Raat 11 baje ke baad - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

रात ११ बजे के बाद ‌‌‌‌--भाग ३

हुये थे एवं कमरे में रखा हुआ सारा सामान सुव्यवस्थित था इससे प्रतीत हो रहा था कि कमरे में किसी प्रकार की कोई झडप भी नही हुयी।

टेबल पर दो कप चाय रखी हुयी थी जिसमें चाय वैसी की वैसी ही रखी हुयी थी जैसे किसी ने पी नही हो। पुलिस ने नौकरों से पूछताछ के दौरान यह जानना चाहा कि चाय कौन लेकर आया था। यह जानकर सब हैरान रह गये कि सभी नौकरों ने कहा कि वे चाय लेकर नही आये। अब चाय किसके लिये आयी थी और कौन व्यक्ति ऊपर पहुँचा इसकी जानकारी भी किसी नौकर को नही थी।

विक्रम सरकार को पूछताछ के दौरान वह डाक्टर कौन था एवं किसके बुलाने पर आया यह भी पता नही हो पा रहा था जिसने आनंद की मृत्यु की हृदयाघात के कारण होना बताया था। आनंद के केयर टेकर रवि ने बताया कि एक डाक्टर आया था जिसे वह नही जानता था उसने कार से उतरकर मुझसे पूछा कि सेठ जी को क्या हो गया है मैं उसे तुरंत लिफ्ट से ऊपर लेकर आया जहाँ पर डाक्टर ने उनकी जाँच करके उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसके बाद डाक्टर तुरंत वापस चले गये। साहब की मृत्यु की खबर से हम विचलित हो गये जिससे हम उस डाक्टर का नाम एवं कार का नंबर भी नही देख सके।

पुलिस के सामने एक और प्रश्न था कि बेडरूम से जुडे हुये ड्राइंग रूम में सोफा सेट के पास चाय रखी हुयी थी चाय को बिना पिये ही आनंद अपने बेडरूम में राइटिंग टेबल पर आकर क्यों बैठ गये। उनकी मृत्यु यदि यहाँ पर बैठे बैठे हो गयी तो दूसरा व्यक्ति क्या उस समय वहाँ उपस्थित था या पहले ही बिना चाय पिये जा चुका था। परंतु कोई भी यह जानकारी नही दे पा रहा था कि वह दूसरा व्यक्ति था कौन ? अब यह पूरा मामला काफी संदिग्ध नजर आने लगा था।

इसके बाद जाँच अधिकारियों ने विचार विमर्श करके खोजी कुत्ते को वापस बुलाया और एक बार पुनः उसे परीक्षण करने का मौका दिया। इस बार वह जहाँ पर सोफे के पास चाय रखी हुयी थी वहाँ पर जाकर वह सीधे दो तीन कमरों से होता हुआ एक कचरे के ढेर के पास पहुँचता है और वहाँ पर रूक कर वह भौंकता है। यह देखकर उस स्थान की बारीकि से सफाई कराई जाती है। सफाई के दौरान एक टूटा हुआ कप और प्लेट मिलता है जिसे वह बार बार सूंघता है। उस कप प्लेट को फारेंसिक विभाग दस्ते पहनकर सावधानी पूर्वक उठाकर जप्त कर लेते हैं।

