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ठग लाइफ - 10

ठग लाइफ

प्रितपाल कौर

झटका दस

सविता आज फिर वहीं खडी थी जहाँ चैनल से नौकरी छूटने पर थी, या उससे पहले जब अरुण उसके साथ रात बिताने के बाद उसे हाथ में पकडे चाय के कप के साथ छोड गया था या फिर तब जब बैंक में पैसे जमा करवाने के बाद कुरसी पर बैठ कर रोना चाहती थी और अरुण सामने आ खडा हुआ था या उससे पहले जब उसने गुरूद्वारे में शादी कर के निहाल के घर में दाखिला लिया था और उसके स्वागत को कोई भी खड़ा नहीं हुआ था. या फिर तब जब माँ पापा और भाई छुट्टियां मनाने जाते थे और उसे रिश्तेदारों के घर या हॉस्टल में ही छोड़ दिया जाता था.

सविता नहीं जानती उसकी असली जगह कहाँ थी या अब है. वैसे आज कल उसे लगने लगा है कि शायद गुडगाँव की इस पॉश ईमारत में नौवीं मंजिल पर उसने अपना आख़िरी घर हासिल कर लिया है. उसके खर्चे चलने लायक पैसा उसे आ ही जाता है. पापा भी कभी-कभी पैसे भेज देते हैं. मम्मी से छिपा कर. साल में एक बार दो दिन के लिए आते भी हैं उससे मिलने.

एक बार कहा भी था उन्होंने, “बेटा. मैं तेरा मुजरिम हूँ. तुझे जो मिलना चाहिए वो नहीं मिला और मैं कुछ नहीं कर सका. हो सके तो मुझे माफ़ कर देना. मुझ से जो बन पड़ा मैं जिंदा रहते तेरे लिए करूंगा. बाद में भी कुछ छोड़ कर जाऊंगा.”

इस वक़्त जिस घर में सविता है इसका आधे से ज़्यादा पैसा पापा ने ही दिया है. मम्मी से छिपा कर. इसीलिये रहने के लिए सविता ने इसी घर को चुना है. दूसरे फ्लैट को किराये पर दे रखा है. उस पैसे से सविता के खर्चे चलते हैं. रमणीक ने उम्मीद दिलाई थी एक अच्छी नौकरी की. अब वो ख़त्म. जानती है अब रमणीक कभी फ़ोन नहीं करेगा.

कल रेचल के घर से आने के बाद सविता चुपचाप बैठी रही थी. बिना कुछ किये. यहाँ तक कि टीवी भी नहीं देखा, न रात का खाना खाया. अब सुबह उठी तो बहुत भूख लग रही थी. दो अण्डों का बड़ा सा आमलेट बना कर अभी खाया है.

आईपैड खोल कर बैठ गयी है. वकील का ईमेल है पिछले हफ्ते का. पिछले कई महीनों से सविता ने ऑनलाइन होना बहुत कम कर दिया है. ईमेल खोल कर पढ़ा तो पता लगा अगले हफ्ते मंडे को उसकी कोर्ट में पेशी है. निहाल सिंह पर जो फ्रॉड कर के तलाक देने के खिलाफ उसने मुक़द्दमा दायर किया है उसी सिलसिले में. इसके बाद ही कोर्ट निहाल को इंडिया बुलाने की कारवाई पर विचार करेगा. यही लिखा है वकील ने. और अपना बिल भी भेजा है

रमणीक ने कहा था वो अपने वकील से कह कर फीस कम करवाएगा. लेकिन खैर! सविता ने ठंडी सांस ली और फेसबुक खोल लिया.

एक साथ कई नोटीफिकेशन नीली ज़मीन पर लाल बत्तियों जैसे चमक उठे. सविता सबसे पहले मेसेज बॉक्स में जाती है. कई दोस्तों के मेसेज हैं कुछ पुराने कुछ नए. कुछ स्कूल के ज़माने के कुछ कॉलेज के. जोक्स, वीडियो. और तभी जो अगले मेसेज पर उसकी नज़र पडी तो कुछ चौंक गयी. एक खूबसूरत युवा लडकी, शक्ल कुछ जानी-पहचानी सी लगी. नाम पढ़ा तो सविता का कलेजा मुंह को आ गया. जसमीत निहाल मरहोक. सविता के हाथ कांपने लगे. उसने घबराते कांपते हुए मेसेज खोला. लिखा था.

