवी संस्था की सहायता से लड़ाई लड़कर सीना ताने बसी गाँव में आ बसी। ----उसने यदि यहां आने से पहले इन` डाकिनों `के विषय में अपने शोध की सूची और याद की तो कहीं वह बेहोश होकर ना गिर जाये --जल्पा ने सोचना बंद कर दिया।

"चन्दनसिंह का घर कहाँ है ?"

जानकी ने उत्तर दिया,"इस घर से सटा घर उसी का है। मुम्बई में चाचा भतीजा एक चौल में गाँव के दो और लोगों के साथ रहते थे। चन्दनसिंह दीवाली मनाने आ गया था। मनदेवी के पति वरदीसिंह को छुट्टी नहीं मिली थी।"

"उस घर को देख सकतीं हूँ ?"

"वहां के सारे मर्द जेल में हैं। औरतें इधर उधर अपने मायके भाग गईं हैं। घर पर ताला पड़ा है।" कुछ सोचते हुए बोली,"चलिए आपको सीढ़ी से दिखातीं हूँ।"

जल्पा की तेज़ आँखें अंदर के कमरे में दीवार पर खूंटी के कुछ छेद थे जिनसे दूसरे घर में झाँका जा सकता था। आँगन में रक्खी सीढ़ी को जानकी ने दीवार पर टिकाया। जल्पा सम्भल कर उस पर चढ़ी और पूछने लगी," यहां छत नहीं है तो सीढ़ी किस काम आती है?"

" खपरैल पर कुछ मसाले या कपड़े सुखाने हों तो ये काम लगती है।"

वह सीढ़ी चढ़ गई लेकिन गाँव के आम आँगन जैसे दिखते गोबर पुते आँगन को देख सिहर गई ---कौन से कमरे में की होगी चन्दनसिंह ने रस्से से लटक कर आत्महत्या, वह भी आने के तीन बाद ही ?एक युवक कीआत्मा किस बात पर तड़पी होगी कि---. सांय सांय करता वह मनहूस घर कुछ कहता सा लग रहा था लेकिन वह उसका रुदन कैसे समझे ? -

अख़बार में तो यही पढ़ा था ----आत्महत्या वाले दिन मनदेवी दोनों गर्भवती बेटियों को अपने बेटे के साथ लेकर पास के तालुका के अस्पताल में ले गई थी। पर्ची बनवाकर वे अपने नंबर का इंतज़ार कर रहे थे कि वरदीसिंह के दूसरे भाई का बेटा अपनी सायकल पर खबर करने आ गया,"चंदनसिंह तो फांसी लगाकर मर गयो, उसकी लुगाई रोते हुए चिल्ला रही है कि वनदेवी चाची इसकी ह्त्या करके अपने लोगां के साथ गाँव बाहर भाग गई है।"

"क्या"घबराकर सब बैंच से उठ गए थे। मनदेवी के बेटे के तो होश उड़ गए थे,"भाभी ऐसे कैसे कह सकती है ?"वे सब गाँव लौट लिए थे, अस्पताल में भरी हुई फ़ीस की भी परवाह नहीं की थी। दूसरे दिन वरदीसिंह, मनदेवी का पति, भतीजे की मौत की ख़बर सुनकर मुम्बई से भागता चला आया था।कोई समझ नहीं पा रहा था कि बहू इतना बड़ा इलज़ाम कैसे लगा रही है ?

-----उसने मनदेवी के आँगन में सीढ़ी उतर कर पूछा,"दोपहर में तो इस घर की सारी औरतें खेतों में काम करने चलीं जातीं होंगी ?"

"चन्दन सिंह की पत्नी मेंहदीदेवी दसवीं पास थी व सबसे छोटी बहू थी, घर का काम संभालती थी. इस घर में मनदेवी अपने गठिये के रोग के कारण घर पर ही रहती थी।"

" मनदेवी जब जग जाएँ तो मेरी उनसे से बात करवा दीजिये।"

जानकी ने निराशा से कहा,"कुछ फायदा नहीं होगा, पुलिस डी आई जी, मंत्री व महिला आयोग की चेयरमेन आकर पूछ गईं लेकिन वनदेवी यही कहती रह गई कि बस मैंने मेंहदी से यही कहा था कि तू दूसरी शादी कर ले और चीख चीखकर हिस्टीरिया के मरीज़ की तरह उसका शरीर बुरी तरह काँपने लगता है, ट्रौमा में चली जाती है. वह इतना ज़ोर से रोने लगती है, कोई आगे पूछ ही नहीं पाता ।"

"मैं कोशिश करूं ?"