विक्रम सरकार ने नौकरों से बात करके घटनाक्रम का एक खाका बनाया जो इस प्रकार था। शाम 7 बजे आनंद का गौरव के घर जाना लगभग 8 बजे वापस आ जाना इसके बाद 8:30 बजे गौरव का आनंद के पास आना 9 बजे उसका वापस चले जाना, आनंद का अपने कर्मचारी के यहाँ जाना और लगभग 10:15 बजे वापिस आकर अपने बेडरूम की ओर प्रस्थान करना इसी समय के आसपास चौकीदार का आनंद की छाया के समान घर के पिछवाडे से बाऊंड्री वाल को कूदकर पार करते हुये देखना उसी समय रमेश नाम के नौकर का उपर की मंजिल से चिल्लाकर कहना कि साहब को क्या हो गया है वे बेहोश हो गये हैं। 10:30 बजे रात में आनंद के नजदीकी दोस्तों को फोन पर उसकी मृत्यु होने की सूचना प्राप्त होना। लगभग 10:45 बजे रमेश का आनंद का बेडरूम में आना उसके पूछने पर कि साहब क्या दूध लेंगे का कोई जवाब प्राप्त नही होना उसकी अवस्था देखकर उसका सशंकित होना और डाक्टर को फोन करना। डाक्टर की अनुपलब्धता का मालूम होना इसके एक लगभग दो तीन मिनिट बाद ही एक नये डाक्टर का केयर टेकर के साथ आना रात 11 बजे के लगभग उसका आनंद की मृत्यु का हृदयाघात से होना बताना और तुरंत वापस चले जाना। रात 11:15 बजे तक रवि के द्वारा बैंकाक और दुबई में उसके परिवारजनों को इसकी सूचना देना। रात 11:30 बजे सबसे पहले राकेश और गौरव का पहुँचना और उनके द्वारा नौकरों से आनंद की मृत्यु के संबंध में पूछताछ करना और जानकारी प्राप्त करना। सुबह उसके परिवारजनों के आने के बाद गौरव और राकेश का उनसे वार्तालाप करना और प्रातः 9 बजे रिपोर्ट दर्ज कराना। पुलिस द्वारा शव को पोस्ट मार्टम के लिये ले जाना और रिर्पोट में जहर के कारण मृत्य होना।

सभी कर्मचारियों से गहन पूछताछ शुरू की गयी परंतु उन्हें कोई खास जानकारी प्राप्त नही हुयी। आनंद की मृत्यु के समय उसके घर में सिर्फ तीन लोग थे पहला केयर टेकर रवि दूसरा चौकीदार रामसिंह और तीसरा उसका विश्वसनीय नौकर रमेश। बाकी सभी कर्मचारी विवाह में शामिल होने गये हुये थे। अब पुलिस ने रवि के संबंध में पूछताछ करके जो जानकारी प्राप्त की उसके अनुसार वह आनंद का एक विश्वसनीय व्यक्ति था। वह आनंद के मसूरी के बंगले में विगत दो वर्ष से कार्यरत था उसके अच्छे व्यवहार व होशियार होने के कारण आनंद ने उसे अपने पास बुला लिया था। उसका बेरोकटोक पूरे घर में आना जाना था। वह आनंद की मृत्यु से दुखी होकर लगातार रो रहा था। उससे गहराई से पूछा गया कि तुमने उस डाक्टर को जिसे तुम ऊपर लेकर आये, क्या तुम जानते थे? उसने कहा नही। डाक्टर को बुलाने की बात ऊपर हो रही थी तो मैनें सोचा इसी डाक्टर को बुलाया गया होगा मैं तो बिना समय गंवाए, लिफ्ट से उसे ऊपर ले गया। उसने जाँच के उपरांत आनंद साहब के दुखद निधन की बात बताकर तुरंत ही वापस जाने की इच्छा व्यक्त की और मैं उनका बैग लेकर उन्हें नीचे तक छोड आया।

जाँच अधिकारियों ने चौकीदार से पूछा कि तुमने कार का नंबर नोट किया था या नही । वह बोला कि साहब वैसे तो सभी आने जाने वालों का नंबर नोट किया जाता है परंतु साहब कि तबीयत की खबर सुनकर हम सभी बहुत घबडा गये थे और हमारी समझ में नही आ रहा था कि हम क्या करें। गेट पर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है उसमें जरूर ये सब बातें दर्ज होंगी और पूरी जानकारी मिल जायेगी। यह सुनकर जाँच अधिकारी तुरंत सीसीटीवी कैमरे को अपने कब्जे में ले लेता है। उन्हें उस समय घोर निराशा होती है कि किसी शातिर व्यक्ति ने रात 9 बजे ही कैमरे को स्विच आफ कर दिया था। अब यह स्पष्ट हो गया था कि घटनाएँ पूर्व नियोजित थीं एंव आनंद की हत्या, लगभग तय मानी जा रही थी। अब पुलिस विभाग को टूटे हुये कप प्लेटों की फोरेंसिक रिर्पोटों प्राप्त हो जाती है जिसमें जहर का होना पाया गया।