"हाय, अगर मैं सही पहचान रही हूँ तो आप वही सविता मेहंदीरत्ता हैं जो कभी पटना में रहती थीं. जिसकी एक बेटी थी. जसमीत. मैं वही जसमीत हूँ. आज कल भारत आयी हुयी हूँ. दो हफ्ते बाद नैशविल चली जाऊंगी. अगर आप वही सविता हैं तो मैं आप से मिलना चाहती हूँ. अपना नंबर भेज दें.”

सविता की ऑंखें पढ़ते पढ़ते ही तर हो आयी थी. जब तक मेसेज पूरा पढ़ा तब तक मोटी धार उसके गालों पर बह रही थी. किसी तरह नाक, ऑंखें और मुंह पोंछते पोंछते सविता ने अपने दोनों नंबर लिखे. अपना एड्रेस लिखा. और लिखा, “ मेरी बच्ची मैं ही तेरी माँ हूँ. मुझे आ कर मिल.”

इस बार ज़िंदगी ने छीने हुए से बहुत ज्यादा सविता की झोली में डालने का वादा किया था. बेशकीमती. सविता को लगा कि अब किसी और की तलाश नहीं उसे. ठिकाना मिल गया. आज सविता अपने घर में आराम कुर्सी पर बैठी ढाहें मार मार कर रो रही थी. दिल उदास भी था. खुश भी. अकेला तो था मगर अकेलेपन की टीस से आज़ाद भी.

आज सविता को किसी अरुण या रमणीक का इंतजार नहीं था जो उसे बाहों में ले कर आगे का रास्ता दिखाए. आज उसे एक नयी ज़िन्दगी ने दस्तक दे कर अपने उन फर्जों की याद दिलाई थी जिन्हें वह पूरी तरह भुला चुकी थी.

सविता को अब किसी और के लिए कुछ करना था. यानी खुद के लिए जीने की सविता की उम्र का सफ़र पूरा हो चूका था. अब ज़िन्दगी का ढलान वाला सफ़र शुरू होने को था. यहाँ इम्तिहान तो थे मगर इम्तिहान आसान थे. क्यूंकि ज़िंदगी भर जो पाठ पढ़े थे वे सविता की रग-रग में घुले हुए थे.

माँ को माँ होने का फ़र्ज़ अदा करना था, कुछ इस तरह की बेटी होने की खुशी भी जो ज़िन्दगी भर नहीं मिली, इसी रिश्ते में हासिल हो जाए. माँ जो कभी नहीं मिली उसे खुद में स्थापित करे और इसी तरह से खुद ही अपनी परिभाषा मैं गढ़ी हुयी माँ होने के मतलब को जाने. जाने कि आखिर माँ क्या होती है? ज़िन्दगी ने एक चक्र पूरा कर लिया था. अब दूसरा शुरू होने को था.

सविता और भी पता नहीं क्या क्या सोचती रहती और जाने कितनी देर यूँही रोती रहती लेकिन फ़ोन की घंटी ने उसे चेता दिया. अन-नॉन नंबर था. एक बारगी डर गयी. बुरी तरेह चौंक भी गयी. कल रात के बाद से तो रमणीक की पाटने एरेखा या बेटे आशीष का कोई फ़ोन नहीं आया था. सरे नंबर उसने ब्लाक कर दिए थे.

लगता हैं उन्हीं में से कोई फिर फ़ोन कर रहा अहै. किसी नए नंबर से. ये अमीर लोग हैं शक्तिशाली. अब जा कर सविता को अपनी भूल का सही अंदाज़ा हुआ था. इनसे बच कर कहाँ जा पायेगी? कहीं ये शहर न छोड़ना पड़ जाए. सारी तो जायदाद यहीं बना रखी है. सारी जान पहचान भी यहीं बनी है. पिछले सालों में जो बनाया है संवारा है समेटा है वो सब एक ही झटके में उजड़ता दिखाई दे रहा था सविता को.