"बेकार है. आप आश्चर्य करेंगी कि उस दिन के बाद किसी ने इसकी एक उंगली तक नहीं देखी। सारे बदन पर ओढ़नी कसकर लपेट कर गुड़ी मुड़ी बनी एक कोने में सिमटी रहती है जैसे कोने में घुस ही जाएगी।. मंत्री इससे कह कहकर हार गईं कि वह घूंघट हटाकर बात करे लेकिन यह` ना `में सिर हिलाती ज़ोर से रोकर चीखने लगी।"

वे बाहर के कमरे में आ गईं। जब तक मनदेवी की छोटी बेटी दो गिलास में चाय लेकर आ गई। जल्पा ने पूछा,"तुम्हारी चाय कहॉं है ?"

" मैं चाह कोनी पीयूं, मारो गलो जल जाए। ` `

जल्पा ने चाय पीकर मायूसी से कहा,"मैं अब चलतीं हूँ। मेरा यहां आना बेकार ही गया। सारी बातें तो अखबारों में आ चुकीं हैं कि इस घटना के बाद महिला सरपंच सहित पचास के लगभग लोगों की गिरफ़्तारी हुई। मनदेवी को राहत कोष से रूपये दिए गए वगैरहा।"

जानकी सहयोगिनी संज़ीदगी से बोली,"किसी औरत के साथ जब बुरा होता है तो लोग सच कहाँ जान पाते हैं ?"

"क्या मतलब ?"जल्पा बुरी तरह चौंक गई।

जानकी ने अपना पर्स उठाकर कंधे पर टांग लिया,"चलिए आपको मैं छोड़ देतीं हूँ।"

जल्पा मनदेवी की बेटी के जुड़े हाथ पर हाथ रखकर सजल आँखों से वहां से चल दी। रास्ते में उसने पूछा," जानकी जी! आप मुझसे कुछ कहना चाह रहीं थीं ?"

उन्होंने जैसे उसकी बात सुनी नहीं थी,"ये गाँव देख रहीं है ---कैसा उजाड़ पड़ा है। जब सारे मर्द जेल में हों तो कौन खेतों की साज संभाल करे? कुछ निर्दोश लोग भी जेल मे फंसे हुए हैं. यहाँ की औरतें थाने में जा जाकर मिन्नत करतीं है कि उनकेआदमियों को छोड़ दिया जाए।"

"अगर उस दिन उन्होंने एकजुट होकर वनदेवी को बचाने की कोशिश की होती तो ये सब ना होता।"

"औरतें एक जुट कहाँ होतीं हैं?उनमें से कुछ तो मर्दों के घिनौने खेलों में साथ होतीं हैं, बाकी डरी रहतीं हैं।"

वह अचरज से रास्ते में खड़ी हो गई," जानकी जी !आप पहेलियां बहुत बुझा रहीं हैं।"

"आपको सच भी बता दूँ तो आप क्या कर लेंगी ?साबित कर पाएंगी कुछ?पुलिस भी क्या कर लेगी ?चन्दन सिंह को मरने के एक घंटे बाद ही जला दिया गया क्यों ?जब शरीर ही नहीं है तो क्या साबित होगा ?"

" वॉट ?"जल्पा के पसीने छूट गए। उसने बैग में से पानी की बोतल निकाली और गट गट पानी पी गई। फिर झेंपते हुए बोली,"आप पानी पीयेंगी ?"