पुलिस की टीम अब निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच गई थी कि आनंद की मृत्यु स्वाभाविक ना होकर प्रायोजित थी। उन्होने अपने एक बहुत ही वरिष्ठ एवं होशियार आफिसर श्री हरीश रावत को बुलाया और यह जाँच उनके जिम्मे सौंपी गई। उन्होने आनंद के बेडरूम, ड्राइंगरूम एवं घर की पुनः जाँच की उन्हें बगीचे के एक कोने में पिस्टल से चली गोली प्राप्त हुयी परंतु वहाँ खोजने पर भी रिवाल्वर नही मिल पाया और ना ही इसका उद्देश्य पता हो पाया। बेडरूम में जाँच करने पर एक ड्राज में किसी रजिस्ट्री के असली कागजात एवं उनकी फोटोकापी रखी हुयी थी। उसने जब इसके पन्नों की संख्या गिनी तो फोटोकापी में एक पन्ना ज्यादा पाया गया जिसमें सबसे नीचे आनंद के हस्ताक्षर थे। इससे यह मालूम हुआ कि असली कागजात से वह पन्ना जिसमें आनंद के हस्ताक्षर थे और उसके ऊपर शायद धोखे से क्रास करना भूल गया होगा जिससे इस पन्ने का उपयोग आनंद के हस्ताक्षर होने के कारण कही भी किया जा सकता है इस पन्ने को प्राप्त करने में जिसका भी हाथ होगा वह बहुत ही चतुर और चालाक व्यक्ति होगा। उसने पोस्टमार्टम रिर्पोट बुलाकर गहराई से अध्ययन किया और यह पाया कि मृतक का अपेंडिसाइटिस एवं प्रोस्टेट का आपरेशन हो चुका है उसने आनंद के परिवार वालों से इस संबंध में पूछा तो मालूम हुआ कि आनंद का ऐसा कोई भी आपरेशन नही हुआ था यह जानकर तो हडकंप की स्थिति निर्मित हो गई गौरव से पूछा गया कि तुम्हें पोस्टमार्टम रिर्पोट पढी थी या नही उसने कहा मैंने रिर्पोट नही पढी। मेरे दिमाग में तो सिर्फ जहर के विषय में जानकारी प्राप्त करना था और वह सही पाया गया। अब आनंद के परिजन, वरिष्ठ अधिकारीगण एवं मित्रगण सकते में आ गये क्या आनंद की जगह किसी दूसरे व्यक्ति का दाहसंस्कार हो गया है।

अब जाँच अधिकारीगण गौरव से चर्चा करते हैं वे उसको बुलाकर उससे पूछते हैं कि उस दिन आनंद ने आपके घर पर क्या बातचीत की थी ? आप रात में वापस आनंद के पास क्यों गये थे ?

गौरव ने कहा कि आनंद एक भावुक व्यक्ति था वह छोटी छोटी बातों में भावावेश में आकर अपने पर नियंत्रण खो देता था और ऐसी अवस्था में मुझसे या राकेश से संपर्क करके सलाह लेता था। वह पल्लवी से काफी अंतरमन से जुडा हुआ था। उसने उस पर दिल खोल कर खर्च किया था एवं अपनी संपत्ति की एक बहुत बडे हिस्से को अपनी मृत्यु के उपरांत वसीयत के माध्यम से उसे देना चाहता था। उसने इस प्रकार की वसीयत लिखकर पल्लवी को बताकर मेरे पास रख दी थी। पल्लवी का व्यवहार दिन प्रतिदिन कठोर होता जा रहा था। वह अपने पुराने परिचित रिजवी से विवाह करके अपनी जिंदगी बसाना चाहती थी। यह बात आनंद को मालूम होने पर उसे गहरा सदमा पहुँचा उस रात वह मुझे यह बताने के लिये आया था उसने वसीयत भी निरस्त कर दी है। और उसके कागजात मुझे देकर वापस चला गया था। उसके जाने के कुछ मिनिट पहले उसके मोबाइल पर फोन आया था पर यह किसका फोन था यह जानकारी मुझे नही हैं। जाँच अधिकारी ने कहा कि हमने आनंद के द्वारा पिछले एक माह में उसके द्वारा किये गये सभी फोन कालों का विवरण संबंधित विभाग से निकलवाने का निर्देश दे दिया है और हमें अगले दो दिनों के अंदर ही यह प्राप्त हो जायेगा। अब आप हमें आपके आनंद के घर जाने का मकसद बताइये ?