दिल बैठ गया बुरी तरह. समझ नहीं आया कि क्या करे. दिमाग जैसे भागने लगा और फिर खुद के ही पांवों में उलझ कर गिर पडा. लगा जैसे कई रास्ते हैं उसके सामने खुले हुए लेकिन पाँव बंधे हैं. पाँव बंधे हैं उसकी मजबूरियों से. कहने को दुनिया बहुत बड़ी है कहीं भी जाना असंभव तो नहीं लेकिन क्या यूँही उठ कर कहीं चला जाना संभव है? ख़ास तौर पर सविता जैसी औरत के लिए?

सविता सोच में पड़ गयी. कुछ पल पहले का गुबार छंट गया तो सोचने लगी. कहाँ जा सकती है? कौन है उसका अपना? नाम लेने पर आयी तो कोई नाम न था. कोई निशाँ नहीं था उसके पांवों का जहाँ लौट कर जा सके. इंसान जितनी ज़िंदगी जीता है अपनी निशानियाँ पीछे छोड़ता चला जाता है. लौट लौर कर इन्हीं निशानियों को छूने, जीने, फिर फिर चीन्हने आता है. मुड़ -मुड़ कर. लेकिन सविता की ज़िंदगी तो सफा चाट स्लेट थी. कोई बंधन नहीं ऐसा जो खींचे. कोई निशान नहीं कदमों का जो शिद्दत और मोहब्बत से राह काटे और लौटने को मजबूर करे.

अब जब इस नयी मुसीबत ने मोह भंग किया है सविता का तो वह सोचने को मजबूर हो गयी है कि क्या सचमुच कोई स्थाई साथी नहीं होने की उसकी नियति की ऐसी भयावह परिणिति उसकी अपनी करनी का फल है? क्या उसे रमणीक के साथ सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए थे?

लेकिन अपनी अब तक की ज़िन्दगी के पन्ने पलट कर अपनी विभिन्न स्थितियों को देखती है तो कुछ फैसला नहीं कर पाती. जिन हालात में निहाल सिंह से शादी की थी. वे उस शादी के लिए उप्तुक्त थे. उस वक़्त का एकदम सही फैसला था. उसे अपना घर चाहिए था. ये भी एहसास था कि माँ या पापा तो इस सिलसिले में कोई पहल करेंगे नहीं.

वे उसे पढ़ाने लिखाने का खर्चा उठा रहे थे. ये भी एक तरह से उस पर एहसान ही था. उनके घर में पैदा होने का क़र्ज़ वे उसका खर्चा दे कर चुका रहे थे.

आज तक उसने लाखों बार सोचा तो भी इस बात पर कोई फैसला नहीं कर पाई कि उन्होंने उसे पाला ही क्यों. क्यूँ नहीं मार ही डाला. या फिर गोद में ही दे दिया होता किसी को. यूँ इस तरह अपने से दूर रखा. सविता के दूसरों के घरों में और होस्टलों में पलते हुए माता-पिता ने तो अपना फ़र्ज़ अदा कर लिया लेकिन खुद सविता के साथ कितना अन्याय किया इसका शायद उन्हें अंदाज़ा नहीं था.

कई बार अविता का दिल करता कि वह जा कर अपनी माँ से दो टूक बात करें. लेकिन फिर अगले ही पल उसे ये ख्याल भी आता कि कहीं ऐसा करने से जो थोड़ी बहुत सहानुभूति उसके पापा के मन में है उसके लिए वह भी ख़त्म न हो जाए.

कहीं पापा से मिलने वाला सालाना पैसा और हर महीना का खर्चा भी बंद न हो जाये. दुनिया के समंदर में अकेली अपने ही बल पर ज़िन्दगी काट रही सविता जानती है कि उसकी योग्यताएं इतनी नहीं हैं जो उसे एक बहुत अच्छी नौकरी दिला सकें. इसके अलावा अब उसकी उम्र भी उसका साथ देने से इनकार करने लगी है.

वक़्त के साथ एनर्जी लेवल कम होने लगे हैं. जिस्म भी ढलने लगा है. ख़ूबसूरती धुंधली पड़ने लगी है. कमर का विस्तार हर नए जन्मदिन के साथ बढ़ रहा है.