"हाँ, दे दीजिये।"

जानकी ने पानी पीकर उससे कहा,"चलिए आपकी गाड़ी में बैठकर बात करते हैं।"

वे दोनों जीप के पीछे की सीट्स पर बैठ गईं। जानकी ने कहा,"मनदेवी तो सदमे के कारण कुछ कहने की हालत में नहीं है। उसकी एक सहेली मंदादेवी ने बहुत डरते डरते मुझे ये बातें बताईं हैं. मैं भी क्या कर सकतीं हूँ ?इन बातों को कैसे प्रमाणित कर सकतीं हूँ ?यदि गाँव में मुँह खोला तो कुछ लोगों के जेल से छूट जाने के बाद मेरी लाश भी खेतों में पड़ी मिलेगी।"

जल्पा ने जो उससे सुना, सिर्फ़ वह ही जानती है कि किस तरह जीप चलाती जयपुर की तरफ बढ़ चली है।

`अ स्टोरी बिहाइन्ड अ स्टोरी `उसके सामने साकार होती जा रही है. उसे मारवाड़ी भाषा नहींआती तो क्या ?उनकी भाषा का अर्थ हिंदी में क्या होगा ये तो वह समझ ही सकती है----जवान मेंहदी का पति शादी के तीन महीने बाद ही चाचा के पास मुम्बई चला गया था। खेतों से गुज़र बसर मुश्किल हो रही थी। उसकी सारी दोपहरिया, रातें काटे नहीं कटतीं थीं. मायके थी तो खेतों में काम करने के बहाने या स्कूल जाने के बहाने बहुत कर गुज़रती थी लेकिन यहाँ तो चन्दनसिंह ---ख़ैर, गाँव में कौन से मर्दों की कमी थी ?एक दिन चन्दन सिंह का दोस्त सुन्दर सिंह कुछ सामान लेकर आ गया,"भाभी !ये सामान रख लो, तुम्हारे घरवालों ने खेतों से भेजा है। वो लोग एक गमी [ किसी की मृत्यु की शोकसभा में ]में जा रहें हैं।"

वह नीचे रक्खे सामान को उठाने के लिए इस तरह झुकी कि उसका पल्लू नीचे ढलक गया, वह उसकी तरफ़ नशीली तिरिछी नज़रों से देखते हुए, मुस्कराते हुए धीरे धीरे पल्लू ठीक करने लगी। सुन्दरसिंह ने आँख मारी,"क्या सामान अंदर रखवा दूँ।"

"मैंने कब मना की है ?"

जो सिलसिला सुन्दरसिंह से शुरू हुआ, वह धीरे धीरे बढ़ता गया। उसके दोस्त, कुछ पंच यहां तक की सरपंच भी अपने जोड़ीदार को लेकर यहां आने लगी। मेंहदी ने कुछ गरीब औरतों को भी यहाँ धंधे में लगा लिया। सारे गाँव के दमदार मर्द तो जैसे उसके पुजारी बन गए थे। अलग अलग समय नियत किया जाता। उधर उसकी पड़ोसिन काकी सास मनदेवी हैरान थी कि रोज़ उसके यहां कैसे मेहमानों की हलचल रहती है ? एक दिन वह दीवार के छेद से वह झांकने लगी, तो उसने जो कुछ देखा, उसका जी मिचला गया । वरदीसिंह भी मुम्बई में था तो किससे कहकर अपना जी हल्का करती? एक दिन उस घर में बिल्कुल शांति थी। उसने निश्चिंत होकर सीढ़ी लगाकर खपरैल पर चादर बिछाई व सूपड़े से लेकर लालमिर्ची उस पर फैलाने लगी। तभी ` उई `की आवाज़ से उसने चौंक कर बगल वाले आँगन में देखा। आँगन में सुन्दरसिंह व मेंहदी एक दूसरे से लिपटे खड़े थे। वह सटपटा गई लेकिन उसकी जैसे ही मेंहदी से आँखें मिलीं वह बेशर्मी से मुस्करा कर बोली,"काकीसास !तू भी इधर सीढ़ी उतर आ, काका मुम्बई में रहता। तू इधर आकर इस ठण्ड में धूप सेक, सुन्दर तुझे सेक देगा।"

` `री बेसरम, खानदान की नाक कटाने पर तुली है ?"कहते हुए वह सीढ़ी उतरने लगी। सुन्दर ने ऑंखें तरेर कर कहा,"अगर तुमने किस्सी के आगे जुबान खोली तो मुझसे बुरा कोई ना होगा।"