गौरव बोला आनंद के फोन करने पर मैं वापस उसके पास गया था। आनंद उसी वसीयत के संबंध में मुझसे सलाह लेना चाहता था कि उसे क्या करना चाहिये ? मैनें उसे समझाया कि इतनी जल्दबाजी की क्या जरूरत है आराम से सोच समझ कर काम कीजिये परंतु पता नही क्या बात थी आनंद बहुत घबडाया हुआ था। मैंने उसको सलाह दी थी कि तुम अपनी मूल्यवान संपत्ति अपने बेटों के नाम पर ही कर दो। अपने परिवार के अलावा किसी और को देने से क्या फायदा है। तुमने उसका वैसे ही बहुत कुछ देकर भला कर दिया हैं। उसे मेरी बात सही लगी और तुरंत ही नयी वसीयत अपने हाथ से बनाकर मुझे दे दी। गौरव ने वसीयत के सभी कागजात पुलिस के सामने रख दिये। और कहा कि मुझे इस बात का बहुत आश्चर्य है कि गोपनीय कागजातों की जानकारी पल्लवी को कैसे हो गयी । उसका फोन मेरे पास इस बात की सच्चाई जानने के लिये आ गया। मैने उसे स्पष्ट रूप से कुछ भी ना बताकर गोलमोल ढंग से बात खत्म कर दी। वह दो दिन बाद वापिस आ रही है। और व्यक्तिगत रूप से मुझसे मिलेगी ऐसा उसने फोन पर कहा था। क्या इन बातों की जानकारी राकेश को भी है?

नही उसे वसीयत के बदले जाने के संबंध में कुछ भी नही मालुम मैंने आनंद के निर्देशानुसार इसकी जानकारी किसी को भी नही दी यहाँ तक कि मेरी पत्नी भी इससे अनभिज्ञ है। आपके और आनंद की मित्रता कैसे और कब हुयी? आपके ऊपर उनका इतना विश्वास क्यों और कैसे था। गौरव बोला मुझे राकेश ने आनंद से मिलाया था मुझे उसने कहा था कि आनंद बहुत अकेलापन महसूस करता हैं उसे एक विश्वसनीय दोस्त के रूप में सहायक की भी आवश्यकता है। वह जब शहर से बाहर जाता है तब भी वब उसे अपने साथ बाहर ले जाएगा। मुझे घूमने फिरने का शौक बचपन से ही रहा है मैं अपनी मेहनत के बल पर धन कमाकर यहाँ तक पहुँचा हूँ मेरे दोनो बेटे अमेरिका में उच्च पदों पर कार्यरत हैं तथा मैं दिनभर खाली रहता हूँ इसलिये मैने राकेश को सहर्ष इस बात की स्वीकृति दे दी थी। इसके बाद आनंद से परिचय धीरे धीरे प्रगाढ़ मित्रता में बदल गया। मैं उसका बहुत ही विश्वसनीय मित्र हो गया जिससे वह अपने मन की बातें खुलकर बतलाता था।

हरीश रावत ने पल्लवी और आनंद की मित्रता के विषय में जब प्रश्न किये तो गौरव ने विनम्रतापूर्वक कहा कि वह इतना ही जानता है कि पल्लवी आनंद के आफिस में उच्च पद पर कार्यरत है वह किसी के भी निजी जीवन में ना ही दखल देता है और ना ही जानने की इच्छा रखता है वह जाँच अधिकारी के प्रश्नो को टाल गया और कुछ भी कहने से उसने इंकार कर दिया।