अब अगर जा कर माँ से झगडा किया तो शायद पापा ने जो वादा किया है जायदाद में से कुछ हिसा देने का वो भी न अधूरा रह जाए.

सविता डरती है. हर बात से डरती है. हर चीज़ से डरती है. हालाँकि कहती सभी से यही है की वह किसी से नहीं डरती. लेकिन अकेली होने से डरती है. रात से डरती है. दिन से डरती है. सुबह से डरती है. शाम से डरती है. शराब से डरती है. शराब पीने से डरती है. और शराब ना पीने की मजबूरी से डरती है. नशे में गाफिल होने से डरती है. नशा न चढ़े तो होश में रहने से डरती है. यहाँ तक कि अब जिस तरह जिस्म फैलने लगा है उसका तो खाने से भी डरती है.

लेकिन जब खाने लगती है तो स्वाद के चटखारे के लालच में खाते चली जाने से डरती है. उसके बाद मोटी हो जाने से डरती है.

और अब इस नए झमेले ने रमणीक की पत्नी और बेटे के नाम के दो और राक्षस उसके डरों की झोली में डाल दिए हैं. डरों की इस भारी भरकम झोली का भार उसके मन पर पत्थर की तरह पिछली रात से ही पडा हुआ उसे दबाये चला जा रहा है.

दरवाजे की घंटी ने सविता को चौंका दिया. सारे डरों को परे सरका कर वह उठ खड़ी हुयी. दरवाजे पर रेचल थी.

"हाय सविता. आय वाज़ वरीड अबाउट यू. अब कैसा लग रहा है?"

उसकी आवाज़ में वाकई चिंता थी. रेचल जानती है कि सविता इस मामले में उससे झूठ बोल रही है लेकिन ये भी जानती है कि खुल कर अपनी गलती कैसे स्वीकार करे? दूसरे परिपक्व उम्र की रेचल समझती है कि दो लोगों के बीच जो एक दूसरे को बचपन से जानते हों ऐसे सम्बन्ध बन जाना कोई असंभव बात नहीं है.

राचेल ये भी जानती है कि दोस्ती होने के बावजूद सविता की निजी ज़िंदगी के बारे में जानने या पूछने का हक उसे नहीं है. हाँ, वो बताना चाहए और जितना बताना चाहे उतना ठीक है. ज़ाहिर है जब तक सविता उसे कहती रहेगी कि रमणीक और उसके संबंधों में कोई दुराव छिपाव नहीं है रेचल उसकी बात का यकीन करेगी और उसी को सच जानेगी. जानते समझते हुए कि वह झूठ बोल रही है.

दोस्ती का तकाजा यही है. दोस्ती का तकाजा ये भी है कि मुश्किल में होने पर अकेली रह रही सविता का हाल-चाल जानना भी उसका फ़र्ज़ है. वही निभाने वह चली आयी है. नाश्ता साथ करने के के न्यौते के साथ.

कोई और दिन होता तो सविता आते ही उसे अपने बेटी के मेसेज के बारे में पुलक कर बताती. लेकिन इस उलझन और परेशानी के बीच कोई भी खुशी उसे इस परेशानी को भूलने नहीं दे रही है.

"आय ऍम ओके. राचेल, थैंक्स फॉर कमिंग. मुझे बहुत डर लग रहा है. ये लोग पता नहीं क्या करेंगे?"

"राचेल भी चिन्तित हो उठी.

"डू यू थिंक सो? तुम्हें लगता है ये नुक्सान पहुंचा सकते हैं?"

"हाँ मैं जानती हूँ. ये लोग तो गायब ही करवा देते हैं. बहुत ताकतवर लोग हैं. मैंने कई कहानियां सुनी हैं और खुद रमणीक कहता है रेखा बहुत गुस्से वाली है."

राचेल ने मन में ही सोचा कि अगर रमणीक ये बात जानता है तो क्यूँ उसने सविता को इस उलझन में डाला. उसे खुद ही इस तरह के रिश्तों से बच कर रहना चाहिए था.