मनदेवी थरथराते कलेजे से नीचे उतर आई थी। महीनों मुंह नहीं खोला था। बस जब रहा नहीं गया तो एक दिन अपनी सहेली मंदा से कुंए पर पानी भरते हुए सब बता दिया। मंदा ने उससे कसम ले ली थी कि ये बात किसी को ना बताये। वह तो और डर गई थी,"तू इन गुंडों को जाने ना है. तू ने किसी पर ऊंगली उठाई तो ये सब मिलकर तुझे झूठी साबित कर देंगे।"

बस तबसे मनदेवी ने मुँह पर पट्टी रख ली थी। दीपावली की छुट्टी मे जब चन्दन सिंह आया तो उसके सामने मेंहदी घूंघट डाले शर्मीली बनी रही। तीसरे दिन जब वह पास के तालुका में दीपावली का सामान खरीदने जा रहा था तो उसने काकी सास के घर का कुण्डा खड़का दिया,"काकी !तुझे दिवाली के लिए कुछ मंगवाना है तो बोल।"

"अच्छी बताई चन्दन !दिप्पावाली की तैयारी तो हो गई है। तेरी बहिनों की दवाइयां ख़तम हो गईं हैं, वे ले आइयो।"कहते हुए अंदर जाकर वह डॉक्टर का दिया कागज़ ले आई थी।

पर वह उस दिन घर जल्दी से कैसे वापिस आ गया ?---शायद बुखार चढ़ गया हो या किसी दोस्त ने कुछ कान में कुछ फुसफुसा दिया हो। घर के दरवाज़े की कुंडी को खटखटाने के बाद जब मेंहदी ने दरवाज़ा खोला तो उसके पीछे सुन्दर सिंह भी कमीज़ के बटन लगाता बाहर आ गया. चंदनसिंह सकते की हालत में था,"ये क्या हो रहा है ?"

मेहँदी अपनी चोटी हाथ में लहराते हुए ढीठ बनी हंसी होगी,"वही जो तुम मुम्बई की छोकरियों के साथ करते होगे ?"

चन्दनसिंह का हाथ उठ गया होगा,"तू जानती भी है सहर में काम करने का मतलब ?कमरे पर लौटकर पानी पीने की हिम्मत ना बचे।"

"झूठ काहे को बोल रहा है ?"

क्रोध में वह मेंहदी पर टूट पड़ा होगा। ज़ाहिर है सुन्दरसिंह इसको बचाने बीच में आ गया होगा, उसने तेज़ी से दरवाज़े की अंदर से कुंडी लगा ली होगी। मौक़ा मिलते ही मेंहदी व सुन्दरसिंह दोनों उसे बुरी तरह मारने लगे होंगे। जब उसका दम निकल गया होगा तो उसे छत के कुंदे रस्से से लटका दिया होगा। कुछ देर बाद मोहल्ले में हल्ला पिट गया कि चन्दनसिंह ने फ़ाँसी लगा ली। क्यों?----ये उत्तर किसी के पास नहीं था ।

मेंहदी सीने पर हाथ मारकर रो पीट रही थी,"मनदेवी काकी ने इन्हें मार कर रस्सी से लटका दिया है।"

" लेकिन क्यों ?"

"हाय! ---हाय ! ---- वो मुझसे बहुत जलास रखतीं हैं। वो मुझे भी मार डालेंगी जिससे मेरे गहने, ज़मींन हड़प लें।वो सारे घरवालों को लेकर भाग गईं हैं"

जब मनदेवी व उनके घरवाले लौटे होंगे तब उसका चिंघाड़ना रुका होगा। मोहल्ले वाले भी उससे क्या बोलते क्योंकि अभी उसके पति की लाश को दाग़ भी नहीं लगा था। दूसरे दिन ग़मी में जाकर बैठने वाली मनदेवी को जैसे ही एकांत मिला होगा, वह फुसफुसाई होगी,"क्यों री !मेरा झूठा नाम क्यों लगा रही है कि मैंने भतीजे को मार डाला ?मुझे लागे है तू ने और सुन्दरसिंह ने इसे मिलकर मार डाला है। ठहर जा --शान्ति पाठ हो जाए तो तेरी पोल सबको बतातीं हूँ कि तू ने कैसे अपने घर में चकला खोल रक्खा है."