शहर के पत्रकारों ने वहाँ पहुँच कर इस विषय पर विस्तृत जानकारी माँगना प्रारंभ कर दिया। इस स्थिति की गंभीरता को देखते हुये पुलिस अधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस करके पत्रकारों से धैर्य रखने की प्रार्थना की और उन्हें बताया गया कि जाँच प्रक्रिया अभी प्रारंभिक अवस्था में है और हमें संदेह है कि आनंद की मृत्यु स्वाभाविक ना होकर के हत्या है। हमारी जाँच जैसे जैसे आगे बढेगी वैसे वैसे हम आपको समय पर सूचित करते रहेंगे। यह बात पत्रकारों को नही बताई गई कि पोस्टमार्टम रिर्पोट से संदेह हो गया है कि आनंद के स्थान पर उसके किसी हमशक्ल का अंतिम संस्कार कर दिया गया है ताकि जाँच प्रक्रिया प्रभावित ना हो सके।

अब आनंद के परिवारजन दिवंगत शरीर के आगे के संस्कार करने से मना कर देते है इससे एक विचित्र स्थिति सबके सामने निर्मित हो गयी थी और अब आगे क्या किया जाए यह सभी सोच रहे थे। सभी लोग हरीश रावत की होशियारी की तारीफ कर रहे थे कि उसने जाँच प्रक्रिया को एक नयी दिशा दे दी। अब यह प्रश्न उठ रहा था कि आनंद यदि जीवित है तो वह कहाँ हैं, वह दीवार कूदने के बाद सीधे पुलिस के पास क्यों नही गया, वह जीवित है भी या नही, उसने अपने परिजनों या मित्रजनों को संपर्क क्यों नही किया यह गुत्थी किसी के भी समझ में नही आ रही थी और इससे पुलिस के अधिकारी भी आश्चर्यचकित थे।

वे आनंद और पल्लवी के बीच के संबंधों की समीक्षा कर रहे थे। राकेश ने उनको कहा कि आपको इन विषयों पर जानकारी प्राप्त हो चुकी होगी अब आप मेरे से क्या जानना चाहते है ? जाँच अधिकारी बोला कि आपसे जो जानकारी प्राप्त होगी वह निश्चित रूप से पूर्णतया सत्य होगी। राकेश बोला मैं और आनंद बचपन के मित्र रहे हैं हम दोनो ने ग्रेजुएशन तक एक ही साथ पढाई की है। हम लोगों के आपस में व्यापारिक संबंध भी बहुत मधुर रहे हैं। उसने पल्लवी के बारे में बताते हुये कहा कि उसीके कारण मेरे और आनंद के बीच में कभी कभी तनाव हो जाता था। आनंद भावुक होने के कारण उसके कहने पर ना जाने क्यों उस पर धन लुटाने के लिये मजबूर हो जाता था। मैंने उसे ऐसा करने से रोकने का प्रयास किया जिसके कारण पल्लवी ने आनंद के कान भरना चालू कर दिये यह उसकी कमजोरी थी कि वह कान का बहुत कच्चा था। पल्लवी अब चाहती थी कि मेरे आनंद से मतभेद हो जाये ताकि उसका आनंद के ऊपर पूर्ण नियंत्रण हो सके।

वह अपनी बहन मानसी को भी मेरे से दूर करने के लिये प्रयासरत रहती थी। गौरव से मित्रता मैने ही करायी थी और वह इससे बहुत खुश था क्योंकि वह एक कंजूस प्रवृत्ति का व्यक्ति है उसे आनंद के साथ बिना किसी खर्च के आने जाने को मिलता था। आनंद मुझे कहा करता था कि कुछ वर्ष पूर्व तक मसूरी की किसी लडकी के साथ उसकी मित्रता थी परंतु उसका विवाह हो जाने के बाद उसकी मुलाकात बंद हो गयी थी। इस विषय पर मैंने कभी विस्तार से नही जानना चाहा। हरीश रावत यह सुनकर चौका और मन में उसने निश्चय कर लिया था कि वह पुलिस की एक टीम मसूरी भेजकर उसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त करेगा।