लेकिन रेचल कुछ नहीं बोली. एक तो वह सविता को ये नहीं जाताना चाहती कि सविता के झूठ को समझती है, दूसरे किसी की निजी ज़िन्दगी के बारे में जजमेंटल होना उसकी फितरत में सिरे से ही नहीं है. इसी लिए शायद वह अपनी उम्र के पुरुषों के साथ ताल मेल नहीं बिठा पाती. उसका मन उन्हीं पुरुषों पर मोहित होता है जो खासे परिपक्व हों और ऐसे पुरुष उम्र में उससे बहुत बड़े और अक्सर विवाहित ही होते हैं.

कभी-कभी रेचल निराश भी हो जाती है. लगता है कि उसे जीवन साथी मिलेगा ही नहीं. किसी की शादी में वह कभी दाखिल नहीं होगी और उसके लायक कोई पुरुष अब तक कहाँ बिना शादी किये बैठा होगा?

"तुम डरो मत. कुछ दिन ठहर के रमणीक से बात करना. " रेचल को इस मुश्किल का कोई हल समझ नहीं आता. उसके अनुसार जिसने समस्या खड़ी की है उसी को उसका समाधान भी करना चाहिए.

"शायद तुम ठीक कहती हो. रमणीक को ही अपनी बीवी को समझाना होगा.वही ठीक करेगा ये मामला. लेकिन मैं उससे बात कैसे करूं? उसका फ़ोन तो रेखा के पास है."

"अरे. तुम मत लगाना फ़ोन उसको. वही करेगा. थोडा वेट करो. करना चाहिए उसे. उसकी वजह से तो सारी मुश्किल उठ खड़ी हुयी है."

रेचल ने कह तो दिया लेकिन मन में लगा कि शायद रमणीक ने इस मसल से हाथ धो लिए हैं. जिस तरह सविता को रमणीक के फ़ोन से भी रेखा ने फ़ोन कर के गालियाँ दी थीं उससे ज़ाहिर था कि वह वहीं कहीं आस-पास ही था. और ये सब होने दे रहा था. उसने बात को अपने लेवल पर सुलझाने की कोशिश नहीं की थी. आंच को सविता तक पहुँचने में कोई रूकावट भी नहीं डाली थी.

रेचल ने सोचा तो लगा कि कुछ तो ताकत रमणीक के हाथ में भी होगी रेखा और रमणीक के संबंधों की, जैसे हर शादी में होती है, कुछ पत्नी के पास कुछ पति के पास. उसी का इस्तेमाल करके वह सविता को इस बेईज्ज़ती से बचा सकता था जो ज़ाहिर है उसने नहीं किया था.

ये बात इशारा कर रही थी कि रमणीक को सविता की सुरक्षा या उसकी इज्ज़त की परवाह नहीं थी. और अगर ऐसा था तो शायद ही वह आगे भी सविता के पक्ष में कुछ करेगा. इस मुद्दे पर रेचल को सविता बिलकुल अकेली पड़ी दिखाई दी. उसे सविता से सहानुभूति हुयी. उसने सविता को एक बड़ा सा हग दिया और बोली, "चलो मैं तुम्हें लेने आयी हूँ. हम ब्रेकफास्ट साथ करेंगे. मोम आज देर से कॉलेज जायेंगी. उन्होंने फ्रेंच टोस्ट बनाए हैं."

उसका गले लगाना था कि सविता का रुका हुया बाँध जो सुबह बेटी का मेसेज देखा कर बहा था एक बार फिर भरभरा कर ढेह गया. वह फूट फूट कर रोने लगी. रेचल उसे गले से लगाए रोते हुयी उसकी काँप काँप जाती देह को संभाले खड़ी रही.

काफी देर रो लेने के बाद जब थक चुकी सविता का रोना रुका तो रेचल ने उसे उसका फ़ोन पकडाया और चाबी लेने को कहा. हाथ पकडे हुए दोनों दोस्त घर से बाहर आयी और दो मंजिल ऊपर ग्यारवीं मंजिल के रेचल के पेंटहाउस पर जाने के लिए लिफ्ट के सामने आकर बटन दबा दिया.