"कल विनका तीजा है किसकी शान्ति होती है, देख लीजो।"

तब मनदेवी कुछ समझ नहीं पाई थी। रास्ते में मंदा मिल गई तो रोते हुए उसने अपने ऊपर लगे आरोप की बात बता दी व कह भी दिया,"मैं इसकी पोल खोलकर रहूंगी।"

पंचायत घर में ही चन्दनसिंह के तीजे की बैठक रक्खी गई थी। सरपंच इंतज़ार कर रही थी कि सभी आ जायें, आसपास के गाँवों के नातेदार, जानने वाले।

"ओह---. `जल्पा के हाथ स्टीयरिंग पर थे। मन तो पीछे छूटे गाँव में ही भटक रहा था------ तो पहले से कुछ मुट्ठी भर लोगों ने पंचायत घर के कमरे में तैयारी करके रक्खी थी ---बड़ी कैंची, उस्तरा, बाल्टी भर काला रंग। पंचायत घर के पीछे के पेड़ से बंधा था धोबी का गधा जिसे दो सौ रूपये देकर यहां लाया गया था। धोबी को खुद नहीं पता था कि क्या होने जा रहा है।

मंगीदेवी सरपंच की हुंकार गूँजी होगी,"सब अप्पने मोबाइल जमा करा दो."

कुछ आवाज़ें गूंजीं होंगी,"काहे को ?"

" जवान मौत हुई है सभा में ये` टुन टांग `अच्छी ना लगे।"उनके इतना कहते ही कुछ लोग सबके मोबाइल जमा करके कमरे में एक बोरे में डालते रहे होंगे।

--- कुछ मिनट बाद सभा में बैठे मनदेवी के पति व बेटे को बंधक बना लिया होगा। वो भौंचक चिल्लाते रह गए होंगे,"ये क्या कर रहे हो ?"

मनदेवी को सभा में घसीटकर लाते ही इससे पहले वह कुछ सोच पाती दो लोगों ने उसे पकड़ा होगा, एक ने उसके बाल कतरने शुरू कर दिये होंगे। फिर शुरू हो गया होगा दानवों का नंगा नाच उसके कपड़े ----कुछ लोग तो चिल्लाये होंगे,"अ र--र- र --ये क्या कर रहे हो ?"जब उनकी नहीं सुनी गई होगी तो उनमें से कुछ अपने घर भाग गए होंगे। बाकी लोग इस अचानक मिले मनोरंजन से ताली बजाकर `ठी ` `ठी `करके बदमाशों का जोश बढ़ाते रहे होंगे

---- जल्पा की जीप सामने आते ट्रक से टकराते टकराते हुए बचती है, काली मूंछों वाला ट्रक ड्राइवर आगे की खिड़की में से सिर निकालकर चिल्लाता है,"क्या शराब पी रक्खी है ?खुद तो मरती, तुम्हारे साथ मैं भी मरता." उधर जल्पा मायूस हो सोच रही है ऐसी हालत से कब ज़िंदा हो पाएगी मनदेवी ? क्या फ़ायदा हुआ मीडिया ने इस केस को उछाला, सामाजिक संगठन, महिला संगठन व छात्र संगठन ने मिलकर एक बड़ी रैली निकाली। शहर के हृदयस्थल में एक दूसरे का हाथ पकड़कर एक मानव श्रृंखला बनाई गई। कितने ही पुलिस वाले कर्मचारी, पंच निलम्बित किये गए। असली अपराधी मेंहदी देवी कैसे पकड़ी जा सकती है ?कोई स्त्री वस्त्रहीन होकर घंटों ऐसे अत्याचार से गुज़रकर कैसे मेहंदी के विरुद्ध बयान देने की हिम्मत कर सकती है ?

जयपुर की चौड़ी सड़कें आ गईं हैं, वाहनों की चहल पहल है। इसकी ट्यूब लाइट्स व नियोन लाइट्स की रोशनी में जल्पा की जीप बढ़ी चली जा रही । अभी सात ही बजे है सिंह सर अभी ऑफिस में होंगे। जल्पा जीप आगे बढ़ाती सोच ही नहीं पा रही कि घर जाए या ऑफ़िस --सर को `स्टोरी बिहाइन्डअ स्टोरी` बता पाएगी या नहीं। बस ये तय है इतने लोगों की कोशिश बेकार नहीं जायेगे, अब किसी मनदेवी के साथ इस इलाके में कोई ऐसा करने की हिम्मत नहीं करेगा.

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