उसी चर्चा के दौरान राकेश के पास गौरव का फोन आता है कि वह कल अमेरिका के वीसा के लिये दिल्ली जा रहा है और उसे वीजा मिलते ही दूसरे दिन अमेरिका चला जाएगा। वह कहता है कि वह बहुत तनाव में है और उससे ऐसी पूछताछ की जा रही है जैसे वह शक के दायरे में हो उसे पल्लवी भी परेशान कर रही है इसलिये वह कुछ समय अपने बेटे के साथ अमेरिका में बिताना चाहता है यह जानकार कि गौरव विदेश जाने का प्रयास कर रहा हैं। जाँच अधिकारी इसकी सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे देता है। वे आपस में विचार विमर्श करके गौरव को कहते हैं कि जब तक जाँच प्रक्रिया चल रही है तब तक वह कही बाहर नही जा सकता है। यह सुनकर गौरव भडक जाता है और उसकी बहस उन अधिकारियों से हो जाती है। उनके यह कहने पर कि यदि गौरव उनकी बात नही मानेगा तो उसका पासपोर्ट हमें मजबूरन जप्त करना पडेगा।

राकेश पूछताछ के दौरान मानसी के साथ उसके संबंधों को स्वीकार कर लेता है। वह कहता है कि मानसी उसकी बहुत ही नजदीकी मित्र है जो कि उसके लिये समर्पित है परंतु इन बातों का आनंद की मृत्यु से कोई संबंध नही है। यह उसका निजी मामला है अतः इसमें मेरे व्यक्तिगत मामलों के पूछताछ की कोई आवश्यकता नही है। जाँच अधिकारी के यह पूछने पर कि आपकी नजर में कौन संदिग्ध हो सकता है ?

राकेश कहता है मुझे पल्लवी की गतिविधियों पर संदेह है। वह वसीयत के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये बहुत आतुर है और वही सबसे ज्यादा आनंद की नजदीकी मित्र थी।

मानसी ने पूछताछ के दौरान जाँच अधिकारी को बताया कि आनंद एक बहुत ही जिंदादिल, दयालु एवं अच्छे व्यक्ति थे। उन्होने पल्लवी के लिये बहुत कुछ किया परंतु उसके मन में आनंद के प्रति कोइ लगाव या समर्पण नही था। वह केवल धन के लिये ही प्रेम का ढोंग करती थी और अपने बचपन के मित्र रिजवी से प्यार करती थी। मैंने आनंद को इसकी जानकारी देकर आगाह किया था परंतु पता नही पल्लवी ने ऐसी कौन सी जादू की छडी घुमायी थी कि आनंद चकरी के समान उसके आगे पीछे घूमता था। वह जो चाहती थी किसी भी प्रकार से आनंद से प्राप्त कर लेती थी। उसी ने आनंद को उकसाया था कि उसके ना रहने पर उसे कोई आर्थिक रूप से दिक्क्त ना हो इसकी व्यवस्था अपनी वसीयत में कर दे। आनंद ने अपनी समस्त संपत्ति वसीयत के अनुसार उसके नाम लिख दी थी। इस वसीयतनामे को मुझे और पल्लवी को भी बताया था। पल्लवी के रिजवी से शादी करने के कारण आनंद को बहुत मानसिक पीडा हुयी थी एवं उसका दिल टूट गया था। इससे नाराज होकर उसने संभवतया वसीयत में बदलाव कर दिया था ऐसा आनंद की बातों से महसूस होता था। मैंने कभी उससे इसकी वास्तविकता जानने के लिये नही पूछा। मुझे ये बातें गौरव से पता होती थीं। यह जानकर पल्लवी बहुत नाराज थी और उसने आनंद से इस बारे में बातचीत की थी। मुझे पल्ल्वी ने बताया था कि आनंद ने स्वीकार किया है कि उसने पुरानी वसीयत रद्द कर दी थी एवं नई वसीयत जानकारी मुझे नही दी।

जाँच अधिकारी के पूछने पर कि पल्लवी आनंद के कितने नजदीक थी ? क्या उसको सब बातों की जानकारी रहती थी, क्या वह आनंद के व्यापारिक मामलों में भी दखलंदाजी करती थी ? आनंद से उसने क्या क्या प्राप्त किया ? एंव आगे उसकी क्या अपेक्षाएँ थी ?

मानसी ने कहा कि आनंद पल्लवी को अपना समझता रहा परंतु पल्लवी के मन में धन लोलुपता की भावना भरी हुयी थी और इसके लिये वह कुछ भी समझौता कर सकती थी। उसे