लिफेत ग्राउंड फ्लोर से जब रुकती रुकती हुयी ऊपर आ रही थी तब रेचल ने कहा,"सविता, माँ को इस बारे में कुछ पता नहीं है. प्लीज उनके सामने ये बात न करें. वे कॉलेज चली जायेंगी अभी आधे घंटे में तब बता करेंगे कि क्या किया जा सकता है."

"हाँ. मैं भी तुम्हें यही कहने वाली थी. मैं भी नहीं चाहती कि तुम्हारी माँ को कुछ पता लगे. ये बात हम दोनों तक ही रहनी चाहिये. "

तभी लिफ्ट आ गयी और उसमें सवार हो कर ग्याहरवीं फ्लोर का बटन दबाते हुए सविता को बेटी के मेसेज की याद आयी.

वह चहक कर बोली."रेचल, आय सिम्पली फॉरगॉट तो टेल यू. मेरी बेटी इंडिया में है. उसने मुझे मेसेज किया. शी वांट्स टू मीट मी. मैंने अपना पता और नंबर भेजे हैं. वो मुझे कांटेक्ट करेगी देखते ही. आय ऍम सो लकी. सी. आय ऍम सो लकी. शी इज यंग गर्ल नाउ. बिग गर्ल. ऑलमोस्ट योर ऐज. " खुशी से सविता की ऑंखें चमक रही थीं और उनमें आंसूं भर आये थे. गला भी रुन्ध गया था.

रेचल का दिल सविता को देख कर धुंध की तरह सहम गया. बेटी की खुशी मिली भी तो किन हालात में. उसे सचमुच सविता की किस्मत पर दया आयी. उसने मिली जुली भावनाओं से भर कर सविता को फिर गले से लगा लिया.

इसी तरह चहकते हुए सविता की बेटी के बारे में बातें करते हुए दोनों दोस्त रेचल के घर में दाखिल हुए. उसकी माँ कॉलेज जाने के लिए तैयार हो चुकी थी. नाश्ता कर रही थीं.

सविता को देखते ही खुल कर मुस्कुरा दी. "हेल्लो सविता. माय ब्यूटीफुल फ्रेंड. माय ब्यूटीफुल डॉटरज फ्रेंड. गॉड ब्लेस यू डिअर. तुम्हारे होने से मुझे रेचल की कभी फिक्र नहीं होती. थैंक यू डिअर. "

सविता ने उन्हें झुक कर एक मीठा सा गरम हग दिया और बोली, "हेल्लो माय ब्यूटीफुल गोर्जुस फ्रेंड. राचेल है तो मुझे अपनी कोई फिकर नहीं होती. रेचल के होने से मैं बिक्लुल बेफिक्र रहती हूँ. आप नहीं जानती आप कितनी लकी हैं. ऐसी बेटी भाग्य से मिलती है. "

"थैंक यू डिअर. यू आर राईट. रेचल इस दुनिया की सबसे अच्छी बेटी है. "

ये कहते हुए हेलेन ने अपनी प्लेट से फ्रेंच टोस्ट का आखिरी टुकड़ा फोर्क से अपने मुंह में डाला और उठ खड़ी हुयीं.

"यू वील हैव तू एक्सकियुस मी. मेरा कॉलेज का टाइम हो गया. शाम को मिलते हैं."

"श्योर और मैं आप को अच्छे से बताऊंगी शाम को. लेकिन अभी बता दूं मेरी बेटी का पता लग गया है. उसने मुझे फेसबुक पर मेसेज किया है इंडिया आई हुयी है. अब हम ,मिलेंगे. "

वे चलते चलते ठिठक गयीं. उनके चेहरे पर खुशी की चमक और एक बेहद मीठी मुस्कुराहट आ गयी. "गॉड ब्लेस यू डिअर. बहुत बहतु मुबारक हो, स्वीटहार्ट. यू विल सर्टेनली मीट हर एंड शी विल बी इन योर लाइफ फॉरएवर. गॉड ब्लेस यू. टेल मी अबाउट हर इन डिटेल इन द इवनिंग. "

और वे जल्दी से अपना पर्स उठा कर दोनों महिलाओं कलो बाय कहती दरवाजे से बाहर हो गयीं.

रेचल ने हाथ पकड़ कर सविता को बिठाया और खुद भी बैठ गयी.

" पहले नाश्ता किया जाए. बहुत भूख लगी है. माँ मेक्स द बेस्ट फ्रेंच टोस्ट इन द वर्ल्ड."

भूख तो सविता को भी बहुत लगी थी. कल रात भी दूध और ब्रेड खा कर सो गयी थी. सामने पड़े फ्रेंच टोस्ट ने उसकी भूख और बढ़ा दी थी. दोनों दोस्त नाश्ते पर टूट पडीं. कुछ पल सिर्फ काँटों और छुरी की आवाजें ही कमरे में आती रही.

सविता अपनी ही उधेड़-बुन में थी. रेचल सोच रही थी कि किस तरह सविता इन दो बिलकुल विपरीत स्थितयों के बीच खुद को संभालेगी. एक तरफ रमणीक का पूरा परिवार उसका दुश्मन बन बैठा था. जो बेहद खतरनाक स्थिति भी हो सकती थी और दूसरी तरफ बचपन से ही बिछडी बेटी से मिलने का योग बन रहा था. कहीं बेटी भी इस युद्ध के चपेटे में न आ जाये.

सविता को चौकन्ना रहने की ज़रूरत थी. रेचल को लगा सविता शायद खुद अपनी स्थिति अच्छे से समझती है. और अगर ऐसा नहीं है तो रेचल को ही उसे समझाना होगा. सविता को चाहिए कि बेटी को इस पचड़े से दूर ही रखे. हो सके तो उसे यहाँ न बुलाये. खुद ही वहां जा कर मिल आये जहाँ बेटी रह रही है.

कई बार रेचल ने महसूस किया है कि सविता कम-अकली से फैसले ले लेती है और गलत कदम उठा लेती है, बिना सोचे समझे. अब रमणीक वाला तो पूरा मामला ही कम-अकली का है. लेकिन कुछ कह नहीं पाई सविता से. चुपचाप खाना खाती हुयी सविता को देखती रही.

सविता को खाते वक़्त सिर्फ स्वाद से भरपूर होना होता है. हालाँकि मन बुझा हुआ है रमणीक वाले मसले को लेकर लेकिन बेटी की खबर ने इस तनाव को कुछ हद तक कम कर दिया है.

रेचल को चाहे वो कुछ भी कहती रहे, मन में उसे विशवास है कि उसे मरवाने या किसी तरह का शारीरिक नुक्सान पहुँचाने का काम रेखा नहीं करेगी. इसके अलावा वो उसका और कुछ बिगाड़ नहीं सकती. इस बात का सविता को पूरा भरोसा है.

हाँ, बेटी को जरूर इस मामले से दूर रखना होगा. सोच रही थी कि उसका जवाब आ जाए तो फिर सोचेगी कि उसे कैसे मिलना है. सविता का दिल तो कर रहा है कि जितने दिन बेटी भारत में है उसके साथ ही रहे लेकिन बेटी का क्या मन है ये देखना होगा.

क्या बेटी जसमीत उसे पसंद भी करेगी? पहचानेगी भी एक माँ की तरह? क्या जाने कुछ कहने के लिए ही मिलना चाहती हो. मन में कोई भाव न हो. कौन जाने बेटी के मन में उसके लिए क्या है? कहीं दादी ने या पिता ने उसके मन में सविता के प्रति ज़हर न भर दिया हो.

हो सकता है सिर्फ उसे एक बार देखना ही चाहती हो. उसके आगे कोई वास्ता न रखना चाहती हो. खैर! देखा जाएगा. फिलहाल तो ये रमणीक वाला मसला सुलझाना बहुत ज़रूरी है.

यही सब सोचते हुए नाश्ता कर के उसने चाय का कप उठाया ही था, जो रेचल ने अपना नाश्ता ख़त्म कर के बहुत पहले ही उसके लिए केतली में से ढाल दिया था. तभी उसके फ़ोन की घंटी एक बार फिर बजी. वही अन-नोन नंबर था जिससे सुबह फ़ोन आया था और डर के मारे सविता ने कॉल नहीं ली थी.

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